1947 − 1964 की प्रगति (Progress of 1947 − 1964) for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc. Part 3 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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भारत में नियोजन प्रणाली

आजादी के बाद भारत के सामने महत्वपूर्ण चुनौती थी- आर्थिक विकास की। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आर्थिक विकास के लिए नियोजन प्रणाली को अपनाया। 1950 में एक स्वतंत्र निकाय के रूप में योजना आयोग की स्थापना की गई। जवाहरलाल नेहरू इसके पदेन अध्यक्ष बनाए गए। योजना आयोग का मुख्य दायित्व देश के विकास के लिए योजना का निर्माण एवं आर्थिक संसाधनों के पुनर्वितरण की व्यवस्था करना है। इसका मुख्य उद्देश्य देश को आत्म निर्भर बनाना एवं एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में भारत को स्थापित करना है।

पंडित नेहरू आरंभ से ही रूस की आर्थिक नियोजन की प्रणाली से प्रभावित थे। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया था, जिसके अध्यक्ष नेहरू बनाए गए थे। इस प्रकार आजादी के पूर्व ही भारत में आर्थिक नियोजन का सैद्धांतिक प्रयास आरंभ हो चुका था। इस दिशा में प्रथम प्रयास 1934 में सर एम विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था नामक पुस्तक से प्रारंभ किया। अगस्त 1944 में भारत सरकार ने एक अलग नियोजन एवं विकास विभाग खोला। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रेरित होकर श्रीमन्नारायण ने 1944 में एक योजना प्रस्तुत की जिसे गांधीवादी योजना के नाम से जाना जाता है। 1944 में ही बंबई के 8 प्रमुख उद्योगपतियों ने मिलकर प्लान (योजन) फार (के लिये) इकोनोमिक (अर्थशास्त्र) डेवलपमेंट (विकास) इन इंडिया (भारत में) नामक एक 15 वर्षीय योजना प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास पर बल देना तथा 15 वर्षो के भीतर प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाकर दुगुना करना था। जनवरी, 1950 में जयप्रकाश नारायण ने सर्वोदय योजना के नाम से एक योजना प्रकाशित की।

6 अगस्त, 1952 को आर्थिक आयोजना के लिए राज्यों एवं योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण तैयार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विकास परिषद नामक एक गैर-संवैधानिक संस्था का गठन किया गया। इसके मुख्य कार्य निम्न थे-

  • योजना के संचालन का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
  • विकास को प्रभावित करने वाली नीतियों की समीक्षा करना।
  • योजना में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना।
  • योजना को अंतिम रूप प्रदान करना।

भारत में पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1951 से आरंभ हुई। इसमें कृषि के विकास को प्राथमिकता दी गई। इसी योजना में भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी तथा हीराकुंड जैसी बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएं चालू की गई। साथ ही सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय विकास योजना का आरंभ किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही सिंदरी उर्वरक कारखाना को बिहार में स्थापित किया गया।

दव्तीय पंचवर्षीय योजना में आधारभूत एवं भारी उद्योगों की स्थापना के साथ तीव्र औद्योगीकरण की नीति अपनाई गई। तृतीय पंचवर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना तथा स्वत: स्फूर्त अवस्था में पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया। तृतीय योजना के समय विदेशी विनिमय संकट तथा प्रतिकूल व्यापार शेष के कारण जून 1966 में रुपये का अवमूल्यन करना पड़ा जो योजना अवधि का पहला अवमूल्यन था। यह योजना चीन एवं पाकिस्तान के आक्रमण के कारण अपने लक्ष्यों को पाने में असफल रही। खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए हरित क्रांति की शुरूआत इसी योजना काल में हुई।