भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 3for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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उग्रवादी चरण ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 3

20वीं शताब्दी के आरंभ होते ही भारतीय राष्ट्रीय जीवन में नई भावनाओं का प्रादुर्भाव हुआ और भारतीय राष्ट्रीयता ने अपना शैशव छोड़कर तरुणाई में प्रवेश किया। कांग्रेस के युवा वर्ग के नेताओं में उदारवादियों की भिक्षा-वृत्ति नीति के प्रति आस्था नहीं रही। इस युग में एक ओर उग्रवादी तो दूसरी ओर क्रांतिकारी आंदोलन चलायें गए। जहाँ तक एक ओर उग्रवादी शांतिपूर्ण सक्रिय राजनीतिक आंदोलनों में विश्वास करते थे, वहीं क्रांतिकारी अंग्रेजों को भारत से भगाने में शक्ति एवं हिंसा के उपयोग में विश्वास करते थे। जवाहरलाल नेहरू ने कहा है- राष्ट्रीय आंदोलन हर जगह उदार रूप से प्रारंभ होते हैं तथा अनिवार्यत: अधिक उग्र हो जाते हैं और स्वतंत्रता की मांग दबायी जाने पर चक्रवृद्धि ब्याज सहित पूरी करनी पड़ती है।

उग्रवाद के उदय के कारण ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का विकास (Development of Indian National Movement) Part 3

  • ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति

1892 से 1906 तक इंग्लैंड में टोरी दल सतारूढ़ था। इस दल की नीति प्रतिक्रियावादी थी। सरकार ने इस अवधि में जो नीतियां अपनाई और जो सुधार किए उनसे भारतीय जनता बहुत ही क्षुब्ध हो उठी। 1892 के अधिनियम दव्ारा जो सुधार किए गए वे अपर्याप्त और निराशाजनक थे। गैर सरकारी सदस्य जनता दव्ारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित नहीं होते थे और न विधान परिषदों को कोई उल्लेखनीय अधिकार प्रदान किए गए थे।

1893 ई. के कांग्रेस अधिवेशन में गोखले ने बताया- ‘विधान परिषद के विषय में जो कानून बनाए गए हैं, उन्होंने तो सुधार योजना का उद्देश्य ही नष्ट कर दिया है।’ भारतीय राजनीति में उग्रवाद के उदय का मुख्य कारण यही असंतोष था।

  • कांग्रेस की मांग की उपेक्षा

सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति के बावजूद कांग्रेस अपनी मांगो को पूरा करवाने में प्रयासरत रही पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस के युवा वर्ग का वैधानिक आंदोलन में विश्वास नहीं रहा। लाला लाजपत राय का कहना था- ′ भारतीयों को अब भिखारी बने रहने में ही संतोष नहीं करना चाहिए और न उन्हें अंग्रेजों की कृपा पाने के लिए गिड़गिड़ाना चाहिए। ′ तिलक ने तो यहाँ तक कहा- ′ मांगने से कोई चीज प्राप्त नहीं हो सकती। इन नेताओं ने ब्रिटिश सरकार से अहिंसात्मक लड़ाई लड़ने, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने और राष्ट्रीय शिक्षा दव्ारा युवकों को संगठित करने के पक्ष में जोरदार आंदोलन प्रारंभ किया।

  • प्राकृतिक प्रकोप

1876 से 1900 के मध्य भारत करीब 18 बार अकाल की चपेट में आ चुका था जिससे धन-जन की काफी हानि हुई। 1897 - 98 में बंबई में प्लेग की चपेट में आकर करीब एक लाख 75 हजार लोग काल कलवित हो गए। सरकार ने इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया बल्कि उलटे प्लेग की जांच के बहाने भारतीयों के घरों में घुसकर उनकी बहन-बेटियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, प्लेग के समय की ज्यादतियों से प्रभावित होकर पूना के चापेकर बंधुओं ने प्लेग अधिकारी रैण्ड एवं एमहर्स्ट को गोली मार दी। इन घटनाओं ने उग्र राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन दिया।

  • आर्थिक असंतोष

प्रसिद्ध विदव्ान लॉर्ड बेकन का यह कथन कि अधिक दरिद्रता और आर्थिक असंतोष क्रांति को जन्म देता है, भारत के संदर्भ में अक्षरश: सत्य है। अंग्रेजों की तीव्र आर्थिक शोषण की नीति में सचमुच भारत में उग्रवाद को जन्म दिया। शिक्षित भारतीयों को रोजगार से दूर रखने की सरकार की नीति ने भी उग्रवाद को बढ़ावा दिया। अंग्रेजों की व्यापार नीति भारत को नुकसान पहुँचाने वाली थी। भारतीय वस्त्रकला और उसके व्यापार को भारी नुकसान पहुँचाया गया।

  • हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान

हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान ने भी उग्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कांग्रेस के उदारवादी नेताओं ने पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति में अपनी पूर्ण निष्ठा जताई, परन्तु दूसरी ओर स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, तिलक, लाला लाजपतराय, अरविंद घोष एवं विपिनचन्द्र पाल जैस लोग भी थे। जिन्होंने अपनी सभ्यता और संस्कृति को पाश्चातत्य संस्कृति से श्रेष्ठ प्रमाणित किया। अरविंद घोष ने कहा- ‘स्वतंत्रता हमारे जीवन का उद्देश्य है और हिन्दू धर्म ही हमारे उद्देश्यों की पूर्ति करेेगा। राष्ट्रीयता एक धर्म है और वह ईश्वर की देन है।’ एनी बेसेंट ने कहा कि ‘सारी हिन्दू प्रणाली पश्चिमी सभ्यता से बढ़कर है।’

  • लार्ड कर्जन का प्रतिगामी शासन

कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियों की भारतीय युवा मन पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई। कर्जन के 7वर्ष के शासन काल को शिष्ट मंडलों, भूलों तथा आयोगों का काल कहा जाता है। कर्जन के प्रतिक्रियावादी कार्यो जैसे-कलकता कॉरपोरेशन अधिनियम, विश्वविद्यालय अधिनियम एवं बंगाल विभाजन ने भारत में उग्रवाद को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।