Science & Technology: Higgs Boson or God Particle and Tomato Gene Sequence

Get top class preparation for CTET-Hindi/Paper-2 right from your home: get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-2.

अद्यतन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Latest Development in Science & Technology)

हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल (Higgs Boson or God Particle)

स्विट्‌जरलैंड स्थित यूरोपीय सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्व (सर्न) के वैज्ञानिकों ने पांच दशक से जारी हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल खोजने के अभियान में महत्वपर्ण सफलता मिलने की घोषणा 4 जुलाई 2012 को की। गॉड पार्टिकल के बारे में माना जाता है कि यह उन कणों को द्रव्यमान प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है, जिससे 13.7 अरब वर्ष पहले हुए बिग बैंग (महाविस्फोट) के बाद अंतत: तारों और ग्रहों का निर्माण हुआ। एटलस प्रयोग के प्रवक्ता फेबिआलों गियानोती ने कहा, हमें अपने आंकड़ों में 126 जीईवी के द्रव्यमान क्षेत्र के आसपास पांच सिग्मा स्तर के नए कण के स्पष्ट संकेत मिले हैं, लेकिन इन परिणामों को प्रकाशन के लिए तैयार करने के लिए थोड़े और समय की आवश्यकता है। पांच सिग्मा 99 प्रतिशत खोज की निश्चितता में तब्दील होती हैं और यह किसी भी कण के खोज होने की घोषणा से पहले आवश्यक होती है। ऐसा माना जाता है कि हिग्स ऊर्जा स्पेक्ट्रम के निचले सिरे यानि 120 और 140 जीईवी के बीच छुपा रहता है। सर्न के वैज्ञानिकों के अनुसार लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) में जो कण उन्हें मिला है वह लंबे समय से खोजे जाने वाले हिग्स बोसॉन से मिलता-जुलता है, लेकिन खोज की पहचान के लिए और अधिक आंकड़े की आवश्यकता होगी। वैज्ञानिकों ने इसकी खोज करने के लिए तीन अरब यूरो के खर्च से विश्व की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली अणु उत्प्रेरक लार्ज हैड्रॉन कोलोइडर का निर्माण किया। स्विट्‌जरलैंड -फ्रांस सीमा पर 27 किलोमीटर लंबी चक्करदार पाइप ढांचे में महाविस्फोट जैसी कृत्रिम स्थितियों का निर्माण किया उससे उत्प्रेरक अणुओं के बीच टक्कर हुई। लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर प्रयोग में प्रति सेकंड लाखों अणुओं को आपस में टकराने के लिए प्रोटोंस की दो किरणें आपस में टकराई गई, इससे महाविस्फोटक के बाद सेंकंड के एक अंश के लिए रहने वाली स्थिति का निर्माण हुआ। यही वह समय था, जब हिग्स फील्ड अस्तित्व में आया तब ऐसा माना जाता है कि हिग्स अणुओं ने ब्रह्मांड के निर्माण की प्रक्रिया में अन्य कणों को द्रव्यमान प्रदान किया। विदित हो कि हिग्स बोसॉन कण की अवधारणा सबसे पहले वर्ष 1964 में ब्रिटेन के वैज्ञानिक पीटर हिग्स सहित छ: भौतिक वैज्ञानिकों ने दी थी। इस कण का नामकरण ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर हिग्स रखा गया, जबकि बोसॉन शब्द अलबर्ट हाइंस्टीन के समकालीन भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द नाथ बोस से लिया गया। आइंस्टीन ने बोस के क्वांटम यांत्रिकी पर किए गए कार्यों को अपनाया और उसे बोस-आइंस्टीन संकल्पना के रूप में विस्तारित किया।

लैक्स (LAX)

