Science and Technology: Main Battle Tank, Arjun, and Light Combat Aircraft

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रक्षा प्रौद्योगिकी (Defence Technology)

मुख्य युद्ध टेंक, अर्जुन (Main Battle Tank, Arjun)

भारत को एक अत्याधुनिक मुख्य युद्ध टैंक के विकास में सफलता प्राप्त हुई है। इसके प्रमुख अभिलक्षणों में उच्च क्षमता, गतिशीलता तथा उच्च स्तरीय सुरक्षा महत्वपूर्ण हैं। सबसे महत्वूपर्ण तथ्य यह है कि इसमें शक्ति-भार अनुपात अनुकूलतम स्तर पर है जिससे इसका कार्य निष्पादन उच्च स्तरीय है। इसका विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation, DRDO) और अवाडी स्थिति लड़ाकू वाहन अनुसंधान और विकास संस्थापन (Combat Vehicle Research and Development Establishments, CVRDE) दव्ारा किया गया है। अर्जुन की एक अन्य विशेषता यह है कि चालक अंधेरे में भी अपने लक्ष्य को देख सकता है। इसका कारण इसमें थर्मल इमेजरी (Thermal Imagery) नामक युक्ति का प्रयोग है। 58.5 टन भार वाला यह टैंक लगभग 35 डिग्री की ढाल पर सरलतापूर्वक चल सकता है तथा अन्य टैंकों के विपरीत चलते समय भी इसकी मारक क्षमता विद्यमान रहती है। चालक की सुरक्षा के लिए इसके भीतरी भाग को अत्यंत सुदृढ़ बनाया गया है। इस युक्ति को कंचन कहते हैं।

हल्का लड़ाकू विमान (Light Combat Aircraft)

  • स्वदेशी तकनीक से निर्मित हल्के लड़ाकू विमान के निर्माण से भारतीय वायुसेना की कार्यकुशलता में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। विमान सभी प्रकार की मौसमी दशाओं में कार्य करने में पूर्णत: सक्षम है। साथ ही, यह हवा से हवा, हवा से सतह और हवा से समुद्र की ओर वार करने में सक्षम है। वस्तुत: स्वदेशी तकनीक से निर्मित यह भारत का पहला सैन्य उपकरण है। इस परियोजना को 1983 में संकल्पित किया गया था लेकिन बड़े पैमाने पर वर्ष 1993 से इस पर कार्य आरंभ किया गया। यान के ढाँचे का 40 प्रतिशत से अधिक भाग अल्युमिनियम, लिथियम और टिटैनियम के मिश्र धातु से निर्मित है जबकि इसके पंखों तथा हवाई ब्रेकों का निर्माण कार्बन सम्मिश्र से किया गया है। यह तकनीक ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक यान से विकसित की गई है। आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे कम कीमत वाले इस बहुमुखी लड़ाकू विमान की तुलना अमरीका के एफ-16, स्वीडन के जे. ए. एस. -9 तथा ब्रिटेन के टायफून से की जा सकती है।
  • विमान के पंखों के लिए डेल्टा विंग कन्फ्यूगिरेशन तकनीक प्रयुक्त हुई है जिसके तहत उर्ध्वाकार पंखो का प्रयोग किया गया है। इसकेे अतिरिक्त इसमें उन्नत डिजिटल कॉकपिट, डिजिटल उड़ान प्रणाली तथा बहुआयामी रडार प्रणाली का भी उपयोग किया गया है। विमान की प्रायोगिक उड़ान में 1980 में किये गये भारत-अमरीका समझौते के तहत प्राप्त 11 GE-404 इंजनों में से एक इंजन का प्रयोग किया गया था। ध्यातत्व है कि वर्ष 1998 में भारत दव्ारा परमाणु परीक्षण करने पर इस समझौते को रद्द कर दिया गया था। आगामी वर्षों में GE-404 इंजनों के स्थान पर कावेरी नामक इंजन का प्रयोग किया जाएगा। इस इंजन के आंतरिक भाग को काबिनी की संज्ञा दी गई है। इंजन पर कावेरी संपूर्ण अधिकार डिजिटल नियंत्रण इकाई (Kaveri Full Authority Digital Control Unit, KADCC) दव्ारा निगरानी पर रखा जाएगा। इस विमान को पूर्ण रूप से वर्ष 2012 तक विकसित कर लिये जाने की संभावना है।

