Disaster Management: Earthquake and Mitigation Measures and Case Study

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भूकंप और शमन के उपाय (Earthquake and Mitigation Measures)

  • भूकंपरोधी शरणस्थलों के निर्माण में भूकंप पीड़ितों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जायें।
  • बचाव और पुनर्वास दोनों के लिये सरकार, स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदाय के बीच समन्वय बढ़ाया जाये।
  • भूकंप को रोका नहीं जा सकता। अत: इसके लिये विकल्प यह है कि इस आपदा से निपटने की तैयारी रखी जाये और इससे होने वाले नुकसान को कम किया जायें।
  • भूकंप नियंत्रण केन्द्रों की स्थापना, जिससे भूकंप संभावित क्षेत्रों में लोगों को सूचना पहुँचाई जा सके। GPS (Geographical Positioning System) की मदद से प्लेट हलचल का पतालगाया जा सकता है।
  • देश में भूकंप संभावित क्षेत्रों का सुभेद्यता मानचित्र तैयार करना और संभावित जोखिम की सूचना लोगों तक पहुँचाना तथा उन्हें उसके प्रभाव को कम करने के बारे में शिक्षित करना।
  • भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन डिजाइन में सुधार लाना। ऐसे क्षेत्रों में ऊँची इमारतें, बड़े औद्योगिक संस्थान और शहरीकरण को बढ़ावा न देना।
  • भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में भूकंप प्रतिरोधी इमारतें बनाना और सुभेद्य क्षेत्रों में हल्के निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करना।

केस अध्ययन (Case Study)

26 जनवरी, 2001 को भुज (गुजरात) में आये भूकंप के बाद कई वर्ष बीत गये। इन वर्षों में व्यापक पैमाने पर पुनर्वास कार्य हुआ। ‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका में प्रकाशित मिहिर भट्‌ट की रिपोर्ट इस भूकंप के बाद गुजरात सरकार दव्ारा किए गए विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रकाश डालती है। अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष दव्ारा समर्थन प्राप्त सेल्फ-एम्पलॉयड वुमेन्स एसोसिएशन (SEWA) तथा गुजरात सरकार दव्ारा भूकंप व सूखे से पीड़ित व्यक्तियों को जीविका की समुदाय -आधारित सुरक्षा प्रदान करने की पहल में क्षमता है कि वह गुजरात में भावी आपदाओं का प्रत्युत्तर और विकास परियोजनाओं को एक रूपरेखा दे सकती है। गुजरात महिला आर्थिक विकास निगम की स्त्रियों के कारोबार को दुबारा आरंभ करने की पहल भी सराहनीय है। गुजरात कृषि मंत्रालय दव्ारा प्रभावित किसानों को जो साजो-सामान दिये गए वे उत्साहजनक परिणाम देने में सहायक रहे।

केस अध्ययन (Case Study)

वर्तमान समय में महाराष्ट्र ही एकमात्र ऐसा प्रांत है जहाँ भूकंप के जोखिम को कम करने हेतु मलबा हटाने वाले वाहनों के सुसज्जित बचाव दल, चिकित्सा वाहनों, उपग्रह संचार आधारित निगरानी कक्ष आदि की व्यवस्था है। 2001 में भुज में आये भूकंप में जान-माल की अधिक हानि का मुख्य कारण भूकंप जोखिम को कम करने के लिये पर्याप्त प्रबंध का नहीं होना था।

सूनामी और शमन के उपाय (Tsunami and Mitigation Measures)

  • अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सूनामी के प्रभाव को कम करना कठिन है क्योंकि इससे होने वाले नुकसान का पैमाना बहुत वृहद होता है।
  • किसी अकेले देश या सरकार के लिये सूनामी जैसी आपदा से निपटना संभव नहीं है। अत: इसके लिये अंतरराष्ट्रीय स्त्रोत के प्रयास आवश्यक है जैसा कि 26 दिसंबर, 2004 को आए सूनामी के समय किया गया था। इस सूनामी आपदा के बाद शाख ने अंतरराष्ट्रीय सूनामी चेतावनी तंत्र में शामिल होने का निर्णय किया है।

डार्ट (Deep Ocean Assessment and Reporting of Tsunami)

