Science and Technology: Latest Development in Science & Technology

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स्वास्थ्य (Health)

सिनरियम (Synriam)

सिनरियम एक दवा (औषधि) है। इस दवा का विकास देश की सबसे बड़ी फार्मा, ‘रैनबैक्सी लैबोरेटरीज लिमिटेड’ दव्ारा भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से किया गया है। 25 अप्रैल 2010 को विश्व मलेरिया दिवस के अवसर पर केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने देश में बनी पहली मलेरिया-रोधी दवा ‘सिनरियम’ का लोकार्पण किया। दवा तैयार करने में उड़ीसा, कर्नाटक और झारखंड के मेडिकल कॉलेजों तथा अस्पतालों के साथ ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ से संबद्ध ‘राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान’ (NIMR) ने भी सहयोग किया है। सिनरियम नामक इस दवा का प्रयोग व्यवस्कों में ‘प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम’ जनित साधारण मलेरिया के उपचार में किया जाएगा। यह नई दवा भारत में विपणन हेतु ‘भारत के औषधि महानियंत्रक’ (DCGI: Drug Controller General of India) दव्ारा अनुमोदित है तथा ‘मलेरिया’ की ‘संयोजन चिकित्सा’ (Combination Therapy) में प्रयोग हेतु ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) की अनुशंसाओं का पालन करती है।

मेडुस्वायड (Medusoid)

कैलिफोर्निया तकनीक संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम जेलीफिश तैयार की, जो हृदय रोगियों के लिए फायदेमंद है। इस कृत्रिम जेलीफिश का नाम मेडुस्वायड (Medusoid) रख गया। अनुसंधानकर्ताओं ने यह जेलीफिश सिलिकॉन एवं चूहों की हृदय कोशिकाओं से तैयार की। इसे और अधिक विकसित इंसानों के हृदय की तरह धड़कने में सक्षम बनाया जा सकता है। साथ ही इससे जैविक पेसमेकर को विकसित किया जा सकता है। प्रचलित पेसमेकर के मुकाबले इसके इस्तेमाल में विद्युत तरंगों की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसका डिजाइन एक पंप की तरह है, जो इस तरह से बना है कि यह खुद से धड़कना शुरू कर दे। शोध नेचर बायोटेक्नोलॉजी पत्रिका मेें प्रकाशित हुआ। मेडुस्वायड में प्रोटीन की परत वाली आठ भुजाएं हैं, यह असली जेलीफिश की मांसपेशियों के समान होती है, यह पेसमेकर 6 से 10 वर्ष तक काम कर सकता है।

पेंटोएआ एंग्लोमेसन्स जीवाणु (Pantoca Agglomerans Bacteria)

जैकब्स लोरेना (Jacobs-Lorena) के नेतृत्व वाले अमेरिकीवैज्ञानिकों के एक दल ने पेंटोएआ (Pantoca Agglomerans) नामक जीवाणु को आनुवांशकी तौर पर विकसित करने में सफलता प्राप्त की है जो मलेरिया के संक्रमण को रोकने में सक्षम है। इस जीवाणु से निकलने वाले प्रोटीन से मलेरिया के जीवाणु नष्ट हो जाएंगे, परन्तु यह मच्छरों या लोगों के लिए नुकसानदेह नहीं हैं। यह जानकारी प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ सांइसेज (Proceedings of the National Academy of Science) नामक पत्रिका में जुलाई 2012 में प्रकाशित की गई। पेंटोएआ एग्लोमेरानस नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) मलेरिया फैलाने वाले जीवाणुओं को समाप्त करने में 98 प्रतिशत सफल हैं।

टीएनएफ-अल्फा प्रोटीन (TNF-Alpha Protein)

