2016 में मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद नए मंत्री Modi Government in 2016 After the Cabinet Reshuffle, New Minist

प्रस्तावना:- नए मंत्रियों के शपथ के समय सामान्य लग रहा मोदी जी का मंत्रिमंडल के फेरबदल में जबरदस्त परिर्वतन हुए हैं, रात में मंत्रालयों के बंटवारा होते-होते भारी उलटफेर में बदल गया है। इससे सबसे बड़ा झटका केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को लगा, जिन्हें कम महत्व वाले कपड़ा मंत्रालय में भेज दिया गया। यह मंत्रालय अब तक राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार के पास था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की कमान को ही मंत्रिमंडल मंत्री तौर पर पदोन्नति हुए प्रकाश जावेड़कर को सौंप दी गई है। इससे पहले 19 मोदी सरकार में शामिल मंत्रियों में 12वीं पास से लेकर वकील, चिकित्सक और पीचडी होल्डर (किसी वस्तु-विशेष अधिकार⟋स्वामित्व वाला व्यक्ति) तक शामिल है।

नए मंत्री:-उत्तराखंड के अजय टम्टा 12वीं पास हैं, एमजे अकबर जाने-माने पत्रकार, संपादक हैं, वहीं अनिल माधव दवे को नर्मदा व पर्यावरण संरक्षण पर किए काम के लिए जाना जाता हैं। 19 नए चेहरों को मोदी सरकार ने जरूर अपने मंत्रिमंडल में जगह दी है, लेकिन सभी को राज्यमंत्री का दर्जा ही दिया गया है। केवल पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को राज्यमंत्री से पदोन्नति देकर मंत्रिमंडल मंत्री बनाया गया है। अगले साल विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रही यूपी को भी कोई विशेष दर्जा नहीं दिया गया है। विस्तार में सबसे अधिक चार मंत्री राजस्थान से शामिल किए गए हैं। विधानसभा चुनाव वाले राज्य उत्तर प्रदेश से तीन तथा उत्तराखंड से पहली बार एक मंत्री केंद्र में लिया गया। इसके अलावा 6 वकीलों ने मंत्रिमंडल में जगह बनाई।

अन्य 19 मंत्रियों के नाम इस प्रकार हैं-

  • डॉ. सुभाष भामरे महाराष्ट्र के सांसद- कैंसर विशेषज्ञ है।
  • प्रकाश जावेड़कर- मानव संसाधन विकास।
  • एमजे अकबर 65 वर्ष राज्यसभा सांसद मप्र-कांग्रेस से भाजपा में आए अकबर को विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाकर मोदी ने सरकार की उदार छवि पेश करने की कोशिश की है। इन्हें विदेश राज्य मंत्री बनाया गया।
  • राजेन गुहाई 66 वर्ष लोकसभा सांसद, असम।
  • अनिल माधव दवे 60 वर्ष राज्यसभा सांसद मप्र-पहली बार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने और पर्यावरण जैसा बड़ा मंत्रालय मिला। संघ की नजदीकी और पर्यावरण मामलों की विशेषज्ञता काम आई। इन्हें पर्यावरण मंत्री बनाया गया।
  • अजय टम्टा 46 वर्ष लोकसभा सांसद उत्तराखंड,
  • विजय गोयल 62 वर्ष राज्यसभा सांसद राजस्थान,
  • रामदाजस अठावले 57 वर्ष राज्यसभा सांसद महाराष्ट्र,
  • फगनसिंह कुलस्ते 57 लोकसभा सांसद मप्र-वरिष्ठता का ध्यान रखकर मंत्री पद तो दिया गया, लेकिन नोट कांड की छाया ने इन्हें मंत्रालय के दर्जे से दूर ही रखा। इन्हें स्वास्थ्य राज्य मंत्री बनाया गया।
  • अनुप्रिया पटेल 35 वर्ष लोकसभा सांसद, यूपी
  • जसवंत सिंह भाभौर 50 वर्ष लोकसभा सांसद, गुजरात,
  • अर्जुनराम मेघवाल 63 वर्ष लोकसभा सांसद, बीकानेर-यहां भी जातिगत समीकरण, निहालचंद मेघवाल को मंत्रिपरिषद से हटाने के बाद अर्जुनराम मेघवाल को मंत्री पद से नवाजा गया। इन्हें वित्तराज्य मंत्री बनाया गया।
  • पीपी चौधरी लोकसभा सांसद, पाली-साफ छवि और वित्त मंत्री अरूण जेटली से करीबी के कारण मंत्री बनने में सफल हुए। जेटली और चौधरी दोनों ही सुप्रीम न्यायालय में वकील हैं। इन्हें कानून राज्यमंत्री बनाया गया।
  • मनसुख भाई मांडविया 44 वर्ष राज्यसभा सांसद गुजरात।
  • एसएस आहलूवालिया 72 वर्ष लोकसभा सांसद, पं. बंगाल
  • सीआर चौधरी लोकसभा सांसद, नागौर-सांवरलाल जाट को मंत्रिमंडल से हटाने के बाद जाट मतों की नाराजगी से बचने के लिए जाट समुदाय के सीआर चौधरी को स्थान मिला। इन्हें खाद्य राज्यमंत्री बनाया गया।
  • पुरुषोत्तम रूपला राज्यसभा सांसद, गुजरात।
  • रमेश जिगजिनागी लोकसभा सांसद, कर्नाटक।
  • कृष्णाराज लोकसभा सांसद, कर्नाटक।

