State Relations (Parts 11 and 12 and Articles 245 to 293) , Planning Commission, Services under Union and State

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29 राज्य संबंध (भाग-11 एवं 12 और अनुच्छेद 245 से 293 तक) (State Relations (Parts 11 and 12 and Articles 245 to 293) )

भारत संघ के केन्द्र राज्य संबंध तीन वर्गों में वर्गीकृत किये गए हैं:-

विधायी संबंध (अनुच्छेद 245 - 255) -

  • भारतीय संविधान की सांतवी अनुसूची में केंद्र एवं राज्यों की विधायी शक्तियों के बंटवारे से संबंधित तीन सूची दी गई है-1. संघ सूची, 2. राज्य सूची, 3. समवर्ती सूची।
  • इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी विषय हैं, जिनका उल्लेख संविधान की सांतवी अनुसूची में नही किया गया है। इन पर विधि निर्माण का अधिकार केवल संघ को दिया गया हैं। ये शक्तियाँं अवशिष्ट शक्तियांँ कहलाती है।
  • अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्यसभा अपने दो तिहाई बहुमत से किसी विषय को राष्ट्र महत्व को घोषित कर दे तो संसद उस विषय पर विधि बना सकेगी। लेकिन संघ की विधि मात्र एक वर्ष तक ही विधिमान्य रहेगी। इसे संसद हर बार एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती है। संसद को अभी तक एक बार 1950 में यह शक्ति राज्यसभा ने प्रदान की है। इसका प्रयोग करके संसद ने व्यापार और वाणिज्य संबंधी कानून बनाया था।
  • अनुच्छेद 250 के तहत आपातकाल के समय विधान मंडल की विधायी शक्ति संसद को हस्तांतरित हो जाती है। इस समय संसद दव्ारा निर्मित विधि आपातकाल की समाप्ति के 6 मास बाद तक प्रभावी रहती है।
  • अनुच्छेद 252 के तहत यदि दो या अधिक राज्य संसद के राज्यसूची के विषय पर विधि बनाने का अनुरोध करें, तो संसद ऐसा कर सकेगी। लेकिन संसद दव्ारा निर्मित विधि केवल उन्हीं राज्यों पर लागू होगी, जिन्होने इसका अनुरोध किया था।
  • अनुच्छेद 253 के अंतर्गत किसी विदेशी राज्य से हुई किसी संधि के अनुपालन में भी संसद राज्य सूची के विषय पर विधि बना सकती है।
    • प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256 से 263 तक) - केंद्र का राज्य पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण होता है। इस नियंत्रण के मुख्य उपकरण राज्यपाल, अखिल भारतीय सेवा एवं विभिन्न प्रधिकरण है।
    • वित्तीय संबंध (भाग-12 अनुच्छेद 264 से 291 तक)

संघ व राज्यों के मध्य राजस्व का विभाजन मूलत: 5 प्रकार से होता है-

  • प्रथम श्रेणी-में अनन्य रूप से संघ के राजस्व स्रोतों को रखा जा सकता है। ये कर संघ दव्ारा लगाए गए वसूल किये जाते हैं। इस राजस्व का प्रयोग संघ स्वयं करता है। इसमें आने वाले प्रमुख कर हैं-सीमा शुल्क, विदेशी ऋण, निगम कर, निर्यात शुल्क, आयकर पर अधिभार, रेल, रिजर्व बैंक, शेयर बाजार तथा कृषि भूमि छोड़कर अन्य संपत्ति शुल्क आदि।
  • दूसरी श्रेणी-इसके अंतर्गत राज्यों दव्ारा लगाए व वसूले जाने वाले करों को रखा जा सकता है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं-भू राजस्व, विज्ञापन पर कर, उत्तराधिकार शुल्क, मनोंरजन कर, विक्रय कर, कृषि भूमि पर आय कर, खनिज कर, विद्युत के उपयोग पर कर, पथ कर, वाहन पर चुंगी, संपदा शुल्क आदि।
  • तीसरी श्रेणी-में ऐसे करों को रखा जा सकता है जो कि लगाए तो संघ दव्ारा जाते हैं लेकिन इनको राज्य संग्रहीत करते हैं तथा प्रयोग करते हैं इस भाग में विनिमय पत्रों पर स्टांप शुल्क, औषधियाँ व श्रृंगार सामग्रियों पर उत्पाद शुल्क आदि आते हैं।
  • चतुर्थ श्रेणी-में उन करों को रखा जा सकता है जो कि लगाए व संग्रहीत तो संघ दव्ारा किये जाते हैं, लेकिन प्राप्तियों को राज्यों के मध्य वितरित कर दिया जाता है। इस भाग में कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति के उत्तराधिकारी के संबंध में शुल्क, कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति के संबंध में संपदा -शुल्क, रेल भाड़ों और माल भाड़ों पर कर, समाचार -पत्रों के क्रय और उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर इत्यादि।
  • पांचवी श्रेणी- में ऐसे कर आते हैं जो कि लगाए व संग्रहीत तो संघ के दव्ारा किये जाते हैं, लेकिन इनको राज्य व केन्द्र के मध्य वितरित कर दिया जाता हैं इस वर्ग में कृषि आय से भिन्न आय पर कर, उत्पाद शुल्क आदि आते हैं परन्तु राजस्व में बंटवारे के बाद भी राज्यों की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं रहती है।

Commission on relation of center and state

Commission on Relation of Center and State
केंद्र और राज्य के संबंध पर आयोग
समिति/आयोगस्थापना वर्ष
प्रशासनिक सुधार आयोग (सीतलवाड़ी समिति)1966
राजमन्नार सहाय समिति1969
भगवान सहाय समिति-
सहाकारिया आयोग1983
दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग2005
पूंजी आयोग2007

