वामपंथ एंव ट्रेड (व्यापार) यूनियन (संघ) आंदोलन (Leftcreed and Trade Union Movement) Part 2 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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ट्रेड यूनियन आंदोलन ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: वामपंथ एंव ट्रेड (व्यापार) यूनियन (संघ) आंदोलन (Leftcreed and Trade Union Movement) Part 2

भारत ट्रेड यूनियन पहले से विद्यमान किसी सामाजिक संस्था की देन नहीं है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आधुनिक उद्योगों की स्थापना के बाद ही भारत में प्रारंभिक श्रमिक चेतना की शुरूआत हुई। भारत में औद्योगिक विकास के साथ ही भारतीय श्रमिक वर्ग की स्थिति मजबूत होती गयी। आगे चलकर श्रमिक वर्ग आंदोलन ने अपने आपको राष्ट्रीय मुक्ति प्राप्त करने के लिए राजनीतिक संघर्ष से जोड़ लिया। प्रारंभ में भारतीय श्रमिक वर्ग एवं सर्वहारा वर्ग को विभिन्न प्रकार के शोषण का सामना करना पड़ा जैसे कम मजदूरी, काम के अधिक घंटे, बाल श्रमिकों का उपयोग, कारखानों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी एवं अन्य सभी प्रकार की सुविधाओं की कमी आदि। इससे पहले की भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग श्रमिक वर्ग के संघर्ष से जुड़ते, देश के भिन्न-भिन्न भागों में श्रमिक आंदोलन की शुरूआत हो गयी। 19वीं सदी के अंत में बंबई, कलकता, अहमदाबाद, सूरत, मद्रास, कोयम्बटूर तथा वर्धा आदि के श्रमिकों ने सूती मिलों में हड़ताल प्रारंभ कर दिया।

प्रारंभिक विकास ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: वामपंथ एंव ट्रेड (व्यापार) यूनियन (संघ) आंदोलन (Leftcreed and Trade Union Movement) Part 2

श्रमिकों की दशा में सुधार करने का प्रारंभिक प्रयास कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों दव्ारा शुरू किया गया। सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 1877 में नागपूर के सूती मिल (कारखाना) में श्रमिकों ने सर्वप्रथम हड़ताल, मजदूरी की दर के मुद्दे को लेकर किया। श्रमिक के कार्य करने के घंटे को कम करने के मुद्दे को लेकर, सोराबाजी, शरोजी बेंगाली ने सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 1878 में बंबई विधान परिषद में एक बिल (विधेयक) पेश किया परन्तु उनका यह प्रयास असफल रहा। सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 1870 में शशिपद बैनर्जी ने बंगाल में एक ‘श्रमिक क्लब’ (वर्किंग मेन्स (काम कर रहे पुरुषों) क्लब (मंडल) ) की स्थापना की तथा 1874 में उन्होंने ‘भारत श्रमजीवी’ नामक एक मासिक पत्रिका की भी शुरूआत श्रमिकों को शिक्षित करने के विचार से की।

भारतीय श्रमिकों के प्रथम नेता, एन. एम. लोखण्डे दव्ारा सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 1890 में बंबई मिल (कारखाना) हैन्डस (हाथों) एसोसिएशन (समिति) की स्थापना की गयी। इसे प्रथम श्रमिक संघ के रूप में भी जाना जाता है। इस संघ ने (यद्यपि यह ट्रेड यूनियन नहीं था) निम्नलिखित मांगे रखी:

  • कार्य करने के घंटे में कमी
  • साप्ताहिक छुटवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू टी
  • कारखाने में कार्य करते वक्त हुई दुर्घटनाओं का हर्जाना।

एन. एम. लोखण्डे ने सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 1880 में ‘दीनबंधु’ नामक एक पत्रिका की भी शुरूआत की। डॉ. दिपेश चक्रवर्ती ने कलकता जूट मिल हड़ताल को ही आरंभिक श्रमिक चेतना का आगाज माना है। 1889 के वृहदवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू भारतीय प्रायदव्ीपीय रेलवे हड़ताल को ही श्रमिक वर्ग का प्रथम संगठित हड़ताल माना जाता है। इनकी मुख्य मांगे मजदूरी काम के घंटे, एवं सेवा की स्थिति आदि से संबंधित थीं। श्रमिकों का दूसरा संगठित विरोध 1908 की बंबई सूती मिल की हड़ताल था। यह हड़ताल बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी के विरोध में किया गया था।

एनी बेसेंट के नजदीकी सहायक बी. पी. वाडिया ने अप्रैल, 1918 में ‘मद्रास श्रमिक संघ’ की स्थापना की। भारत में यह पहला ट्रेड यूनियन था। गांधीजी ने 1920 में ‘मजदूर महाजन’ की स्थापना की जिसमें मालिकों एवं श्रमिकों के बीच शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करने की बात कही गयी। इसके पूर्व 1917 में ही महात्मा गांधी ने ‘अहमदाबाद टेक्सटाइल (कपड़ा) यूनियन’ (संघ) का भी गठन किया था। परन्तु राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा अभी श्रमिकों की समस्याओं के प्रश्न पर उदासीन थी।