Science and Technology: Helsinki Convention and London Convention

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पर्यावरण (Environment)

हेलसिन्की सम्मेलन (Helsinki Convention)

  • वर्ष 1974 में बाल्टिक सागर क्षेत्र के समुद्री पर्यावरण की रक्षा पर हेलसिन्की में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था। वस्तुत: यह प्रथम अंतरराष्ट्रीय समझौता था, जिसमेंं प्रदूषण के सभी स्रोतों पर विचार किया गया चाहे वे पृथ्वी, सागर अथवा वायु के हों। इस सम्मेलन ने तेल तथा अन्य प्रदूषणकारी पदार्थों दव्ारा जलीय प्रदूषण को नियंत्रित करने तथा सहयोग के नियमन पर बल दिया।
  • इसके बाद 1992 में इसी विषय पर एक अन्य सम्मेलन (Convention on the Protection of the Marine Environment of the Baltic Sea Area) आयोजित किया गया, जिसे बाल्टिक सागर क्षेत्र के देशों तथा यूरोपीय आर्थिक संघ (European Economic Community) के सदस्यों दव्ारा स्वीकृत प्रदान की गई। वर्ष 1992 में पुन: आयोजित हेलसिन्की सम्मेलन के 17 जनवरी 2000 से प्रभावी हो जाने के कारण वर्ष 1974 के सम्मेलन के प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है।

लंदन सम्मेलन (London Convention)

समुद्री प्रदूषण तथा अपशिष्ट एवं अन्य पदार्थ क्षेपण निरोधक सम्मेलन (Convention on the Prevention of Marine Pollution by Dumping of Wastes and other Matter) जिसे लंदन सम्मेलन भी कहते हैं, का आयोजन वर्ष 1975 में किया गया था। अपशिष्टों के क्षेपण का विरोध करने वाला यह पहला वैश्विक सम्मेलन था, जिसने ऐसे अपशिष्टों से समुद्री जल के प्रदूषण पर नियंत्रण रखने का प्रयास किया। सम्मेलन के प्रावधानों को 30 अगस्त वर्ष 1975 से प्रभावी बनाया गया है। सम्मेलन का सर्वाधिक प्रमुख उद्देश्य जलयानों, वायुयानों या भष्मीकरण दव्ारा अपशिष्टों के ऐच्छिक क्षेपण पर नियंत्रण रखना है। इसके अतिरिक्त जलयानों, वायुयानों तथा प्लेटफार्मों से अपशिष्टों के प्रत्यक्ष क्षेपण को भी प्रतिबंधित किया गया है। अन्य पदार्थों का क्षेपण अधिकारिक परमिट प्राप्त करने के उपरांत ही किया जा सकता है। नवंबर, 1996 में लंदन में आयोजित एक अन्य सम्मेलन में प्रावधानों का अनुमोदन किया गया। इन प्रावधानों का वर्तमान में पुनरीक्षण किया जा रहा है। प्रावधानों के अनुसार, किसी भी अपशिष्ट के समुद्री जल में क्षेपण के पूर्व उसके प्रभावों का गहन मूल्यांकन अनिवार्य है। नये सम्मेलन के आधार पर समुद्र में भष्मीकरण दव्ारा प्राप्त अपशिष्टों के क्षेपण को पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया गया है। साथ ही, क्षेपण दव्ारा होने वाले समुद्री प्रदूषण पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय तकनीक सहयोग की अपेक्षा की गई है। सामान्यत: इस प्रोटोकाल के अनुपालन में प्रदूषक-भुगतान नियम (Polluter Pays Principle) को मान्य बनाया गया है।

यूरोपीय वन्य जीवन तथा प्राकृतिक निवास्य क्षेत्र संरक्षण सम्मेलन (European Wildlife and Natural Habitat Area Conservation Conference)

वनीय वनस्पतियों तथा जीव जैविक तथा प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन वनीय संसाधनों के हृास के संदर्भ में सितंबर, 1979 में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसके प्रावधानों को 1 जून 1982 से प्रभावी बनाया गया है। सम्मेलन में निम्नांकित तथ्यों पर विशेष बल दिया गया था:

  • वनीय वनस्पतियों तथा जीवों के प्रति प्राकृतिक संस्कृति की भाँति व्यवहार।
  • वनस्पतियों तथा जीव जन्तुओं के संरक्षण की प्रक्रिया का राष्ट्रीय नीतियों में समावेश।
  • प्रवासी प्रजातियों सहित लुप्तप्राय तथा असुरक्षित प्रजातियों के संरक्षण पर विशेष बल।
  • प्रजातियों तथा उनके निवास्य क्षेत्र के संरक्षण से संबंधित शिक्षा एवं ज्ञान का प्रचार-प्रसार।
  • विभिन्न प्रजातियों के व्यवसाय पर प्रतिबंध।

विएना सम्मेलन (Vienna Convention)

विएना सम्मेलन का आयोजन 1985 में किया गया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य मानव जनित गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाले हानिकारक पदार्थो से ओजोन संस्तर की सुरक्षा करना था। साथ ही, सम्मेलन में यह भी तय किया गया कि वर्तमान में ओजोन परत के संरक्षण हेतु किये जा रहे वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रयासों को आगामी वर्षों में भी मूर्तरूप दिया जाएगा। अन्य तथ्यों के अतिरिक्त सम्मेलन में निम्नलिखित आयामों पर भी विशेष बल दिया गया:

  • मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण की पराबैंगनी विकिरणों की अधिक मात्रा से रक्षा।
  • सहयोगपूर्ण अनुसंधान को प्रोत्साहन।
  • विकासशील देशों में तकनीक हस्तांतरण पर बल।

इस सम्मेलन के पश्चात्‌ 1987 में मान्ट्रियाल प्रोटोकॉल तथा लंदन संशोधन हेतु भी, सम्मेलनों का आयोजन किया गया।

मान्ट्रियाल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol)

ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थों पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से मान्ट्रियाल में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। मान्ट्रियाल के माध्यम से ओजोन क्षरण के लिए उत्तरदायी पदार्थों की मात्रा कम तथा अन्तत: समाप्त करने के लिए समय सीमा तय की गई। प्रोटोकॉल की सदस्यता ग्रहण नहीं करने वाले देशों से ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थो के आयात को प्रतिबंधित किया गया है। विकसित देशों दव्ारा 1 जनवरी, 1994 से हैलोन तथा 1 जनवरी, 1996 से क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) के उपयोग को कर दिया गया है। प्रोटोकॉल में विकासशील देशों को इस कार्य हेतु 1 जनवरी, 2010 तक की छूट दी गई है लेकिन कुछ यह कार्य नियत अवधि से पूर्व पूरा कर लिये जाने की आशा है। एक धूमीकारक के रूप में उपयोग में आने वाले मिथाईल के उत्पादन तथा उपयोग को विकसित देशों ने 1995 से प्रतिबंधित कर दिया है और 2010 तक इसके सभी प्रकार के प्रयोगों को प्राप्त कर दिया जाएगा। जबकि विकासशील देशों ने मिथाईल ब्रोमाइड के 1995 - 98 के स्तर के आधार पर 2002 तक इसके काम को समाप्त करने का निर्णय लिया गया था। प्रोटोकॉल के सदस्य देशों दव्ारा एक बहुपक्षीय कोष स्थापित किया गया था, ताकि विकासशील देश नियंत्रण संबंधी प्रयासों को सफल बना सके। इस कोष में धनराशि का आवंटन विकसित देशों दव्ारा किया जाता है। शेष के प्रबंधन हेतु मॉन्ट्रियाल स्थित सचिवालय की सहायता से 14 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति उत्तरदायी है। इस कोष से गतिविधियांँ संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम तथा विश्व बैंक दव्ारा क्रियान्वित की जाती हैं। विकासशील देशों को प्रोटोकॉल की सदस्यता प्राप्त है तथा ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थो की प्रति व्यक्ति खपत 0.3 किलोग्राम में है, उनको ही इस कोष से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है ताकि वे ऐसे पदार्थों के उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रमों का समुचित क्रियान्वयन कर सके। कोष की सहायता के अंतर्गत तकनीकी सहायता, नई तकनीकों से संबंधित सूचना, प्रशिक्षण को भी सम्मिलित किया गया है।

रियो घोषणापत्र (Rio Declaration)

राष्ट्र र्प्यावरण एवं विकास सम्मेलन (United Nations Conference on Environment and Development, UNCED) का जन. 1992 में रिडो डी जेनेरियो में किया गया था। यह सम्मेलन रियो घोषणापत्र के रूप्ज्ञ में लोकप्रिय है। इसे पृथ्वी सम्मेलन भी जाना जाता है। इस घोषणापत्र में वर्णित तथ्यों में निम्नलिखित प्रमुख हैं:

  • पर्यावरण तथा विकास के क्षेत्र में विश्वव्यापी सहयोग का सुनिश्चितीकरण।
  • पृथ्वी की पारिस्थतिकी के समन्वय तथा स्वास्थ्य संरक्षण, सुरक्षा एवं पुनर्स्थापना को सुनिश्चित करने की व्यवस्था।
  • निर्धनता उन्मूलन तथा सतत्‌ विकास हेतु प्रभावी प्रयास।
  • पर्यावरण की रक्षा के प्रयासों को त्वरित गति प्रदान करने के उद्देश्य से जन भागीदारी में वृद्धि।
  • पर्यावरण संबंधी वैधानिक प्रावधानों का क्रियान्वयन।
  • विभिन्न गतिविधियों हेतु एक राष्ट्रीय यंत्र के रूप में पर्यावरण प्रभावों का मूल्यांकन।
  • पर्यावरणीय प्रबंधन तथा विकास में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने पर विशेष बल।

नैरोबी घोषणापत्र (Nairobi Declaration)

नैरोबी घोषणापत्र दव्ारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की सदस्य देशों दव्ारा सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्था के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। निम्नांकित पहलूओं पर घोषाण पत्र में विशेष बल दिया गया है:

  • पर्यावरण संबंधी नियमों तथा अंतरराष्ट्रीय समझौतों के निष्पादन की प्रक्रिया का सुदृढ़ीकरण तथा सहयोगपूर्ण कार्यवाही को प्रोत्साहन।
  • पर्यावरण की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण तथा वैश्विक एवं क्षेत्रीय प्रवृत्ति का मूल्यांकन।
  • अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण के अधिनियमों की प्रगति को प्रश्रय।
  • पर्यावरणीय जागरूकता को प्रोत्साहन तथा समाज के सभी क्षेत्रों के मध्य प्रभावशाली सहयोग को सुगम बनाने हेतु प्रयास।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संबंधी गतिविधियों का समन्वय।