हाल में चीन के वैज्ञानिकों ने जैविक अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। चीन के जैव वैज्ञानिकों ने कम लैक्टोज वाला दूध देने में सक्षम लैक्स नामक बछिया को प्रयोगशाला में पैदा किया। लैक्स नामक बछिया का जन्म 24 अप्रैल, 2012 को इनर मंगोलिया कृषि विश्वविद्यालय में हुआ। लैक्स नामक बछिया जैविक रूप से परिष्कृत ऐसी बछिया है जो कम लैक्टोज वाला दूध देने में सक्षम हैं। इनर मंगोलिया कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर झांग ली के अनुसार उत्तरी हॉलैंड में पाई जाने वाली एक गाय से डेढ़ माह का भ्रूण निकालकर उसकी कोशिका में लैक्टोज को घुलाने वाला एंजाइम डालकर भ्रूण को जैविक रूप से परिष्कृत किया गया। इसके बाद परिष्कृत भ्रूण को जुलाई 2011 में एक गाय के गर्भ में डाला गया। जिसके बाद लैक्स पैदा हुई। ज्ञातव्य हो कि लैक्टोज दूध में पाई जाने वाली वह शर्करा है जिसकी वजह से दुनिया में बहुत लोग दूध नहीं पीते। अधिक लैक्टोज युक्त दूध से ऐसे लोगों को एलर्जी होती है, ऐसे लोगों को दूध पीते ही शरीर पर दाने निकल आते है, मितली आने लगती है और वे डायरिया का शिकार हो जाते हैं। कम लैक्टोज वाले दूध से एलर्जी होने की संभावना काफी कम है।

एएस 10 (As-10)

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा दव्ारा अंतरिक्ष यात्रियों को रेडियोधर्मिता से बचाने के लिए एक पेय पदार्थ तैयार किया गया। यह अंतरिक्ष पेय चेहरे पर झुरियों और उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करने में सहायक है। नासा दव्ारा तैयार अंतरिक्ष पेय का नाम है कांकोक्शन, इसे एएस10 भी कहा जाता हैं अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनाया गया कांकोक्शन एएस10 विभिन्न फलों का मिश्रित पेय है, इसमें ब्राजील के कोकोआ प्रजाति का फल कुपाकु, अकाई, एसेरोला, नाशपाती व यमबेरी शामिल हैं। इसके अलावा इसमें अंगूर, अनार, हरी चाय व सब्जियों का रस भी है। ये सभी विटामिन व फाइटोकेमिकल्स के भरपूर स्रोत हैं और रेडियोधर्मिता के दुष्पभावों से बचाने में सक्षम हैंं, अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार कांकोक्शन के इस्तेमाल से चार महीने में झुर्रियां, दाग-धब्बों व त्वचा पर सूर्य के प्रभाव का कम किया जा सकता है। अंतरिक्ष पेय कांकोक्शन (एएस10) में प्रचूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट्‌स पाए जाते हैं। ज्ञातव्य हो कि एंटी ऑक्सीडेंट्‌स त्वचा की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाले रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज के साथ घुल जाते हैं और उनके नुकसान पहुंचाने से पहले ही उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं। नासा ने अंतरिक्ष पेय कांकोक्शन (एएस10) को अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पोषक पूरक तत्व के तौर पर विकसित किया है ताकि पृथ्वी के बाहर के वातावरण में मौजूद विकिरण के उच्च स्तर के नुकसानदायक प्रभावों से अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा हो सके।

रडार इमेजिंग सेटेलाइट (आरआइसेट-1) (Radar Imaging Satellite: RISAT-1)

6 अप्रैल, 2012 को स्वदेश निर्मित रडार इमेजिंग सेटेलाइट RISAT-I का सफल प्रक्षेपण किया गया। तमिलनाडु के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से सुबह 5: 47 बजे पोलर सेटेलाइट लांच हृिकल पीएसएलवी-सी19 के जरिए आरआइसेट-1 उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया। प्रक्षेपण के लगभग 19 मिनट बाद इसे कक्षा में स्थापित कर दिया गया। रडार इमेजिंग सेटेलाइट RISAT 1 आरआईसेट-1 सभी मौसमों में धरती की तस्वीरें लेने में सक्षम उपग्रह है। इसके पास दिन एवं रात तथा बादलों की स्थिति में भी धरती की तस्वीरों लेने की क्षमता है। इसका इस्तेमाल प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानमुमान, कृषि और रक्षा क्षेत्र में किया जाएगा। आरआइसेट-1 उपग्रह का वजन 1858 किलोग्राम है और यह अब तब भारत दव्ारा पीएसएलवी से भेजे गए उपग्रहों में सबसे भारी उपग्रह है।

नूरी (Noorie)

