नोटबंदी फैसला का परिणाम 2017 (Results of Note-Taking Decision 2017 - In Hindi)

प्रस्तावना:- बड़े जोर शोर से लाई गई थी नोटबंदी। 50 दिन का समय मांगा गया था। कोलधन, आतंकवाद और जाली करेंसी (मुद्रा) पर नकेल कसने का बड़ा वादा था। लोगों ने भी समर्थन दिया। कालेधन के विरुद्ध आह्यन पर देश बैंको (अधिकोष) के बाहर कतारों में खड़ा रहा। लेकिन आशा के विपरीत आंकड़े आए हैं। यानी कतरों में मिला शेष। दूसरे शब्दों में, ब्लैकमनी (कालाधन) बताई गई राशि बैंकिंग (महाजनी) सिस्टम (प्रबंध) में आ गई। नोटबंदी से पूर्व चलन में रहे 1000 और 500 के लगभग 99 फीसदी नोट बैंको (अधिकोष) में वापस आ गए। ऐसे में कालेधन पर वार का क्या हुआ? सरकार ने फिर दीर्घाअवधि में फायदे की बात कही है। आखिर नोटबंदी से देश को क्या मिला? नोटबंदी को क्या विफल कहा जा सकता है। प्रस्तुत है नोटबंदी के आंकड़ों से उपजे हालात पर विस्तृत विवेचना।

Results of Demonetisation
Impact of Demonetisation Shell Companies

उद्देश्य:-नोटबंदी जब लागू हुई तो इसे लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इसके लागू करने में कमियां हो सकती है पर हमारी नियत सही है। पहले नोटबंदी से कालाधन और जाली नोटों के खात्में की बात की गई। बाद में इससे कैशलैंस की बात आई। नोटबंदी का जो उद्देश्य था उसके प्राप्त करने में वह पूरी तरह से विफल रही। इसका अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा। इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर तीन साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई। नोटबंदी से रोजगार कम हुए। आईटी सेक्टर में कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। निजी क्षेत्र से होने वाला निवेश बहुत कम हो गया है। अब जो भी निवेश हो गया है। वो सरकार कर रही है। जब तक निजी क्षेत्र का निवेश नहीं होगा तब तक ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा नहीं हो पाएंगे। कच्चे तेल की कीमत कम होने और मुद्रास्फीति घटने के बाद भी अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर नहीं हुई इसका कारण नोटबंदी है। इसका असर मजदूर, किसान, महिला और बुजुर्गों पर सबसे अधिक पड़ा। सरकार की तरफ से कहा गया कि गरीबों को तकलीफ हो रही है, लेकिन बैंको की लाइन (रेखा) में अमीर और मध्य वर्ग के लोग भी हैं सवाल है कितने अमीर लाइन में लगे? सरकार दावा कर रही है कि कालाधन कम हुआ है, जाली नोट खत्म हो गए हैं, आरबीआई के आंकड़े इसके विपरीत हैं। बार-बार झूठ को दोहरानें से वह सच नहीं बन जाता है। सरकार की तरफ से यह भी दावा किया जा रहा कि इससे करदाताओं की संख्या बढ़ी है और बैंक में जमा हुए रुपयों पर नजर रखी जा रही है। तो क्या इसके लिए नोटबंदी जरूरी थी? यह कार्य तो नोटबंदी के बिना भी पूरा किया जा सकता था।

परंजॉय गुहा ठाकुरता, आर्थि विश्लेषक

दावा और हकीकत:- नोटबंदी को लागू करने के समय सरकार की ओर से बदलाव के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। लोगों ने भी व्यापक स्तर पर इसका समर्थन किया था। लेकिन आरबीआई के आंकड़ों ने हकीकत की कुछ और ही तस्वीर पेश की है-

  • कालेधन पर वार, ये था दावा- नोटबंदी से साढ़े 3 लाख करोड़ रुपए का कालाधन वापस नहीं लौटेगा।

हकीकत-ब्लैकमनी की गणना का अनुमान गलत 8 नवंबर, 2016 से पहले 1000 और 500 के 15.44 लाख करोड़ के नोट चलन में थे, 30 जून, 2017 तक 15.28 लाख करोड़ के नोट बैंको में लौट गए। चलन में रहे पुराने नोटों में से 1 फीसदी नहीं लौटे।