वेस्टर्न ऑस्ट्रेलियन इंस्टिटयूट फॉर मेडिकल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने टीएनएफ-अल्फा नामक एक प्रोटीन की खोज की। यह रोग के प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कैंसर ट्‌यूमर के अंदर घुसने और कैंसर कोशिकाओं से लड़ने में मदद करता है। यह खोज वेर्स्टन ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्‌यूट फॉर मेडिकल रिसर्च के प्रोफेसर रूथ गांस के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने की। परीक्षण के दौरान टीएनएफ-अल्फा सीधे अग्नाशय के ट्‌यूमर में प्रवेश कर गया और उससे ट्‌यूमर के बाहर की कोशकाओं को कोई नुकसान नहीं हुआ। परीक्षण के दौरान इस प्रोटीन ने ट्‌यूमर के भीतर रक्त नलिकाओं पर विशेष रूप से असर किया और प्रतिरक्षा कोशिकाओं के अंदर प्रवेश करने के लिए रास्ता तैयार कर दिया।

बीएमपी बी प्रोटीन (BMP B-Protein)

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बीएमपी8बी नामक प्रोटीन की खोज की, बीएमपी8बी नामक प्रोटीन दिमाग और शरीर के कोशिकाओं में भूरे रंग की वसा की सक्रियता को नियंत्रित करता है। बीएमपी8बी नाम के ये प्रोटीन भूरे रंग की वसा को सक्रिया करती है, जिससे वजन घटाने की चिकित्सा में मदद मिल सकती हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बीएमपी8 बी नामक प्रोटीन का प्रयोग किया।

पीआरआरटी 2 जीन (PRRT 2 Gene)

वैज्ञानिकों ने बच्चो में मिर्गी के दौर के लिए जिम्मेदार पीआरआरटी 2 नामक जीन की खोज की, बच्चों को पड़ने वाले मिर्गी को ‘बेनाइन फैमीलियल इन्फैन्टाइल एपीलेप्सी’ ( (BFIF: Benign Familial infertile epilepsy) बीएफआईई) कहा जाता है, यह सभी बच्चों को नहीं होती लेकिन जिन्हें होती है उन्हें छ: माह से दो साल की उम्र के बीच मिर्गी के दौरे पड़ते हैं, दो साल उम्र के बाद ये दौरे रूक जाते हैं। वैज्ञानिकों की टीम ने यह पता लगा कि पीआरआरटी 2 नामक जीन में होने वाला परिवर्तन बीएफआईई के मुख्य कारणों में से एक हैं। बीएफआईई वाले बच्चों में पीआरआरटी 2 जीन में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के जीन प्रोटीन को सही तरीक से कूटबद्ध नहीं कर पाता।

पेंटावेलेंट वैक्सीन (Pentavalent Vaccine)

भारत सरकार दव्ारा हीमोफील्स इनफ्लुएंजा के खिलाफ सुरक्षा उपाय के रूप में शुरू किया जाने वाली यह एक वैक्सीजन है जो रिया, टिटनेस, पुर्टसिस और हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों से रक्षा करेगी। यह वैक्सीन 17 दिसंबर, 2012 को तमिलनाडु में शुरू की गई। इस वैक्सीन को राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम में शामिल करने वाला भारत विश्व का 171वां देश है। हाल में सरकार ने खबरों को निराधार बताया है, जिनमें यह कहा गया था कि इस वैक्सीन के प्रयोग से श्रीलंका, भूटान, पाकिस्तान में कुछ बच्चों की हुई थी। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं नेशनल टेक्निकल एडयवायजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (NTAGI: National Technical Advisory Group on- Immunisation) ने इस वैक्सीन की संस्तुति की थी।

अद्यतन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Latest Development in Science & Technology)

पैनस्पर्मिया (Panspermia)

