जीका वायरस (Zika Virus - Article in Hindi)

प्रस्तावना:-वेसे तो हमारे देश में कहीं प्रकार की बीमारीयां होती रहती हैं, लेकिन अभी हाल ही में एक नयी विचित्र बीमारी हमारे सामने आई है जो मच्छरों के माध्यम से पैदा होती हैं। इस बीमारी से नवजात शिशुओं को व गर्भवती माताओं को गंभीर रूप से खतरा होता हैं। यह बीमारी आखिर है क्या? व इस बीमारी के क्या लक्षण हैं?

ब्राजील:- पिछले वर्ष अगस्त में वहां की डॉ. वनीसा वान डेर लिंडेन ने एक नवजात शिशु को माइक्रोसेफेली (छोटे सिर) नामक जन्मजात दोष से पीड़ित देखा तो उन्होंने उस पर अधिक ध्यान नहीं दिया था। माइक्रोसेफेली में बच्चे का सिर असामान्य रूप से छोटा होता है। दिमाग का विकास रूक जाता है। कई मामलों में विकलांगता के साथ जान को खतरा हो सकता है। ब्राजील के उत्तर पूर्वी शहर रेसिफे में बराव डी लुसिना अस्पताल से पहले औसतन में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. लिडेन बताती हैं, उन्होंने अगस्त से पहले औसतन हर माह ऐसा एक बच्चा देखा था।

फिर भी उस बच्चे की बीमारी गंभीर थी दिमाग की जाँच करने से उत्पत्ति-संबधी या संक्रमण के सामान्य कारण पता नहीं लगे तो लिंडेन का संदेह बढ़ने लगा। दिन गुजरने के साथ ऐसे मामलों की संख्या बढ़ने लगी। रेसिफे में लिंडेन अकेली डॉक्टर नहीं हैं जो कुछ असामान्य घटित होते देख रही थीं। उनकी मां एन भी न्यूरोलॉजिस्ट है। उन्होंने एक दिन में माइक्रोसेफेली से पीड़ित सात बच्चे देखे थे। कुछ माताओं ने बताया, गर्भावस्था की शुरुआत में उनके शरीर पर एक चकत्ता उभरा था। यह एक सुराग था। लिंडेन सोच रही थीं कि क्या किसी नए संक्रामक प्रतिनिधि के कारण ऐसा हो रहा हैं। उसके बाद से ब्राजील में ऐसे चार हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।

विचार:- डॉ. लिंडेन को विचार आया था कि, माताओं ने जो लक्षण बताए हैं, उससे अधिक गंभीर लक्षण मच्छरों से होने वाली दो बीमारियों डेंगू और चिकनगुनिया में पाए जाते हैं। लेकिन मच्छर से एक अन्य बीमारी होती है जो ब्राजील के लिए नयी है। चिकित्सक उससे परिचित नहीं हैं। यह है, जीका रूपी बीमारी थी।

जीका:- जीका के पहले मरीज का मामला 1954 में नाइजीरिया में सामने आया था। 1947 में युगांडा के जीका जंगलों में पाए गए जीका वायरस को कभी खतरा नहीं माना गया। धीरे-धीरे यह अफ्रीका, एशिया और प्रशांत दव्ीपों में फेलता चला गया। इसके कारण ब्राजील में छोटे सिर व अविकसित दिमाग के बच्चे पैदा हो रहे हैं। जीका एडीस ऐजिप्टी नाम के मच्छर से फेलने वाले वायरस है। यह वही मच्छर है जो पीला बुखार, डेंगू और चिकनगुनिया फेलाने के लिए भी जिम्मेदार है।

एक फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जीका पर अंतरराष्ट्रीय इमरजेंसी की स्थिति घोषित कर दी। यह केवल चौथा अवसर है जब संगठन ने ऐसी घोषणा की है। मई 2015 में जीका का पहला मामला सामने आने के बाद लगभग 15 लाख ब्राजीलियाई लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। पश्चिमी गोलार्ध्द के देशों में सक्रिय एडीस एजिप्ती मच्छर के काटने से जीका फेलता है। वैज्ञानिकों ने पहली बार जन्मजात दोष और जीका के बीच संबंध पाया है। 2013 में फ्रेंच पोलीनेशिया में कुछ मामले पाए गए थे। लेकिन, पहली बार इतनी बड़ी संख्या में केस सामने आए हैं। जीका की उस समय कोई वैक्सीन नहीं थीं। उसकी पहचान का भी कोई सामान्य टेस्ट नहीं था। प्रमुख विशेषज्ञों के अनुसार माइक्रोसेफेली या शरीर के प्रतिरोधक तंत्र पर असर डालने वाली अन्य समस्याओं का संबंध जीका से है। फिर भी, यह पूरी तरह साबित नहीं हुआ है। वायरस के यौन संसर्ग से भी फेलने की खबर है।

