Science and Technology: Global Positioning System, GPS, and Galileo Project

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वैश्विक अवस्थान प्रणाली (Global Positioning System, GPS)

जीपीएस विश्व की एकमात्र पूर्णत: कार्यशील उपग्रह संचालन प्रणाली है जिसे तकनीकी रूप से नैवस्टार (NAVSTAR-Navigation Satellite Tinning And Ranging) जीपीएस कहते हैं। इसका मुख्य कार्य भू-सर्वेक्षण, मानचित्रीकरण तथा वैज्ञानिक अनुसंधान में सहयोग करना है।

Illustration: वैश्विक अवस्थान प्रणाली (Global Positioning System, GPS)
  • हांलाकि अमेरिका दव्ारा विकसित इस प्रणाली को 1976 में ही संकल्पित किया गया था लेकिन 17 जुलाई 1995 से इसे पूर्णत: कार्यशील बना दिया गया। मई 2009 तक इस प्रणाली में कुल 30 उपग्रह कार्यरत थे।
  • तकनीकी रूप से प्रणाली के तीन अवयव हैं, जिन्हें अंतरिक्ष अवयव (Space segment) , नियंत्रण अवयव (Control Segment) तथा उपयोग अवयव (User segment) कहते हैं। अंतरिक्ष अवयव में शामिल 30 उपग्रह कुल 6 कक्षीय तल पर परिक्रमा करते हैं। इनकी औसत आनति 550 हैं उपग्रहों को मध्य भू-कक्षा (Medium Earth Orbit, MEO) में 20,200 किमी. की ऊँचाई पर स्थापित किया गया हैं। उपग्रहों के इस समूह से प्राप्त सूचनाओं से अवस्थान वेग तथा समय की सटीक जानकारी प्राप्त होती हैं।
  • नियंत्रण अवयव, जिसे पार्थिव नियंत्रण नेटवर्क (Groung Control Network) भी कहा जाता है के तहत कोलेराडो में श्राइवर वायु सेना बेस (Shriver Air Force Base) पर मास्टर केन्द्र स्थापित है। इस केन्द्र को समर्थन देने के लिए हवाई तथा दिएगो गार्सिया दव्ीपों पर निगरानी केन्द्र भी स्थापित हैं। वैश्विक नियंत्रण नेटवर्क के लिए ये निगरानी केन्द्र सूचना संग्राहकों का कार्य करते हैं।
  • जहांँ तक उपयोग के अवयव का प्रश्न है, जीपीएस संग्राहकों (Receivers) दव्ारा सूचनाओं को संग्रहित किया जाता है। इस यंत्र में एक एन्टिना, एक घड़ी तथा एक प्रौसेसर होता है। कई यंत्रों में इन युक्तियों के अतिरिक्त एक डिस्प्ले प्रणाली भी होती है। संग्राहकों दव्ारा जो सूचनाएंँ प्राप्त की जाती हैं, उनसे उपयोगकर्ता को स्थिति, वेग तथा समय की जानकारी प्राप्त होती है जिनका उपयोग वह जलीय, स्थलीय अथवा वायवीय अनुप्रयोगों के लिए कर सकता है। कई अवसरों पर दूरी से संबंधित अतिरिक्त सूचनाएंँ भी प्राप्त होती हैं जिनसे मानचित्रों का निरूपण सरल होता है। जीपीस प्रणाली का उपयोग स्थलीय, सागरीय तथा वायवीय संचालन, सर्वेक्षण भूभौतिक (Geophysical) अन्वेषण, मानचित्रीकरण, वाहनों के अवस्थान की जानकारी, कृषि प्रणाली तथा दूर संचार नेटवर्किंग के लिए व्यापक रूप से किया जा रहा है।

जीपीएस से मुख्यत: दो प्रकार की सेवाएंँ प्रदान की जाती हैं-

  • मानक अवस्थान सेवाएं (Standard Positioning Service, SPS) -सिविल (असैनिक) उपयोग के लिए।
  • सटीक अवस्थान सेवाएं (Precise Positioning Service, PPS) -अमेरिकी सुरक्षा विभाग के लिए।