अन्य श्रेणीयों में मंत्री:-एससी-05, ओबीसी-05, अन्य 03, ब्राह्यण में 02, एसटी 02, अल्पसं. 02

बसपा सुप्रीमों मायावती का कहना है कि मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में होने वाले आम चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है।

मोदी ने कहा कि बजट को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल का विस्तार किया जा रहा है। शाहजहांपुर, यूपी भी बतौर राज्यमंंत्री मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं।

उत्तर प्रदेश से 3 मंत्रियों ने शपथ ली है। मध्यप्रदेश और गुजरात से 3 - 3 मंत्रियों ने शपथ ली हैं।

इस तरह कुल मिलाकर 78 मंत्रिपरिषद में मंत्री हुए हैं।

स्मृति ईरानी:- को हटाने के तीन कारण प्रमुख हैं-

  • संघ -उनके काम-काज से नाखुश था। उसे लग रहा था कि मंत्रालय कई अहम फेसले को लेने में लंबा समय लगा रहा हैं। शाह भी नाखुश थें।
  • जेएनयू -वेमुला प्रकरण भारी- जेएनयू प्रकरण, रोहित वेमुला सहित कई प्रकरणों को संभालने में ईरानी विफल रहीं, इसके चलते पूरी सरकार को आलोचना का शिकार बनना पड़ा।
  • शिक्षण संस्थाओं से टकराव-दो साल के कार्यकल के दौरान देश के शीर्ष उच्च शिक्षण संस्थाओं का लगातार मानव संसाधन विकास मंत्रालय से टकराव चलता रहा था।

नाम हटना:- केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए 19 मंत्रियों में महाराष्ट्र से सांसद और दिग्गज भाजपा नेता स्वर्गीय प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन और राज्यसभा में भेजे गए नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी शामिल था। सूत्रों के हवाले से खबर है कि संघ के उच्च पदाधिकारियों से चर्चा के दौरान पूनम महाजन और सिद्धू का नाम तय था, लेकिन शपथ ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व मोदी जी और शाह के बीच हुई बैठक के बाद दोनों का नाम सूची से हट गया। सूत्र बताते है कि धूले से सांसद भामरे का नाम पूनम महाजन के स्थान पर वहीं सिद्धू के स्थान पर अहलूवालिया के नाम को प्राथमिकता दी गई है। संघ के बड़े अधिकारी का कहना है। कि संघ ने पूनम के नाम पर अपनी सहमति दे दी थी, लेकिन अंतिम समय में नाम क्यों हटा इसकी जानकारी हमें नहीं हैं।

