Science and Technology: Technologies of Biotechnology and Human Genome Project

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जैव प्रौद्योगिकी की तकनीकें (Technologies of Biotechnology)

मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project)

  • मानव जीनोम परियोजना की औचपारिक शुरूआत अक्टूबर, 1990 में अमरीकी ऊर्जा विभाग (United States Department of Energy) तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (U. S. National Insitutes of Health) के दव्ारा हुई। इस परियोजना के प्रारंभ होने के समय इसके पूर्ण होने की संभावित अवधि 15 वर्ष रखी गयी थी, लेकिन यह दो वर्ष पूर्व 2003 में ही पूर्ण हो गई।
  • इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक कोशिका के गुण सूत्र में मौजूद डी. एन. ए. के क्षार अनुक्रमों का पता लगाना था। इससे डी. एन. ए. की संरचना, संगठन तथा प्रकार्य को आसानी से समझा जा सकेगा जिसका उपयोग बुढ़ापे पर अंकुश लगाने, मनचाहे गुणों वाले बच्चे को जन्म देने, शिशु के जन्म से पूर्व ही उसे जीन दोष से होने वाले रोगों से मुक्त करने, जैविक अंत: क्रिया के स्वरूपों और उद्विकास का क्रमबद्ध विश्लेषण करने, तुलनात्मक जैविक अध्ययन करने, रोग पहचान की क्षमता में सुधार करने और जीन संबंधित बीमारियों की अतिशीघ्र पहचान करने आदि में हो सकेगा। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इस अनुसंधान दव्ारा एकत्र सूचना और विकसित तकनीक से जीव विज्ञान में क्रांति आने की संभावना है।

मानव जीनोम (Human Genome)

मानव जीनोम डी. एन. ए. से बना होता है। डी. एन. ए. चार प्रकार के होते है जो, रासायनिक क्षारों एडीनीन (A) , थाइमीन (T) , साइटोसिन (C) तथा गुआनन (G) से मिलकर बना होता है। मानव जीनोम में ये क्षार युग्म में होते हैं। जीनोम में इन क्षारों का एक विशेष क्रम में होना आवश्यक होता है, जो विविधता का निर्धारण करता है।

क्लोनिंग (Cloning)

  • प्रजनन में नर एवं मादा की जननिक कोशिकाएँ (Reproductive Cells) भाग लेती हैं। जब नर (पिता) एवं मादा (माता) की दो अर्द्धसूत्री जननिक कोशिकाएँ परस्पर संयोजित होती हैं तो उनके मेल से बनी नवीन कोशिका में पूरे 46 गुणसूत्र विद्यमान होते हैं। यही प्रक्रिया निषेचन कहलाती है तथा इससे बनने वाली रचना को युग्मनज (Zygot) कहते हैं। यही युग्मनज गर्भ के दौरान विभाजित एवं विकसित होकर अंतत: एक नए जीव के रूप में जन्म लेता है। इस प्रकार एक कोशिका से शुरू होकर अरबो कोशिकाओं वाले मानव शरीर का निर्माण होता है। इससे एक बात उभर कर सामने आती है कि प्रत्येक कोशिका में जीव निर्माण हेतु समस्त सूचनाएँ विद्यमान होती हैं। यहाँ पर एक अन्य प्रश्न स्वाभाविक रूप से उभकर आता है कि जब प्रत्येक कोशिका में एक ही तरह के गुणसूत्र विद्यमान होते हैं तो प्रजनन के लिए जननिक कोशिकाओं की ही आवश्यकता क्यों हाती है? क्या शरीर में मौजूद प्रत्येक कोशिका से जीव का निर्माण किया जा सकता है? और इसी प्रयास के परिणामस्वरूप क्लोनिंग तकनीक का विकास हुआ।
  • किसी भी जीव का प्रतिरूप तैयार करना ही ‘क्लोनिंग’ कहलाता है। वस्तुत: एक ऐसी जैविक रचना है जो गैर-लैंगिक प्रक्रम का उत्पाद है। क्लोनिंग के लिए सामान्यत: नाभिकीय स्थानांतरण तकनीक प्रयोग में लायी जाती है, जिसके अंतर्गत कोशिका के नाभिक को निकाला जाता है एवं इसका प्रतिस्थापन नाभिक रहित अंडाणु में कर दिया जाता है। निषेचन क्रिया प्रारंभ करने के लिए विद्युत तरंगे प्रवाहित की जाती हैं एवं इस प्रक्रिया के उपरांत विकसित अंडाणु को मादा के गर्भ में आरोपित कर ‘क्लोन’ प्राप्त किया जाता है।

