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भारतीय राजव्यवस्था

Table of contents

Table of Contents
विषय सूची
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंवैधानिक विकास
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारतीय संविधान सभा
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारतीय संविधा के स्रोत
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारत के राष्ट्रीय प्रतीक
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंविधान सभा के भाग एवं कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेद
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंविधान की अनुसूचियाँ
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारतीय संविधान की प्रकृति
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंघ का राज्यक्षेत्र और राज्यों का निर्माण
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझनागरिकता (भाग-2 अनुच्छेद 5 से 11)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझमूल अधिकार
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (भाग-4 अनुच्छेद 36 से 51)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझमौलिक कर्तव्य
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराष्ट्रपति
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझउपराष्ट्रपति
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझप्रधानमंत्री
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंसद
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझ(अनुच्छेद 368) संविधान संशोधन प्रक्रिया
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझन्यायपालिका
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंचित निधि (अनुच्छेद-266 (1) )
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझआकस्मिकता निधि (अनुच्छेद-267)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (अनुच्छेद 148 से 151)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारत का महान्यायावादी (अनुच्छेद 76)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझकेन्द्रीय सतर्कता आयोग
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझप्रशासनिक अधिकरण (अनुच्छेद -323-क)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारतीय राजव्यवस्था में वरीयता अनुक्रम
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्य की कार्यपालिका व विधायिका
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराज्य संबंध (भाग-11 एवं 12 और अनुच्छेद 245 से 293 तक)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझयोजना आयोग
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराष्ट्रीय विकास परिषद
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझअंतर्राज्यीय परिषद (अनुच्छेद 263)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंघ एवं राज्य के अधीन सेवायें
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझआपात उपबंध
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारत में पंचायती राज
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझभारत में नगरीय शासन
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझनिर्वाचन आयोग (भाग 15, अनच्छेद 324 से 329)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराजनीतिक दल
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझराजभाषा (भाग 17)
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझवैधानिक एवं स्वायत संगठन
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझसंविधान में प्रमुख संशोधन
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझमहत्वपूर्ण शब्दावलियाँ
ढवस बसेेंत्रष्कमबपउंसष्झढसपझवस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 संवैधानिक विकास

  • 1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट-इस एक्ट को 1773 में ब्रिटिश संसद दव्ारा पास किया गया तथा 1774 में इसे लागू किया गया। इस अधिनियम के प्रावधान के तहत -
    • कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष के स्ाान पर 4 वर्ष कर दिया गया।
    • फोर्ट विलियम प्रेसीडेंसी (बंगाल) के प्रशासक को अब अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा उसके सहयोग के लिए 4 सदस्यों की एक कार्यकारिणी बनाई गयी, जिसे नियम बनाने तथा अध्यादेश पारित करने का अधिकार दिया गया। गवर्नर जनरल को अपने कौसिल के विरुद्ध कार्य करने का अधिकार नहीं था।
    • कलकता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्ाापना की गई, जिसमें अंग्रेजी विधि से न्याय होता था।
    • कर्मचारियों का निजी व्यापार प्रतिबंधित कर दिया गया।
  • 1784 का पिट्‌स इंडिया एक्ट-इस ऐक्ट के विवाद को लेकर ब्रिटेन में लार्ड नार्थ तथा फॉक्स को मिली-जुली सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा था। यह पहला और अंतिम अवसर था, जब किसी भारतीय मामलों पर ब्रिटिश सरकार गिर गयी थी। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान-
    • दव्ैध शासन की स्ाापना-कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (व्यापारिक मामलों के लिए) और बोर्ड ऑफ कंट्रोल (राजनीतिक मामलों के लिए) , जो 1856 तक कायम रहा।
    • बंबई तथा मद्रास प्रेसीडेन्सियाँ भी गवर्नर जनरल एवं उनके परिषद के अधीन हो गयीं।
    • गर्वनर जनरल की परिषदों की संख्या 3 कर दी गयी और गवर्नर को परिषद पर विशेष अधिकार दिया गया।
    • गवर्नर जनरल बोर्ड ऑफ कंट्रोल की अनुमति के बिना किसी भारतीय नरेश से युद्ध एवं संधि नहीं कर सकता था।
  • 1786 का चार्टर एक्ट-यह एक्ट कॉर्नवालिस को भारत लाने के उद्देश्य से लाया गया। इसके दव्ारा मुख्य सेनापति की शक्ति गवर्नर जनरल में निहित कर दी गई। अब गवर्नर जनरल विशेष परिस्थिति में परिषद के निर्णय को रद्द कर सकता था।
  • 1793 का चार्टर एक्ट- इसके दव्ारा लंदन स्थित नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों एवं कर्मचारियों के वेतनादि भारतीय कोष से देने का निर्णय किया गया, जो व्यवस्था 1919 तक कायम रही।