पांच राज्यों से मंत्रीयों की छट्‌टी भी हुई हैं इनमें रामशंकर कठेरिया, निहालचन्द्र मेघवाल, सांवरलाल जाट, मनसुखभाई डी वासवा और मोहन भाई कुंडारिया हैं

प्रयास:-निम्न हैं-

  • बुजुर्गो की छुट्टी- मप्र में गौर और सरताज की छुट्‌टी के बाद प्रयास थे कि कलराज और नेजमाभी बाहर जाएंगे पर ऐसा हुआ नहीं।
  • रिपोर्ट कार्ड (विवरण⟋साधारण सूचना का मोटा काग़ज) तय करेगा भविष्य- ऐसा माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल में बदलाव पर इस विवरण कार्ड का असर रहेगा। पर यह भी नहीं हुआ।
  • किस चुनावों का असर होगा- कहा जा रहा था विधानसभा चुनावों को देखते हुए यूपी पंजाब को दर्जा मिलेगी। यूपी को तीन तो पंजाब को एक भी मंत्री नहीं मिला।

बाजी:- पीयूष गोयल और धर्मेंद्र यादव समेत करीब आधा दर्जन राज्य मंत्रियों के पदोन्नति की चर्चा थीं हालाकि बाजी जावेड़कर ने मारी। इनके पदोन्नति के तीन कारण निम्न हैं-

  • पहला जलवायु परिर्वतन के मुद्दे पर जावड़ेकर के अच्छे काम से मोदी खुश थे, उन्हें संघ का भी समर्थन प्राप्त है।
  • दूसरा भाजपा और संघ दोनों का मानना है कि जावड़ेकर संघ के लक्ष्य को सही तरीके से लागू करने में सक्षम हैं।
  • तीसरा प्रकाश जावड़ेकर हमेशा विवादों से दूर रहते हैं संघ भी एचआरडी मंत्री के तौर पर ऐसा ही मंत्री चाह रहा था।

पोर्टफोलियों (मंत्री का विशेष कार्य एवं कर्तव्य) :- वित्त मंत्रालय अरूण जेटली, गृह मंत्रालय राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और विदेश मंत्री सूषमा स्वराज के पोर्टफोलियों (मंत्री का विशेष कार्य एवं कर्तव्य) में कोई बदलाव नहीं किया गया। हालांकि, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का प्रभार अरुण जैटली से लेकर वेकैया नायडू को सौंप दिया गया है।

हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) :- मोदी सरकार की नई मंत्रिमंडल ने पहली ही बैठक में तीन उच्च न्यायालय के नाम बदल दिए जो इस प्रकार है बॉम्बे उच्च न्यायालय अब मुंबई उच्च न्यायालय कहलाएगी। ऐसे कलकत्ता अब कोलकत्ता एवं मद्रास उच्च न्यायालय का नाम चेन्नई उच्च न्यायालय होगा। यह फैसला गुड़गांव का नाम गुरुग्राम करने की तीन महीने के भीतर आया है। सरकार के इस फेसले की आलोचना भी गई हैं। इसके बाद ट्‌िवटर में प्रतिक्रिया आई।

फेरबदल:- मोदी ने सिर्फ एक दिन पहले फेरबदल मानने की बजाय महज मंत्रिमंडल विस्तार कहा था, अंत में यह विस्तार के साथ सनसनीखेज किस्म का फेरबदल भी निकला। ज्यादातर मामूली और अनजान चेहरो से भरे हुए 19 राज्य मंत्रियों के दाखिले के बाद जो राजनीति सुस्त पड़ी हुई थी। वह अचानक चमकदार और सनसनीखेज लगने लगी। साफ हो गया की मोदी जी ने एक तीर से कई शिकार करने का कारनामा कर दिखाया है। उन्होंने प्रदेशों में होने वाले विधानसभों चुनावों को भी पेशबंदी की, दल और सरकार में बदले हुए समीकरणों को भी रेखाकिंत किया और दो साल के प्रदर्शन के आधार पर अपने वरिष्ठ मंत्रियों के कामकाज को भी परिवर्तन कर दिया।