हेलीकॉप्टर ध्रुव (Advanced Light Helicopter-DRUV)

DRDO दव्ारा विकसित हेलीकॉप्टर एक बहुउद्देशीय हेलीकॉप्टर है। इसकी अधिकतम गति 250 किमी. ⟋घंटा है। इसके दव्ारा जहाँ एक सामरिक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। वहीं आपदा में सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है।

सोनार प्रणाली (SONAR System)

सोनार का विस्तृत रूप साउंड नेविगेशन एंड रेंजिंग है। उच्च आवृत्ति वाले ध्वनि तरंगों की सहायता से जलमग्न वस्तुओं या पिंडो की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना इस प्रणाली का मुख्य कार्य है। इसके अतिरिक्त समुद्र तल के मानचित्रीकरण तथा मछलियों की स्थानिक जानकारी प्राप्त करने का कार्य भी इसके दव्ारा किया जा सकता है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के निर्देशन में कई विशिष्ट सोना प्रणालियाँं विकसित की गई हैं, जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं:

  • उन्नत आवरण आरोपित सिंहावलोकन सोनार Advanced Panoramic Sonar-Hull Mounted, APSOH: यह एक पोत आधारित सोनार प्रणाली है जिसका विकास सक्रिय परास मापन Active Ranging , निष्क्रिय श्रव्य सीमा Passive Audio Limit , स्वमार्ग अवलोकन, लक्ष्य निर्धारण और वर्गीकरण के लिए किया गया है। इस सोनार प्रणाली के अन्य प्रतिरूपों का भी विकास करने में सफलता मिली है, जिसे परिवर्तनीय गहराई सोनार प्रणाली कहते हैं। इसका मुख्य कार्य अतिरिक्त ट्रांसड्‌यूसरों ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में रूपातंरित करने वाली युक्ति की सहायता से जलमग्न वस्तुओं एवं पिंडों के विभिन्न आयामों की जानकारी प्राप्त करना है।
  • पंचेन्द्रिया (Panchendriya) : यह एक पनडुब्बी आधारित समन्वित सोनार प्रणाली है जिसे एक या दो रूपों में प्रयोग में लाया जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह 6 लक्ष्यों पर एक ही समय में निगरानी रखने में सक्षम है। इसमें एक सक्रिय सोनार, एक परास मापी सोनार तथा एक चौकसी सोनार प्रणाली का प्रयोग किया गया है। साथ ही, जलमग्न संचार व्यवस्था भी प्रयुक्त हुई है। इसे एक शक्तिशाली अग्नि नियंत्रण प्रणाली, पेरीस्कोप, रडार प्रणाली तथा हथियार नियंत्रक के साथ भी संबद्ध किया जा सकता है।
  • हंसा (Hansa) : आवरण आरोपित सिंहावलोकन सोनार प्रणाली का यह एक अन्य प्रतिरूप है जिसमें दो बैंड वाली मध्यम दूरी की सोनार प्रणाली कार्य करती है। लघु तथा दीर्घ दूरियों तक चौकसी का कार्य करने के लिए इस सोनार दव्ारा बहुसंप्रेषणीय तकनीक का उपयोग किया जाता है।

आई. एन. एस. सागरध्वनि (INS Sagardwani)

इस युद्धपोत को चलित प्रयोगशाला की भी संज्ञा दी गई है। इसकी असाधारण क्षमताओं में प्रतिध्वनि ध्वनिकों (Echo Sounders) उपग्रह संचालकों (Satellite Navigators) , वैश्विक अवस्थान प्रणाली (Global Positioning System, GPS) , डॉप्लर गति लॉग (Doppler Speed Log) , संचालक कम्प्यूटर (Navigation Computer) तथा चुंबकीय एवं गायरों कंपास का प्रयोग किया गया है। सागरध्वनि दव्ारा असैनिक और सैन्य उपयोगिताओं हेतु पर्यावरणीय सूचनाओं का संकलन किया जाता है। इस युद्धपोत में तीन विशिष्ट साफ्टवेयरों की सहायता से विभिन्न योजनाओं को मूर्त रूप प्रदान किया जाता हैं सरप्लान (Surplan) नामक साफ्टवेयर की सहायता से पोत की जल यात्राओं की योजना का प्रारूप, ऑल्टेप (Oltap) से संचालन नियंत्रण और प्रोफाइल (Profile) से भूवैज्ञानिक और सामुद्रिक अध्ययन से संबंधित सूचनाओं का संकलन किया जाता है। इन साफ्टवेयरों की उपलब्धता के कारण सूचनाओं को चित्र के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। भारत सरकार के अनुसार, सागरध्वनि को सामुद्रिक विकास विभाग दव्ारा समुद्री संसाधनों के सर्वेक्षण के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इससे सागर संपदा, सागर कन्या जैसे जलयानों को इस कार्य में सहायता मिलती है।

