Science & Technology: Gene Mapping of Potato and Detailed Statement of Wetlands

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अद्यतन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Latest Development in Science & Technology)

आलू का जीनोम मानचित्रण (Gene Mapping of Potato)

संपूर्ण विश्व में आलू का उत्पादन के संदर्भ में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है। संपूर्ण विश्व में आलू के कुल उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत भाग भारत में ही उत्पादित होता है। जुलाई, 2011 में विश्व के 1 देशों के वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ‘पोटैटो जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टियम’ (PGMC: Potato Genome Sequencing Consortium) ने पहली बार आलू का संपूर्ण डीएनए अनुक्रम तैयार करने में सफता प्राप्त की है। इस शोध के फलस्वरूप वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि आलू का आनुवांशिक कोड जटिल होता है तथा इसमें लगभग 39000 प्रोटीन कोडिंग जीन होते हैंं इन जीनों में से वैज्ञानिकों ने आलू में उपस्थित 800 से अधिक रोग प्रतिरोध जीनों की पहचान की है। आलू का जीनोम अनुक्रम तैयार कर लेने के बाद अब यह पता चल सकेगा कि आलू की वृद्धि और रोगाणुओं से रक्षा के लिए कौन से जीन जिम्मेदार हैं। इसके फलस्वरूप अब आलू की ऐसी किस्में तैयार की जा सकेंगी जो पौष्टिक हों और जिन पर कीटों, बीमारियों का असर न हो। उल्लेखनीय है कि आलू का जीनोम ‘टेट्राफ्लायड’ होता है अर्थात इसकी प्रत्येक कोशिका में प्रत्येक गुणसूत्र की चार प्रतिलिपियां उपस्थित होती हैं। इसी वजह से आलू की परिष्कृत किस्मों का उत्पादन करने में काफी अधिक समय लग जाता है।

देश के आर्द्र प्रदेशों का पहला विस्तृत ब्योरा (Detailed Statement of Wetlands)

‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) दव्ारा उपग्रह चित्रण तकनीकी की सहायता से भारत में पहली बार देश के नमी वाले इलाकों (आर्द क्षेत्रों) का एक विस्तृत ब्योरा तैयार किया गया है। इसरो के अहमदाबाद स्थित ‘अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र’ (SAC: Space Application Centre) दव्ारा तैयार किए गए ब्योरे और एटलस में पारिस्थितिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण और गैर-योजित विकास के कारण खतरे में पड़े क्षेत्रों को चिन्हि किया गया है। अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र ने केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय दव्ारा प्रायोजित ‘राष्ट्रीय आर्द्र भूमि तालिका एवं आकलन परियोजना’ (NWIA: National Wetland Inventory & Assessment) के तहत यह ब्योरा तैयार किया है। मुख्य भू-भाग तथा दव्ीपीय परिक्षेत्र सहित संपूर्ण देश के आर्द्र प्रदेश के आकलन के पश्चात्‌ तैयार किए गए इस विस्तृत ब्योरे के अनुसार भारत के आर्द्र क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 15,260 मिलियन हेक्टेयर अनुमानित है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 4.63 प्रतिशत है। नदियों के क्षेत्रफल को छोड़कर देश के आर्द्र क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल लगभग 1 करोड़ हेक्टेयर है। देश के भीतरी इलाकों मेें स्थित मुख्य आर्द्र क्षेत्र नदियां, जलाशय, पोखर तथा तालाब हैं जबकि तटीय इलाकों में स्थित मुख्य आर्द्र क्षेत्र अंत: ज्वरीय दलदली जमीन, लैगून तथा क्रीक हैं। देश के सभी आर्द्र क्षेत्र में नदियों का क्षेत्रफल सर्वाधिक है। नदियों दव्ारा घेरा गया कुल क्षेत्र 5.26 मिलियन हैक्टेयर है जो कुल आर्द्र क्षेत्र का 34.46 प्रतिश्त है। जलाशयों का क्षेत्रफल 2.48 मिलियन हेक्टेयर (15.82 प्रतिशत) , पोखरो का 1.31 मिलियन हेक्टेयर (8.6 प्रतिशत) , तालाबों का 0.71 मिलियन हेक्टेयर (4.78 प्रतिशत) , मैग्रोव का 0.47 मिलियन हेक्टेयर (3.09 प्रतिशत) और मूंगे का 0.14 मिलियन हेक्टेयर (0.93 प्रतिशत) है। आर्द्र भूमि के राज्यवार वितरण के अनुसार भारत में लक्षदव्ीप में सबसे अधिक (17.56 प्रतिशत) का स्थान है। पुडुचेरी (12.88 प्रतिशत) , पश्चिम बंगाल (12.48 प्रतिशत) , असोम (9.74 प्रतिशत) , तमिलनाडु (6.92 प्रतिशत) , गोवा (5.76 प्रतिशत) , आंध्र प्रदेश (5.26 प्रतिशत) तथा उत्तर प्रदेश (5.16 प्रतिशत) आर्द्र भूमि से समृद्ध राज्य है। मिजोरम में सबसे कम 0.66 प्रतिशत क्षेत्र आर्द्र भूमि है।