30 योजना आयोग (Planning Commission)

  • आर्थिक नियोजन के कार्य को भली प्रकार संपन्न करने के लिए 15 मार्च, 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल दव्ारा प्रस्तावित प्रस्ताव के दव्ारा योजना आयोग की स्थापना की गई।
  • योजना आयोग एक गैर-संवैधानिक निकाय है।
  • योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है तथा केंद्रीय गृहमंत्री, रक्षा मंत्री एवं वित्त मंत्री इसके अंशकालिक सदस्य होते हैं।

31 राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council)

  • योजना के निर्माण में राज्यों की भागीदारी होनी चाहिए। इस विचार को स्वीकार करते हुए सरकार के एक प्रस्ताव दव्ारा 6 अगस्त, 1952 को राष्ट्रीय विकास परषिद् का गठन किया।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद के निम्न उद्देश्य है-
    • योजना आयोग की सहायता के लिए राष्ट्र के स्रोतों और साधनों का समुचित उपयोग करना तथा उनको गतिशील बनाना।
    • देश के सभी भागों में तीव्र एवं संतुलित विकास के लिए प्रयास करना।
    • प्रधानमंत्री इस परिषद् का अध्यक्ष होता है तथा योजना आयोग का सचिव ही इनका भी सचिव होता है।
  • भारतीय संघ के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा योजना आयोग के सभी सदस्य इसके पदेन सदस्य होते हैं।
  • परिषद् के कार्य निम्नलिखित हैं-
    • राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
    • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों-संबंधी विषयों पर विचार करना।
    • राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना।

32 अंतरराज्यीय परिषद् (अनुच्छेद 263) (international council (article 263) )

  • अंतरराज्यीय परिषद् निम्न कार्य करेगी-
    • वह राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों की जांच करेगी और उस पर परामर्श प्रदान करेगी।
    • कुछ या सभी राज्यों के या संघ या अधिक राज्यों के पारस्परिक हित से संबंद्ध विषयों का अनुसंधान और उस पर विचार-विमर्श करेगी।
    • ऐसे किसी विषय के बारे में अच्छे समन्वय के हेतु नीति या कार्यवाहियों की सिफारिश करेगी।
  • राजमन्नार समिति की सिफारिश के आधार पर जून 1990 में राष्ट्रपति दव्ारा अंतरराज्यीय परिषद् की स्थापना की गई, जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 को हुई थी।
  • अंतरराज्यीय परिषद् में निम्न सदस्य होते हैं। प्रधानमंत्री तथा छ: कैबिनेट स्तर के मंत्री, सभी राज्यों या संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्यमंत्री एवं जिन संघ क्षेत्रों में विधान सभा नहीं है, उनके प्रशासक। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते है।
  • अंतरराज्यीय परिषद् के लिए एक स्थायी सचिवालय स्थापित किया गया है।

33 संघ एवं राज्य के अधीन सेवायें (Services under Union and State)

  • अखिल भारतीय सेवा - (अनुच्छेद 312) यह राष्ट्रीय स्तर की सेवा है। इस सेवा के सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति दव्ारा की जाती है, जबकि सेवा की अन्य शर्तें, संबंधी राज्य दव्ारा निर्धारित की जाती है। वर्तमान में तीन अखिल भारतीय सेवाएँ हैं, जिसमें दो स्वतंत्रता के समय से ही विद्यमान हैं, ये हैं-भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) एवं भारतीय पुलिस सेवा (IPS) तथा भारतीय वन सेवा (IFS) को 1986 में शामिल किया गया।
  • केंद्रीय सेवा-केंद्रीय सेवा राष्ट्रीय स्तर की है, जो केवल भारत संघ के लिए है। संसद इस सेवा में नियुक्ति तथा सेवा की शर्तों के संबंध में कानून बनाती है। इस सेवा के कर्मचारी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।
  • राज्य सेवा-यह सेवा केवल राज्य के लिए होती है। इस सेवा में नियुक्ति राज्यपाल दव्ारा की जाती है तथा इस सेवा के सदस्य राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।
  • लोक सेवा आयोग- (अनुच्छेद 315) भारत में लोक सेवा आयोग की स्थापना 1919 के भारत सरकार अधिनियम तथा 1924 के विधि आयोग के सिफारिश के आधार पर सर्वप्रथम 1926 में की गई। यह एक संवैधानिक निकाय है।
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति और उसके सदस्यों की संख्या निर्धारण करने की शक्ति राष्ट्रपति को है। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या 10 है।
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए की जाती है। यदि वह 6 वर्षों के अंदर 65 वर्ष आयु पूरी कर लेता है तो वह पद से मुक्त हो जाता है।
  • राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल दव्ारा की जाती है, लेकिन संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति दव्ारा की जाती है।
  • राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल 6 वर्ष अधिकतम आयु 62 वर्ष है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपना त्यागपत्र सौंपते हैं। साथ ही साबित कदाचार एवं असमर्थता के आधार पर इसे राष्ट्रपति निलंबित भी कर सकता है।
  • राज्य का महाधिवक्ता- (अनुच्छेद 165) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने योग्य व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करता है। वह राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत अपना पद धारण करता है। वह विधान मंडल का सदस्य नहीं होता। उसे सदनों की कार्यवाही में भाग लेने तथा बोलने का अधिकार होता है, परन्तु उसे मताधिकार प्राप्त नहीं होता है।