गाँधी युग (Gandhi Era) Part 5 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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असहयोग आंदोलन के कारण ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: गाँधी युग (Gandhi Era) Part 5

  • प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम - इस युद्ध में आत्मनिर्णय के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ। इस सिद्धांत के प्रभाव से चीन और मध्य पूर्व में राष्ट्रीयता की लहर आई।
  • आर्थिक असंतोष - प्रथम विश्व युद्ध का आर्थिक परिणाम भी बड़ा बुरा हुआ। आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया और मूल्यों में बढ़ोतरी हुई। विभिन्न उपायों दव्ारा सरकार ने जनता से युद्ध के लिए धन एकत्र किया था। करों में वृद्धि कर दी गई थी। इन कारणों से जनता को भयंकर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। महामारियों और भयंकर अकाल का भी सामना करना पड़ा। आर्थिक असंतोष के कारण आंदोलन सक्रिय हो उठा।
  • सेना में भरती और छँटनी - युद्ध की समाप्ति के बाद बहुत से व्यक्ति अपने पद से अलग कर दिए गए, जिससे बेकारी की समस्या उत्पन्न हुई। लोगों में असंतोष बढ़ने लगा और लोग यह समझने लगे कि सरकार स्वार्थी है, जो अपना काम निकल जाने के बाद जनता की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देती।
  • मांट-फोड सुधार से असंतोष - इस योजना में भारतीय प्रशासन के वास्तविक रूप में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का सुझाव नहीं था। केन्द्र में सरकार अनुत्तरदायी थी और प्रांतों में भी उत्तरदायी शासन की व्यवस्था नहीं थी। इस योजना में स्थानीय स्वशासन के संबंध में कुछ आशाजनक सुझाव अवश्य थे, परन्तु भारत सरकार के गृह विभाग का इस पर पूर्ण नियंत्रण स्पष्ट था। कांग्रेस के 1919 के वार्षिक अधिवेश में इस सुधार को अपूर्ण, असंतोषजनक और निराशापूर्ण कहकर इसकी भर्त्सना की गई।

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: गाँधी युग (Gandhi Era) Part 5

असहयोग आंदोलन के तीन आधारभूत सूत्र थे-कौंसिलों (परिषदों) का बहिष्कार, न्यायालयों का बहिष्कार और विद्यालयों का बहिष्कार।

निषेधात्मक पक्ष

  • सरकारी उपाधियों का त्याग और अवैतनिक पदों का बहिष्कार।
  • स्थानीय संस्थाओं के मनोनीत सदस्यों दव्ारा अपने पदों का त्याग।
  • सरकारी मीटिंगों (सभा) तथा उत्सवों का बहिष्कार।
  • अदालतों का बहिष्कार।
  • भारतीय मजदूरों और सैनिकों दव्ारा इराक तथा अन्य स्थानाेें पर काम करने की अस्वीकृति।
  • सुधार के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू व्यवस्थापिका सभाओं का सीमित बहिष्कार।
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।

रचनात्मक पक्ष

  • स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग और प्रचार।
  • राष्ट्रीय विद्यालयों और महाविद्यलयों की स्थापना और उनमें शिक्षा-प्राप्ति।
  • पंचायतों की स्थापना।
  • हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा अस्पृश्यता-निवारण का प्रचार।