स्टीरियो डिजिटल एरियल फोटोग्राफी (Stereo Digital Aerial Photography)

(SDAP: Stereo Digital Aerial Photography)

देश के तटीय क्षेत्रों के जोखिम भरे इलाकों का मानचित्र तैयार करने के पहले कदम के रूप में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने स्टीरियो डिजिटल एरियल फोटोग्राफी (SDAP) प्रक्रिया जुलाई, 2011 में प्रारंभ हुई। एसडीएपी के लिए देश की मुख्य तटीय रेखा को आठ खंडो में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार हैं:

  • भारत -पाकिस्तान सीमा से गुजरात में सोमनाथ तक।
  • सोमनाथ से महाराष्ट्र में उलहास नदी तक।
  • उलहास नदी से कर्नाटक में शरावती नदी तक।
  • शरावती नदी से तमिलनाडु में केप कोमोरिन तक।
  • केप कोमोरिन से तमिलनाडु में पोन्नीयर नदी तक।
  • पोन्नीयर नदी से आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी तक।
  • कृष्णा नदी से ओडिशा में छतरपुर तक।
  • छतरपुर से पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा तक।

इन क्षेत्रों के आंकड़े एकत्र कर उनके माध्यम से पिछले 40 वर्षों की बाढ़ सीमा की पहचान और उसी अवधि में समुद्र तल में उभार और उसके प्रभाव के आकंड़े जुटाए जाएंगे। इन आंकड़ों के आधार पर अगले 100 वर्षों के दौरान होने वाले भू-क्षरणों का अनुमान लगाया जाएगा। तटीय जोखिम रेखा मानचित्र का कार्य विश्व बैंक समर्थित ‘समेकित क्षेत्र प्रबंधन परियोजना’ के अंतर्गत किया जाएगा। संपूर्ण तटीय मानचित्रण में 125 करोड़ का खर्च अनुमानित है जबकि एसडीएपी प्रक्रिया की लागत 27 करोड़ आंकी गई है। स्टीरियो डिजिटल एरियल फोटोग्राफी दव्ारा तटीय क्षेत्रों का मानचित्रण लगभग 15 महीनों में पूरा किया जाना लक्षित है।

ग्रीन नेशनल अकाउंटिंग सिस्टम (National Green Accounting System)

मई, 2011 में भारत सरकार दव्ारा की गई घोषणा के अनुसार आर्थिक वृद्धि एवं विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के आकलन हेतु हाल ही में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया। योजना आयोग तथा केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के संयुक्त उपक्रम में गठित इस उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विख्यात अर्थशास्त्री पार्थ दासगुप्ता हैं। इस पैनल में योजना आयोग के सदस्य किरीट पारिख, विजय केलकर तथा निति देसाई जैसे अर्थशास्त्री भी सम्मिलित हैं। यह विशेषज्ञ समूह ‘हरित राष्ट्रीय लेखा प्रणाली’ के लिए एक खाका उपलब्ध कराएगा। जिसके तहत वर्ष 2015 तक आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया जा सकेगा। पर्यावरणीय मूल्यों पर गौर करने के बाद यह विशेषज्ञ समूह वर्ष 2015 तक ‘कसल घरेलू उत्पाद’ (GDP) का विवरण प्रस्तुत करेगा।

एमआई-17 वी 5 (Mi-17 Vs)

रूस से खरीदे गए अत्याधुनिक सशस्त्र हेलिकॉप्टरों को 17 फरवरी, 2012 को भारतीय वायु सेना के बेड़े में शामिल कर लिया गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में भारत ने अत्यधिक ऊंचाई पर सैनिकों और विभिन्न सामानों को पहुंचाने, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत मिशनों तथा परिवहन अभियानों के लिए वायु सेना के हेलिकॉप्टर बेड़े को मजबूत करने हेतु रूस के साथ 80 एमआई-17वी 5 हेलिकॉप्टरों के क्रय का सौदा किया था। रूस दव्ारा भारत को अभी तक 21 एमआई-17 वी 5 हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति की जा चुकी है जबकि शेष हेलिकॉप्टर वर्ष 2014 के प्रारंभ तक भारत को सौंप दिए जाएंगे। इन हेलिकॉप्टर की पहली तीन इकाइयां भटिंडा (पंजाब) , श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर) तथा बागडोगरा (पश्चिम बंगाल) में तैनात की जाएगी। अत्याधुनिक वैमानिकी एवं नैविगेशन प्रणालियों से लैस यह हेलिकॉप्टर एमआई-17वी 5 हेलिकॉप्टरों का उन्नत संस्करण है।

