भारत का आर्थिक इतिहास (Economic History of India) Part 5 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

Glide to success with Doorsteptutor material for CTET-Hindi/Paper-1 : get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-1.

प्रमुख विचार ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारत का आर्थिक इतिहास (Economic History of India) Part 5

  • भारतीय वस्त्र हमारे घरों, हमारे कक्षों तथा हमारे शयनगारों में भी प्रवेश कर चुके हैं, पर्दे, गद्दे, कुर्सियां और अंत में हमारे बिस्तर भी मलमल या भारतीय वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं रहे।

-डेलियल डिफ

  • हमारी प्रणाली बहुत कुछ स्पंज की तरह काम करती है जो गंगा के तटों से सभी अच्छी चीजें सोखकर थेम्स के तटों पर निचे जाती है।

-जॉन सुलिवन

  • अंग्रेजों के बुनियादी सिद्धांत सारे भारतीय राष्ट्र को हर संभव तौर पर अपने हितों और फायदों के लिए गुलाम बनाना था।

-जॉन शो

  • अलग-थगल रहने वाले स्वावलंबी गांव के कवच को इस्पात की रेल ने बेध दिया, तथा उसकी प्राण शक्ति को क्षीण कर दिया।

-बुकान

  • इस दरिद्रता के समान दरिद्रता वाणिज्य के इतिहास में शायद ही कभी रही है। बुनकरों की हडिवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू डयां भारत के मैदानों को विरान कर रही हैं।

-विलियम बेंटि

  • मजे की बात यह है कि भारत में जीवन तथा संपत्ति की सुरक्षा प्राप्त है, मगर यथार्थ में ऐसी कोई बात नहीं है। केवल एक अर्थ या रूप में जीवन और संपत्ति की सुरक्षा प्राप्त है, अर्थात लोग एक-दूसरे की या देशी तानाशाहों की हिंसा से सुरक्षित हैं।

-नौरों

  • विदेशी प्रशासन का अत्यधिक खर्चीलापन बहरहाल इसकी अकेली बुराई नहीं है। यह एक नैतिक बुराई भी है; और बल्कि बड़ी बुराई हैं।

-गोख

  • यह देश जो कड़े से कड़े स्वेच्छाचारी शासकों के अधीन भी हराभरा तथा लहलहाता प्रदेश था, जब से कंपनी (संघ) दीवालिया है, उजाड़ हो गया है, जिससे प्रत्येक अंग्रेज को दु: ख होगा।

-रिचर्ड बी

  • इस व्यवस्था के राजनीतिक लाभों ने इसकी आर्थिक हानियों को संतुलन कर दिया।

-सीटन

  • प्राचीन काल में भी लुटेरे आते थे परन्तु लुटने के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू वे वापस चले जाते थे और कुछ ही वर्षो में भारत पुन: अपनी हानि की पूर्ति कर लेता था परन्तु अब तो वह निरन्तर अधिक से अधिक निर्धन बनता जा रहा है। उसे लूट से दम लेने का अवसर ही नहीं मिलता।

-नौर

  • अंग्रेजी राज्य के कारण 19वीं शताब्दी के अंत तक भारत एक विशेष वर्गीय उपनिवेश बन गया था। भारतीय अर्थव्यवस्था सामाजिक जीवन अंग्रेजी अर्थवयवस्था तथा समाज के अधीन हो गया था।

-बिपिन

  • गृहशिल्प और कृषि के सहज सरल संयोजन एवं तज्जन्य अर्थतंत्र के कारण गांव अपना संतुलन सुरक्षित रख सकता था विघटन की प्रकिया का सबल प्रतिरोध प्रस्तुत कर सका।

-शेलव

  • प्राचीन काल में जब रोम के निजी और सार्वजनिक भवनों में भारतीय कपड़ों, दीवारदरी, तामचीनी मोजेक, हीरे जवाहरात का उपयोग होता था, उस समय से औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ तक आकर्षक और उद्दीपक वस्तुओं के लिए सारा संसार का मोहताज रहा।
  • यद्यपि स्थायी बंदोबस्त कई अर्थो में, यहां तक कि अपने मूलभूत तत्वों में भी असफल रहा, फिर भी व्यापक जन विद्रोह क्रांति के विरुद्ध सुरक्षा की दृष्टि से इसका यह बहुत बड़ा फायदा रहा कि इसके लिए भूमिधरों का ऐसा बड़ा दल तैनात हो गया जिसको ब्रिटिश शासन के स्थायित्व से फायदा था, और जिसका जनसाधारण पर पूरा नियंत्रण था।

