भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 6for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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बंग-भंग योजना ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 6

1905 में लार्ड कर्जन ने बंग-भंग योजना को कार्यान्वित करने का विचार किया। उनका तर्क था कि बंगाल बहुत बड़ा प्रांत है और शासन की सुविधा के लिए उसका विभाजन आवश्यक है। बंग-भंग का विचार देने वाला था सर विलियम वार्ड।

विभाजन के समय बंगाल की कुल जनसंख्या 7 करोड़ 85 लाख थी तथा इस समय बंगाल में वर्तमान के बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा एवं बांग्लादेश शामिल थे। 1874 में असम, बंगाल से अलग हो गया था। कर्जन ने प्रशासनिक असुविधा को बंगाल विभाजन का कारण बताया परन्तु वास्तविक कारण राजनीतिक था। बंगाल उस समय राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र था और साथ ही बंगालियों में प्रबल राजनीतिक जागृति थी जिसे कुचलने के लिए कर्जन ने बंगाल को बाँटना चाहा। उसने बांग्ला भाषी हिन्दुओं को दोनों भागों में अल्पसंख्यक बनाना चाहा। लार्ड रेनॉल्डस ने लिखा है- ‘प्रांत के जागृति वर्ग के अनुसार इस विभाजन दव्ारा बंगाली राष्ट्रीयता की बढ़ती हुई शक्ति पर आक्रमण किया गया था।’ कर्जन ने पूर्वी बंगाल के मुसलमानों की एक सभा में भाषण देते हुए कहा था- ‘यह विभाजन केवल शासन की सुविधा की दृष्टि से नहीं किया गया है, वरनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू इसके दव्ारा एक मुस्लिम प्रांत भी बनाया जा रहा है जिसमें इस्लाम और इसके अनुयायियों की प्रधानता होगी।’ सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने इसे महान राष्ट्रीय संकट की संज्ञा दी। किन्तु, व्यापक विरोध होने के बावजूद कर्जन की मूढ़तापूर्ण एवं कुटिल नीति ने लोगों के रोष को चरम सीमा पर ला दिया। इसके फलस्वरूप एक सुसंगठित आंदोलन फूट पड़ा।

स्वदेशी आंदोलन ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 6

ब्गाांल-विभाजन ने असंतोष और अशांति की धधकती आग में घी का काम किया। 1905 ई. के अंतिम महीनों में बंगाल में एक तूफान उठा जो शीघ्र ही सारे देश में फैल गया और बड़ी-बड़ी विरोध-सभाएँ होने लगी। ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के प्रस्ताव पास होने लगे। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा विपिनचन्द्र पाल जैसे नेताओं ने स्वदेशी आंदोलन का प्रचार किया।

7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता के टाउन (कस्बा) हाल (भवन) में एक ऐतिहासिक बैठक में स्वदेशी आंदोलन की विधिवत घोषणा की गई। आनंदमोहन बोस और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने दो विशाल जनसभाओं को संबोधित किया। लोगों ने एक-दूसरे के हाथों पर राखियां बांधी। घरो में चूल्हा नहीं जला। लोगों ने उपवास रखा तथा बहिष्कार की नीति को प्रथम बार अपनाया।

बंगाल विभाजन जैसी शर्मनाक घटना ने स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया। तिलक ने बंबई और पुणें में, अजीत सिंह और लाला लाजपत राय ने पंजाब और उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन को पहुँचाया। सैय्यद हैदर रजा ने दिल्ली में इस आंदोलन का नेतृत्व किया। चिदम्बरम पिल्लै ने मद्रास प्रेसिडेंसी (राष्ट्रपति) में इसका नेतृत्व किया। 1905 में गोखले की अध्यक्षता में हुए बनारस अधिवेशन ने बंगाल में स्वदेशी आंदोलन व बहिष्कार आंदोलन का समर्थन किया।

स्वदेशी आंदोलन ने जनजागरण के लिए स्वयंसेवी संगठनों की खूब मदद ली। इनमें सबसे महत्वपूर्ण संगठन था स्वदेश बांधव समिति, जिसका नेतृत्व अश्विनी कुमार दत्त कर रहे थे। स्वदेशी आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि इसने आत्म-निर्भरता एवं आत्मशक्ति का नारा दिया। स्वावलंबन व आत्मनिर्भता का प्रश्न राष्ट्रीय स्वाभिमान, आदर और आत्मविश्वास के साथ जुड़ा था। गाँवों की आर्थिक प्रगति व सामाजिक पुनरुत्थान के लिए गाँवों में रचनात्मक कार्य शुरू करने की जरूरत महसूस की गई। आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी अथवा राष्ट्रीय शिक्षा की भी जरूरत बड़ी शिद्दत के साथ महसूस की गई। बंगाल राष्ट्रीय महाविद्यालय की स्थापना की गई, इसके प्राचार्य बने अरविंद घोष। अगस्त, 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद का गठन हुआ। तकनीकी शिक्षा के लिए बंगाल संस्थान की स्थापना की गई। स्वदेशी कल-कारखाने स्थापित होने लगे। बंगाल रसायन कारखाना की स्थापना बी. सी. राय ने की। स्वदेशी आंदोलन का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा सांस्कृतिक क्षेत्र में बांग्ला साहित्य, विशेषकर काव्य के लिए यह स्वर्णकाल था। कला के क्षेत्र में अवनीन्द्रनाथ एवं नंद लाल बोस ने प्राचीन भारतीय कला को पुन: स्थापित किया। बंगाल का विभाजन करके कर्जन जिस उद्देश्य की पूर्ति करना चाहता था वह नहीं हो सका। सारे देश ने एक स्वर से इसका विरोध किया और इसके फलस्वरूप एक अनुशासित एवं सुसंगठित राष्ट्रीय आंदोलन का जन्म हुआ। 1911 में बंगाल-विभाजन को रद्द कर दिया गया।