अमरिका और उ. कोरिया (America and North Korea - In Hindi)

प्रस्तावना:- परमाणु हथियारों के सफल परीक्षणों के बाद से उ. कोरिया अमरीका के खिलाफ आग उगलता रहा है। लेकिन, अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में सयुंक्त राष्ट्र की महासभा में दिए अपने पहले भाषण से इस आग को और हवा ही दी। इसके बाद शुरू हुई दोनों नेताओं की तू तू- मैं मैं, क्या यह विश्व को तीसरे युद्ध की ओर धकेल सकती है … ?

विश्व युद्ध- विश्व में सार्वजनिक विवादों की जुबानी जंग का स्तर शायद पहले कभी इतना नहीं गिरा होगा जितना कि पिछले सप्ताह अमरीका के राष्ट्रपति और उ. कोरिया के किंग जुंग-उन के बीच हुई नोक-झोंक में नजर आता है। लगता है कि जैसे विश्व एक तीसरे विश्वयुद्ध की ओर फिसल सकता है। इस दव्ंदव् का नया अध्याय बीते सप्ताह से शुरू होता है जब अमरीका राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में अपना भाषण देते हुए उ. कोरिया के नेता को न केवल अदना रॉकेटवाला बताया बल्कि उ. कोरिया को पूरी तरह से विध्वंस करने की धमकी भी दे डाली। ऐसा माना जाता है कि ट्रंप के सलाहकाराेें ने उनको किंग -उन पर व्यक्तिगत लांछन लगाने से बचने को कहा था लेकिन वे अपने प्रतिदव्ंदव्यों को हास्यास्पद उपमाओं से संबोधित करने के लिए प्रसिद्ध हैं। और वे, संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह खास मौका चूकना नहीं चाहते थे। इसलिए अपने सलाहकारों की सलाह को नकराते हुए वे न केवल उ. कोरिया बल्कि ईरान और वेनेजुएला पर भी जमकर बरसे। अंतर इतना है कि ईरान और वेनेजुएला के पास अब तक परमाणु बम नहीं है इसलिए उनका प्रतिशोध वह मायने नहीं रखता जो उ. कोरिया के युवा नेता की टिप्पणियों में नजर आता है।

उ. कोरिया के इतिहास में पहली बार किंग जुंग -उन ने सीधा हस्तक्षेप करते हुए बहुत ही कड़े शब्दों में ट्रंप के लिए कहा, मैं इस मानसिक रूा से विक्षिप्त बूढ़े को अपने परमाणु ताप से पालतू बना दूंगा। उ. कोरिया के विदेश मंत्री रि युंग - हो ने भी ंट्रंप को मानसिक विक्षिप्त बताते हुए कहा, उनकी राजनीति के चलते यह और भी संभव हो गया है कि उ. कोरिया के रॉकेट (अग्नि बाण) अमरीका पर आग बरसा सकते हैं। इसके जवाब में ट्रंप ने टवीट में कहा, यदि विदेश मंत्री रि युंग - हो इसी तरह छोटे रॉकेटवाले की सोच की गूंज बनते रहे तो ये सब ज्यादा दिन तक नहीं रह पाएंगे। पूरा विश्व इस दव्ंदव् को लेकर चिंतित है पर मुश्किल यह भी है कि विश्व इस दव्ंदव् को लेकर बंटा भी हुआ है। पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की महासभा में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे ने ट्रंप को पूरा समर्थन करते हुए कहा कि दव्ंदव् का बातचीत से हल का समय जा चुका है। वहीं पर चीन के विदेश मंत्री वांग ई और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी चेतावनी दी कि कोई भी सैन्य कार्रवाई विश्व को तबाही की ओर ले जा सकती है। यूरोप की सबसे बड़ी नेता और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने भी साक्षात्कार में खुद को ट्रंप से पूरी तरह असहमत बताया और कहा कि सैन्य कार्रवाई नाकाफी होगी। अब न अमरीका और न ही उ. कोरिया पीछे हटते नजर आ रहे है।

