Science and Technology: National Telecom Policy: Broadband Policy, 2004

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राष्ट्रीय दूरसंचार नीति (National Telecom Policy)

ब्रॉडबैंड नीति, 2004 (Broadband Policy, 2004)

  • भारत सरकार ने यह महसूस किया है कि ब्रॉडबैंड सेवाएंँ सकल उत्पादकता तथा जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसी कारण सरकार दव्ारा ब्रॉडबैंड नीति, 2004 की घोषणा की गई है।
  • नीति में यह पहचान की गई है कि देश में इंटरनेट तथा ब्रॉडबैंड सेवाएं पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं। सरकारी आंकड़ों में उल्लेख है कि दिसंबर, 2003 तक भारत में ब्रॉडबैंड, इंटरनेट तथा वैयक्तिक कम्प्यूटर की उपलब्धता क्रमश: 0.02 प्रतिशत 0.04 प्रतिशत तथा 0.08 प्रतिशत थी जो कई एशियाई देशों की अपेक्षा कम थी।
  • वर्तमान में तीव्र गति वाला इंटरनेट 64 किलोबिट प्रति सेकेंड या उससे अधिक की दर पर उपलब्ध है। दूसरी ओर, 128 किलोबिट प्रति सेकेंड की दर उपलब्ध इंटरनेट को ही ब्रॉडबैंड कहा जाता है।
  • नीति में यह उल्लेख किया गया है कि ब्रॉडबैंड सुविधा का कोई निश्चित मानदंड नहीं है तथा विभिन्न देशों में इसके भिन्न मानक होते हैं जो उन देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप होते हैं।
  • नीति में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को निम्न रूप में परिभाषित किया गया है, ‘एक सदैव संचालित सूचना कनेक्शन जो इंटरनेट की उपलब्धता के लिए आवश्यक अन्त: क्रियात्मक सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा न्यूनतम 256 किलोबिट प्रति सेकेंड की दर से सेवाएं उपलब्ध कराने में सक्षम है, ब्रॉडबैंड कहलाता है।’ इससे सेवा दाता उपभोक्ता के मध्य इंटरनेट की सुविधा तीव्र गति से उपलब्ध हो पाती है।
  • नई नीति में सभी आवश्यक तकनीकों से संबद्ध अवसरंचनाओं के निर्माण पर बल दिया गया है। हम जानते हैं कि अवसरंचनाओं के विस्तार से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पनपती है। इसी आलोक में सरकार दव्ारा किसी भी परिस्थिति में दूरसंचार अवसंरचनाओं के निर्माण और विकास के साथ समझौता नहीं किये जाने का निर्णय किया गया है।
  • नीति में इस बात पर भी जोर है कि तंतु प्रकाशिकी (Fibre Optics) तकनीक से असीमित बैंडविथ क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रयास किए जाएंगे। शहरों में परंपरागत तांबे के नेटवर्क के स्थान पर प्रकाश तंतुओं के नेटवर्क के निर्माण की योजना है।
  • नीति में आंकड़ों के परिप्रेक्ष्य में यह कहा गया है कि बी. एस. एन. एल. तथा एम. टी. एन. एल. लगभग 4.5 लाख रूट किलोमीटर तथा निजी संचालकों दव्ारा लगभग 1 लाख रूट किलोमीटर तक प्रकाश तंतुओं के नेटवर्क का निर्माण किया गया है। बी. एस. एन. एन. तथा एम. टी. एन. एल ने यह सुनिश्चित किया है कि वर्ष 2005 के अंत तक लगभग 1.5 मिलियन कनेक्शन दिये जाएंगे।
  • जहांँ तक उपग्रह मीडिया का प्रश्न है, वेरी स्मॉल अपरचर टर्मिनल (Very Small Aperture Terminals, VSATs) तथा डायरेक्ट टू होम (Direct-to-Hoe, DTH) सेवाओं को ब्रॉडबैंड तथा इंटरनेट के विस्तार के उद्देश्य से प्राथमिकता देना प्रस्तावित है। इसके फलस्वरूप दूरस्थ क्षेत्रों में भी ऐसी सेवाओं का विस्तार किया जा सकेगा। नीति में यह आशा व्यक्त की गई है कि इस दिशा में कार्यक्रमों को सुदृढ़ बनाने में अंतरिक्ष विभाग का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा।
  • यह माना गया है कि बैंडविथ की उपलब्धता ब्रॉडबैंड सेवाओं का एक महत्वपूर्ण अवयव है। इस विषय को प्राथमिकता देने के लिए सरकार और भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण को उत्तरदायी बनाया गया है।
  • इंटरनेट ट्रैफिक के संबंध में उल्लेखनीय है कि भारत सरकार दव्ारा एक राष्ट्रीय इंटरनेट एक्सचेंज (National Internet Exchange of India, NIXI) की स्थापना कि गई है। इसके माध्यम से भारत में इंटरनेट ट्रैफिक को विनियमित किया जा सकेगा।

तुंतुओं से प्रकाश का संचरण (Propagation of Light through Fibres)

