चीन में आर्थिक प्रबंधन की आशंका खारिज, चीनी विशेषताओं वाले नए युग का समाजवाद जारी रहेगा। परन्तु एक ही व्यक्ति के पास अधिक ताकत के खतेर भी हैं।
18 अक्टूबर को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पंचवर्षीय कांग्रेस की शुरुआत के पहले देश के सुरक्षा अधिकारियों ने निगरानी जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी। विदेशियों के तिब्बत जाने पर रोक लगा दी गई, जबकि वह बीजिंग से 1000 से ज्यादा किमी दूर है, लेकिन पार्टी को डर था पृथकतावादी का अकेला बैनर भी बीजिंग के आयोजन को किरकिरा कर देगा।
शी के उद्घाटन भाषण को आम सहमति का नतीजा बताया गया, लेकिन इस बार भाषण पर वक्ता यानी शी की व्यक्तिगत छाप थी। शी फॉर्मूले (शूत्र) जैसी शैली पर चिपके रहे और घिसे-पिटे जुमले दोहराते रहे। लेकिन, इसमें महत्वपूर्ण फर्क भी था जैसे एक सेक्शन (वर्ग) का उबाऊ-सा शीर्षक था, चीनी विशेषताओं के साथ नए युग के लिए समाजवाद पर विचार।
सबसे महत्वपूर्ण तो उनका यह इशारा था कि अधिक आक्रामक विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होगा। 2012 में हुई पिछल कांग्रेस में हू ने कहा था कि सेना का काम सूचना के इस युग में स्थानीय युद्ध जीतना है। शी ने इसमें से स्थानीय शब्द हटा दिया। ताइवान पर उनकी भाषा और कड़ी थी। हू ने ताइवानी स्वतंत्रता का विरोध करने की बात कही थी तो शी ने इसे नष्ट करने की धमकी दी है। शी के कहने पर पार्टी ने सरकारी उपक्रमों पर पकड़ बनानी शुरू कर दी है और निजी कंपनियों (संगठन) पर भी प्रभाव चाहते हैं। पार्टी (दल) ने आंत्रप्रेन्योर्स से देशभक्त होने को कहा है। ऐसा लग सकता है कि शी निजी कंपनियों की नकेल कस रहे हैं पर ऐसा है नहीं। नियामकों ने सबसे ज्यादा अधिग्रहण में लगी चार कंपनियों को अतिरिक्त जांच के लिए चुना। बीमा कंपनी अनबाग, उड्डयन व पर्यटन कंपनी (संगठन) एचएनए, प्रॉपर्टी (संपत्ति) डेवलपर (विकसित करने वाला) वांडा और औद्योगिक समूह फोसून। नतीजा यह हुआ कि विदेश में निवेश की उनकी जो आपाधापी चल रही थी वह इस साल एकदम नीचे आ गई। वांडा ने कई होटल (सराय) असेट बेच दी।। अनबांग संस्थापक जेल में हैंं लेकिन यह आंत्रप्रेन्योर पर हमला नहीं है। चीन के सर्वाधिक धनी 2,130 लोगों की सूची में पिछले साल सिर्फ पांच लोग कानून के उल्लंघन के आरोपी बने। इसके विपरीत कम्युनिस्ट पार्टी की 205 सदस्यीय केन्द्रीय समिति के 10 फीसदी सदस्य 5 वर्षो में शी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की बलि चढ़ गए।
एक चिंता तकनीकी सेक्टर पर कड़े नियंत्रण की थी। वॉलस्ट्रीट जर्नल ने रिपोर्ट (विवरण) छापी थी कि इंटरनेट रेग्युलेटर (नियंत्रक) सोशल (सामाजिक) मीडिया (संचार माध्यम) की दिग्गज कंपनियों में 1 फीसदी शेयर लेंगे जिसमें अलीबाबा की यूट्यूब जैसी कंपनी योउकू और ट्िवटर जैसी वेइबो शामिल है। लेकिन, इन पर पहले ही काफी नियंत्रण है। कोई पार्टी को नाराज नहीं कर सकती या सुरक्षा एजेंसियों (शाखओं) के डेटा (आंकड़ा) मांगने पर इनकार नही कर सकती। फिर वे पहले ही पार्टी को खुश करने वाले प्रोडक्ट (उत्पाद) बेच रहे हैं। टेनसेंट ने वीचैट के लिए एक एप बनाया है, जिसमें मोबाइल की स्क्रीन (पर्दा) को थपथपा कर शी के भाषण को सराहना देने की स्पर्धा की जा सकती है। कुछ कंपनियां (संगठन) यूजर (उपयोगकर्ता) पर निगाह रखने की तकनीक लाई हैं, जो अधिकारयाेिं को नागरिकों की नब्ज जानने में मददगार होगी।