-लॉर्ड

  • नए भूमि संबंधों एव नियत धनराशि के रूप में कर के भुगतान की प्रथा के फलस्वरूप ग्रामीण उपभोग के लिए उत्पादन के बदले बाजार में विक्रय के लिए उत्पादन शुरू हुआ। इस तरह उत्पादन के रूप और चरित्र में मूलभूत परिवर्तन हुए।

-वी एन गाडिगल

  • ऋण के बंधन ने कृषि को जैसे जंजीरों से जकड़ रखा है। सूदखोरी की इस सर्वव्याप्त निर्मम प्रथा ने रैयत की हडिवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू डयों का सारा रस चूस लिया है, और उसे गरीबी और गुलामी की जिंदगी जीने को बाध्य किया है।

-सर हेमिल्टन

  • जहां देशी राज्य समाप्त नहीं हुए, वहां भी अंग्रेजों का परोक्ष राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ता ही गया। देशी राज्यों और उनके अधिकार के हृास का हिन्दुस्तान की शहरी दस्तकारी पर तत्काल बड़ा सीधा असर पड़ा। ये देशी राज्य ही शहरी दस्तकारी के समान के सबसे बड़े खरीददार थे।

-वी एन गाडिगिल

  • 17वीं सदी के अंत में रेशम, सूती सामान का बड़े परिमाण में निर्यात हुआ। ईस्ट (पूर्व) इंडिया (भारत) कंपनी (संघ) के लिए यह बड़े लाभ का रोजगार था और 1672 में कंपनी ने बहुत सारे विलायती पैटनों के साथ अंग्रेज धुनिया, रंगरेज और तागा बटने वालों को हिन्दुस्तान भेजा कि वे वहां कारीगरों को अंग्रेजी और यूरोपीय बाजार के उपयुक्त सामान बनाने के नए तरीके सिखा सकें।

-टामसन एंड (और) गैरेट

  • भारत के साथ सूती माल के व्यापार का इतिहास एक दुखद प्रसंग है। इससे पता चलता है कि जिस देश पर भारत आश्रित हो चुका था, उसने भारत के साथ कैसा अन्याय किया … यदि प्रतिरोधक कर और कानून नहीं होते तो पेजली और मैनचेस्टर की मिलें (कारखाना) शुरू में ही बंद हो जाती।

-होरेस विल्सन

  • फिर भी, कारखानों में जो उत्पादन के मितव्ययी और लाभकर तरीके अपनाए जाते हैं उनके साथ प्रतियोगिता में हाथ से कताई बुनाई का तरीका नहीं टिक पाता … जिस तरह, एक जमाने में, यंत्रचालित कारखानों की होड़ के कारण यूरोप में हाथकरघा उद्योग की क्षति पहुंची, वैसे ही भारत मेें भी हाथकरघा से काम करने वालों को देशी और विदेशी कारखानों में बने सस्ते माल की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ा।

-बुकानन

  • लेकिन आधुनिक उद्योगों के अपर्याप्त विकास की स्थिति में गांवो के बचे खुचे उद्योगों ने, अपनी बढ़ती हुई नष्टशीलता के बावजूद देहात के लोगों की जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की … आज भी भारत की औद्योगिक आबादी में गांवो के पुराने कारीगरों की ही संख्या अधिक है।

-वी एन गाडगिल

  • भारत औद्योगिक विकास संबंधी हमारी कार्यतालिका अतीत में सदैव बहुत श्रेयस्कर नहीं रही है, यह तो केवल युद्ध की आवश्यकताओं के दबाव में सरकार को शुद्ध भारतीय उद्योग के प्रति निस्पृहता की, संभवत: ईर्ष्या की भी, अपनी पुरानी भावना का परित्याग करना पड़ा।

-वेलेंटाइन शिराल

  • इंग्लैंड को भारत से कुछ नहीं मिलता, सिवाय उसके जो-अंग्रेजों की सेवाओं एवं खर्च की हुई उनकी पूंजी के बदले में मिलता है।

-स्ट्रेची

  • हमारा लक्ष्य पूँजी अथवा पूँजीपतियों को नष्ट करना नहीं है, अपितु पूँजी और श्रम के बीच के संबंधों को नियमित करना है। हम पूंजी को अपने पक्ष में प्रयुक्त करना चाहते हैं।

-गांधी

  • सरकार की उदासीनता ने हम पूँजीपतियों को कांग्रेस जैसे समाजवादी संगठनों के साथ कार्य करने के लिए बाध्य कर दिया है।

-नारानजी