व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 28 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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भारतीय राज्यों की समस्या ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: व्यक्तित्व एवं विचार (Personality and Thought) Part 28

भारतीय राज्यों की समस्या पर सबसे पहले गोलमेज सम्मेलन में विचार-विमर्श हुआ। 1935 ई. के अधिनियम में उन्हें भारतीय संघ में सम्मिलित होने का अधिकार भी दिया गया। लेकिन 1937 ई. में जब संघीय व्यवस्था को लागू करना चाहा तब भारतीय राज्यों की जटिल समस्या ने उसमें बाधा खड़ी कर दी। 1946 ई. में कैबिनेट (मंत्रिमंडल) मिशन (दूतमंडल) ने यह घोषणा कर दी थी कि पैरामाउंटसी समाप्त कर दी जाएगी और भारतीय नरेश अपने संबंध स्थापित करने में पूरी तरह स्वतंत्र होंगे।

भारत में 562 भारतीय राज्य थे। समस्त भारत का 2⟋5 क्षेत्रफल तथा 1⟋4 जनसंख्या इन राज्यों में रहती थी। राज्यों में आपस में जनसंख्या, क्षेत्रफल तथा वित्तीय साधनों के आधार पर बड़ी विषमताएं थीं। 20 राज्यों में कुल राज्यों की जनसंख्या का 2⟋3 और 542 राज्यों में शेष 1⟋3 जनसंख्या थी। 1858 ई. तक ईस्ट (पूर्व) इंडिया (भारत) कंपनी (संघ) के राज्यों के संबंधों का विकास संधियों, सैनिक विजयों तथा परंपराओं के आधार पर था। 1858 ई. के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू क्राउन के साथ वह संबंध अस्पष्ट रहा। इस संबंध को परामाउंटसी से संबोधित किया जाता है। अंग्रेजी प्रशासन के सदा बढ़ते हुए हस्तक्षेप के लिए कोई न कोई औचित्य प्रस्तुत किया जाता था। राज्य के हित, समस्त भारत के हित, सामान्य जनता की भलाई, नए आदर्शों के लिए प्रयत्न आदि ऐसे तर्क थे जो किसी भी हस्तक्षेप को उचित सिद्ध कर सकते थे। कई बार वायसराय (गवर्नर जनरल का वह नाम जो भारतीय राज्यों के संदर्भ में प्रयोग होता था) ने इन राज्यों को उनकी वास्तविक स्थिति से अवगत कराया। सैद्धांतिक रूप में भारतीय राज्य आंतरिक मामलों में स्वतंत्र कहे जाते थे लेकिन वास्तव में प्रत्येक क्षेत्र में वे अंग्रेजी नियंत्रण में थे।

1946 ई. के बाद जब अंग्रेज सरकार ने यह घोषणा की कि भारतीय राज्यों से संबद्ध परामाउंटसी का अधिकार समाप्त हो जाएगा और यह अधिकार भारतीय सरकार को नहीं दिया जाएगा तब भारतीय नरेशों ने यह स्वप्न देखने आरंभ किए कि वे पूरी तरह स्वतंत्र हो जाएंगे और फिर वे किन्हीं भी शर्तों पर भारत अथवा पाकिस्तान अथवा अन्य किसी राज्य के साथ संबंध स्थापित करने के लिए स्वतंत्र होंगे। इस प्रकार अंग्रेज प्रशासकों ने भारतीय समस्या को जटिलतम बनाने में कोई कसर शेष नहीं रखी। एक अन्य समस्या यह थी कि इन राज्यों में वहां की जनता को कोई अधिकार नहीं थे। 1938 ई. के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू कुछ राज्यों में प्रजामंडल आंदोलन आरंभ हुए थे लेकिन कोई विशेष सफलता किसी राज्य में नहीं मिली। कैबिनेट मिशन ने भारतीय राज्यों को भी संविधान सभा में प्रतिनिधित्व उसी आधार पर देने का प्रस्ताव रखा जिस प्रकार प्रांतों का था अर्थात 10 लाख जनसंख्या पर 1 प्रतिनिधि। 3 जून, 1947 ई. की माउंटबेटन योजना के अंतर्गत राज्यों के प्रति नीति का विकास अत्यंत आवश्यक हो गया।