1857 का विद्रोह (Revolt of 1857) for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc. Part 5 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

Get unlimited access to the best preparation resource for CTET-Hindi/Paper-2 : get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-2.

विद्रोह का प्रसार

जनवरी, 1857 में कारतूसवाली कहानी सभी छावनियों में फैल गई। इस पर सैनिक उत्तेजित हो उठे। 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी में खुली परेड (व्यायाम भूमि) में एक ब्राह्यण सैनिक मंगल पांडेय ने सैनिकों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़काया। उसने एक अंग्रेज अफसर को गोली से मार दिया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और फाँसी की सजा दी गई। भारतीय सेना की 19वीं रेजीमेंट (सेना) भंग कर दी गई। इस घटना के बाद ही मेरठ में सिपाहियों ने खुले तौर पर विद्रोह कर दिया (10 मई, 1857) और मेरठ पर कब्जा कर लेने के बाद दिल्ली पर धावा कर उस पर भी अधिकार कर लिया। अत: 10 मई, 1857 को ही विद्रोह प्रारंभ माना जाता है। मेरठ की भाँति दिल्ली में भी उन्होंने बहुत-से यूरोपियनों की हत्या कर दी और उनके घरों को जला डाला। उस समय बहादुरशाह दव्तीय दिल्ली में मौजूद था और मुगल साम्राज्य का अतीत गौरव अब भी उसके साथ चिपका हुआ था। विद्रोहियों ने उसे हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया। दिल्ली का पतन ब्रिटिश साम्राज्य की प्रतिष्ठा पर भंयकर आघात था।

शीघ्र ही मेरठ और दिल्ली की विद्रोहाग्नि की लपटें कानपुर, बरेली, लखनऊ, बनारस, जगदीशपुर (बिहार) तथा भारत के अन्य भागों में फैल गई। क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अफसरों को मार डाला और उनके बंगले जला दिए।

लखनऊ में हेनरी लॉरेन्स ने अपने सैनिकों के साथ रेसीडेन्सी (निवास) में शरण ली। ऐसा प्रतीत होने लगा कि देश में दस दिन की अवधि के लिए क्रांतिकारियों का राज्य हो गया। अवध में विद्रोह का नेतृत्व वहाँ की रानी बेगम हजरत महल कर रही थीं।

विद्रोह का अंत

लॉर्ड कैनिंग के निर्देशन में उत्तरी भारत के विभिन्न स्थलों पर विद्रोहियों का सामना किया गया। सर्वप्रथम ब्रिटिश सैनिकों ने दिल्ली को अपने अधिकार में ले लिया। सिक्ख एवं ब्रिटिश सैनिकों की सहायता से विद्रोह को दबा दिया गया। बहादुरशाह को आजीवन कारावास का दंड देकर रंगून (बर्मा) भेज दिया गया। 1862 ई. में वहीं उसकी मृत्यु हो गई। नाना साहेब नेपाल भाग गए। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई लड़ते-लड़ते मारी गई। ताँत्या टोपे पकड़े गए और उन्हें फाँसी की सजा दी गई। बिहार के क्रांतिकारी नेता बाबू कुँवर सिंह की मृत्यु हाथ में गोली लगने से 23 अप्रैल, 1858 को हुई। इस प्रकार नेतृत्व के अभाव में विद्रोह कमजोर होता हुआ समाप्त हो गया।