यह धारणा कि शी इनोवेशन (नवाचार) का दम घोंट रहे हैं यह फलते-फूलते उद्योग से सही साबित नहीं होता। केवल अमेरिका में ही चीन से ज्यादा मूल्यवान स्टार्टअप (उद्धाटन) हैं। मीडिया (संचार माध्यम) ने पार्टी (दल) के इन निर्देशों पर फोकस (ध्यान) किया कि आंत्रप्रेन्योर को देशभक्त होना चाहिए, लेकिन ज्यादातर इसका अर्थ यही लगाया गया कि सरकार उनकी कैसे मदद कर सकती है। चाइना फाइनेंशियल (वित्तीय) रिफॉर्म (सुधार) इंस्टीट्यूट (संस्थान) के अध्यक्ष गैरी लिड कहते हैं कि असली संदेश तो यह है कि आंत्रप्रेन्योर अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी हैं।
कम्युनिस्ट पार्टी के इस अधिवेशन में एक पल को ऐसा लगा कि चीन माओवादी आर्थिक प्रबंधन की ओर तो नहीं लौट रहा है। कांग्रेस के दौरान एक महिला अधिकरी ने शी जिनपिंग से कहा कि इसके गांव की डिस्टिलरी (मद्यशाला) बाइजीउ (स्थानीय मदिरा) की बोतल 99 युआन (15 डॉलर) में बेचती है। माओ के बाद सबसे प्रभावशाली चीनी नेता नेता शी ने कहा यह कुछ महंगी लगती है। महिला अधिकारी ने धन्यवाद दिया और कहा कि वे उनके मार्गदर्शन का पालन करेंगे। लेकिन, शी ने उस महिला अधिकारी को रूकने का इशारा किया और शरारती मुस्कान के साथ कहा, यह बाजार का फैसला है। कीमत को घटाकर सिर्फ इसलिए 30 युआन मत कर देना कि मैंने कहा है। श्रोताओं को इससे राहत मिली के कीमतें तय करने का शी का कोई इरादा नहीं है और वहां जोर का ठहाका लगा। रसहीन अधिवेशन में यह हल्का-फुल्का क्षण बहुत कुछ कह गया। शी चाहे सही कहते हों, लेकिन एक ही व्यक्ति के हाथ में बहुत अधिक ताकत होने का खतरनाक असर हो सकता है। बाइजिड पर शी की टिप्पणी के कुछ दिन बाद उस डिस्टिलरी ने घोषणा की कि वह नए ब्लेंड (मिश्रण) की बातल 30 युनान में बेचेगी।
ओबोर:- चीन में हाल ही संपन्न चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के 19वें सम्मेलन के दौरान वहां के संविधान में वन बेल्ट वन रोड (ओबोर) को शामिल करने का प्रस्तावन स्वीकृत किया गया। चीन खरबों डॉलर की इस राजनीतिक परियोजना से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है कि वह भी इसमें शामिल हो। भारत ने इसमें भाग लेने से स्पष्ट तौर पर इनकार कर दिया है। इससे भारत के सुरक्षा में सेंध लग सकती है। यह भी उल्लेखनीय है कि ओबोर से भारत को कोई फायदा तो होगा नहीं बल्कि यह चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक (अर्थशास्त्र) कॉरिडोर (गलियारा) (सीपीईसी) को इस प्रकार प्रभावित करेगा कि उससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था व सुरक्षा तो मजबूत होगी लेकिन भारत के हितों पर कुठराघात होगा। चीन के सीपीसी सम्मेलन में लाए गए प्रस्ताव के समर्थन में हो सकता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत को छोटा फायदा या लालच दिखा कर ओबोर स्वीकार करने के लिए मनाने की कोशिश करें। सीपीईसी को लेकर दिखाए जा रहे उत्साह के बीच (हालांकि इसे गेम चेंजर (खेल परिवर्तन) माना जा रहा है) पाकिस्तान में भी ऐसी भावनांए प्रबल हो रही हैं, कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान चीन की काल्पनिक कॉलोनी (बस्ती) बनकर रह जाए और कर्ज के बोझ तले दब जाए। ऐसे में भारत कभी नहीं चाहेगा कि उसकी भी ऐसी स्थिति हो। ओबोर अपनाने के पीछे चीन का उद्देश्य युद्ध के बाद दोबारा उठ खड़े हुए यूरोप के मार्शल (सेनापति) प्लान (योजना) के चीनी संस्करण को दुनिया भर में फैलाना मात्र नहीं है बल्कि इसके जरिये वह एशिया, अफ्रीका और यूरोप में व्यापार व वाणिज्य बढ़ाने की जमीन तलाश कर रहा है। सीपीईसी एक प्रकार से ओबोर का दिखावटी नमूना कहा जा सकता है। भारत के लिए इसकी उपयोगिता संदिग्ध ही है। केवल इसलिए नहीं कि यह भारत के उस महत्वपूर्ण हिस्से से गुजरता