ट्रंप ने अपने भाषण में किंग जुंग-उन की के जवाब में उनको अदना रॉकेटवाला कहकर खूब मजाक उड़ाया और 21 वीं शताब्दी में पहली बार अमरीका के ग्वाम सैन्य अड्‌डे से बी-1 बमवर्षक और एफ 15 लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरकर उ. कोरिया के पूर्वी तट के पास शक्ति प्रदर्शन किया। इस दव्ंदव् को अमरीका की आतंरिक राजनीति के नजरिये से भी देख सकते है।ं अमरीका के डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) पार्टी (दल) के नेताओं का रुझान रिपब्लिकन (गणतंत्रवादी) पार्टी के नेताओं से अलग रहा है। वो चाहे जिमी कार्टर का राष्ट्रपति काल हो या फिर क्लिंटन का, डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने हमेशा कूटनीति के इस्तेमाल से उ. कोरिया से बातचीत के जरिये मामला सुलझाने की कोशिश की है। आज उ. कोरिया परमाणु हथियारों और मिसाइलों (प्रक्षेपास्त्रों) के कई सफल परीक्षण कर चुका है। सबसे ज्यादा अहमियत इस बात की है कि उ. कोरिया के परमाणु हथियारों और मिसाइलों का किसी गलतफहमी या किसी तकनीकी खराबी की वजह से अनजाने में इस्तेमाल न हो जाए। उ. कोरिया से यह तकनीक किसी आतंकवादी गुट या अन्य देश को हस्तांतरित भी हो सकती है। इन हथियारों की रक्षा और सुरक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। करीब एक दशक पहले अमरीका ने ऐसा प्रयास पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की रक्षा और सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी किया था। इसलिए जरूरत इस बात की है कि अमरीका और उ. कोरिया के बीच सीधी बातचीत हो। वर्ष 2003 में उ. कोरिया ने अपने आपको परमाणु अप्रसार संधि से अलग कर लिया था तो उस समय शुरू हुई सिक्स (छ:) पार्टी (दल) टॉक्स से कोई फायदा नहीं हो सकता और 2008 से वह बातचीत बंद पड़ी है। सीधी बातचीत के लिए अमरीका के विदेश मंत्री रेक्स टिलर्सन उ. कोरिया के विदेश मंत्री रि युंग-हो से बातचीत करें, यह न केवल जरूरी है पर संभव भी है। विदेश मंत्री टिलर्सन हमेंशा राष्ट्रपति ट्रंप के भड़कीले बयानों पर संयम और संतुलन का आवरण चढ़ाते नजर आते है। दूसरी ओर, विदेश मंत्री रि युंग-हो 1978 से उ. कोरिया के विदेश मंत्रालय में कार्यरत हैं जब किंग जुंग-उन पैदा भी नहीं हुए थे। सिक्स पार्टी टॉक्स में भी रि युंग -हो ही उ. कोरिया के मुख्ष् प्रतिनिधि थे इसलिए आज उनका उ. कोरिया की विदेश नीति पर केवल अच्छा प्रभाव है बल्कि गहरी पकड़ भी है। इन दोनों की बातचीत से तेजी से फिसलते हालात में ठहराव आने की उम्मीद की जा सकती है।

प््रााे. स्वर्ण सिंह, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार, जेएनयू के सेंटर (केन्द्र) फॉर (के लिए) इंटरनेशनल (अंतरराष्ट्रीष्) पॉलिटिक्स (राजनीति) , ऑर्गेनाइजेशन (संस्थान) एंड (और) डिस्आर्मामेंट (निरस्त्रीकरण) विभाग में अध्यापन का लंबा अनुभव