  • पैनस्पर्मिया वह सकंल्पना है जिसमें यह अध्ययन किया जाता है कि जीवाणु किस प्रकार अंतर-ग्रहीय तथा अंतर-तारकीय स्थानों में भ्रमण करते हैं। यह वस्तुत: खगोल-जैवकीय, जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायुमंडल मं विद्यमान जीवन का अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी से बाहर विद्यमान जीवन की पहली क्रमबद्ध खोज सन्‌ 1960 में फेंक ड्रेक दव्ारा की गई थी, जब उन्होंने ताउसिटी (Tau Ceti) और इप्सिलोन इरिडानी (Epsilon Eridani) नामक तारों का अध्ययन किया था। इस खोज के लगभग आधी शताब्दी पश्चात्‌ यह अध्ययन, जिसे गैर पार्थिप बुद्धिमत्ता की खोज (SETI-Search For Extra Terrestrial Intelligence) कहा गया है, एक बड़े अंतरराष्ट्रीय उपक्रम के रूप में विकसित हो गया है।
  • वस्तुत: पैनस्पर्मिया की संकल्पना सर्वप्रथम यूनानी ‘एनक्सा गोरस’ ने विकसित की थी। 20वीं श्ताब्दी में आरहीहनियस ने यह स्पष्ट किया कि पैनस्पर्मिया का अर्थ जीवाणुओं के अंतर-तारकीय स्थानों में लंबी दूरी तक भ्रमण करने से है।
  • 1970 के दशक में फ्रेड होयल एवं चंद्राविक्रम सिंह ने एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की जिसमें सौर्य मंडल के सीमांतों से जीवाणु पृथ्वी तक आते हैं। इन वैज्ञानिकों के अनुसार जमीं हुई अवस्था में जीवाणु धूमकेतुओं से लिपटे होते हैं। ये सूर्य के सीमांतों तक भ्रमण करते रहते हैं। इसके उपरांत ये जीवाणु धूमकेतु की पूंछ पर फैल जाते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आने पर पृथ्वी की गुरूत्वीय शक्ति के कारण ये पृथ्वी की ओर हस्तांरित हो जाते हैं। इस सिद्धांत को हाल के समय में प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों के आधार पर समर्थन मिला है। ऐसे प्रयोगों में विशिष्ट जीवाणु प्रजातियों जैसे डाइनोकोकस रेडियोड्‌यूरेंस (Deinococcus Radioduans) के अस्तित्व में बने रहने के गुणों का अध्ययन किया गया था, जब उसे विकरण के प्रभाव में रखा गया था।

नासा के प्रयास (NASA Effort)

  • वर्ष 2006 में वाइल्ड 2 (Wild. 2) नामक धूमकेतु के अध्ययन हेतु स्टारडस्ट मिशन भेजा गया था, जिसमें वहाँ उपस्थित पदार्थों का संग्रहण किया गया था। इनमें ग्लाइसिन नामक एक अमीनों अम्ल की उपस्थिति पाई गई थी।
  • फरवरी, 2010 के टेंपल 1 नामक धूमकेतु के अध्ययन करते हेतु ‘स्टारडस्ट नेक्सट’ नामक मिशन भेजा जाएगा।

इसरो के प्रयास (ISRO Effort)

  • टाटा आधारित अनुसंधान संस्थान (Tata Institute of Fundamental Research) के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय बैलून सुविधा दव्ारा जनवरी, 2001 में वायुमंडलीय नमूने प्राप्त करने हेतु पहली बैलून उड़ान भेजी गई थी।
  • इन नमूनों का परीक्षण कर्डिफ (वेल्स की राजधानी) स्थिति खगोलीय-जैविकीय केन्द्र तथा हैदराबाद स्थिति कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र में किया गया था।
  • कार्डिफ स्थित प्रयोगशाला में मिल्टन वेन राइट ने बैसिलस सिम्पैक्स तथा स्टैफाइलोंकोकस पास्च्यूरी नामक जीवाणु प्रजातियों तथा इनगायोटोंसियम एल्बम नामक कवक प्रजाति की खोज की गई

इसी प्रकार हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में शिवाजी एवं अन्य बैसिलस की चार प्रजातियों की पहचान की गई-बी अल्टीट्‌यूडनस बी. एरोफिलस, बी. स्टैटोस्पेरिकस, बी. एरियस। इन प्रजातियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें पराबैंगनी विकरिणों के प्रतिरोध की क्षमता पाई जाती है।

उल्लेखनीय है कि अब तक जीवाणुओं के 12 एवं कवकों के 6 समूहों की पहचान की जा चुकी है।