देश विदेश में खानपान के दव्ारा जीवनशैली के बढ़ते खतरे Catering to the growing threat of the lifestyle worldwide (Download PDF)
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प्रस्तावना:- बदलती जीवनशैली ने देश विदेश भर में लोगों के खान-पान में बदलाव ला दिया है। सरकारी आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि करीब 70 फीसदी लोग मांसाहारी हो चुके हैं। अब खानपान को परंपराओं और जाति से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि ऐसे लोग जिनका खानपान बदला और बदल रहा है, उन्हें यह जानकारी तक नहीं होती कि वे किस प्रकार का आहार ले रहे हैं। बस, स्वाद के लिए क्या बेहतर हैं, इसकी समझ है, लेकिन सेहत के लिए क्या खाना जरूरी है और क्या नहीं, इसकी जानकारी अधिकतर को शायद नहीं हैं। क्यों आया समाज में ऐसा बदलाव? कैसे होता है स्वास्थ्य से खिलवाड़ यह जानना हम सबके लिए बेहद जरूरी हैं।
देश-विदेश:-
हमारे देश और विदेश के भोजन में तुलना करें तो हमारी शाकाहार और मांसाहार की परिभाषाओं में ही काफी अंतर हें। परेशानी यह भी है कि ऐसा ही अंतर हमारे देश में भी है। कुछ लोग अंडो को मासांहार में शामिल करते हैं तो कुछ शाकाहार में। इसी तरह बंगाल में ब्राह्यण समाज के बहुत से लोग मछली को शाकाहार से मानकर उसका उपभोग करते हैं। ऐसे में शाकाहार और मांसाहार की सार्वभौमिक परिभाषा पर मतभेद होने से भी आंकड़ों पर असर पड़ता है। भोजन की आदत खासतौर पर शाकाहारी और मांसाहारी के संदर्भ में भारत सरकार की ओर से जो आंकड़े जारी किए गए हैं, उनकी सत्यता को लेकर इसलिए कुछ संदेह होता है। आंकड़े जुटाने की कार्यर्शली और उसके निष्कर्ष पर कोई संदेह नहीं है। बल्कि संदेह का कारण हमारे समाज का ताना-बाना है। इसी ताने-बाने के चलते हमें इस तरह की सच्चाई का सही-सही पता नहीं चल पाता कि कोई वास्तव में शाकाहारी है या मांसाहारी। वर्तमान परिस्थितियां कुछ इस तरह से बन गई हैं कि आप किसी जाति-समाज के आधार पर तय नही कर सकते है कि उस विशिष्ट जाति या समाज का व्यक्ति मांसाहारी ही होगा या शाकाहारी ही होगा।
समाज:-
भारतीय समाज में सामाजिक स्तर बहुत ही महत्वपूर्ण है। कई बार बेहतर सामाजिक स्तर के लिए बहुत लोग झूठ बोल देते हें। उदाहरण के लिए गुजरात में क्षत्रियों को छोड़कर अन्य स्वर्ण कही जाने वाली जातियां आमतौर पर मांसाहारी नहीं हें। लेकिन, कुछ जातियां जो स्वर्ण नहीं हैं और परंपरागत तौर पर वे मांसाहारी रही हैं लेकिन अब वे खुद को शाकाहारी के तौर पर ही घोषित करती हैं। ऐसे में सच्चाई को पकड़ पाना बहुत कठिन हो जाता हैं। कई बार ऐसा भी देखने और सुनने में आता है कि कुछ परिवार परंपरागत रूप से शाकाहारी हैं लेकिन चिकित्सकीय कारणों से उस परिवार के किसी बच्चे को चिकित्सक पूर्ण रूप से मांसाहार नहीं तो अंडो के इस्तेमाल की सलाह देते हैं। ऐसे में बच्चों का अंडा खिलाने के कारण पूरे परिवार को ही मांसाहारी मान लिया जाता है। इसी तरह बहुत से परिवारों में कोई एक सदस्य