संयुक्त राष्ट्र मंच:-संयुक्त राष्ट्र एक बार फिर कठघरे में है। कठघरे में उसे कोई और नहीं अपने ही खड़ा कर रहे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने पहले संबोधन में इशारों-इशारों में कई सवाल खड़े किए? उ. कोरिया की नापाक हरकतों का जिक्र करते हुए ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनी जिम्मेदारी पर खरा नहीं उतरने की बात कही। बात है भी सौ फीसदी सही। दुनिया आज युद्ध के जिस खतरनाक मोड़ पर पहुंचती जा रही है, उसे रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयास नाकाफी हैं। दूसरे विश्व युद्ध की त्रासदी के बाद ही संयुक्त राष्ट्र का गठन यह सोचकर हुआ था कि दुनिया को विनाश से बचाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संस्था होनी चाहिए। ऐसी संस्था जो तमाम देशों के बीच सौहार्द बढ़ाने में मददगार साबित हो। अपने गठन के बाद संयुक्त राष्ट्र ने अपने विभिन्न संगठनों के माध्यम से दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए हैं। लेकिन उसकी प्रमुख भूमिका तनाव कम करने की है। उ. कोरिया पिछले लंबे समय से दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है। परमाणु परीक्षणों के साथ हाइड्रोजन और रसायन बम से दुनिया को तबाह करने की खुली धमकी दे रहा है। लगता नहीं कि इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र ने कुछ खास किया हो। क्या उसे इस मुद्दे पर रूस और चीन को विश्वास में नहीं लेना चाहिए था। चीन उ. कोरिया का सबसे विश्वस्त सहयोगी है। उसे हथियारों के साथ-साथ पेट्रोल -गैस भी देता है। यदि वह चीन के माध्यम से उ. कोरिया पर दबाव बनाने की कोशिश करता तो बात बन सकती थी। सिर्फ प्रतिबंध लगाने से बात बनने वाली नहीं हैं। उ. कोरिया प्रतिबंध की भाषा समझता ही नहीं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में ट्रंप ने जिस तरह उ. कोरिया को धमकी दी उससे तनाव बढ़ेगा ही। संयुक्त राष्ट्र को जिस प्रभावी भूमिका का निर्वहन करना चाहिए, वह नजर नहीं आ रही। तीसरे विश्व युद्ध की आहट के बीच शक्तिशाली राष्ट्रों से भी सार्थक भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है। अमरीका के साथ-साथ रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, जर्मनी और आस्ट्रेलिया जैसे देशों को भी अपने-अपने तरीके से पहल करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक इन दिनों चल रही है। यह एक ऐसा मंच है जहां से औपचारिक और अनौपचारिक तरीके से ऐसे प्रयास होने चाहिए जिनसे विश्व युद्ध का खतरा टाला जा सके।

खतरे में दुनिया:-क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है? पिछले सात दशकों में ये सवाल अनेक बार सामने आ चुका है कि अलग-अलग मौको पर अलग-अलग कारणों से विश्व युद्ध की आहट सुनाई दी। हालात युद्ध की तरफ बढ़ने लगे तो संयुक्त राष्ट्र समेत तमाम देशों ने इसे सामान्य बनाने में मदद की। कभी अमरीका पीछे हटा तो कभी रूस। लगभग ढाई दशक पहले कुवैत पर इराकी कब्जे के बाद जब अमरीका सेनाओं ने इराक पर हमला किया तो विश्व युद्ध के बादल गहराते दिखाई दिए थे। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी और मामला शांत पड़ गया। लेकिन मौजूदा हालात में उ. कोरिया और अमरीका के बीच बढ़ती दूरियां एक बार फिर विश्व युद्ध की आशंका पैदा कर रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ की तमाम हिदायतों और प्रतिबंधों के बावजूद उ. कोरिया आग में घी डालने में जुटा है। परमाणु परीक्षण के बाद हाइड्रोजन बम का ताजा परीक्षण करके उ. कोरिया ने अपने नापाक मंसूबे जाहिर कर दिए हैं। जापान के ऊपर से मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) दाग कर उ. कोरिया न सिर्फ जापान बल्कि दक्षिण कोरिया और अमेरिका को भी चिढ़ा रहा है। जवाबी कार्रवाई में अमरीका ने कोरिया प्रायदव्ीप के ऊपर लड़ाकू विमानों को उड़ाकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि पर्दे के पीछे से चीन, उ. कोरिया को शह देने में जुटा हे। ब्रिटेन और फ्रांस अमरीका के पाले में खड़े हैं तो रूस अभी तटस्थ नजर आ रहा है। पिछले तीन महीने के हालात विश्व को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ने के संकेत दे रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध में विध्वंस की कहानी दुनिया के सामने है। छह साल तक चले इस युद्ध की पीड़ा आज तक दुनिया झेल रही है। युद्ध की विभीषिका ने लाखों लोगों की जिंदगी छीन ली तो करोड़ों लोग दूसरे तरीके से बर्बाद हो गए। उ. कोरिया के परमाणु हथियार और मिसाइल कार्यक्रम पूरी दुनिया के लिए खतरा हैं। सभी देशों को उ. कोरिया को परमाणु मुक्त बनाने के लिए कार्रवाई करनी होगी।

