गाँधी युग (Gandhi Era) Part 12 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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लाहौर अधिवेशन, 1929 ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: गाँधी युग (Gandhi Era) Part 12

वर्ष 1927 के मद्रास अधिवेशन में ही, जवाहरलाल ने एक संक्षिप्त प्रस्ताव पेश किया, जिसमें पूर्ण स्वराज को कांग्रेस का लक्ष्य मान लेने की बात उठायी गयी थी। लेकिन यह कांग्रेस के नेतृत्व की पुरानी पीढ़ी का समर्थन प्राप्त नहीं कर सकता। वर्ष 1928 में, कांग्रेस ने मांग कि यदि 1 वर्ष के अंदर अधिशासी राज्य (डोमिनियम (अधिराज्य) स्टेटवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू स) (राज्य) की स्थिति प्रदान करने में ब्रिटिश शासन असफल रही तो वे आंदोलन को नया स्वरूप देने को आजाद होंगे। समझौता करने में गांधी जी की प्रमुख भूमिका थी। अपने समर्थन की मुहर उन्होंने 1929 में नौजवान पीढ़ी के पक्ष में लगा दी।

जवाहरलाल जिन्होंने पूर्ण-स्वराज के मांग की जोरदार सिफारिश की थी-उन्हें ही 1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया। असहयोग आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय वस्तुत: पूर्ण-स्वराज के लक्ष्य मान लेने की तार्किक परिणति ही थी। इस आंदोलन के नेतृत्व की बागडोर पहले तो ए. आई. सी. सी. में निहित करने का फैसला किया गया, किन्तु फरवरी, 30 के प्रस्ताव को स्वीकृति देकर अहमदाबाद की बैठक में “नेतृत्व का जिम्मा” गांधी जी को सौंपा गया। 26 जनवरी, 1930 को लाहौर में रावी के तट पर तिरंगे झंडे के नीचे स्वतंत्रता की शपथ ली गयी। यह कहा गया कि इस शासन को अब और सहन करना “मनुष्य और ईश्वर” के प्रति पाप है। राजनीतिक वातावरण धीरे-धीरे एक बड़े आंदोलन के उपयुक्त बन रहा था, जिसकी परिणति अन्तत: गांधी जी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में हुई। संभवत: यह गांधी जी के जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंदोलनकारी अभियान था। उन्होंने अपने ग्यारह सूत्री मांगों के दव्ारा ब्रिटिश सरकार को एक अवसर दिया और साथ-साथ अपना अंतिम निर्णय भी सुना दिया। ग्यारह सूत्री मांगों में लाहौर प्रस्ताव की मांग से कुछ असंगति प्रतीत होती है उस समय ऐसा लगा जैसे एक क्रांतिकारी शुरूआत को गांधी जी वापस ले रहे हैं। फिर भी इसने अनेक पूर्ववर्ती मांगों को ठोस रूप में प्रस्तुत किया और इन मांगों को स्वीकार कर लेने पर ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल जाती। इन मांगों में थी सेना के खर्च में 50 प्रतिशत कटौती, संपूर्ण शराबंदी, राजनीतिक बंदियों की रिहाई, सी. आई. डी. में सुधार तथा अस्त्र-शस्त्र कानून में संशोधन, भारतीय सर्वहारा वर्ग के लिए वस्त्र मजदूरों को संरक्षण, पूंजीपति वर्ग के संदर्भ में तटीय समुद्रवर्ती क्षेत्रों में भारतीयों को जहाजरानी के लिए पूर्ण अधिकार तथा मुद्रा विनिमय दर को कम करने जैसी दिलचस्प मांगे।