ऐसा भी होता हैं जो मांसाहार नहीं लेता लेकिन उसकी गिनती भी मांसाहारी में हो जाती हैं। कभी-कभी जाने अंजाने में भी लोग मांसाहार का उपभोग करने लगते है। जैसे हम सभी को पता है कि पुडिंग में और बहुत बार केक को तैयार करने में अंडे का इसतेमाल होता है। कई बार पुडिंग खाने वाले इस बात से अनजान होते हैं तो कई बार वे अनजान बने रहने का नाटक भी करते हैं कि उन्हें पता ही नहीं और वे शाकाहारी होने का दावा भी करते है। ऐसे में स्पष्टता नहीं होती है।
भारत:-
- हमारा देश बहुत बड़ा है और अब तो लोग रोजगार के उद्देश्य से सरलता के साथ एक राज्य से दूसरे राज्यों में जाते हैं। ऐसे में लंबे समय में खानपान की आदतें बदलना बहुत ही स्वाभाविक भी है। गुजरात का व्यक्ति पंजाब में जाकर पंजाबी भोजन पंसद करने लगता हैं उत्तर प्रदेश का व्यक्ति दक्षिण भारतीय व्यंजनों को खाने की आदत डाल लेता है। दक्षिण भारतीय लोग राजस्थान आकर वहां के व्यंजनों को पसंद करने लगते हें। बंगाल के लोगों को गुजरात आकर वहां का खाना अच्छा लगने लगता है।
- भारत में पिछले कुछ वर्षो से एक नई बात भी देखने को मिली है। कि यहां के लोग इटालियन, मैक्सिकन के साथ चाईनीज और थाई फूड को भी बेहद पंसद करने लगे है। खासतौर पर नई पीढ़ी को नए-नए स्वाद लेने में लुत्फ आता है। तरह-तरह के रेस्तरां और फास्टफूड (फटाफट खाना) आ गए हैं। अक्सर यहां जाने वाले लोग झिझक के चलते कई बार पूछ भी नहीं पाते कि जो विदेशी व्यंजन वे खा रहे हें, उसकी आधारभूत सामग्री किससे बनी हैं। वे शाकाहारी भी हो सकती हैं और मांसाहारी भी हो सकती है। लेकिन, शाकाहारी सी दिखने वाली खाद्य सामग्री को खाने वाले अकसर दावा यही करते हैं कि वे शाकाहारी है। ऐसे में इस तरह दावों के आधार पर बने आंकड़ों को स्वीकार करने में कुछ झिझक महसूस होती है।
- जंक फूड:- भारत में 8500 करोड़ रुपए का फास्ट फूड (फटाफट खाना) का कारोबार हैं, 2020 तक 25000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा। जंक फूड की श्रेणी में बर्गर, पिज्जा तो आते ही हैं, चिप्स या कैंडी जैसे अल्पाहार भी इसमें गिने जाते हैं। पास्ता मैक्रोनी, चाउमीन, नूडल्स, हॉटडॉट, मोमोज आदि सब जगह आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। जंक फूड के पक्ष में दलील यह दी जाती है कि यह ज्यादा समय तक खराब नहीं होता हैं। इस बाजार के विस्तार का बड़ा कारण लुभावने विज्ञापनों की भरमार भी हैं।
देश के प्रमुख मांसाहारी व शाकहारी प्रतिशत
मंसाहारी
|
98.70
|
98.55
|
98.25
|
97.65
|
96.35
|
शाकाहारी
|
74.90
|
69.25
|
66.75
|
60.95
|
50.60
|
देश के 21 राज्यों के नमूनें सर्वे में 70 फीसदी मांसाहारी (आंकडे प्रतिशत में) हैं।
खतरा:- तीन बड़े कारण है जो जंक फूड (फटाफट खाना) को खतरनाक बनाते हैं।
- पहला यह कि इनमें प्रोसेस्ड नामक चीज होती हैं।
- दूसरा फेट (मोटापा) ज्यादा होता हैं।
- तीसरी बात यह कि जंक फूड में केलोरी ज्यादा होती है।