ह एक खास तकनीक है, जिसके माध्यम से सुनामी का पता लगाने के बाद उचित जगहों पर त्वरित सूचनाएँ भेजी जाती है। डार्ट के 2 प्रमुख हिस्से होते हैं-सूनामीमीटर और सिग्नलिंग एंड कम्यूनीकेटिंग उपकरण। ‘सूनामीमीटर’ से समुद्र तल में आए भूकंप की तीव्रता की जानकारी मिलती है, जबकि ‘सिग्नलिंग एंड कम्यूनीकेटिंग उपकरण’ के माध्यम से सूनामी के सभी संभावित क्षेत्रों में खतरे की चेतावनी भी दी जाती है। सूनामी वार्निंग सेन्टर से ये दोनों यंत्र एक खास नेटवर्क के माध्यम से जुडे होते हैं। जैसे ही समुद्र के अंदर कंपन होता है, तरंगों की सूचनाएँ तत्काल - ‘सूनामी वार्निंग सेन्टर’ को प्राप्त हो जाती हैं। चूँकि यह केन्द्र उपग्रह से जुड़ा होता है इसलिए तत्काल इस भयानक हलचल की जानकारी मिल जाती है। वर्तमान समय में सूनामी के चेतावनी तंत्र घटना के 8 घंटे पहले इसकी सूचना देते हैं। वैज्ञानिक विश्व के 14 देशों में ‘कॉस्मिक रे डिटेक्टर्स’ स्थापित करने की दिशा में सक्रिय हैं। इनसे आपदा के संबंध में 20 से 24 घंटे पहले चेतावनी दी जा सकती है।

केस अध्ययन (Case Study)

भारत में सूनामी (26 दिसंबर, 2004) आने के पश्चात्‌ किये गये प्रयास (Efforts Made After Tsunami in India (26 December, 2004) )

  • भारत ने 26 दिसंबर 2004 को आए सूनामी की भयावहता से सीख लेते हुये ऐसे प्रयास किये हैं जिनसे भविष्य में ऐसी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके और इसकी भयावहता को कम किया जा सके। भारत में तटीय इलाके में सूनामी की पूर्व सूचना देने के लिए उन्नत ‘एक्सपर्ट डिसिजन सपोर्ट सिस्टम’ (डीएसएस) विकसित किया है। यह प्रणाली उत्कृष्ट सूचना प्रौद्योगिकी दृश्य, भू अंतरिक्ष और दूरसंवेदी प्रौद्योगिकियों पर आधारित है। इसमें भूकंप केन्द्रो, ‘बॉटम प्रेशर रिकॉर्डर’ (बी. पी. आर.) , ज्वार-भाटा के चेतावनी केन्द्रों के नेटवर्क को शामिल किया गया है। इससे सूनामी की निगरानी के साथ-साथ भूकंपों की पहचान की जा सकेगी तथा संबंधित सरकारी विभागों और सूनामी से प्रभावित होने वाले समुदाय को सलाह भी दी जा सकेगी। इस कार्य के लिये अत्याधुनिक संचार तकनीक का उपयोग किया जायेगा जिसे परिस्थितियों पर आधारित डेटाबेस और डिसिजन सपोर्ट सिस्टम का सहयोग मिलेगा।
  • अक्टूबर, 2007 से ही भारत ने विश्व की सबसे आधुनिक सूनामी चेतावनी प्रणाली आरंभ कर दी है। इस प्रणाली से मिलने वाली जानकारी भारत पड़ोसी देशों को भी उपलब्ध कराएगा। यह प्रणाली भूकंप की तीव्रता, गहराई और केन्द्र बताएगी। इसमें सिर्फ 20 मिनट में हिन्द महासागर में हर तरह की भूकंपीय हलचल के आकलन पर निकटवर्ती क्षेत्रों में सूचना उपलब्ध कराना संभव हो जाएगा। यह प्रणाली भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र (INCOIS) हैदराबाद में लगाई गई है।

चक्रवात और शमन के उपाय (Cyclone and Mitigation Measures)

चक्रवातों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। फिर भी शमन की प्रणाली और दक्ष नीतियों व रणनीतियों से इसके अनेक प्रभावों को कम किया जा सकता है।