हाल ही में जीपीएस प्रणाली के आधुनिकीकरण पर विचार किया गया है। इस योजना के तहत असैनिक उपयोग के विस्तार के लिए दो नए संचालन संकेतों को शामिल करने का निर्णय किया गया है। एल-2 सी नामक पहले संचालन संकेत का प्रसारण 1227.60 मेगाहर्ट्‌ज पर किया जाएगा। इसके लिए आई. आई. आर-एम नामक उपग्रह 25 सितंबर, 2005 को ही प्रक्षेपित किया गया है। इसी प्रकार, वर्ष 2007 से वर्ष 2012 के बीच ब्लॉक आई. आई. एफ. श्रेणी के उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जाएगा। इसके उपरांत, वर्ष 2012 तक तीनों ही असैनिक संकेत, एल-1 सी⟋ए, (L-1-C⟋A) एल-2सी (L2C) तथा एल-5 (L5) उपलब्ध होंगे जिन्हें 2015 तक पूर्ण रूप से कार्यात्मक बना दिया जाएगा।

गैलीलियो परियोजना (Galileo Project)

यूरोपीय संघ तथा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी दव्ारा संयुक्त रूप से गैलीलियों उपग्रह संचालन प्रणाली विकसित की जा रही है, जो वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाली जीपीएस प्रणाली के समानान्तर होगी। इस परियोजना में भारत, चीन, इजरायल, मोरक्को, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया तथा यूक्रेन भी शामिल हैं। यह आशा की गई है कि आगामी वर्षों में अर्जेन्टिना-ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चिली, जापान, मलेशिया, मेक्सिकों, नार्वे, पाकिस्तान तथा रूस भी परियोजना में शामिल हो जाएंगे। इस परियोजना के वर्ष 2011 - 12 तक पूरी तरह क्रियाशील हो जाने की संभावना है।

इस प्रणाली दव्ारा निम्नांकित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए जाएंगे-

  • राहत और बचाव
  • परिवहनीय सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण
  • निर्देशन प्रणालियों को सहायता
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली को सहयोग

गैलीलियो परियोजना में उपग्रहों की कुल संख्या 30 होगी तथा इनके माध्यम से चार प्रकार की महत्वपूर्ण सेवाएं उपलब्ध कराई जाएगी।

  • मुक्त सेवा (Open Service) सभी तक उपलब्ध होगी। इन सेवाओं के लिए दो आवृत्ति बैंडों में संंकेतों का प्रसारण होगा। ये बैंड 1164 - 1214 मेगाहर्ट्‌ज तथा 1563 - 1591 मेगाहर्ट्‌ज होंगे। स्वचालित संचालन प्रणालियों दव्ारा इन आवृत्तियों का उपयोग किया जाएगा।
  • दूसरी सेवा के रूप में वाणिज्यिक सेवा (Commercial Service) होगी। यह सेवा तीन आवृत्ति बैंडों पर प्रसारित होगी। जिनका पृथ्वी पर स्थापित केन्द्रों दव्ारा सटीक जानकारी के लिए उपयोग किया जाएगा।
  • तीसरी सेवा, जन विनियमित सेवा (Public Regulated Service) तथा चौथी, जीवन सेवा सुरक्षा (Safety of Life Service) दव्ारा मुक्त सेवाओं की तुलना में अधिक सटीक सूचनाएँं उपलब्ध कराई जाएगी। इन सेवाओं का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी होगा कि 10 सेकेंड की अधिकतम अवधि में किसी समस्या की पहचान कर ली जाए। ये सेवाएं राष्ट्रों को उनके पुलिस तथा सैन्य प्रशासन के सुदृढ़ तथा अत्याधुनिक बनाने में सहयोग करेंगी।

ग्लोनास परियोजना (Glonass Project)