  • जाली नोट पर चोट, ये था दावा-पड़ोसी देश द्वारा अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए जाली नोटों की सप्लाई (आपूर्ति) ।

हकीकत-नोटबंदी की धरपकड़ में खास नतीजे नहीं-वैसे तो ये साबित है कि पड़ोसी देश जाली नोटों की सप्लाई करता है, पर नोटबंदी के दौरान मात्र 7.6 लाख नकली नोट पकड़े गए। जबकि नोटबंदी से पहले के वर्ष में 6.3 लाख के जाली नोट पकड़े गए।

  • आतंक का अंत, ये था दावा-कश्मीर और पूर्वोत्तर में टेरर (आतंक) फंडिंग (वित्त पोषण) में हवाला और ब्लैक मनी का इस्तेमाल।

हकीकत- कुछ समय खामोशी फिर जस के तस-कश्मीर में नोटबंदी के शुरुआती दिनों में घाटी और पूर्वोत्तर के राज्यों में आतंकी घटनाओं पर विराम लगा। पत्थरबाजी की घटनाएं भी कम हुई, लेकिन फरवरी के बाद हालात फिर जस के तस।

व्यापाक असर:-

  • कृषि- नोटबंदी के लागू होने के समय सर्दियों की बुवाई चल रही थी जिससे किसानों को खाद-बीज खरीदने के लिए नकदी की किल्लत से जूझना पड़ा। बेहतर मानसून से कृषि क्षेत्र में अच्छे प्रदर्शन की आशा थी लेकिन पहली तिमाही में सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 2.3 फीसदी रहा जो गत वर्ष समान तिमाही में 2.5 फीसदी था।
  • रोजगार- नोटबंदी से असंगठित क्षेत्र पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा। इस क्षेत्र से जुड़े लाखों लोग एक झटके में बेराजगार हो गए। शहर में कार्यरत मजदूरों को वापस गांव की तरफ पलायन करना पड़ा। बहुत से छोटे उद्योग बंद हो गए। रोजगार देने में अव्वल रहा असंगठित अभी भी नोटबंदी के झटके से नहीं उबर पाया।
  • विनिर्माण-विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर अपने न्यूनतम स्तर पर आ गई। केन्द्रीस सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार विनिर्माण क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 1.2 फीसदी रहा जो एक साल पहले समान तिमाही में 10.7 फीसदी था। विनिर्माण (जीवीए) का 74 फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र से आता है। जिसका प्रदर्शन खराब रहा। ऐसे प्रदर्शन एक कारण जीएसटी भी है।

विचार:- रिजर्व (आरक्षित) बैंक (अधिकोष) की घोषणनुसार 15.44 लाख करोड़ 500 व 1000 के नोट वापस आए इसका मतलब यह भी समझ मे आता है कि इन नोटो के मध्यम से कितना धन दबा पड़ा था और ये यदि वापस आया तो सरकार के नजर में इसके कारण और कारक दोनो पर काम करने की मंशा साफ दिखती है। वित मंत्री अरुण जेटली ने 30 अगस्त को बताया की आयकर ऑर्थरिटी (अधिकार) द्वारा 17526 करोड़ आय को उजागर किया गया तथा 1003 करोड़ रुपये पकड़े गए और बहुत सारे बैंक खातों में जमा धन पर भी सरकार की कड़ी कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है। यह सरकार की नीयत और नीति को दर्शाता है। इनको समझने के लिए कुछ सकारात्मक कदमों को भी समझना होगा जो की और पहुलाओं को सुलझाने में मदद करते हैंं जैसे नए आयकर रिटर्न (वापस) का ज्यादा दाखिल होना विगत वर्ष 2.22 करोड़ रिटर्न (वापस) दाखिल हुए थे इस साल 5 अगस्त तक 2.79 करोड़ ई रिटर्न व्यक्तिगत तौर पर दाखिल हुए। कुल 57 लाख नए व्यक्तिगत रिटर्न दाखिल हुए आयकर विभाग के अनुसार 25.3 प्रतिशत रिटर्न में वृद्धि हुई थी। नोटबंदी जैसे महत्वपूर्ण कदम के बाद इनसे जुड़े पहलुओं को और गंभीरता से समझने और उन पर काम करने की जरूरत है। जिनसे इनके अच्छे परिणामों के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सके।