जम्मू और कश्मीर राज्य स्थित शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विश्व में पश्मीना बकरी का प्रथम सफल क्लोन तैयार किया। शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SKUAST: Sher-e-Kashmie University of Agriculture Science and Technology) में 9 मार्च, 2012 को विश्व में पश्मीना बकरी का प्रथम क्लोन पैदा हुआ। विश्व में पश्मीना बकरी का प्रथम क्लोन का नाम ‘नूरी’ रखा गया। शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पशु जैव प्रौद्योगिकी के एसोसिएट प्रोफेसर रियाज अहमद शाह के नेतृत्व में कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से बकरी के स्वस्थ मादा बच्चे का जन्म कराया गया। ज्ञातव्य हो कि एसोसिएट प्रोफेसर रियाज अहमद शाह ने वर्ष 2009 में भैंस के पहले क्लोन गरिमा को तैयार किया था। उन्होंने हरियाणा के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान, करनाल में क्लोन तकनीकी से गरिमा को तैयार किया था।

टमाटर जीनोम का अनुक्रमण (Tomato Gene Sequence)

वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने टमाटर की संपूर्ण जीन कुंडली तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। इससे टमाटर के साथ-साथ दूसरी फल-सब्जियों के पौष्टिक गुणों, स्वाद तथा रंग में सुधार करने तथा उसकी उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के फलस्वरूप अब टमाटर की सूखा प्रतिरोधी, रोग प्रतिरोधी तथा कीट प्रतिरोधी नई किस्में विकसित करने में मदद मिलेगी। टमाटर के जीनोम के अनुक्रमण में भारत सहित 14 देशों के 300 वैज्ञानिकों का योगदान है। वैज्ञानिकों के इस शोध दल को (Tomato Genome Consortium (TGC) ) नाम दिया। वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने टमाटर, जिसका वास्पतिक नाम: सोलेनम लाइकोपर्सिकम (Solanum Lycoersicum) है, जीनोम का अनुक्रमण पूरा करने में सफलता प्राप्त की है। इस दल ने टमाटर के निकटतम संबंधी जंगली टमाटर (Solanum Priminellifolium) के जीन-समूह को भी क्रमबद्ध करने में सफलता प्राप्त की है। इस परियोजना के समन्वयक प्रो. अखिलेश त्यागी थे। भारतीय परियोजना जैव प्रौद्योगिकी विभाग दव्ारा वित्त पोषित तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दव्ारा समर्थित थी। भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरराष्ट्रीय टमाटर जीन नामाकंन समूह के साथ मिलकर टमाटर के समस्त वंशाणुओं (जीनी) की पहचान तथा नामाकंन में भी सहयोग दिया है।

स्विचब्लेड (ड्रोन) (Switchblade (Drone) )

यह अमेरिका दव्ारा निर्मित अत्यंत छोटा ड्रोन विमान है, जो छोटे वारहेड विस्फोटक से लैस है। स्विचब्लेड ड्रोन को ‘फ्लाइंग शॉटगन’ नाम भी दिया गया है। छह पाउंड से भी कम वजन वाला दो फीट लंबा यह विमान सैनिकों की पीठ पर लटकाए जाने वाले थैले में रखा जा सकता है। इस विमान को उड़ाने की प्रक्रिया मोर्टार को दागने जैसी है। इसे मोर्टार की तरह एक पाइप (ट्‌यूब) में रखकर फायर किया जाएगा। फायर होते ही यह विमान हवा में रफ्तार पकड़कर ऊपर उठेगा। आसमान में पहुंचते ही यह ड्रोन लाइव वीडियो और जीपीएस सिग्नल भेजने लगेगा। इस विमान को नियंत्रित करने वाला उपकरण इसे लांच करने वाले सैनिकों के पास होगा।

द साइंस एक्सप्रेस-जैव विविधता स्पेशल (The Science Express-Biodiversity Special)

यह एक प्रदर्शनी रेल है, जिसे विज्ञान एवं जैवविविधता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से दिल्ली से 5 जून, 2012 को रवाना किया गया। 22 दिसंबर, 2012 तक यह रेलगाड़ी देश के 52 स्टेशनों से गुजरती हुई कुल 18,000 किमी. का सफर तय करेगी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने यह पहल की है।

नियोबियम (Niobium)

नियोबियम में हाफनियम (Hafnium) मिलाकर उच्च तापमान सहन करने की क्षमता वाली मिश्र धातु नियोब हैट (Niob Hat) बनाई जाती है, जिसका इस्तेमाल अंतरिक्ष यानों की नोजल (नलिका) बनाने के लिए किया जाता है। हैदराबाद स्थित ‘न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स’ में नियोबियम के उत्पादन हेतु एक केन्द्र की स्थापना की जाएगी, जो कि सालाना तीन टन नियोबियम का उत्पादन करेगा। उत्पादित नियोबियम की आपूर्ति इसरो (ISRO) को की जाएगी।