है जिस पर पाकिस्तान अपना हक जताता रहा है बल्कि इसकी एक वजह यह भी है कि भारत अगर ओबोर स्वीकार कर भी लेता तो पाकिस्तान भारत को अफगानिस्तान अथवा उत्तर-पश्चिम के अपने किसी भी प्रान्त की धरती का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देता। जाहिर है हमें किसी भी ऐसे भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि ओबोर के जरिये भारत, पाक के आगे तक जाने वाले जमीनी रास्ते का इस्तेमाल कर सकेगा। इसके कारणों के बारे में बात करना बेमानी है।
रुग्ण मानसिकता वाला पाकिस्तान सैन्य शासन के तहत प्रतिबद्ध है कि वह भारत के साथ मित्रवत नहीं रहेगा। पाकिस्तान केवल कश्मीर को लेकर ही भारत के साथ असहज नहीं है बल्कि वह अफगानिस्तान के साथ भारतीय व्यापार के लिए अपनी जमीन से होकर जाने वाला रास्ता भी भारत के लिए खोलने को तैयार नहीं है। इस संबंध में ना तो वह अमरीका की सुन रहा है और ना किसी और की। जब अमरीका ही पाकिस्तान को उन दिनों में भारत को रास्ता देने के लिए राजी नहीं कर सकता जब भारत-पाकि के संबंध थोड़े बहुत शांतिपूर्ण थे तो इस बात की कोई गुंजाइश ही नहीं है कि चीन अब पाकिस्तान को भारत को रास्ता देने के मामले पर पुनर्विचार करने के लिए सहमत करे। वह भी विशेषतौर पर तब, जबकि दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हैं। एक दौर जरूर ऐसा था जब पाकिस्तान, भारत के साथ जमीनी संपर्क के लिए तैयार था। ईरान और भारत के बीच एक गैस पाइपलाइन परियोजना के लिए पाक भारत को अपनी धरती का इस्तेमाल करने देने पर सहमत हो गया था लेकिन अमरीका की आपत्ति के बाद यह गैस पाइपलाइन परियोजना ठंडे बस्ते में पड़ गई। मध्य एशिया और उसके आगे के क्षेत्र के लिए जमीनी रास्ता उपलब्ध करवाने वाली ओबोर परियोजना निश्चित रूप से भारत के लिए प्रलोभन है लेकिन अपनी जमीन का इस्तेमाल ना करने देने की पाक हठधर्मिता के चलते भारत के लिए इसे नकार देना ही मुनासिब है। सीपीईसी के मुताबिक चीन इस परियोजना के तहत पाकिस्तान में 50 खरब डॉलर (मुद्रा) का निवेश करेगा, जिससे पाक में आधारभूत ढांचा सुधरेगा। इससे चीन से पाकिस्तान को भेजे जा रहे सैन्य हथियारों की भारी आपूर्ति को अधिक बढ़ावा मिलेंगा। चीन का उद्देश्य पश्चिमी देशों की आंख की किरकरी बन चुके व आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान को आर्थक व सैन्य मोर्चे पर भारत के समकक्ष ला खड़ा करना है। चीन और पाकिस्तान के बीच मिलीभगत जगजाहिर है कि चीन भारत में निरंतर आईएसआई समर्थित आतंक फैलाने में पाक की सहायता कर रहा है। जो लोग भारत को ओबोर अपनाने की वकालत कर रहे हैं, उनका मानना है कि बिना इसके भारत क्षेत्र में अलग-थलग पड़ जाएगा। इसी साल मई में चीन में आयोजित उच्च स्तरीय ओबोर सम्मेलन में पड़ोसी देशों ने इस संबंध में चुप्पी साधे रखी। खैर, अमरीका और जापान ने ओबोर का पूर्णत: समर्थन नहीं किया। अगर भारतीय कूटनीति का फोकस (ध्यान) केवल वार्ता के बजाय व्यापक होता तो क्षेत्रीय सड़क संपर्क बढ़ाने के लिए भारत अधिक प्रयास कर चुका होता और व्यापार भी काफी समृद्ध हो चुका होता। ईरान में जारी चाबहार परियोजना सीपीईसी को टक्कर दे सकती है। परन्तु क्षेत्र में भारत का किसी भी मुद्दे पर अलग होना दुनिया के लिए मायने रखता है और ओबोर के बगैर भी भारत विकास पथ पर अग्रसर रहेगा, रूकेगा नहीं।
अतुल कौशिश, वरिष्ठ पत्रकार, तीन दशक की पत्रकारिता का अनुभव, नई दिल्ली में मीडिया (संचार माध्यम) शिक्षण से जुड़े
उपसंहार: - शी की इस जीत के बाद देखना यह होगा कि अब वो अपनी ताकत को जनता व देश के लिए किस प्रकार प्रयोग करेंगे?