भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 15 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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खेड़ा सत्याग्रह ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 15

खेड़ा (गुजरात) में भी 1918 ई. में किसान आंदोलन हुआ। गांधी जी ने यहाँ भी किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कार्य किया। खेड़ा में भी लगान वृद्धि और अन्य शोषणों से किसान पीड़ित थे। कभी-कभी वे अपना आक्रोश लगान रोक कर प्रकट किया करते थे। 1918 ई. में सूखा के कारण फसल नष्ट हो गई। ऐसी स्थिति में किसानों की कठिनाइयाँ बढ़ गई। भूमिकर नियमों के अनुसार यदि किसी वर्ष फसल साधारण से 25 प्रतिशत कम हो तो वैसी स्थिति में किसानों को भूमिकर में पूरी छूट मिलनी थी। बंबई सरकार के पदाधिकारी सूखा के बावजूद यह मानने को तैयार नहीं थे कि उपज कम हुई है। अत: वे किसानों को छूट देने को तैयार नहीं थे। लगान चुकाने के लिए किसानों पर दबाव डाला गया।

चंपारण के बाद गांधी जी ने खेड़ा के किसानों की ओर ध्यान दिया। उन्होंने किसानों को संगठित किया और सरकारी कार्रवाइयों के विरुद्ध सत्याग्रह करने को कहा। किसानों पर गांधी जी का व्यापक प्रभाव पड़ा। किसानों ने परिणामों की परवाह किए बिना सरकार को लगान देना बंद कर दिया। यहाँ तक कि जो किसान लगान चुकान की स्थिति में थे, उन लोगों ने भी लगान देना बंद कर दिया। सख्ती और कुर्की की सरकारी धमकियों से भी वे नहीं डरे। बड़ी संख्या में किसानों ने सत्याग्रह आंदोलन चलाया। अनेक किसान जेल भी गए। जून, 1918 तक खेड़ा का किसान आंदोलन व्यापक रूप ले चुका था। किसानों के प्रतिरोध के सामने सरकार को झुकना पड़ा। सरकार ने किसानों को लगान में राहत दी। इसी आंदोलन के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल गांधी जी के संपर्क में आए। बाद में वे उनके पक्के अनुयायी बन गए। वे व्यापक जनसमस्याओं को अपनी विशिष्ट शैली दव्ारा भारत की चमत्कारी-प्रतीकात्मकता में व्यक्त कर देते थे जैसे- हरिजन उत्थान और नमक कानून भंग करने के लिए डांडी यात्रा। उनकी रुचि का क्षेत्र काफी व्यापक था। उनके कार्यक्रमों में सामाजिक-क्रांति के साथ-साथ राजनीतिक स्वतंत्रता भी शामिल थी। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके क्रियाकलापों के प्रशंसक मौजूद थे।

गांधी जी के आंदोलनों में विभिन्न अपेक्षाओं, हित-स्वार्थो वाले सामाजिक वर्ग जुड़ते गए और इसी कारण इन आंदोलनों का चरित्र विभिन्न शक्तियों के आपसी समझौते जैसा प्रतीत होता है। लेकिन गांधी जी इन आंदोलनों का नेतृत्व अपनी शर्तो पर करते थे और आंदोलन के अधिकांश अवसरों पर क्या किया जाए इसके संदर्भ में निर्णय लेने और उसका पालन करने की अपनी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखते थे।

गांधी जी ने निश्चत रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन को एक नया मोड़ दिया। कांग्रेस राजनीति से समय-समय पर विमुख हो जाने के बावजूद वे राष्ट्रवादी आंदोलन के निर्विवाद नेता बने रहे। विशेषकर तब, जब साम्राज्यवादी शासन से मुठभेड़ का निर्णायक क्षण आ खड़ा हुआ। वे तीन, जन-उफान, जिनका गांधी जी ने नेतृत्व किया था, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा भारत छोड़ो आंदोलन थे।