Science and Technology: Clone and Stem Cells, Nanotechnology

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निम्नतापी शल्य चिकित्सा के विभिन्न चरण (Different Stages of Inferior Surgery)

क्लोन एवं स्टेम कोशिकाएंँ (Clone & Stem Cells)

  • हाल के वर्षों में मानव के क्लोन के निर्माण से संबंधित अनुसंधानों को विशेष महत्व दिया गया है। किसी क्लोन का निर्माण वस्तुत: नाभिक स्थानांतरण तकनीक पर आधारित होता है। यद्यपि इस तकनीक दव्ारा कई जन्तुओं के क्लोन का निर्माण किया गया है, तथापि मानव भ्रूण के संदर्भ में इस तकनीक को सफलता प्राप्त करने का दावा किया था लेकिन इस दावे को अस्वीकार कर दिया गया। अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि मानव क्लोन का निर्माण भ्रूण को स्टेम कोशिकाओं की आपूर्ति कर किया जा सकता है। दिसंबर, 2001 में जोस सिबेली ने 71 अंडो पर तीन चरणों में अनुसंधान किये थे लेकिन इनमें से केवल एक प्रयोग के तहत मानव भ्रूण के क्लोन के निर्माण की दिशा में सकारात्मक संकेत प्राप्त हुये। अपने प्रयोग के दौरान, सिबेली ने त्वचा की कोशिकाओं के केन्द्रकों को बाहर निकाल कर उन्हें केन्द्रिका विहीन 19 अंडों में प्रत्यारोपित किया। इनमें से केवल तीन में विभाजन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, स्टेम कोशिकाओं के प्रभावी स्रोत के रूप में विकास करने के लिए भ्रूणों का ब्लास्टोसिस्ट चरण तक विकसित होना अनिवार्य हैं। इस चरण में विभाजित कोशिकाओं की संख्या लगभग 100 होती है। लेकिन सिबेली दव्ारा किये गये प्रयोगों में ऐसा कोई भी भ्रूण इस चरण तक सफलतापूर्वक विकास नहीं कर सका।
  • स्टेम कोशिकाएंँ वस्तुत: ऐसी कोशिकाएं हैं जिनमें अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं के रूप में परिवर्तित होने की क्षमता विद्यमान होती है। इस कारण न केवल क्लोन बल्कि नए अंगों के निर्माण में भी इनकी भूमिका अतिविशिष्ट है। इसके बावजूद हाल के वर्षों में यह तकनीक विवादास्पद हो गई है। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे भ्रूण हत्या की आशंका होती है।

जहांँ तक क्लोन की तकनीक का प्रश्न है, तीन प्रकार की पद्धतियांँ प्रचलन में हैं:

  • डीएनए पुनर्संयोजी तकनीक अथवा डीएनए क्लोनिंग।
  • प्रजनक क्लोनिंग ।
  • चिकित्सकीय क्लोनिंग।

डीएनए पुनर्संयोजी तकनीक को ही आणविक अथवा जीन क्लोनिंग भी कहते हैं। इसके अंतर्गत डीएनए के एक इच्छित टुकड़े को किसी जीव की आनुवांशिक संरचना से बाहर निकाल कर उसे स्व प्रजनन करने वाले आनुवांशिक पदार्थ जैसे किसी जीवाणु के प्लाज्मिड (जीवाणु की जीन संरचना) में डाल दिया जाता है। इसके उपरांत उसे किसी अन्य जीव की आनुवांशिक संरचना में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। 1970 के दशक में विकसित यह तकनीक वर्तमान में आणविक जैविकी का एक अभिन्न अंग है। अधिकांशत: जीवाणु कोशिकाओं का उपयोग इस तकनीक में किया जाता है लेकिन कई अवसरों पर यीस्ट तथा स्तनधारियों की कोशिकाओं का भी प्रयोग में लाया जाता है।