ज्बुाानी जंग:- अमरीका और उत्तर कोरिया में जुबानी जंग दिनोदिन तेज होती जा रही है। नौबत अब जंग तक पहुंच चुकी है। इसी कड़ी में उ. कोरिया के विदेश मंत्री री योंग हो ने को अमरीका द्वारा युद्ध की घोषणा का दावा कर डाला।

उन्होंने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ताजा बयान साफतौर पर जंग का ऐलान है। योंग ने कहा कि उ. कोरिया को बचाव का पूरा हक है। हम अमरीकी बमवर्धक विमानों को उस हालत में भी मार गिराएंगे जब वो उ. कोरिया के वायु क्षेत्र में भी न हों। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया साफतौर पर इस बात को याद रखेगी कि वो अमरीका था, जिसने हम पर पहले जंग थोपी। एक दिन पहले ट्रंप ने ट्‌वीट कर रहा था कि उत्तर का परमाणु कार्यक्रम ऐसे ही चलता रहा तो वह लंबे समय तक नहीं चल पाएगा।

अमरीका ने 18 सितंबर और 24 सितंबर को उ. कोरिया की सीमा के ऊपर से अपने बमवर्षक विमान बी-बी लांसर उड़ाए थे। पेंटागन की प्रवक्ता टाना व्हाइट ने कहा था कि इस मिशन (दूतमंडल) का मकसद ये दिखाना था कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास किसी भी खतरे से निपटने के लिए कई सैन्य विकल्प मौजूद हैं।

इससे पहले उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग उन ने ट्रंप को मानसिक रूप से विक्षिप्त बताते हुए कहा कि उन्हें अपने बेहूदा बयानों की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। किम ने ट्रंप के उतरको पूरी तरह से बर्बाद करने की धमकी के बाद यह बयान दिया है। किम ने कहा कि मैं विचार कर रहा हूं कि उन्होंने जिस तरह की बेहूदा बातें की हैं, इसका जवाब उन्हें कैसे दें।

री योंग हो, विदेश मंत्री, उ. कोरिया

अमरीका ने एक बार फिर उ. कोरिया की सीमा के पास एयरफोर्स (वायुसेना) बी-1 बी बमवर्षक विमान उड़ाकर धमकी दी है। अमरीका ने कहा है कि किसी भी चुनौती से निपटने के लिए हमारे पास कई सैन्य विकल्प हैं। इससे पहले अमरीका ने 18 सितंबर को भी बमवर्षक विमान उड़ाए थे। गुआम से यूएस एयरफोर्स बी-1 बी लांसर बमवर्षक विमान ने जापान के ओकीनावा ये एफ-15 सी ईगल लड़ाकू विमान के साथ इस सदी में सुदूर उत्तर में असैैन्य क्षेत्र में पहली बार उड़ान भरी है। घटना के बाद दोनों देशों के बीच जुबानी जंग फिर शुरू हो गई है। उ. कोरिया के विदेश मंत्री री योंग हो ने ट्रंप को मिस्टर (श्रीमान) एविल प्रेसिडेंट (अध्यक्ष) बताया है। उन्होंने कहा कि अगर बमवर्षक विमान उड़ने बंद नहीं हुए तो अमरीका पर परमाणु बम का हमला जरूरी हो जाएगा।