क्लोनिंग के प्रकार (Types of Cloning)

  • रीकॉम्बिनेंट क्लोनिंग- इसे डी. एन. ए. क्लोनिंग या जीन क्लोनिंग के नािम से भी जाना जाता है। इस तकनीक में गैर-लैंगिक विधि दव्ारा एकल जनक से नया जीव तैयार किया जाता है। इसमें शारीरिक एवं आनुवांशिक रूप से क्लोन जीव पूर्ण रूप से अपने जनक के समान होता है। इसके तहत नाभिकीय अंतरण विधि का प्रयोग किया जाता है, जिसमें कोशिका के नाभिक को यांत्रिक विधि से निकाल कर नाभिक रहित अंडाणु में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। इसके बाद उस निषेचन पर हल्की विद्युत तरंगों को प्रवाहित कर क्रिया करायी जाती है, जिसके उपरांत कोशिका का तीव्र विभाजन शुरू हो जाता है। इस प्रक्रिया के बाद पूर्ण विकसित अंडाणु को प्रतिनियुक्त मां (सरोगेट मदर) के गर्भ में आरोपित कर दिया जाता है। इसके साथ ही गर्भाधान, बच्चे का विकास तथा उसका जन्म होता है।
  • पुनर्जनन क्लोनिंग- पुनर्जनन क्लोनिंग वह तकनीक है जिसके दव्ारा तैयार जानवरों के क्लोन में वही नाभिकीय डी. एन. ए. होता है, जो वर्तमान या पूर्व में रह रहे उसी प्रकार के पशुओं में उपस्थित होता है। ‘डॉली’ नामक क्लोन भेड़ का जन्म इसी तकनीक से हुआ था।
  • थेराप्यूटिक क्लोनिंग- थेराप्यूटिक क्लोनिंग को भ्रूण क्लोनिंग के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत क्षतिग्रस्त ऊतकों या अंगो (Organs) को स्थानांतरित करने या उनमें सुधार करने के लिए भ्रूणीय (Embryonic) स्तंभ कोशिकाओं का उत्पादन किया जाता है। इसके लिए किसी युग्मित नाभिक को शरीर की एक कोशिका से नाभिक रहित अंडाणु में स्थानांतरित किया जाता है। इस विधि से मानवीय अनुसंधान हेतु मानव भ्रूण तैयार किया जाता है। भ्रूण के तैयार होने की आरंभिक अवस्था (ब्लास्टोसिष्ट) में उससे स्टेम सेल को अलग कर लिया जाता है। बाद में इस सेल से आवश्यक मानवीय कोशिकाओं का विकास किया जाता है।

क्लोनिंग से लाभ (Advantages of Cloning)

  • इससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगो, जैसे- हृदय, यकृत, किड़नी एवं हड्‌िडयों आदि का निर्माण संभव हो सकेगा, जिसे मरीजों में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा। शल्य चिकित्सा प्रणाली के लिए यह वरदान साबित होगी।
  • कैंसर जैसी घातक बीमारियों पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
  • दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र और मेरूदंड को पुन: विकसित किया जा सकेगा।
  • विलुप्तप्राय पशु-पक्षियों का क्लोन तैयार कर उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा।
  • इस विधि के दव्ारा नि: संतान दंपत्ति की गोद भरी जा सकेगी।
  • इस तकनीक से वृद्धावस्था से युवावस्था की ओर लौटना संभव हो सकता है।

क्लोनिंग से नुकसान (Disadvantages of Cloning)