संतोष कुमार, सीईओ, आईएसआरए

पास या फिर फेल हुई ये कवायद:- नोटबंदी कहीं केवल नोटबंदली तो नहीं थी। क्योंकि इसे लेकर जो भी दावे किए गए थे उन्हें लेकर नतीजे अब तक सामने नहीं आ पाएं हैं। फिर आखिर इसके क्या पहलु थे? पहलु निम्न हैं-

  • राजनीतिक- नोटबंदी से सबसे बड़ा हित था राजनीतिक। केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार ने इसे देश में बड़ी आर्थिक क्रांति के रूप् में जनता के सामने रखा। भाजपा का दावा हे नोटबंदी के मुद्दे के कारण ही उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में सफलता भी मिली।
  • सामाजिक-लोगों के बीच नोटबंदी के प्रति समर्थन देखा गया। बैंको में पुराने नोट जमा कराने के दौरान कतारों में लगे लोगों ने भी अधिकांश स्थानों पर संयम से काम लिया। सरकार लोगों तक ये संदेश पहुंचाने में सफल रही कि नोटबंदी समाज के हित में है।
  • आर्थिक-आर्थिक तौर पर नोटबंदी के नतीजों को लेकर शुरु से ही परस्पर विरोधाभासी दावों का दौर रहा। हाल में जारी जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार अप्रेल से जून की तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.7 फीसदी रह गई जो कि गत 3 वर्षों की सबसे कम है।
  • सरकार की छवि- दुनिया भर में जिन भी देश में नोटबंदी अथवा विमुद्रीकरण हुआ हैं वहां अत्यधिक मुद्रास्फीति, राजनीतिक अस्थिरता अथवा युद्ध के हालात रहे हैं, लेकिन भारत मेे नोटबंदी के समय ऐसे कोई भी हालात नहीं थे। विदेशों में सरकार की सकरात्मक छवि बनी।

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार पुरानी करेंसी में से केवल 16 हजार करोड़ रुपए बैंको में नहीं लौटे। सरकार ने अगस्त में आंकड़े जारी किए, आखिर नोट गिनने में इतना समय क्यों लगा? ये सवाल अब भी अनुतरित ही है।

विचार:- नोटबंदी के दौरान कैशलैस (नकदरहित) ट्रांजेक्शन (लेन-देन) में बढ़ावा देखा गया। तब पर्याप्त कैश (नकद) नहीं था, लेकिन अब इसमें कमी आ रही है।

अभिषेक धाभाई, कई देशों की इन्फोरमेशन (सूचना) सिक्योरिटी (सुरक्षा) के विशेष सलाहकार,

साइबर टेक्नोलॉजी (तकनीकी) एक्सपर्ट (विशेषज्ञ)

वर्ष 2016 में नोटबंदी ने हमारे देश में बड़े स्तर पर बदलाव किये, जहा नोटबंदी को आतंकवाद की फंडिग (वित्त पोषण) , भ्रष्टाचार, काले धन और नकली नोटों को नष्ट करने का हथियार बताया गया था वहीं बाद में अब देश में कैशलैस (नकदरहित) इकोनॉमी (अर्थशास्त्र) को बढ़ावा देने का जरिया बताया जा रहा है। बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा, इंग्लैंड, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंडस और अमरीका में कैशलैस ट्रांसक्शन 70 फीसदी से ज्यादा है। इन सभी देशों में 70 फीसदी से अधिक जनता के पास डेबिट (उधार) और क्रेडिट (जमा धन) कार्ड (पत्ता) उपलब्ध है। ये सभी विकसित देश हैं। डेबिट-क्रेडिट कार्ड, पॉइंट (बिन्दु) ऑफ (का) सेल (बेचना) , मोबाइल (गतिशील) बैंकिंग (महाजनी) और अन्य प्रकार के डिजिटल (अंकसंबंधी) माध्यम से दिसंबर 2016 में कैशलेस (नकदरहित) डिजिटल (अंकसबंधी) ट्रांजेक्शन (लेनदेन) की संख्या 95 करोड़ थी। ये ट्रांजेक्शन (लेन-देन) जुलाई 2017 तक गिरकर 86 करोड़ रह गई है। इनमें से अधिकतर पेमेंट्‌स (भुगतान) सरकार द्वारा किए जाने वाले ट्रांजेक्शन (लेन-देन) हैं जो आधार को लिंक करके किए गए हैं। इस दौरान सरकार की ओर से डिजिटल (अंगुली संबंधी) लेनदेन के लिए व्यापक प्रचार किया गया।