वहीं अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्‌वीट कर कहा कि उ. कोरिया के विदेश मंत्री का भाषण सुना। अगर लिटिल (थोड़ा) रॉकेट (अग्निबाण) मैन (मुख्य) के विचार सुना रहे हों तो उन्हें पता होना चाहिए कि ये विचार अब ज्यादा दिनों तक उनके साथ नहीं रहेंगे। जाहिर है इस ट्‌वीट के जरिए ट्रंप ने एक बार फिर से उ. कोरिया को सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी है। अमरीका और उ. कोरिया के नेता अब बिना समय गंवाए एक-दूसरे को जवाब दे रहे हैं।

मुख्य बातें-

  • यूएस एयरफोर्स का सबसे बड़ा बमवर्षक विमान परमाणु हमले करने में भी सक्षम है।
  • उ. कोरिया की सीमा पर उड़ता अमरीकी बमवर्षक बी-1 बी लांसर।

बी-1 बी की खासियत- 137 फीट चौड़ाई, 146 फीट लंबाई, 34 फीट ऊंचाई, 2.16 लाख किलो वजनी, 30,000 से अधिक फीट की ऊंचाई तक उड़ सकता है। 4 सदस्यीय चालक दल 84 परंपरागत बम 226 किलो के या 30 सीबीयू-87⟋89⟋97 और परमाणु बम से हमले में भी सक्षम है।

बयान-अमेरिका और उ. कोरिया के बीच जारी जुबानी जंग काफी आगे बढ़ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि उनका देश उ. कोरिया के खिलाफ सैन्य विकल्प के लिए पूरी तरह तैयार है। तनाव दूर करने के लिए ऐसा जरूरी हो गया है। ट्रंप व्हाइट हाउस में स्पेन के प्रधानमंत्री मार्यानो राहॉय के साथ प्रेस कांफ्रेस (पत्रकार सम्मेलन) में बोल रहे थे।

ट्रंप ने कहा यदि हम सैन्य विकल्प अपनाते हैं तो यह विध्वंसकारी होगा। उ. कोरिया के लिए यह कार्रवाई बहुत ही भयानक होगी। जो भी हो यदि हमें सैन्य विकल्प अपनाना पड़ा तो हम अपनाएंगे। उ. कोरिया नेता (किम जोंग उन) बहुत बुरा व्यवहार कर रहे हैं। वह ऐसी बातें कह रहे हैं जो पहले कभी नहीं कही गई। हम उन बातों का जवाब दे रहे हैं, पर यह सिर्फ जुबानी जवाब है। पिछली सरकारों को उ. कोरिया से 25,20 या 15 साल पहले ही निपट लेना चाहिए था। तब अधिक आसानी से निपटा जा सकता था।

उ. कोरिया की कैसे बढ़ी ताकत:-ट्रंप से पहले की सरकारों के दौरान किस तरह बढ़ी उ. कोरिया की सैन्य ताकत-ट्रंप ने देश की पिछली सरकारों को उ. कोरिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर कोसा हैं। आइए देखते हैं कि 1984 के बाद उ. कोरिया की कैसे बढ़ी ताकत-