  • इसके दव्ारा अपराध बढ़ने की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि इस तकनीक से अपराधियों का क्लोन तैयार किया जा सकता है।
  • संतान की इच्छा रखने वाले निर्धन दंपत्ति के लिए यह एक दिवा स्वप्न होगा, क्योंकि यह एक महँगी तकनीक है।
  • क्लोनिंग से बड़े पैमाने पर भ्रूण हत्या होगी क्योंकि इसमें सफलता का प्रतिशत बहुत कम है।
  • एक नैतिक प्रश्न खड़ा होगा कि माता-पिता और उनके क्लोन संतान के बीच क्या रिश्ता हैं?
  • मनुष्य न केवल जैविक बल्कि सामाजिक प्राणी भी है, जिसका क्लोनिंग में कोई स्थान नहीं है। इससे सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों के समाप्त होने का खतरा है।
  • क्लोनिंग से पुरूष-महिला के बीच रिश्ते बदल सकते हैं, क्योंकि एक महिला का क्लोन तो तैयार किया जा सकता है लेकिन किसी पुरूष का क्लोन किसी महिला की सहायता के बिना तैयार नहीं किया जा सकता।

मानव क्लोनिंग से संबंद्ध नैतिकता के मुद्दे (Ethical Issues Related with Human Cloning)

  • हाल के वर्षों में मानव क्लोनिंग से संबंद्ध नैतिकता के मुद्दे एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में उभरे हैं। अनेक लोग मानते हैं कि इस क्लोनों की विशेषता और व्यक्तित्व क्लोन किए गए व्यक्ति के समान होंगे। क्लोन और क्लोन किए गए व्यक्ति के एक समान जीन होने के बाद भी उनके लक्षण और व्यक्तियों में भिन्नता होती है। लोक मंतव्य है कि एक क्लोन शारीरिक और व्यावहारिक तौर पर दाता के समरूप होता है लेकिन यह सत्य नहीं है। वस्तुत: शारीरिक समरूपता होने के बावजूद किसी व्यक्ति के व्यवहार और मनोविज्ञान को प्रभावित करने में वातावरण की मुख्य भूमिका होती है।
  • कुछ लोगों का विश्वास है कि क्लोनिंग के जरिये अचानक से वैयक्तिकता की हानि होने लगेगी। एक वैज्ञानिक का मत है कि यदि अन्य विधियों से शोध का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता है तो इसके लिए भ्रूण का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि विगत कुछ वर्षों से मानव क्लोनिंग का वैधकरण वैश्विक विवाद के केन्द्र में है। इस विवाद में वैज्ञानिक राजनेता, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक सभी सम्मिलित हैं। कुछ संस्थाएँ यह चिंता जता रहीं हैं कि बिना लोगों को बताए या उनकी सहमति के ही उनके क्लोन का प्रजनन कराया जा सकता है।
  • पुन: क्लोन की सामाजिक अवस्थिति को लेकर भी प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। स्पेन, इटली, फिलीपीन्स, अमेरिका, कोस्टाकाि और ‘द होली लैड’ के एक गठबंधन ने मानव क्लोनिंग के सभी रूपों से संबंद्ध विवादों को सामने रखा है। इनके मतानुसार थेराप्यूटिक क्लोनिंग मानव सम्मान को नजरअंदाज करता है। कोस्टारिका ने जहाँ क्लोनिंग के किसी भी प्रकार से मुकाबला करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की बात कही हैं, वहीं ऑस्ट्रेलिया ने दिसंबर, 2006 में मानव क्लोनिंग पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। हालाँकि कहीं-कहीं थेराप्यूटिक क्लोनिंग को अनुमति मिली हुई है।
  • यह भी मत सामने आया है कि भ्रूण का उपयोग उनके विकसित होने के पहले ही प्रारंभिक अवस्था में किया जाना चाहिए। सभी शोध कार्यक्रमों की निगरानी संबंद्ध सरकारी संगठनों दव्ारा होनी चाहिए। साथ ही शोध से संबंद्ध जानकारी देने के लिए एक स्थायी लोक सूचना संस्था होनी चाहिए।