आईएनएस कृष्णा (INS Krishna)

वर्ष 1995 से भारतीय नौसेना की दक्षिणी नौसेनिक कमान स्थिति प्रथम प्रशिक्षण स्कवाइन का एक प्रमुख अंग आईएनएस कृष्णा पोत 17 जनवरी, 2012 को कोच्चि से मुंबई के लिए अपनी अंतिम समुद्री यात्रा पर रवाना हो गया जहां वर्ष के अंत में इसे सेवामुक्त कर दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस पोत को सर्वप्रथम ‘एचएमएस-एंड्रोमेडा’ के नाम से दिसंबर, 1968 में रॉयल नेवी में शामिल किया गया था।

दक्ष (Daksh)

सैन्य प्रयोग हेतु डिजाइन एवं विकसित भारत का पहला स्वदेशी सुदूर प्रचालनीय वाहन ′ (ROV: Remotely Operated Vehicle) ′ दक्ष ′ (Daksh) 19 दिसंबर, 2011 को भारतीय थलसेना को सौंप दिया गया। ′ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ′ (DRDO) से संबद्ध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (इंजीनियर्स) के पुणे के दीघी स्थित परिसर में पाचं दक्ष रोबोटों की पहली खेप थलसेना को सौंपी गई। उल्लेखनीय है कि ′ आरएंडडीई (ई) ′ दव्ारा विकसित ′ दक्ष ′ रोबोट का प्रथम प्रोटोटाइप मई, 2005 में बनकर तैयार हो गया था तथा थलसेना दव्ारा वर्ष 2006 में वर्ष 2008 तक गहन परीक्षण करने के उपरांत मार्च, 2009 में इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन को स्वीकृति प्रदान की गई थी। थलसेना दव्ारा आरएंडडीई (ई) को 20 दक्ष रोबोटों हेतु आर्डर प्रेषित किया गया था। संभावना है कि दक्ष रोबोट की शेष 15 इकाइयां थलसेना को वर्ष 2012 के मध्य तक प्राप्त हो जाएंगी। बड़े पैमाने पर दक्ष रोबोट का उत्पादन सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्यमों की सयुंक्त भागीदारी में किया जाएगा। दक्ष रोबोट ′ तात्कालिक विस्फोटक युक्तियों ′ (IEDs: Improvised Explosive Devices) समेत अन्य खतरनाक विस्फोटकों का पता लगाकर उन्हें नाकाम करने में सेना की मदद के लिए प्रयुक्त किया जाएगा। दक्ष रोबोट भारीत थलसेना की बम निरोधक इकाइयों के लिए एक बहुमूल्य संसाधन साबित होगा जिसका प्रयोग आतंकवाद निरोधक कार्रवाइयों में भी किया जा सकेगा। बमों को निष्क्रिय करने के लिए यह रोबोट उच्च-दबाव वाले ′ वाटर-जेट ′ (Water-jet) का प्रयोग करता है। दक्ष रोबोट को भारतीय तथा डीआरडीओ आवश्यकतानुरूप सुधार कर इसका उन्नत संस्करण ′ दक्ष एमके-आई ′ (Daksh MK-I) विकसित करेगा।

‘शिवालिक’ ग्रेनेड (Shivalic Grenade)

भारतीय थलसेना में शीघ्र ही पुराने हैंड ग्रेनेड के स्थान पर अत्याधुनिक मल्टी -मोड ग्रेनेड (MMG) को शामिल किया जाएगा जिससे सेना की मारक क्षमता में वृद्धि होगी। इस अत्याधुनिक ग्रेनेड को चंडीगढ़ के निकट शिवालिक पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित डीआरडीओ की ‘टर्मिनल प्रक्षेपिकी अनुसंधान प्रयोगशाला’ (TBRL: Terminal Research Laboratory) दव्ारा विकसित किए जाने के कारण ‘शिवालिक’ नाम दिया गया है। ‘शिवालिक’ ग्रेनेड की विशेषता यह है कि ये तब तक विस्फोटित नहीं होते जब तब कि इनकी सेफ्टी पिन निकाल न ली जाए। जबकि वर्तमान में प्रयोग में लाए जा रहे पुराने M-36 हैंड ग्रेनेड दुर्घटनावश कभी भी फट जाते हैं। इन अत्याधुनिक मल्टी-मोड ग्रेनेडों का निर्माण मध्यप्रदेश के जबलपुर में स्थित खमरिया आर्डनेंस फैक्टरी में किया जाएगा।