  • 1984 से अब तक उ. कोरिया करीब 150 मिसाइल टेस्ट (प्रक्षेपास्त्र परिक्षण) और न्यूक्लियर टेस्ट (परमाणु परिक्षण) कर चुका है। इनमें आधे से अधिक 2011 में किम जोंग उन के उ. कोरिया का शासक बनने के बाद हुआ है।
  • 1985 से 1995 रोनाल्ड रीगन, जार्ज बुश और बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति रहे। तब उ. कोरिया के शासक किम-2 थे। उसने 4 शार्ट रेंज (कम दूरी) , 5 मीडियम रेंज (श्रेणी) और 1 क्रूज (समुद्री यात्रा) मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) का परीक्षण किया।
  • 1996 से 2010 बिल क्लिंटन और जार्ज बुश जूनियर (कनिष्ठ) , बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति रहे। तब शासक किम जोंग-2 थे। उसने 21 शार्ट रेंज, 8 मीडियम रेंज (दूरी) , दो न्यूक्लियर टेस्ट (परिक्षण) , 13 क्रूज मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) और दो न्यूक्लियर टेस्ट किए।
  • 2011 से 2015 बराक ओबामा राष्ट्रपति रहे। उ. कोरिया के शासक किम जोंग उन। इस दौरान 43 शार्ट रेंज, 18 मीडियम रेंज, 14 इंटरमीडियट (मध्यम) रेंज (दूरी) , 10 क्रूज मिसाइल, 3 इंटरकांटिनेंटल (अंतरमहादव्ीपीय) मिसाइल, 4 न्यूक्लियर टेस्ट (परिक्षण) किए।

तारीफ- ट्रंप ने कहा कि अमेरिका ने हाल ही में उन देशों के खिलाफ नए कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जिन्होंने उ. कोरिया के साथ कारोबार किया। उ. कोरिया के साथ सभी बैंकिंग (महाजन) संबंध तोड़ने के लिए चीन की सराहना करता हूं। इसके लिए मैं चीन राष्ट्रपति शी चिनफिंग को धन्यवाद देना चाहता हूं।

सैन्य गतिविधि- अमेरिका के ज्वांइट चीफ (मुखिया) ऑफ (का) स्टाफ (सदस्य) के चेयरमैंन (अध्यक्ष) मरीन कोर्प जनरल जोसेफ इनफोर्ड ने कहा कि राजनीतिक गतिरोध के बावजूद उ. कोरिया के सैन्य गतिविधि में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला है। हम करीबी नजर बनाए हुए हैं। इनफोर्ड ने यह बात सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सामने कही।

अमेरिका के हवाई राज्य में प्रशासन ने स्थानीय लोगों को सलाह दी है कि वे न्यूक्लियर (परमाणु) अटैक (हमला) के लिए तैयार रहे। उसी तरीके से जैसे जब आइसलैंड पर सुनामी या हरिकेन आता है। स्टेट (राज्य) रिप्रेजेंटिव (प्रतिनिधि) गेने वार्ड ने कहा कि हम अभी कोई चेतावनी नहीं जारी कर रहे है। पर चाहते हैं कि लोग किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहें। वहीं, एक स्थानीय अखबार के मुताबिक राज्य के अधिकारियों ने एक सीक्रेट (गुप्त) मीटिंग (सभा) की है जिसमें उन्होंने न्यूक्लियर हमले के बाद के खतरे से निपटने को लेकर चर्चा भी की।

चीन-फ्रांस के बयान- फ्रांस का कहना है कि उ. कोरिया न्यूक्लियर समस्या के समाधान को लेकर ट्रंप का तरीका सही नहीं है। इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को प्योंगयांग पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए। ये बात फ्रांस के विदेश मंत्री चीन ड्रीयान ने टीवी चैनल से बातचीत में कही। उधर, चीन के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया जारी करते हुए कहा कि सैन्य कार्रवाई उ. कोरिया के न्यूक्लियर विवाद का हल नहीं है। अमेरिका को इससे बचना चाहिए।

उपसंहार:-ध्यान रखने की बात ये है कि बीते सात दशकों में दुनिया परमाणु बम के ऐसे जखीरे पर बैठी है जहां तबाही के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला है। परमाणु बम से आगे हाइड्रोजन बम और रसायन बम मानव सभ्यता को नष्ट करने के लिए तैयार बैठे हैं विश्व युद्ध हुआ तो जीते कोई भी, लेकिन हार सिर्फ मानवता की ही होगी। संयुक्त राष्ट्र संघ का अधिवेशन इन दिनों चल रहा है। इसमें तनाव को कम करने की दिशा में विश्व के सभी देशों को पहल करनी चाहिए।

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