आई. एन. एस. मुुंबई और आई. एन. एस. किर्च (INS Mumbai & INS Kirch)

इन दो युद्धपोतों को 22 जनवरी 2001 को राष्ट्र को समर्पित किया गया था। इन दोनों में आई. एन. एस. मुंबई निर्देशिक प्रक्षेपास्त्र विध्वंसक है, जबकि आई. एन. एस. किर्च को निर्देशित प्रक्षेपास्त्र कोरबिट कहते हैं। मुंबई में 16 सतह तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों, 100 मि. मी. की बंदूकों, 30 मि. मी. वाली गेटलिंग बंदूकों, टारपिडो तथा पनडुब्बी रॉकेटो के अतिरिक्त संवेदन सुविधा भी उपलब्ध है। इस पोत में खोज तथा आक्रमण की आशंकाओं से बचने के लिए विशेष प्रकार की तकनीकों का प्रयोग किया गया है जिसे गुप्त तकनीक (Stealth Technique) कहते हैं।

आई. एन. एस. अरिहंत (INS ARIHANT)

यह भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी है। इसको शामिल करने से भारत विश्व का छठा देश है, जिसको परमाणु पनडुब्बी निर्मित करने की क्षमता प्राप्त है। इस परियोजना का वर्ष 1984 में कार्य प्रारंभ किया गया था। यह 6000 टन क्षमता वाली पनडुब्बी है। सतह पर इसकी चाल 22 - 28 किमी. ⟋घंटा एवं पानी के अंदर 44 किमी. ⟋घंटा है।

काली 5000 (KALI: Kilo Ampere Linear Injector)

यह भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर दव्ारा विकसित की जा रही बीम प्रणाली है। इससे शक्तिशाली माइक्रोवेव तरंगे उत्सर्जित होगी जो विभिन्न सामरिक प्रणालियों की इलेक्ट्रॉनिक सूचनाओं को नष्ट करने में सक्षम होंगी।

निशांत और लक्ष्य (Nishant & Lakshya)

  • भारत ने निशांत नामक चालक विहीन विमान के विकास में सफलता प्राप्त कर ली है तथा इसका सफल परीक्षण भी किया जा चुका है। 45 किलोग्राम आयुध की भार वहन क्षमता वाले इस विमान के निर्माण का उद्देश्य लंबी दूरी वाले लक्ष्यों की टोह लेना है। इन तकनीकों के विकास में अन्य देशों की तुलना में भारत के प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय हैं।
  • इसी क्रम में भारत ने लक्ष्य नामक चालक रहित विमान का विकास भी किया है जो वैमानिकी विकास संस्थापना की एक उपलब्धि है। इन दोनों ही विमानों के विकास से युद्ध क्षेत्र में चौकसी करने तथा लक्ष्यों की टोह लेने में सहायता मिलती है।

पिनाका (Pinaka)

दुश्मन की सेना वाले क्षेत्रों तथा संचार प्रणालियों को ध्वस्त करने के उद्देश्य से पिनाका नामक बहुनाल रॉकेट प्रक्षेपक (Multibarrel Rocket Launcher) का विकास किया गया है। हांलाकि इस परियोजना को 1980 के दशक में ही विकसित किया गया था लेकिन निकट भविष्य में इसके राष्ट्र को समर्पित किये जाने की संभावना है। 12 ठोस प्रणोदक वाले रॉकेटों के प्रमोचन वाले रॉकेटों के प्रमोचन का कार्य इस चलित प्रणाली दव्ारा किया जा सकता है। इसका विकास शस्त्रीकरण अनुसंधान एवं विकास संस्थापन (Armament Research and Development Establishment) दव्ारा किया गया है। इस प्रणाली में पांच मिनट के अंतराल पर रॉकेटों का प्रक्षेपण किया जा सकता है।