  • ग्लोनास अर्थात्‌ वैश्विक उपग्रह संचालन प्रणाली (Global Navigation Satellite System) एक रेडियो-आधारित उपग्रह संचालन प्रणाली है, जिसका विकास तत्कालीन सोवियत संघ दव्ारा किया गया था लेकिन वर्तमान में रूस के अंतरिक्ष बलों दव्ारा इस पर कार्य किया जा रहा है।
  • वर्ष 1976 में ही इसे संकल्पित किया गया था तथा यह लक्ष्य रखा गया था कि 1991 तक इसका विश्व स्तर पर विस्तार कर दिया जाएगा। इसी करण 1982 तथा उसके उपरांत उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। यह प्रक्षेपण 1995 तक चलता रहा। लेकिन रूस की अर्थव्यवस्था के कमजोर हो जाने के कारण परियोजना पर कार्य पूरा नहीं किया जा सका। वर्ष 2001 में पुन: रूस ने इस पर कार्य आरंभ किया तथा 2011 तक इसके वैश्विक विस्तार का लक्ष्य रखा है।
  • ग्लोनास का विकास वास्तविक समय, स्थिति तथा वेग के निर्धारण के उद्देश्य से किया गया था। यह तत्कालीन सोवियत संघ दव्ारा विकसित की जाने वाली दूसरी उपग्रह संचालन प्रणाली थी। पहली ऐसी प्रणाली को “सिकाडा” (Tsikada) की संज्ञा दी गई थी।
  • पूर्ण रूप से विकसित हो जाने के बाद ग्लोनास प्रणाली में 24 उपग्रह होंगे, जिसमें से 21 कार्यशील तथा 3 वैकल्पित होंगे। इन उपग्रहों को तीन कक्षीय तलों पर स्थापित किया जाएगा। ये तल 120 डिग्री की आनति पर एक-दूसरे से अलग रहेंगे।
  • ग्लोनास के उपग्रहों दव्ारा दो प्रकार के संकेतों का संप्रेषण किया जाएगा। पहले संकेत को मानक परिशुद्ध संकेत (Standard Precision) तथा दूसरे संकेत को उच्च परिशुद्ध संकेत (High Precision Signal) कहा गया है।
  • कार्यकुशलता के उच्चतम स्तर पर SP संकेत 57 - 70 मीटर तक क्षैतिज अवस्थिति की पहचान करेगा। इसी प्रकार, HP संकेत रूस के सैनिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाया जाएगा।
  • इस उपग्रह संचालन प्रणाली के तहत पहली पीढ़ी के उपग्रहों को ऊरगान (Uragan) कहा गया था। इनका प्रक्षेपण मुख्यत: 1980 के दशक के मध्य में किया गया था।
  • दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों के रूप में ग्लोनास-एम तथा तीसरी पीढ़ी के लिए ग्लोनास -के (GLONASS-K) नामक उपग्रह का विकास किया गया है। तीसरी पीढ़ी के उपग्रहों का प्रक्षेपण वर्ष 2008 में “सोयुज-यू” (Soyuz-U) नामक प्रमोचक यान से किया जाएगा।
  • जनवरी 2004 में भारत तथा रूस के बीच हुए एक समझौते के तहत यह कहा गया है कि दोनो देश इस प्रणाली को 2010 तक पूर्णत: कार्यशील बनाने का प्रयास करेंगे। समझौते में यह भी कहा गया था कि 2006 - 08 मेंं भारत जीएसएलवी दव्ारा ग्लोनास श्रंखला को दो उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा। साथ ही ग्लोनास-के श्रृंखला के उपग्रहों के विकास पर होने वाले व्यय में भी भारत की हिस्सेदारी होगी। लेकिन अब तक ऐसी किसी उपग्रह का प्रक्षेपण नहीं किया जा सका है।
  • वर्तमान में इस प्रणाली का उपयोग मुख्यत: चेचेन्या के क्षेत्र में किया गया है जबकि विश्व स्तर पर यह अभी पूर्वी यूरोप तथा कनाडा तक ही सीमित है।