खतरा:-निम्न है-

  • गर्भवती महिलाओं को इससे खतरा होता हैं। इस वायरस से गर्भ में पल रहे बच्चे में न्यरोलॉजिकल डिसऑर्डर का खतरा पैदा कर सकता है।
  • इस वायरस के कारण से बच्चे छोटे सिर (माइक्रोसेफैली) के साथ पैदा होते हैं। दिमाग के विकास पर नकारात्मक असर डालता हैं।
  • माइक्रोसेफैली, न्यूरोलॉजिकल एक ऐसी समस्या है। जिसमें दिमाग का विकास पूरी तरह नहीं हो पाता है।

लक्षण:- निम्न हैं-

  • बुखार और चिड़चिड़ापन
  • आंखों का लाल होना
  • जोड़ों में तेज दर्द
  • खुजली और मतली

जीका वायरस से संक्रमित हर पांच में से एक व्यक्ति में ही इसके लक्षण दिखते है। यह वायरस शरीर में हल्का बुखार, त्वचा पर दाग-धब्बे और आंखों मे जलन पैदा करता है। मरीज में मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द के साथ बेचैनी की शिकायत भी रहती है। जीका वायरस का पता लगाने के लिए पॉलिमीरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) व खून जांच करा सकते हैं। एलोपैथी के अलावा होम्योपैथी व आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है।

बचाव:- पहले तो इस वायरस से निपटने के लिए कोई वैक्सीन या दवा नहीं बनी थी। फिलहाल तो हर हाल में मच्छरों के काटने से बचना ही एक उपाय था। आस-पास पानी जमा ना होने दें। अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। इसका प्रभाव 2 से 7 दिन बाद दिखता है। इससे बचने के लिए शरीर को ढककर रखें। हल्के रंगों के कपड़े पहनें। सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें।

वैक्सीन:-किसी भी बीमारी से बचने के लिए उसका वैक्सीन होना बहुत आवश्यक होता है खास तौर से बड़ी बाीमारियों के लिए। वैक्सीन वह होता है जब रोगाणु शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर उनसे लड़ने के लिए अर्थात रोगों से लड़ने की क्षमता के लिए रक्त में तैयार होने वाला पदार्थ बनाता है। स्वस्थ होने के बाद भी कुछ रक्त पदार्थ शरीर में बनी रहती है और भविष्य में वह रोगाणु आने पर उसका मुकाबला करती है। शरीर की इसी खासियत के आधार पर वैक्सीन बनाए जाते हैं। शरीर में मरे हुए बैक्टीरिया या वायरस डालने से उनमें रक्त पदार्थ तैयार हो जाती है और संबंधित रोग के रोगाणु आने पर उन्हें नष्ट कर देती हैं।

अभी कुछ और जरूरी वैक्सीन बनाए जाने हैं। उनमें सबसे जरूरी एड्‌स, मलेरिया, इबोला जैसे रोग के वैक्सीन हैं। जीका का वैक्सीन हाल ही में भारत की लैब ने बनाने का दावा किया है। दुनियाभर के हजारों वैज्ञानिक दिन-रात ये जरूरी वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं।

जलवायु परिवर्तन:- अभी हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और अंतरराष्ट्रीय आवाजाही बढ़ने के कारण मच्छरों से होने वाली बीमारियां नए क्षेत्रों में पहुंच चुकी हैं। डेंगू, चिकनगुनिया और पश्चिम नील वायरस जैसी बीमारियां एशिया, अफ्रीका तक सीमित थीं। अब ये बीमारियां पश्चिमी गोलार्द्ध में पहुंच चुकी हैं। विशेष रूप से डेंगू तेजी से फैल रहा है। स्वास्थ्य संगठन को अनुमान है कि 1960 की तुलना में 30 गुना अधिक व्यक्ति 2013 में डेंगू से प्रभावित थे। जीका से पहले रेसिफे में डेंगू का प्रकोप बुरी तरह फैल चुका था।

संदेह:- रेसिफे में चिकित्सक को संदेह हे कि पिछले वर्ष जिन लोगों को डेंगू पीड़ित समझा गया, वे जीका से प्रभावित हो सकते हैं। बीमारी की खबर फेलने के बाद चिंचित माताओं ने चिकित्सालय पहुंचना शुरू कर दिया है। रेसिफ में ओसवाल्डो क्रुज अस्पताल में संक्रामक बीमारियों की टीम की प्रमुख डॉ, एंजेला रोचा कहती हैं, चिकित्सक के रूप में 43 वर्षों में पोलियो और कालरा के प्रकोप देखे हैं लेकिन इतनी स्तब्धकारी स्थिति नहीं देखी है। दहशत, तनाव और अनिश्चितता से जूझती महिलाओं की हालत दयनीय है। माइक्रोसेफेली पीड़ित बच्चों की मां उनके भविष्य के प्रति चिंतित हैं। 20 वर्षीय गेब्रिएला अल्वेस एजेवेडों ने तीन माह पहले बेटी अन्ना सोफिया को जन्म दिया है। बच्ची का सिर बहुत छोटा है। चिकित्सक तक नहीं बता सकते कि क्या सोफिया चल सकेगी या बात कर सकेगी या वह कितने समय तक जीवित रहेगी। जीका वैक्सीन पर काम कर रहे डॉ. पेड्रो वेस्कोनसेलोस का कहना है, उसका केन्द्रीय नर्वस सिस्टम (स्नायु संबंधी विधी) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। इन बच्चों को जीवन भर सहारे की जरूररत रहेगी।