  • अग्रिम चेतावनी प्रणालियों की स्थापना- तटों पर लगी ऐसी प्रणालियाँ पूर्वानुमान में सहायता दे सकती हैं। इस तरह तूफान के रास्ते में पड़ने वाले इलाके से लोगों को पहले ही हटाया जा सकता हैं।
  • संचार ढाँचों का विकास- चक्रवातों के शमन में संचार की अहम भूमिका होती है, लेकिन चक्रवातों के दौरान यही सबसे पहले भंग होने वाली व्यवस्था भी है। आज अव्यवसायी रेडियो गैर-परंपरागत संचार प्रणाली की दूसरी पंक्ति बनकर उभरा है और आपदा शमन के लिये महत्वपूर्ण साधन है।
  • शरणपट्‌िटयों का विकास- पेड़ों की कतारों पर आधारित शरणपट्‌िटयाँ हवाओं और लहरों के जोर से बचाव का कारगर उपाय हैं। कारगर पवन रोधकों का कम करने और फसलों को हानि से बचाव के अलावा ये मिट्‌टी का कटाव भी रोकती हैं।
  • सामुदायिक शरणावालियों का निर्माण-महत्वपूर्ण स्थानों पर चक्रवात से बचाव के आवास मानव-जीवन की हानि को कम करते हैं। सामान्य क्रम में ये शरणस्थल सार्वजनिक उपयोग में लाये जा सकते हैं।
  • स्थायी आवासों का निर्माण- कंक्रीट के समुचित रूपरेखा वाले ऐसे भवनों का निर्माण आवश्यक है जो तेज हवाओं और समुद्री लहरों को झेल सकें।
  • प्रशिक्षण और शिक्षा-चक्रवात की चेतावनी पर प्रत्युत्तर और तैयारी के ढंग बतलाने वाले लोक चेतना कार्यक्रम जान-माल की हानि को कम करने में बहुत सहायक हो सकते हैं।
  • भू-उपयोग नियंत्रण और योजना-आदर्श यह है कि समुद्र से 5 कि. मी. तक की पट्‌टी में किसी आवासीय या औद्योगिक पट्‌टी को इजाजत न दी जाये क्योंकि सबसे असुरक्षित पट्‌टी यही होती है। इस क्षेत्र में किसी नई आबादी की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। प्रमुख बचाव और दूसरे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान समुद्र से 10 किमी दूर होने चाहिए।
  • उपर्युक्त के अलावा चक्रवात शेल्टर, तटबंध, डाइक, जलाशय निर्माण तथा वायु वेग को कम करने के लिये वनीकरण जैसे कदम उठाये जा सकते हैं, फिर भी भारत, बांग्लादेश, म्यांमार इत्यादि देशों के तटीय क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या की सुभेद्यता अधिक है, इसलिए यहाँ जान-माल का नुकसान बढ़ रहा है।

भूस्खलन और शमन के उपाय (Landslides and Mitigation Measures)

  • भूस्खलन हिमालय क्षेत्र में बार-बार होने वाली घटना है। लेकिन हाल ही में भारी निर्माण-कार्यों और प्राकृतिक अस्थिरता ने इस समस्या को तीखा बना दिया है। भूस्खलन ढलानों पर संरचना, ढाँचे, जल-प्रवाह या वनस्पति के आवरण में होने वाले क्रमिक या अकस्मात परिवर्तनों के कारण होते हैं। ये परिवर्तन भूगर्भीय कारणों, जलवायु, घिसाव, बदलते भू-उपयोग या भूकंप के कारण आते हैं।
  • जनता और सार्वजनिक सुविधाओं को भूस्खलन के संपर्क में आने से बचाकर तथा भूस्खलन पर भौतिक नियंत्रण करके उनसे पैदा विपत्तियों में महत्वपूर्ण कमी की जा सकती है। जिन विकास कार्यक्रमों से स्थलाकृति संसाधनों के उपयोग और धरती पर पड़ने वाले बोझ में परिवर्तन आ सकते हों उनकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। भूस्खलन रोकने के लिये जो कदम उठाये जा सकते हैं, वे जल के निकास और मिट्‌टी के कटाव की रोकथाम से संबंधित है, जैसे बाँसों के बंध और टैरेस का निर्माण , जूट और नारियल के रेशों की जालियों का निर्माण। इनमें चट्‌टानों को गिरने से बचाने संबंधी उपाय भी शामिल हैं, जैसे घास उगाना, ईंट या पत्थर की दीवारें बनाना और सबसे बढ़कर वनों का विनाश रोकना और वनारोपण बढ़ाना।
  • भूस्खलन से निपटने के उपाय अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होने चाहिए। अधिक भूस्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बांध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबंध होना चाहिए। इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियंत्रण होना चाहिए। सकारात्मक कार्य जैसे-वृहत स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा, जल बहाव को कम करने के लिए बांध का निर्माण भूस्खलन के उपायों के पूरक हैं। स्थानांतरित कृषि वाले उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।