नोटबंदी के दौरान कैशलैस ट्रांजेक्शन में बढ़ावा देखा गया वजह साफ थी, कैश की उपलब्धता नहीं थी, अब यह कैशलेस ट्रांजेक्शन धीरे धीरे काम होते जा रहे हैं। हमारे देश में लगभग 75 फीसदी साक्षरता दर रेट (कीमत) है, स्मार्ट फोन और मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या जनसंख्या का लगभग 30 फीसदी है, डिजिटल ट्रांजेक्शन पर शुल्क हर ट्रांजेक्शन पर ज्यादा है, जो कैशलैस इकोनॉमी (अर्थशास्त्र) की राह में बड़ा रोड़ा है। ये अच्छी सोच है, समाज में कर चोरी रोकने और भी कई क्राइम (अपराध) रोकने में सहायक है, लेकिन जब तक इसकी तैयारी ना हो इसे थोपा नहीं जा सकता।

कर्निका कोहली, सोशल (सामजिक) मीडिया (संचार माध्यम) एडिटर (संपादक) , द वायर (यह तार) से संबद्ध हैं। सामयिक विषयों, सोशल (सामाजिक) मीडिया (संचार माध्यम) ट्रेंड (प्रवृत्ति) पर लेखन

रिजर्व (आरक्षित) बैंक (अधिकोष) ऑफ (का) इंडिया (भारत) ने जैसे ही नोटबंदी की कवायद के बारे में आंकड़े पेश किए, उनमें ये तथ्य उभर कर सामने आए कि ये काफी कुछ कम ही रहा है। बस फिर क्या था, ट्‌िवटर, व्हाटसएप सहित अन्य डिजिटल (अंक संबंधी) प्लेटफॉर्म (मंच) पर एक ठोस और साझा अभियान शुरू हो गया। ये अभियान थी मोदी के इस प्रयास को बेहद सफल साबित करने का। सोशल (सामाजिक) मीडिया (संचार माध्यम) पर सरकार के इस अधूरी तैयारी के साथ लाए गए अभियान को सही साबित कर समूची बहस को व्यवस्था के अनूकूल साबित करने की कोशिशें शुरू कर दी गई। नोटबंदी के दौरान एक सौ से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। असंगठित क्षेत्र को भारी नुकसान उठाना पड़ा, 15 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा और देश की विकास की गति पर लगभग ब्रेक (अवरोध) लग गया। देखते ही देखते हैशटैग डीमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण) सक्सेस (सफलता) के साथ सैकड़ों ट्‌िवटर हैंडल ने ट्रेंड (प्रवृत्ति) करना शुरू कर दिया। दरअसल, ब्रैंड (छाप) और राजनीतिक दल पीआर एजेंसियों (शाखा) को किराए पर रखती हैं। ये सोशल मीडिया इनफ्लुऐंजर्स (प्रभावित) की सोशल मीडिया में बड़ी फॉलोइंग (निम्नलिखित) होती हैं। इन सोशल मीडिया हैंडलर्स (संचालको) को प्रत्येक ट्‌वीट के लिए रकम दी जाती है।