  • जैसा कि हम जानते हैं, प्रजनक क्लोनिंग तकनीक से ‘डॉली’ नामक भेड़ का विकास किया गया था, जिसकी 6 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी। इसी प्रकार हाल ही में रीसस बंदर के क्लोन का भी विकास किया गया है जिसे ‘टेट्र’ कहा गया है।
  • तकनीकी रूप से प्रजनक क्लोनिंग वह पद्धति है जिसमें एक ऐसी संतति का विकास किया जाता है जिसमें पहले से विद्यमान जन्तु की भांति ही समान नाभिकीय डीएनए उपस्थित होता है। इस पद्धति में कायिक कोशिका नाभिक हस्तांतरण (Somatic Cell Nuclear Transfer SCNT) नामक प्रक्रिया प्रयोग में लाई जाती है। दाता कोशका के केन्द्र को बाहर निकालकर उसे उस अंडे की कोशिका में रखा जाता है जिसका केन्द्रक बाहर निकाल लिया गया हो। इस नई प्रजनक कोशिका को रासायनिक एजेंट अथवा विद्युत धारा के प्रभाव में रखा जाता है ताकि कोशिका विभाजन हो सके। एक खास चरण तक विकसित होने के बाद उसे माता के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, जहांँ तक उसका विकास होता है।
  • तीसरे प्रकार की क्लोनिंग जिसे चिकित्कीय अथवा भ्रूण क्लोनिंग भी कहते हैं, का प्रयोग स्टेम कोशिकाओं के विकास के लिए किया जाता है ताकि नए अंगों अथवा उत्तकों का विकास किया जा सके। यह पद्धति जैव चिकित्सकीय अनुसंधान में व्यापक स्तर पर प्रयोग में लाई जाती है।
  • जहांँ तक क्लोनिंग के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का प्रश्न है, विशेषकर प्रजनक क्लोनिंग अत्यंत महंगी तकनीक है तथा इसकी कार्यकुशलता भी संदिग्ध है। वस्तुत: लगभग 90 प्रतिशत ऐसे प्रयोगों में इच्छित संतति का विकास नहीं हो पाता।

नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology)

  • विशिष्ट गुणों वाली युक्तियों के निर्माण हेतु परमाणुओं तथा अणुओं के भौतिक गुणों का उपयोग करने वाली तकनीक को नैनो तकनीक कहते हैं। विज्ञान की विभिन्न विधाओं, यथा, रसायन विज्ञान, भौतिकी, जैविकी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स के विशेषज्ञों दव्ारा परमाणविक स्तर पर परिशुद्धता के साथ तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। इस नई तकनीक के प्रादुर्भाव से प्रोटीन के अणुओं के व्यवहार का ज्ञान प्राप्त करने में व्यापक सफलता मिली है।
  • प्रोटीन वस्तुत: अमीनो अम्ल से निर्मित जटिल पदार्थ होते हैं। यद्यपि जैव प्रौद्योगिकी के तहत प्रोटीन अभियांत्रिकी पर पूर्व से ही ध्यान दिया जाता रहा है, तथापि नैनो तकनीक ने प्रोटीन अणुओं के संकुचन तथा विस्तारण सहित उनके अन्य व्यवहारों को समझने में विशेष योगदान दिया है। नैनो तकनीक का प्रयोग वैसे तो कई क्षेत्रों में किया जाता है, लेकिन जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आनुवांशिकी का क्षेत्र इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस तकनीक का प्रयोग कर मानव जीनोम के अध्ययन की विधि का सरलीकरण किया जा सका है। इसके आधार पर मानव जीनों का मानचित्रीकरण भी सरल बनाया जा सका है।
  • हाल के अनुसंधानों में डी. एन. ए. की पहचान, उसकी संवेदनशीलता, चयनात्मकता तथा उसके उपयोग पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। उत्तर पश्चिमी नैनोतकनीक संस्था दव्ारा किये गये अनुसंधानों में स्पष्ट किया गया है कि एन्न्थ्रेक्स जैसे जैव हथियारों की पहचान करने में भी इस तकनीक ने सफलता अर्जित की है। एक कृत्रिम डी. एन. ए. अनुक्रम का निर्माण कर पॉलीमेरेज चेन रिएक्शन जैसी परंपरागत तकनीकों के प्रतिस्थापन के प्रयास भी किये जा रहे हैं।
  • नैनोटेक्नोलॉजी शब्द नैनो और टेक्नोलाजी शब्दों के मेल से बना है। नैनो शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के नैनोज शब्द से हुई है। जिसका अर्थ है बौना। अत: नैनो तकनीक का अर्थ एक ऐसी तकनीक से है जो किसी पदार्थ के सूक्ष्मतम कणों का अध्ययन करती है। एक नैनोमीटर मीटर का एक अरबवां भाग है।
  • नैनोटेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम नोरिया तानिगुशि (Norio Taniguchi) ने किया था लेकिन वर्ष 1959 में रिचर्ड फिनमैन (Richard Feynman) ने यह स्पष्ट किया कि प्रत्येक परमाणु के परिचालन से वैज्ञानिक क्रांति लाई जा सकती है। वर्ष 1980 में ऐरिक ड्रेक्सलर (Eric Drexler) ने इस प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों का विस्तृत अध्ययन किया। नैनो तकनीक ने हमें सटीक तथा कम खर्च वाली उत्पादन प्रक्रियाएंँ उपलब्ध कराई है जिससे नये उत्पादों का निर्माण संभव हुआ है। इस प्रौद्योगिकी के तहत एक ओर तो विभिन्न कणों के आकार को छोटा बनाया गया है वहीं दूसरी ओर, संगणता की क्षमता का भी विस्तार हुआ है।