विस्तार के तीन कारण निम्न हैं-

  • अब यह समझना चाहिए कि तकरीबन 26 महीने पहने उन्होंने जो दल बनाया था उसे कामकाज से वो खुद खास संतुष्ट नहीं है। हालांकि, उन्होंने किसी बड़े मंत्री को निकालकर दंडित नहीं किया है। लेकिन उनका संदेश साफ हैं। अगर अगले छह महीने में मंत्रियों ने नतीजे दिखाने शुरू नहीं किए तो संभव है तीन साल खत्म होते-होते कइयों की छुट्‌टी हो जाए। तरक्की केवल एक मंत्री को मिली है और इससे जाहिर होता है कि मोदी से अपनी प्रशंसा करवाना कई मंत्रियों के लिए आसान नहीं हैं।
  • दूसरे सरकार और भाजपा के भीतर राजनीतिक समीकरण अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं। नए मंत्रियों में ऐसे भी हैं, जिनके बारे में समझा जाता था कि मोदी उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी देने के बारे सपने में भी नहीं सोचेंगे, लेकिन इस बीच वफादारियों बदली है और नई निष्ठाओं को पुरस्कृत किया गया हैं।
  • तीसरे विस्तार को राज्यों के चुनावों के मद्देनजर देखें तो उत्तर प्रदेश में गैर यादव पिछड़े वर्ग और उत्तराखंड में दलित मतों की गोलबंदी का आगह नजर आ सकता है।

आकलन:- इस विस्तार से पहले मोदी कम से कम तीन बार ठोक-बजाकर देख चुके थे कि उनके मंत्रियों का काम कैसा है। पहले छह महीने गुजरने पर उनकी तरफ से एक आकलन हुआ था, दूसरा आकलन पहला वर्ष पूरा होने पर और तीसरा अभी सप्ताह भर पहले संपन्न हुआ। ऐसे आकलनों का आधार राजनीतिक कम और तकनीकी ज्यादा होता है। देखा जाता है कि मंत्री ने अपने मंत्रिमंडल को दी गई धनराशि ठीक से खर्च की है या नहीं। कम खर्च करने वाले मंत्री कम सक्षम माने जाते हैं। जाहिर है नतीजा मिला-जुला ही होता है। सभी मंत्रियों की छवि नितिन गडकरी, पीयूष गोयल, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह जैसी चमकदार नहीं हो सकती हैं लगता हैं कि मोदी ने किसी मंत्री को निकाल देने लायक खराब काम करने वाला नहीं माना है।

चूंकि आकलन में जिन बड़े मंत्रालयों के कामकाज पर सवालिया निशान लगे थे, उनमें सबसे ऊपर मानव संसाधन विकास मंत्रालय था, इसलिए प्रधानमंत्री का इस मंत्रालय का नेतृत्व बदलना पड़ा। उन्होंने इस मंत्रालय के राज्यमंत्री रमाशंकर कठौरिया को तो निकाल ही दिया। जाहिर है कि मंत्रालय मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक रहा है। कठोरिया के बारे मे माना जाता था कि उन्हें आरएसएस के कहने पर लाया गया है। वे शिक्षा में भगवाकरण के निसंकोच प्रवक्ता के रूप में उभर रहे थे, लेकिन उन्हें सांप्रदायिक वक्तत्व देने की सजा मिली है। अगर ऐसा होता तो उनके साथ-साथ गिरिराज सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति और संजीव बालियान को उत्तर प्रदेश के चुनाव के मद्देनजर नहीं निकाला जा सकता था, इसलिए भी कठोरिया को निकालने के पीछे यह तर्क नहीं हो सकता है। बाकी जिन पांच मंत्रियों से इस्तीफा लिया गया है, वे राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण नहीं माने जाते हैं। अब पदोन्नति लेकर आए प्रकाश जावड़ेकर के सामने स्मृति ईरानी द्वारा किए गड़बड़झाले को सुधारने की चुनौती है।

