ब्रिटिश प्रशासक एवं उनकी नीतियाँ (British Administrators and Their Policies) Part 5 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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लार्ड माउंटबेटन ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: ब्रिटिश प्रशासक एवं उनकी नीतियाँ (British Administrators and Their Policies) Part 5

लार्ड माउंटबेटन ब्रिटेन के एक अभिजात्य परिवार में जन्मा था। वह महारानी विक्टोरिया का नवासा (नाती) था। उसका लालन-पालन एवं शिक्षा एक खुशनुमा माहौल में हुआ। वह ब्रिटेन के राज परिवार से संबद्ध था। भारत आने से पहले वह ब्रिटेन में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुका था। वह लड़ाकू प्रवृत्ति का था और ब्रिटेन की नौ सेना में भी अपनी सेवाएँ दे चुका था। राज परिवार से जुड़े होने के कारण वह स्वाभाविक तौर पर राजपरिवार के हितों का संरक्षक था। भारत के विभाजन के समय उसे यहां का वायसराय बनाकर भेजा गया ताकि वह भारत की स्वतंत्रता एवं ब्रिटिश हितों के बीच तालमेल बिठा सके।

उसी के कार्यकाल में 4 जून, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता विधेयक के अनुसार भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्रोंं के निर्माण की घोषणा की गई। माउंटबेटन की सफलता यह थी कि उसने नेहरू, गांधी, पटेल एवं जिन्ना जैसे नेताओं को इसके लिए राजी कर लिया। उसी के काल में भारत एवं पाकिस्तान के बीच सीमा विभाजन के लिए रेडक्लिफ आयोग का गठन किया गया। बेटन के प्रयासों से भारत और पाकिस्तान के बीच रुपये एवं ऋण के लेन-देन को आसानी से निपटा लिया गया।

माउंटबेटन उच्च कोटि का कूटनीतिक एवं सूझ-बूझ वाला व्यक्ति था। अविभाजित भारत के कई बड़े नेताओं के साथ उसके अच्छे संबंध थे। गांधी और नेहरू के साथ अपने संबंधों को लेकर वह खास तौर पर जाना जाता है। वही एकमात्र ऐसा वायसराय था, जिस पर भारतीय नेता विश्वास करते थे। यही कारण है कि भारत की आजादी के बाद उसे स्वतंत्र बनाने का प्रथम वायसराय बनाया गया। माउंटबेटन के कूटनीतिक प्रयासों के कारण ही भारत ने आजादी के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में बने रहने का फैसला किया।

कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि माउंटबेटन के दबाव के कारण ही नेहरू ने कश्मीर का प्रश्न राष्ट्रसंघ में उठाया, और कश्मीर की समस्या का आंतरराष्ट्रीय कारण हो गया। उसके प्रयासों के कारण ही पश्चिमी जगत के साथ भारत के संबंध अच्छे बने रहे।

जो भी हो इतना तो सच है कि भारत की आजादी और आजादी के बाद उसके वैदेशिक संबंधो के निर्धारण में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। पर ऐसा उसने भारतीयों नेताओं को विश्वास में लेकर किया। देशी रियासतों के विलय के संबंध में उसने पटेल की नीति का समर्थन किया।