भारतीय वित्तीय संहिता का संशोधित प्रारूप (Revised Format of Indian Financial Code – Economy) for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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• वित्तीय संहिता का उद्देश्य वित्तीय क्षेत्र के कुशल संचालन के लिए वर्तमान भारतीय कानून ढांचे में व्यापक परिवर्तन कर एकीकृत तथा सुसंगत कानूनी व्यवस्था का निर्माण करना है।

• 60 से भी अधिक कानूनों में से कई कानून पुराने पड़ गए हैं। जब मूल कानून लिखे गए थे, तब से वैश्विक वित्तीय संरचना में व्यापक परिवर्तन हुआ है। नई वित्तीय प्रक्रियाएं तथा वित्तीय साधन अस्तित्व में आए हैं। कई बार जटिल व्यवस्था के कारण विनियामकों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा वित्त क्षेत्र के कई घटनाक्रम कभी-कभी नियामकों के आड़े आते है, जिस कारण टकराव होता है।

• वित्तीय क्षेत्र में संभव सुधारों का अध्ययन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी. एन. श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) का गठन मार्च 2011 में किया गया था।

• आयोग ने मार्च 2013 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट (विवरण) में, एक व्यापक अधिकार वाली एजेंसी (शाखा) में अनेक वित्तीय नियामक एजेंसियों का विलय करने का सुझाव दिया जो आर. बी. आई (भारतीय रिजर्व बैंक) को छोड़कर पूंजी बाजार, बीमा क्षेत्र, पेंशन (सेवानिवृत्त वेतन) फंड (धन) एवं जिंसो ंके वायदा व्यापार पर नजर रखें।

• एफएसएलआरसी दव्ारा प्रस्तुत पहले आईएफसी रिपोर्ट विवरण के प्रारूप में मौद्रिक नीति समिति के निर्णयों को रद्द करने का अधिक एसबीआई के गवर्नर राज्यपाल को देने का प्रस्ताव किया गया था।