ओलपिंक खेल:- लेटिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ब्राजील मंदी के दौर से गुजर रही है। वहां इस वर्ष रियो डि जेनेरियों में ओलिंपिक खेल होने वाले हैं। कुछ हवाईरास्तों ने जीका प्रभावित क्षेत्रों की टिकट रद्द करने के प्रस्ताव दे दीए हैं। लैंटिन अमेरिकी देशों में जीका वायरस का असर तेज हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, साल के आखिर साल के आखिर तक करीब 40 करीब लाख लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। इसका असर ब्राजील ओलपिंक खेलों में भी पड़ सकता हैं। ब्राजील के 26 में से 20 स्टेट में वायरस फैल चुका है।

दिशा-निर्देश:-अमेरिका के खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) ने जीका वायरस को रोकने के संबंध में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें साफतौर पर कहा गया है कि जिस व्यक्ति ने पिछले चार सप्ताहों में जीका वायरस प्रभावित देश की यात्रा की हैं, वह रक्तदान करने से बचे। एफडीए ने कहा कि ऐसे व्यक्ति को रक्तदान से पहले कम से कम चार सप्ताह तक इंतजार करना चाहिए। पीटर मार्क्‌स ने अपने बयान में कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हमारा मानना है कि नए दिशा-निर्देश जीका वायरस से संक्रमित रक्तदाता के रक्त या रक्त घटकों को एकत्रित करने जोखिम को कम करने में मदद करेंगे।

कृष्णा इल्ला:-दुनियाभर में खौफ के कारण बनते जा रहे जीका वायरस का पहला टीका भारत में बना था। जो हैदराबाद के कृष्णा इल्ला ने बनाया है, कृष्णा की कंपनी भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने ही जीका वायरस से लड़ने वाली वैक्सीन बनाने में कामयाबी हासिल की है। यह पहली बार है कि कोई भारतीय कंपनी पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों को उनके ही खेल में हराने के लिए दूरदर्शी साबित हुई है। हालांकि इस टीके को बाजार में आने में अभी समय लगेगा। इसे कई जांचो से गुजरना है। कंपनी के सभापति और एमडी कृष्णा इल्ला ने बताया कि जीका का टीका तो अचानक बन गया। दरअसल कृष्णा तो 18 महीने से चिकनगुनिया के टीके पर काम कर रहे थे। इस दौरान जीका वायरस चर्चा में आ गया था। कृष्णा की टीम ने सोचा कि यदि जीका फेलाने वाला मच्छर भारत आया तो यहां भी महामारी फैलाएगा। बस, तभी चिकनगुनिया को साइड में कर वे जीका का इलाज खोजने में जुट गए। कृष्णा जी सैलानियों के लिए वैक्सीन बनाना चाहते थे। यानी ऐसा वैक्सीन, जिसका एक डोज लेकर कोई भी व्यक्ति जीका, जापानीज एन्सेफलाइटिस और चिकनगुनिया प्रभावित देशों की यात्रा बेफिक्र होकर कर सके। अगर सब कुछ ठीक रहा तो कंपनी चार महीने में वैक्सीन के 10 लाख डोज बना सकता है। कृष्णा बताते हैं कि उनकी यह कामयाबी उनकी मां की डांट के कारण मिली है। दरअसल, 20 साल पहले जब वे अमेरिका की विस्कॉसिन विश्वविद्यालय में मॉलक्यूलर बायोलॉजिस्ट के तौर पर काम कर रहे थे। तब एक दिन मां ने फोन पर उनको डांटा था। मां ने कहा था कि बेटा तुम्हारा पेट सिर्फ नौ इंच का है। और कितना पैसा कमाओगे? तुम जितना खाते हो, उससे ज्यादा तो खा नहीं सकते। लौट आओ और जो मन करे वह काम करो। मैं तुम्हारें खाने का इंतजाम कर लूंगी। जब तक मैं जिंदा हूं तुम्हे खाने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।

बस उसी पल उन्होंने देश लौटने का फैसला कर लिया। इसके बाद 1996 में उन्होंने भारत बायोटिक अंतराराष्ट्रीय लिमिलेड कंपनी बनाई। यह अब 700 करोड़ रुपए की कंपनी हो चुकी है। इल्ला की कंपनी ने केंद्र सरकार से मिलकर पहला भारतीय रोटावैक टीका बनाया था। यह टीका संक्रामक बीमारी डायरियां से निपटने के लिए है। यह बीमारी रोटा वायरस से फेलती है। और बच्चो को अपनी चपेट में लेती है।

उपसंहार:-वेसे तो अब भारत देश में भी जीका वायरस का टीका बन चुका है पर अभी उसे बाजार में आने के लिए काफी समय लगेगा। इसलिए तब तक लोगों को जीका वायरस से बचने के लिए केवल सावधानी बरतनी पड़ेगी अर्थात मच्छरों से बच कर रहना पड़ेगा। अभी के लिए केवल यही उपाय हैं।

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