चित्र में कोण को अभिग्रहण कोण (Angle of Acceptance) कहते है। तुंतु में प्रवेश करने वाला प्रकाश यदि इस कोण से कम दूरी पर प्रवेश करता है, तो वह क्लैड सेे बड़ा कोण बनाता है।ं जब प्रकाश क्लैड तथा कोर के अंतरफलक या क्लैड के आंतरिक सतह पर से बड़े अथवा समान कोण पर मिलता है, तब पूर्ण आंतरिक परावर्तन की प्रक्रिया होती है। इस प्रकार प्रकाश की किरण में उपलब्ध ऊर्जा कोर की ओर पूर्णत: परावर्तित हो जाती है तथा इसका कोई भाग क्लैड की ओर नहीं जा पाता। चूंकि तंतु एक सीध में होता है, प्रकाश की किरण कोर के दूसरी ओर प्रवेश कर क्लैड की दूसरी सतह पर एक कोण बनाती है जिसके फलस्वरूप पूर्ण आंतरिक परावर्तन की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति हो जाती है। इस प्रकार तंतु के अंत तक प्रकाश की किरणें टेढ़े-मेढ़े मार्ग पर आगे बढ़ती हैं।

Illustration: तुंतुओं से प्रकाश का संचरण (Propagation of Light through Fibres)

वस्तुत: जो प्रकाश तंतु में प्रवेश करता है वह एक किरण पुंज के रूप में रहता है जिसमें लाखों की संख्या में समरूप व्यवहार करने वाली किरणें होती हैं। ये सभी किरणें तंतु के कोर में टेढ़े-मेढ़े मार्ग से आगे बढ़ती हैं जिससे पूरा कोर प्रकाशमय हो जाता है। तंतु के कोर में संचरित होने वाले प्रकाश का स्पंद वास्तविकता में इन किरणों का एक समूह है।

प्रकाश तंतुओं के गुण (Advantages of Optical Fibres)

  • न्यून ऊर्जा की सहायता से अधिक बैंडविथ वाले संकेतों का तांबे के तंतुओं की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से संचरण।
  • परंपरागत तंतुओं की अपेक्षा प्रकाश तंतुओं का कम भार।
  • विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप तथा तड़ित प्रभाव, रेडियो संकेतों एवं अन्य समरूप संकेतों से प्रतिरोध की क्षमता।
  • ज्वलनशील एवं विस्फोटक वातावरण में भी नुकसान मुक्त।
  • विद्युत प्रवाह नहीं होने के कारण अनचाही सूचनाओं के संचरण पर अंकुश।
  • किसी भी प्रकार के स्पार्क से मुक्त।
  • परस्पर वार्तालाप या शोर से मुक्त।

प्रकाश तुंतुओं के दोष (Disadvantages of Optical Fibres)

  • कच्चे माल के रूप में रेत (सिलिका) का उपयोग करने के बावजूद प्रकाश तंतुओं पर तांबे के परंपरागत तंतुओ की तुलना में अधिक व्यय।
  • तांबे के तंतुओं की अपेक्षा प्रकाश तंतुओं को एक दूसरे से जोड़ने की प्रक्रिया कठिन। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों को विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता।
  • प्रकाश स्रोत की मूर्छना एक निश्चित सीमा तक ही संभव।
  • न्यून शक्ति स्रोतों के कारण दो एम्पिलीफायरों के मध्य न्यून दूरी की आवश्यकता।

वृहद परियोजनाएँ (Major Projects)

  • फाइबर ऑप्टिक्स लिंक अराउण्ड द ग्लोब (Fibre Optics Link Around the Globe, FLAG) : ब्रिटेन से जापान तक जल के नीचे प्रकाश तंतु केबल प्रणाली परियोजना वर्ष 1997 में पूरी की गई थी। इसकी कुल लंबाई 28,000 किलोमीटर है तथा 64 किलोबाइट प्रति सेकेंड की दर से 1,20, 000 परिपथों पर सूचनाओं के संप्रेषण में यह पूर्णत: सक्षम है। इस प्रणाली की निगरानी का कार्य संयुक्त अरब अमीरात में फूजैरा स्थित फ्रलैग नेटवर्क ऑपरेशन सेन्टर दव्ारा किया जाता है। इस परियोजना पर कुल 1.5 अरब डालर व्यय किये गये थे।
  • दक्षिण अफ्रीका सुदूरपूर्व (South Africa East, SAFE) : जल के नीचे प्रकाश तंतुओं के इस नेटवर्क के निर्माण की परियोजना के दिसंबर 2001 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन अब इसके इस वर्ष के अंत तक पूरा होने की आशा है। इस परियोजना के तहत जल के नीचे कुल 28,800 किलोमीटर लंबा नेटवर्क बनाया जाएगा। पहले चरण में दक्षिण अफ्रीका से यूरोप के बीच 15,000 किलोमीटर का नेटवर्क होगा जिसमें 10 पश्चिमी और दक्षिणी अफ्रीकी देशों से होकर गुजरेगा। दूसरे चरण में दक्षिण अफ्रीका से मलेशिया के बीच 13,800 किलोमीटर लंबे नेटवर्क का निमार्ण किया जाएगा।

इस परियोजना में चार लिंक स्टेशन स्थापित किये जाने का प्रावधान है। ये हैं: भारत में कोच्चि, मलेशिया में पेनांग, मॉरिशस में जकोत की खाड़ी तथा दक्षिण अफ्रीका में केपटाउन। भारत की ओर से इस परियोजना में विदेश संचार निगम लिमिटेड सहयोग करेगा।