हम देख रहे हैं। कि प्रस्तुत तीनों कारणों से घर का खाना खाने के बजाए वे लोग जो बाहर का खाना खाते हैं, तरह-तरह की बीमारियों के शिकार होते हैं जिनमें खान-पान में जंक फूड ज्यादा होता है। इस तरह के खान पान का परिणाम मोटापे को बढ़ाने वाला होता है। बर्गर, पिज्जा, समोसा के साथ-साथ कोल्ड ड्रिंक्स भी सेहत के लिए खतरनाक है। जंक फूड ने हमें खाने में पोषक तत्वों से दूर कर दिया है। बच्चों के मामले में तो अधिक ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि उनको शुरू से ही पोषक तत्व नहीं मिल पाएंगे तो रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी होगी ही। हाल ही एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 30वीं फीसदी अमरीकी ओवरवेट (अत्यधिक मोटापा) हैं। भारत में भी जंक फूड ने जिस तरह से पैर पसारना शुरू किया है वह भी चिंता का कारण है। दिल्ली में हुए एक अध्ययन में पता चला कि विद्यालय जाने वाले बच्चों में 30फीसदी ओवरवेट अर्थात जरूरत से ज्यादा मोटे हैं।
मोटापा:-
जंक फूड के प्रति ज्यादा आश्रित होना बीमारियों को न्योता देना है। अत्यधिक चिकनाई व वसा युक्त भोजन से लीवर (यकृत) में मोटापा बढ़ जाता है। इनमें प्रोटीन (पोष्टिक तत्व) की मात्रा तो लगभग होती ही नहीं जो सेहत के लिए ज्यादा जरूरी है। शुगर (शक्कर), ब्लड पेशर (रक्त का दबाव) व हृदय रोग जैसी घातक बीमारियां इसी दूषित खान-पान का नतीजा हैं। शुगर की बढ़ती मात्रा मोटापे को बढ़ाने वाली होती है और मोटापा ही एक तरह से कई तरह की बीमारियों की जड़ है। हम यह भी देख रहे हें कि न केवल खान पान की आदतों में बदलाव हो रहा है बल्कि लोगों ने आरामदायक जीवनशैली भी अपनाना शुरू कर दिया है। सोशल (समाज) मीडिया (संचार माध्यम) के बढ़ते इस्तेमाल ने खास तौर से बच्चों व युवाओं को मोबाइल से चिपका दिया है। बच्चे का समय टीवी के सामने बैठे रहने में बीतने लगा है। इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक भी जीवनशैली में बदलाव लाएं।
अर्थशास्त्री:-
बहुत दिनों से अर्थशास्त्री यह कहते आ रहे हैं कि जैसे-जैसे जीवनशैली व आर्थिक स्तर में बदलाव आता जा रहा है लोगों के खान पान की आदत भी बदलने लगी है। यह भी कहा जा रहा है कि इससे मीट, अंडे व फास्ट फूड (फटाफट खाना) का चलन बढ़े लगा हैं और खाद्यान की खपत कम होने लगेगी। इस माहौल को बनाने के कई कारण हैं। एक तो यह है कि दुनिया की खाना उद्योग अपना बाजार रणनीति के तहत इन प्रयासों में लगी है कि पौष्टिक खाद्य से शिफ्ट (स्थानांतरण) होकर लोग फास्ट फूड यानी फटाफट खाने की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनको अपने उत्पाद बेचने हैं इसलिए इसे राज्य सिम्बल भी बताया जा रहा है। पाश्चात्य देशों में खाना उद्योग ने यह बताने का प्रयास किया कि हैवी ब्रेकफास्ट यानी भारी नाश्ते से कार्यक्षमता में इजाफा होता है। अध्ययन में पाया गया कि यह गलत था अर्थात उल्टा कि इससे बीमारियों में वृद्धि होने की बातें समाने आई हैं।
बीमारियों में बढ़ोतरी:-