अनुप्रिया:- चुनावी राजनीति के लिहाज से अनुप्रिया पटेल का राज्यमंत्री बनना काबिले-गौर है। लगता हैं कि अनुप्रिया को कांग्रेस और समाजवादी दल के भीतर हुए घटनाक्रम के कारण मंत्रिपद मिल गया। वरना, खुद उनकी दल अपना दल में उनकी स्थिति अच्छी नहीं थीं। उनकी मां पहले ही उन्हें निष्कासित कर चुकी थीं। अगर सपा ने कांग्रेस से बेनी प्रसाद वर्मा को अपनी ओर खींचकर राज्यसभा का सांसद बनाने के जरिये कुर्मी मतों को संदेश न दिया होता तो अनुप्रिया को शायद यह मौका न मिलता। दूसरा चुनावी मंत्रिपद अजय टम्टा को मिला है। अगर कांग्रेस ने प्रदीप टम्टा को राज्यसभा सदस्य न बनाया होता तो भाजपा शायद उत्तराखंड से अपने टम्टा को मंत्रिपरिषद में लाने के बारे में न सोचती।

चुनाव:-ब्राह्यण ठाकुर बहुतायत वाले उत्तराखंड में दलित मतों की यह मारामारी बताती है कि अगला चुनाव यहां किस शिद्दत से लड़ जाएगा। पंजाब में भाजपा अकाली दल के दामन से बंधी हुई है और उसका आधार गैर-सिखों में है, इसलिए बिहार के वासी और दाजीर्लिंग के सांसद एसएस अहलूवालिया को मिलने वाला मंत्रिपद उनकी वरिष्ठता और प्रशासनिक अनुभव के खाते में ही जाता हैं। वैसे भी पजांब के चुनाव की चिंता करना अकाली दल का सिरदर्द ज्यादा है। विजय गोयल पिछले कुछ महीनों में दिल्ली भाजपा के सबसे संघर्षोन्मुख नेता रहे हैं। शायद भाजपा गोयल को केजरीवाल से सड़को पर भिड़ने वाले नेता के रूप में देख रही हे। लेकिन फिर तो उन्हें दल की अध्यक्षी वापस मिलनी चाहिए थी, जो हर्षवर्धन के लिए उनसे छीनी गई थी। मंत्री के रूप में तो वे दिल्ली की राजनीति में सक्रिय नहीं रह पाएंगे।

उपसंहार:- मोदी सरकार ने अपनी मंत्रिमंडल का विस्तार किया। इससे नई मंत्रिमंडल से सरकार अपनी सियासी जमीन मजबूत करेगी। इसके अलावा तीसरा और चौथा साल खत्म होने पर मोदी के पास मंत्रिमंडल में परिवर्तन करने और उसका विस्तार करने के कम से कम दो मौके ओर आएंगे। लेकिन यह विस्तार और फेरबदल उन होने वाले परिर्वतनों से ज्यादा अहम है। अगर मोदी सरकार ने ठीक काम नहीं किया तो इस साल के पहले छह महीने के बाद उसकी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। अगर यह विस्तार और फेरबदल सही साबित हुए तो शायद मोदी को अगले विस्तार की जरूरत ही न पड़े और अगर इस विस्तार से उनका आकलन दुरूस्त नहीं निकला तो निश्चित तौर पर आगे होने वाले फेरबदलों से भी इस सरकार की राजनीति में कोई सुधार नहीं आने वाला है।

Examrace Team at Sep 7, 2016