विकास के संदर्भ में जनवरी 2000 में अमेरिका दव्ारा नैनो प्रौद्योगिकी परियोजना क्रियान्वित की गई थी। इस परियोजना की कुल लागत 500 मिलियन डालर है। इस क्रांतिकारी प्रौद्योगिकी के लाभ अनंत हैं। कई महत्वपूर्ण लाभों का उल्लेख यहांँ किया है:

  • सघन हरित कृषि के माध्यम से अधिक उत्पादन। हरित गृह कृषि एक ऐसी विधि है, जिसमें नियंत्रित दशाओं में कृषि की जाती है। इससे बेहतर आगम-निर्गम संबंध भी सुनिश्चित होता है। नैनो प्रौद्योगिकी से पर्यावरण की दशाओं को कम लागत पर नियंत्रित किया जा सकता है।
  • नैनो प्रौद्योगिकी हानिकारक परमाणु पुनर्चक्रण में सक्षम है जिससे रासायनिक प्रदूषण की आशंका कम होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, नैनो प्रौद्योगिकी से निर्मित प्लास्टिक हानिकारक नहीं है तथा बिना मध्यवर्ती उत्पादों के निर्माण के ही कई अन्य पदार्थों का निर्माण किया जा सकता है जिससे पर्यावरण की कम क्षति होती है।
  • कई अवसरों पर इस प्रौद्योगिकी से ऐसे पदार्थों का निर्माण किया जाता है, जो अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण बेहतर आय सृजित करते हैं। इससे न केवल उद्योगों को लाभ होता है बल्कि ऊर्जा का संरक्षण भी किया जा सकता है।
  • नैनो प्रौद्योगिकी से कम्प्यूटर नियंत्रित आणविक उपकरणों का निर्माण किया जा सकता है। इन उपकरणों को नैनोबोट (Nanobots) अथवा कोशिका यंत्र (Cell Machines) कहते हैं। कोशिका यंत्रों का अनुप्रयोग विषाणुओं के विरुद्ध प्रतिजीवियों के रूप में किया जाता है। साथ ही इनसे रक्त परिसंचरण प्रणाली में किसी अवरोध को दूर करने में भी सहायता मिलती है।
    • कम लागत की आवश्यकताओं ने स्व-उत्पादित विनिर्माण प्रणाली में अभिरुचि विकसित की है। इसका अध्ययन 1940 के दशक में वॉन न्यूमैन (Von Newman) दव्ारा किया गया था। इन प्रणालियों दव्ारा अपने प्रतिरूपों तथा नये उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है। यदि हम किसी ऐसे डिज़ाइन के आधार पर निर्माण करें तो इस पर आने वाली लागत अत्यंत कम हो जाएगी। स्पष्टत: आगामी वर्षों में इस प्रौद्योगिकी के माध्यम से परमाणुओं तथा अणुओं के व्यवस्थित क्रम भी विकसित किये जा सकेंगे।
    • हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने इस प्रौद्येगिकी दव्ारा कार्बन के एक नये प्रतिरूप की खोज की है, जो सामान्य तापमान पर स्थिर रहता है। इस प्रतिरूप को नैनोस्क्रॉल कहा गया है। नैनोस्क्रॉल वस्तुत: कार्बन के नैनोट्‌यूब से बेहतर कार्य कर सकते हैं। नैनो ट्‌यूब शुद्ध कार्बन की चादरें हैं जो नलिकानुमा होती हैंं कार्बन की सतहें हाइड्रोजन का अधिशोषण (Adsorption) कर सकती हैंं। इसके फलस्वरूप नैनोस्क्रॉल का प्रदूषण-मुक्त हाइड्रोजन कारों के निर्माण में प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त वायुयानों तथा कारों के हल्के पदार्थों का निर्माण भी इससे किया जा सकता है।