1813 का चार्टर एक्ट-इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान-

  • कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया, किन्तु उनके चीन से तथा चाय के व्यापार पर एकाधिकार कायम रहा।
  • कंपनी के भागीदारों को भारतीय राजस्व से 10 प्रतिशत लाभांश देने का निश्चय किया गया।
  • भारतीयों के लिए एक लाख रुपया वार्षिक शिक्षा में सुधार, साहित्य में सुधार एवं पुनरुत्ाान के लिए और भारतीय प्रदेशों में विज्ञान की प्रगति के लिए खर्च करने का प्रावधान किया गया।
  • प्रथम बार अंग्रेजों की भारत पर संवैधनिक स्थिति स्पष्ट की गयी।

1833 का चार्टर एक्ट- इस एक्ट पर औद्योगक क्रांति उदारवादी नीतियों का क्रियान्वयन तथा लेसेज फेयर के सिद्धांत की छाप थी। इसका मुख्य प्रावधान-

  • कंपनी का व्यापारिक एकाधि कार पूर्णत: समाप्त हो गया।
  • कंपनी के अब केवल राजनीति अधिकार थे।
  • ब्गाांल का गवर्नर जनरल अब भारत का गवर्नर जनरल हो गया।
  • भारतीय कानूनों को संचित, लिपिबद्ध तथा सुधारने के उद्देश्य से एक विधि आयोग का गठन किया गया।
  • नियुक्तियों के लिए योग्यता संबंधी मापदंड को अपनाकर भेदभाव को समाप्त कर दिया गया।
  • भारत में दासता को अवैध (1843 में प्रतबंधित) घोषित किया गया।

1853 का चार्टर एक्ट-इसके दव्ारा-

  • कंपनी को ब्रिटिश सरकार की ओर से भारत का क्षेत्र ट्रस्ट के रूप में तब तक रखने की आज्ञा दी गयी जब तक कि ब्रिटिश संसद ऐसा चाहे।
  • विधि सदस्य अब गवर्नर जनरल के काउन्सिल का पूर्ण सदस्य बन गया।
  • सरकारी सेवाओं में नियुक्तियाँ अब डाइरेक्टरों के दव्ारा न होकर प्रतियोगी परीक्षाओं दव्ारा होने लगी।

1858 का चार्टर एक्ट-

  • कंपनी का शासन समाप्त कर उसकी जिम्मेवारी ब्रिटिश क्रॉउन को सौंप दी गयी। भारत का गवर्नर जनरल अब वायसराय कहा जाने लगा।
  • बोर्ड ऑफ कंट्रोल एवं बोर्ड ऑफ डायरेक्टर का समस्त अधिकार ‘भारत सचिव’ को सौंप दिया गया। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का सदस्य होता था। जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारतीय परिषद का गठन किया गया।
  • भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा अधिकार स्ाापित हो गया।

1861 का भारतीय परिषद अधिनियम-

  • यह पहला ऐसा अधिनियम था, जिसमें विभागीय प्रणाली एवं मंत्रिमंडलीय प्रणाली की नींव रखी गयी।
  • वायसराय की कार्यकारिणाी का विस्तार हुआ।
  • वायसराय को पहली बार अध्यादेश जारी करने एवं विधान परिषद दव्ारा पारित विधियों के विरुद्ध वीटों करने की शक्ति प्रदान की गई।
  • वायसराय को नये प्रांतों की स्ाापना तथा उसकी सीमाओं में परिवर्तन का अधिकार दिया गया।