ये सभी कुछ एक रणनीति के तहत होता है। इसके लिए बड़ी तैयारी के साथ काम किया जाता है। पिछले मीडिया अभियानों से अलग इस बार भाजपा आलाकमान की ओर से बकायदा केबिनेट मंत्रियों को भी उतारा गया। जिससे कि नोटबंदी के नतीजों को अपने पक्ष में साबित किया जा सके। विरोधीभासी तथ्य है कि सरकार को इस बार अपने मंत्रियों तक पर ज्यादा विश्वास नहीं था। केबिनेट मंत्री भी वहीं ट्‌वीट कर रहे थे जो कि वे साधारण पार्टी कार्यकर्ताओं को ट्‌वीट कर रहे थे। यहां तक कि केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी ट्‌वीट में ही जुटा हुआ था। ऐसे में मंत्रालय के ट्‌वीट उन लोगों के पास भी पहुंच रहे थे जिन्होंने कि मोदी एप डाउनलोड किया हुआ था। दिसंबर 2016 में एक न्यूज वेबसाइट ने इस तथ्य को उजागर किया था कि कैसे नोटबंदी के सकरात्मक नतीजों को फैलाने के लिए किस प्रकार पेड (भुगतान किया है) सोशल मीडिया ट्रोल (चक्कर देना) का इस्तेमाल किया गया था। नकरात्मक प्रचार का मुकाबला करने के लिए इनफ्लुऐंजर्स (प्रभावित) को हैशटैग इंडियाडिफीटस (भारत को हरा दिया) ब्लैकमनी (कालाधन) पर ट्‌वीट करने को कहा गया। इसमें नोटबंदी को कश्मीर की समस्या के हल और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। एक आरटीआई के अनुसार केन्द्रीय मंत्रालयों की ओर इन सोशल मीडिया पीआर एजेंसियों को दो करोड़ रुपए तक का भुगतान किया गया। भारत में पिछले वर्षों के दौरान सोशल मीडिया इनफ्लुऐंजर्स को भुगतान देने की परंपरा सामने आई है। ये स्पष्ट दिखता है कि ट्‌वीटर सेना किस प्रकार से काम करती हैं बहरहाल, नोटबंदी के बारे में आरबीआई के आंकड़ों और ट्‌िविटर पर सरकारी प्रचार के नतीजों का लोगों पर प्रभाव अभी देखने वाली बात होगी।

नोटबंदी विफलता:- भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा खुलासे से केन्द्र सरकार की नोटबंदी पर विफलता खुलकर सामने आ गई है। गौरतलब है कि सरकार नोटबंदी के निर्णय को अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताती रही है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बंया कर रहे हैं। नोटबंदी के पीछे इरादा तो अच्छा था लेकिन इसकी बड़ी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़ी। नोटबंदी लागू करने का एक महत्वपूर्ण कारण काले धन को सिस्टम (प्रबंध) में लाना बताया गया था। हैरत की बात है कि काला धन रखने वालों ने अपने काले धन को नोटबंदी के दौरान येन-केन प्रकारण समायोजित कर लिया। हालांकि काले धन की मात्रा का कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है। काले धन के बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है कि कितना काला धन बाहर है, नोटबंदी की समीक्षा में यह सामने आया है कि बाजार में चलन में रहे पांच सौ और एक हजार के 99 प्रतिशत नोट रिजर्व बैंक में जमा हो चुके है। साफ है कि नोटबंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग हुए जिनका न तो कोई बैंक (अधिकोष) खाता था और न ही उनके पास नकदी जमा करने का अन्य कोई साधन। इसमें सबसे ज्यादा तकलीफों का सामना दैनिक मजदूरी कर पेट भरने वाले श्रमिकों को करना पड़ा। एक तो उन्हें अपने काम-धंधे छोड़कर बैंको की लंबी-लंबी लाइनों (रेखा) में लगना पड़ा, वहीं दूसरी और इस दौरान बाजार में नकदी की कमी से उनके रोजगार भी छिन गए। दिनोदिन जरूरतों के लिए भी छुट्‌टे रुपयों की कमी का सामना करना पड़ा। छोटे कारोबारियों को तो आज तक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। रहा सवाल सरकार के इस दावे का कि नोटबंदी से करदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इस बारे में आजकल हर वित्त्यीी लेन-देन में पारदर्शिता आ गई है।

साथ ही डिजिटलाइजेशन (डिजिटिकरण) के दौर में वित्तीय लेन-देन के पुराने तरीके चलन से बाहर होते जा रहे हैं। वहीं हर बड़े लेन-देन में पेनकार्ड (स्थायी खाता संख्या, पत्ता) की अनिवार्यता ने भी करदाताओं की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार के गुडस (अच्छा) एंड (और) सर्विसेज टैक्स (सेवा कर) (जीएसटी) लागू करने के फैसले ने भी कई छोटे और मध्यम व्यापारियों को कर सीमा के दायरे में ला दिया है। सिर्फ नोटबंदी को श्रेय देना ठीक नहीं होगा।

