ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक एवं सैन्य नीतियाँ (Administrative and Military Policies of British Government) Part 19 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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डफरिन की बर्मा नीति ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक एवं सैन्य नीतियाँ (Administrative and Military Policies of British Government) Part 19

  • प्रथम एवं दव्तीय आंग्ल-बर्मा युद्ध में निचले बर्मा को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया किन्तु ऊपरी बर्मा क्षेत्र स्वतंत्र था।
  • बर्मा के प्रति डफरिन का दृष्टिकोण साम्राज्यवादी दृष्टिकोण से प्रभावित था। उसकी दृष्टि संपूर्ण बर्मा क्षेत्र पर थी।
  • डफरिन के दृष्टिकोण के कई महत्वपूर्ण पहलू थे-
  • बर्मा क्षेत्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप
  • ब्रिटिश का दावा है कि बर्मा के नागरिकों की सुरक्षा का अधिकार उन्हें प्राप्त है।
  • 1871 में बर्मा के राजा का अपमान जिसके अंतर्गत उसने गवर्नर-जनरल और बर्मा के राजा के बीच संबंधों की घोषणा की। इसके अंतर्गत बर्मा के राज की अधीनस्थ स्थिति को स्थापित करने का प्रयास किया गया।
  • बर्मा-फ्रांस के बीच राजनीतिक संबंधों का विकास हुआ और इस प्रकार के विकास से ब्रिटिश साम्राज्य के लिए खतरा उत्पन्न हुआ।
  • बर्मा के शासक के दव्ारा अंग्रेजों के वाणिज्यिक हितों की पूर्ति के अंतर्गत ब्रिटिश अनुरोध अस्वीकार किया गया।
  • इस प्रकार के संबंध ने अंतत: 1885 में आंग्ल-बर्मा युद्ध को जन्म दिया जिसका परिणाम बर्मा क्षेत्र पर ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना था। अंग्रेजों ने रंगून को बर्मा की राजधानी बनाकर उसका विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर दिया।
  • डफरिन की बर्मा नीति से ब्रिटिश सीमा का विस्तार हुआ। अंग्रेजों के लिए इस क्षेत्र का विशेष सामरिक महत्व था।

लॉर्ड कर्जन की तिब्बत नीति ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक एवं सैन्य नीतियाँ (Administrative and Military Policies of British Government) Part 19

  • कर्जन के काल में आंग्ल-तिब्बत संबंधों में पतन की स्थिति से ब्रिटिश व्यापारिक एवं वाणिज्यिक हित प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए।
  • 1893 में आंग्ल-चीन समझौते दव्ारा अंग्रेजों को तिब्बत में व्यापार का अधिकार मिला लेकिन दलाई लामा दव्ारा इस व्यापारिक संबंध को स्वीकार नहीं किया गया।
  • कर्जन दव्ारा इस संघर्ष की स्थिति को समाप्त करने का प्रयास किया गया और दलाई नामा के साथ पत्राचार की शुरूआत की गई लेकिन दलाई नामा ने इस पत्राचार के प्रति उदासीनता दिखलाई। दलाई नामा व रूस के संबंधों के विकास से तिब्बत क्षेत्र में रूसी प्रभाव स्थापित होने का खतरा भी उत्पन्न हुआ।
  • कर्जन दव्ारा यंग (युवा) हसबैंड मिशन (लक्ष्य) को भेजा गया जिसके दव्ारा दव्पक्षीय वार्ता प्रारंभ करने का प्रयास था। दलाई लामा के उदासीन दृष्टिकोण के कारण इस मिशन का सैन्य कार्यवाही में परिवर्तन हुआ एवं तिब्बत पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित हुआ।
  • कर्जन की इस नीति के अंतर्गत इस संधि से अंग्रेजों को कई व्यापारिक लाभ मिले। तिब्बत के साथ व्यापार की शुरूआत हुई। तिब्बत में ब्रिटिश वाणिज्यिक एजेंट (कार्यकर्ता) की नियुक्ति की अनुमति मिली। तिब्बत के बाहवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू य संबंधों की सीमााओं का निर्धारण हुआ जिसमें कहा गया कि तिब्बत में किसी विदेशी एजेंन्ट के प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी-यदि तिब्बत किसी अन्य राष्ट्र को कोई सुविधा देता है तो उस सुविधा की प्राप्ति का अधिकार ब्रिटिश को भी होगा।
  • संतुलित अर्थों में इस नीति का प्रभाव तिब्बत क्षेत्र में रूसी प्रभाव की समाप्ति के अंतर्गत देखा जा सकता है। यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सुदृढ़ीकरण के अंतर्गत महत्वपूर्ण कदम था।

रियासतों के प्रति ब्रिटिश नीति ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक एवं सैन्य नीतियाँ (Administrative and Military Policies of British Government) Part 19

भारत में 560 से अधिक रियासतें थीं। ये रियासतें भारतीय प्रायदव्ीप के अल्प उर्वर दुर्गम प्रदेशों में स्थित थीं। ईस्ट (पूर्व) इंडिया (भारत) कंपनी (संघ) ने अपने विजय अभियान में महत्वपूर्ण तटीय क्षेत्रों, बड़ी-बड़ी नदी घाटियों-अत्यधिक उर्वर प्रदेश, तथा दूर-दराज के दुर्गम प्रदेश इन सभी को अपने अधीन कर लिया। जिन कारकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सुदृढ़ बनाया, प्राय: वही कारक इन रियासतों के अस्तित्व में आने के लिये उत्तरदायी थे। इनमें से बहुत सी रियासतें स्वायत्ता एवं अर्द्ध -स्वायत्त के रूप में अपने अस्तित्व को बनाये हुयी थी तथा संबंधित भू-क्षेत्रों में शासन कर रही थीं। कंपनी ने इन रियासतों के आपसी संघर्ष तथा आंतरिक दुर्बलता से लाभ उठाकर इन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया। यद्यपि कंपनी ने अलग-अलग रियासतों के प्रति अलग-अलग नीतियां अपनायीं। कुछ को उसने प्रत्यक्ष रूप से अधिग्रहित कर लिया तथा कुछ पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण बनाये।