यह बात सच भी है कि ब्रेकफास्ट (नाश्ते) में जंक फूड के भारी इस्तेमाल ने दुनिया भर में बीमारियों में बढ़ोतरी ही की है। दरअसल जंक फूड में चीनी का इतना उपयोग होता है कि इसके सेवन से मोटापे की समस्या बढ़ी है। यही कारण हैं कि अमरीका में तो राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल ओबामा ने बच्चों को नाश्ते से दूर रखने का अभियान चलाया और वहां की सरकार ने भी इस अभियान में सहयोग किया। हमारे यहां खान पान नियंत्रित रखने की बातें शुरू से ही कही गई है। दुर्भाग्य से पश्चिमी देशों में खान पान की जिन आदतों में बदलाव हो रहा है वे आदते हमारे यहां बढ़ती जा रही हैं। यहां भी वे ही तर्क दिए जा रहे हैं जो पश्चिमी देशो में दिए जाते थे। बच्चे भी लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित होकर जंक फूड का प्रयोग करने लगे हैं पश्चिम की खाना उद्योग अपने यहां से बेदखल होती जा रही है और इन्होंने भारत में बाजार की तलाश शुरू कर दी है। एक हद तक अपने उत्पादों को बाजार में फेलाने में सफल भी हो रहीं हैं। मीट की खपत बढ़ाने का दावा भले ही किया जा रहा हो लेकिन यह ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता खतरा भी है। लाल मांस से भी स्वास्थ्य की समस्याएं हो रही है लेकिन ये उद्योग सुनियोजित बाजार में लगे हैं।
गठजोड़:-
अमरीका के सुपर बाजारों में 40 हजार तरह के खाद्यान उत्पाद मिलते हैं। कई खाद्य प्रसंस्करण उद्योग यहां जिस तरह के जंक फूड तैयार करते हें उनके खाने से मोटापा और बीमारियां होती हैं। दुनिया के देशों में जीडीपी बढ़ती दिखाने को यह नया तरीका बन गया है। पहले खूब खिलाओं, बाद में बीमार करो। यानी आपके खाने में जितना ज्यादा प्रदूषण होगा उतनी ही जीडीपी बढ़ेगी। इसको यू समझा जाना चाहिए। पहले खाना उद्योग ने बाजार फैलाया तो जीडीपी बढ़ी। बाद में बीमारियां बढ़ी तो दवाइयों का कारोबार करने वाली जनसमूहों व इलाज करने वाले अस्पतालों ने जाल फैलाया। इससे जीडीपी बढ़ी। खाकर, बीमार हो गए तो आपकी बीमारी का इलाज कराने के लिए जीवन बीमा जनसमूह आगे आ गई। ये तीनों उद्योग आपस में इस तरह से जुड़े हैं। बीमा जनसमूहों ने तो खाना उद्योग में 4 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है। यह खाना उद्योग, अस्पताल व दवा जनसमूहों का गठजोड़ है जो लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
उपसंहार:- हम भले ही यह सोच कर खुश हो रहे हों कि हमारी जीडीपी बढ़ रही हैं, पर सच बात तो यह है कि आप जितना ज्यादा खराब खाना खाएंगे इन तीनों उद्योगों के कारोबार मेंं बढ़ोतरी होगी। इसलिए इस कारोबारी खेल के इस षडयंत्र को हमारे लिए समझना बहुत जरूरी है। यह तय हमें ही करना हैं कि खराब खाना खाकर इस तरह से देश की जीडीपी बड़ाना है या फिर सेहत बनाए रखने के लिए खान पान की बदलती आदतों पर रोक लगानी है। समय रहते नहीं सावधान हुए तो जंक फूड से पनपने वाली बीमारियां लोगों की सेहत के लिए बड़ा खतरा बनें जाएगी।
- Published/Last Modified on: August 17, 2016
-Examrace Team