प्रो. वी. एस. व्यास, पदमभूषण से सम्मानित व्यास प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के साथ आरबीआई के केन्द्रीय बोर्ड (परिषद) में सदस्य रहे हैं।

इससे इनकार नहीं है कि 8 नवंबर 2016 से देश में लागू हुई नोटबंदी के फैसले ने आम जनता को कतारों में खड़े रहने को मजबूर किया। उन्हें सीमित समय के लिए परेशानी भी हुई। यह सारी कवायद कालेधन, आतंकवाद और नकली नोटों पर लगाम कसने के उद्देश्य से की गई थी। अब रिजर्व (आरक्षित) बैंक (अधिकोष) के पास 500 और 1000 के 98.96 फीसदी नोट वापस आ गए है। ऐसे में सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या बाजार में 1.04 फीसदी ही कालाधान था, क्या इसके लिए इतनी बड़ी कवायद की गई? आम आदमी को यूंही परेशान किया गया? जो लोग सरकार के नोटबंदी के फैसले को अब गलत बता रहे हैं, क्या वे ही पूर्व में कहा नहीं करते थे कि देश में बहुत बड़ी सामानांतर अर्थव्यवस्था भी है। 1.04 फीसदी उन नोटों की जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यही कालाधन था। इतने नोट तो लंबे समय में खुद ब खुद चलन से बाहर हो जाते हैं क्योंकि ये नोट एक समय के बाद खराब या बर्बाद भी हो जाते है। जहां तक कालेधान की बात है तो बता दे कि नोटबंदी के बाद देश में 57 लाख आयकर दाताओं की संख्या बढ़ी है। यही नहीं आयकर राजस्व में तो करीब 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी भी दर्ज की गई है। जरा सोचें कि ये किस ओर संकेत कर रहे हैं।

हकीकत में समानांतर अर्थव्यवस्था में लगे धन ने सही राह पकड़ी है और इससे देश नियमित अर्थव्यवस्था में आया है। कहा जा रहा है कि नोटबंदी के कारण ही इस बार सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर में भी गिरावट आई है। लेकिन, ऐसा गुडस एंड सर्विसेज टैक्स के प्रभाव के कारण अधिक है। धीरे-धीरे इन कर सुधारों का तात्कालिक असर कम होगा तो जीडीपी में भी सुधार होगा। एक महत्वपूर्ण बात यह भी कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर (राज्यपाल) यह कहते-कहते थक गए थे कि रिजर्व बैंक द्वारा उधारी दर घटाने के बावजूद वाणिज्यिक बैंक अपनी दरें नहीं घटाते हैं लेकिन, नोटबंदी के बाद जनवरी 2017 से वाणिज्यिक बैंको को पास नकदी की मात्रा बढ़ गई और उन्होंने स्वयं ही उधारी दरें कम करना शुरू कर दिया। इस स्थिति का लाभ-दीर्घकाल में देश को मिलने ही वाला है। जीडीपी दर में नोटबंदी के तत्काल बाद उछाल देख गया था और उसे अल्पकालिक ही मानना चाहिए। नोटबंदी का असर दीर्घकालिक है। अगले आम बजट से पहले आर्थिक सर्वेक्षण में प्रत्यक्ष करों के साथ अप्रत्यक्ष करों का संकलन भी बढ़ा हुआ दिखाई देगा क्योंकि समानांतर अर्थव्यवस्था में लगा धन नियमित अर्थव्यवस्था में दिखाई दे रहा है। यह धन देश की कल्याणकारी योजनाओं के आकार में बढ़ोतरी कराने वाला है।

डॉ. अश्विनी महाजन, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन

उपसंहार:- नोटबंदी का फैसला सरकार का बहुत ही अतार्किक फैसला था। इससे न केवल ईमानदारी से जीवन जी रहे आम आदमी पर असर पड़ा वरन इसने देश की अर्थव्यवस्था को भी काफी पीछे धकेल दिया। नोटबंदी के दीर्घावधि असर के चलते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर 7 प्रतिशत से घटकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है। निश्चित रूप से किसी भी सूरत में नहीं कहा जा सकता कि आर्थिक रूप से नोटबंदी सफल रही।

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