1892 का भारतीय परिषद अधिनियम-

  • केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों की सदस्य संख्या में वृद्धि की गयी।
  • चुनाव पद्धति की अप्रत्यक्ष शुरूआत हुई। निर्वाचन की पद्धति पूर्णतया अप्रत्यक्ष थी।
  • परिषद के भारतीय सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने तथा सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया, किन्तु वे अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछ सकते थे।

1909 का भारतीय परिषद अधिनियम-

  • मुसलमानों लिए पृथक मताधिकार एवं पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की स्थापना की गई।
  • भारतीयों को विधि निर्माण या प्रशासन दोनों में प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया।
  • केन्द्रीय एवं प्रांतीय परिषद के सदस्य बजट पर बहस कर सकते थे और अनुपूरक प्रश्न पूछ सकते थे।
  • केन्द्रीय व प्रांतीय कार्यकारिणी परिषद में एक-एक भारतीय सदस्य नियुक्त हुए।

प्रतिक्रिया

  • के. एम. मुंशी-इन्होंने उभरते हुए प्रजातंत्र को मार डाला।
  • मजूमदार-यह सुधार केवल चन्द्रमा के चाँदनी के समान हैं।

1919 का भारत सरकार अधिनियम (मॉण्टग्यु चेम्सफोर्ड सुधार) -

  • इसमें पहली बार उत्तरदायी शासन शब्दों का स्पष्ट प्रयोग किया गया।
  • प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली लागू की गयी।
  • सिखों, यूरोपियनों, एंग्लों इंडियनों एवं भारतीय ईसाई को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया।
  • केन्द्र में दव्सदनीय व्यवस्था की गयी, पहला राज्यपरिषद और दूसरा केन्द्रीय विधान सभा। केन्द्रीय विधान सभा का कार्यकाल तीन वर्ष का था, जिसे वायसराय बढ़ा भी सकता था।
  • बजट पर बहस तो हो सकती थी, किन्तु उस पर मतदान का अधिकार नहीं था।
  • भारतीय कार्य की देख-भाल के लिए एक नया अधिकारी भारतीय उच्चायुक्त नियुक्त किया गया।
  • प्रांतों में दव्ैध शासन की स्ाापना हुई-पहला आरक्षित एवं दूसरा हस्तांतरित। आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल अपने दव्ारा मनोनीत पार्षदों दव्ारा करता था। हस्तांतरित विषयों का शासन निर्वाचित सदस्यों दव्ारा चलाया जाता था। जो उत्तरदायी थे।
  • सभी विषयों को केन्द्र तथा प्रांतों में बांटा गया। केन्द्रीय विषय-विदेशी मामले, रक्षा, डाक-तार, सार्वजनिक ऋण आदि। प्रांतीय विषय-स्ाानीय स्वशासन, शिक्षा, चिकित्सा, भूमि, जल संभरण, अकाल सहायता, कृषि व्यवस्था आदि।
  • प्रांतों में दव्ैध शासन प्रणाली 1 अप्रैल 1921 को लागू की गयी जो अप्रैल 1937 तक चलती रही।
  • स्त्रियों को सभा के लिए मताधिकार दिया गया।

कांग्रेस ने इस एक्ट को निराशाजनक एवं असंतोषप्रद कहा।

  • 1935 का भारतीय सरकार अधिनियम-इसे 3 जुलाई 1936 को लागू किया गया। वैसे पूर्णरूप से चुनावों के बाद अप्रैल 1937 में यह लागू हुआ। इस अधिनियम में कुल 321 अनुच्छेद एवं 10 अनुसूचियां थीं। इसके दव्ारा भारत में सर्वप्रथम संघीय शासन प्रणाली को प्रारंभ किया गया। इस संघ में 11 ब्रिटिश प्रांत, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्र एवं वे देशी रियासतें जो उसमें स्वेच्छा से शामिल होना चाहती थीं, शामिल थे।
  • इसके दव्ारा प्रांतों में दव्ैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया एवं केन्द्र में दव्ैध शासन व्यवस्था अपनायी गयी। संघीय विषय को दो भागों में (संरक्षित एवं हस्तांतरित) में विभाजित किया। संरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर जनरल कुछ पार्षदों की सहायता से करता था, जो संघीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। हस्तांतरित विषयों का प्रशासन मंत्रियों को सौंपा गया। मंत्री विधान मंडल के सदस्यों में से चुने जाते थे तथा उसके प्रति उत्तरदायी होते थे-
    • इसके दव्ारा 6 प्रांतों में दव्सदनीय तथा 5 प्रांतों में एक सदनीय विधान मंडलों के व्यवस्था की गई।
    • इसके दव्ारा एक संघीय न्यायालय के गठन की व्यवस्था की गई। इस न्यायालय को मौलिक अपीलीय तथा परमर्शदात्री क्षेत्राधिकार प्राप्त था। यह एक अभिलेख न्यायालय भी था। यह न्यायालय अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं था। इसके निर्णयों के विरुद्ध इंग्लैंड की प्रीवी कौसिल में अपील की जा सकती थी।
    • स्घाींय विषय की केन्द्रीय सूची (59 विषय) , प्रांतीय सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची (36 विषय) बनाई गई।
    • रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्ाापना की गई।
    • यह नया संविधान अनम्य था। इसमें संशोधन करने का अधिकार केवल अंग्रेजी संसद को ही था।
    • भारत राज्य सचिव की परिषद समाप्त कर दी गई एवं संघीय प्राधिकरण की स्ाापना की गई।
    • सांप्रदायिक निर्वाचन को और बढ़ाकर इसे हरिजनों तक विस्तृत किया गया।

प्रतिक्रिया

  • जवाहरलाल नेहरू ने इसे ‘अनैच्छिक, अप्रजातांत्रीय और अराष्ट्रवादी संविधान’ की संज्ञा दी।
  • जिन्ना ने इसे पूर्णतया सड़ा हुआ, मूल रूप से बुरा और बिल्कुल अस्वीकृत बतलाया।
  • जवाहरलाल नेहरू ने इसे अनेक ब्रेकों वाला परन्तु इंजन रहित मशीन की संज्ञा दी।
  • जवाहरलाल नेहरू ने इसे दासता का नया चार्टर कहा।
  • मदन मोहन मालवीय ने इसे बाह्य रूप से जनतंत्रवादी एवं अंदर से खोखला कहा।
  • भारतीय स्वाधीनता अधिनियम-1947-वायसराय लार्ड माउंटबेटन की योजना पर आधारित यह विधेयक 4 जुलाई को ब्रिटिश संसद में पेश किया गया। 18 जुलाई 1947 को शाही संस्तुति मिलने पर यह विधेयक अधिनियम बना। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं-
    • भारत का विभाजन, उसके स्ाान पर भारत तथा पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य की स्ाापना।
    • भारतीय रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में रहने का निर्णय ले सकती है।
    • जब तक दोनों अधिराज्य में नए संविधान का निर्माण नही करवा लिया जाता, तब तक राज्यों की संविधान सभाओं को अपने लिए कानून बनाने का अधिकार होगा।
    • जब तक नया संविधान निर्मित नहीं हो जाता, तब तक दोनों राज्यों का शासन 1935 के अधिनिम दव्ारा ही चलाया जाएगा।
    • दोनों अधिराज्यों के पास यह अधिकार सुरक्षित होगा कि वह अपनी इच्छानुसार राष्ट्रमंडल में बने रहें या उससे अलग रहें।
    • 15 अगस्त 1947 से भारत और पाकिस्तान के लिए अलग-अलग गवर्नर जनरल कार्य करेंगे।
    • जब तक प्रांतों में नये चुनाव नहीं कराए जाते, उस समय तक प्रांतों में पुराने विधान मंडल कार्य कर सकेंगे।