कालाधन वापसी (Essay in Hindi - Black Money Returns)

प्रस्तावना:- पनामा पेपर्स लीक (खुलासा) के कारण कालेधन को लेकर पूरी दुनिया में हल्ला मचा हुआ है। क्योंकि इस खुलासे के कारण कालेधन की वापसी हो सकती हैं। लेकिन दूसरी तरफ सफेदपोशों की करतूत है कालाधन। जलकल्याण के लिए जरूरी रकम में से हिस्सा मार लेने की बाजीगरी अब कर प्रबंधन कहलाती है। कालाधान भारतीय अर्थव्यवस्था को दीमक के समान नष्ट कर रहा है। धन्ना सेठों की तिजोरी से देश-विदेश के बैंको में बेनामी खातों, सपंत्ति हवाला और सट्‌टेबाजी तक में कालेधन का बोलबाला है। काले चोरों के साम्राज्य में सेंध लगाना नामुमकिन ही साबित हुआ हैं। सरकार ने दोषियों पर केवल बयान देकर ही कार्रवाई को पूरा कर दिया है। क्योंकि इस कालेधन का सियासत में भी बोलबाला है। चंदे की पोटलियां इसी से भरी होती हैं। विदेशों से कालेधन की वापसी की कोशिशें तो अब तक विफलता ही साबित हुई है।

कालाधन:- पनामा पेपर्स लीक के बाद गरमाया मुद्दा, कालाधन पर जुबानी जमा खर्च ज्यादा हैं। 71 प्रतिशत जीडीपी के करीब कालाधन विदेश में है, नेशनल इंस्टीट्‌यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी की वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार स्वतंत्रता के बाद अब तक कालेधन पर 40 से अधिक आयोग-कमेटियां बनी है।

विदेशी बैंकों में जमा चोर-लुटेरों के पैसों को हम ले आएं तो देश के प्रत्येक व्यक्ति को 15 - 20 रुपये यूं ही मिल जाएंगे।

नरेन्द्र मोदी

कालाधान वापस लाकर प्रत्येक के खाते में 15 लाख रुपए जमा करना तो नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक जुमला था। इसे गंभीरता से न लें।

अमित शाह भाजपा अध्यक्ष

हम सत्ता में आने के 100 दिन बाद विदेशों में जमा कालेधन को देश में लाएंगे। जन कल्याण की योजनाओं में इस पैसे को खर्च किया जाएगा।

राजनाथ सिंह, अप्रेल, 2014 में

राजनीतिक:- पनामा पेपर्स लीक ने कालाधन वापसी के प्रति भारतीय राजनेताओं की कथित प्रतिबद्धताओं के हाथ खोल दीये है। कालेधन पर अंकुश और देश-विदेश में जमा काले धन की वापसी बस सियासी मजाक बन रह गया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान तब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी जी ने कालेधन को बड़ा मुद्दा बनाया था। उनकी सभाओं में कोलधन की वापसी को लेकर लोगों ने मजाक में चटखारे लेकर बोलते थे। योगगुरु बाबा रामदेव भी इसमें पीछे नहीं थे। टेलीविजिन की बहसों में रामदेव को बकायदा किसी अथविशेषज्ञ के तौर पर कालेधन की समस्या पर राय लेते हुए सुना जा सकता था। अब मोदी जी के नेतृव्य वाली केंद्र सरकार को दो वर्ष पूरे होने को हैं। लेकिन कलेधन के मुद्दे पर इस सरकार के पास ज्यादा कुछ जनता को बताने के लिए कुछ नहीं हैं। वर्ष 2011 में भाजपा ने विपक्षी दल के रूप में एक रिपोर्ट पेश कर भारत का 500 अरब से 1.4 ट्रिलियन डॉलर का कालाधन होने के तथ्य पेश किए थे। वर्ष 2015 में सत्ता में रहने के दौरान वर्तमान एनडीए सरकार ने टैक्स कंप्लाएंस विंडो का ऐलान किया था यानी विदेशों में जमा कालेधन के बारे में स्वप्ररेणा से लोगों को जानकारी देने का अवसर प्रदान किया गया। लेकिन इसका परिणाम बेहद निराशाजनक निकला। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना मात्र 644 लोगों को ही लुभा पाई है। साथ ही इससे 4,164 करोड़ रुपए की विदेशी सपंत्तियों की ही घोषणा हो पाई है। अब पनामा पेपर्स लीक होने के बाद सरकार की ओर से कार्रवाई के नाम पर दावे किए जाने का दौर चल रहा है। लेकिन पूर्व में भी कालेधन पर जिस प्रकार से राजनीतिक मजाकबाजी में ही यह मामला सिमट कर रह गया है। इस बार भी संकेत इसी प्रकार के हैं कि इस खुलासे के बाद भी कालेधन की वापसी की कवायद को कोई खास बल नहीं मिलने वाला है।

चुनाव:- हम सब जानते है भारत में चुनाव लड़ना कितना खर्चीला हो गया है। कोई भी राजनीतिक दल उसका निवेश का स्रोत उजागर नहीं करती। चुनावी प्रचार में खर्च होने वाला अधिकांश पैसा कालाधन है। चुनावों के लिए चंदा देने के नाम पर संयुक्त घरानों के खिलाफ कालाधन को लेकर कार्रवाई के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई नहीं देती। बहरहाल, अब कुछ बड़े नाम पनामा पेपर्स में उजागर हुए है। अब देखते हें, सरकार इनके खिलाफ कितना सख्त कदम उठाती है।

कारण:- 3 कारणों से पनपा कालाधान जो निम्न हैं-

  • चुनावों में खर्च होने वाली बेहिसाब रकम कालाधन होती है। राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला चंदा इसी का रूप होता हे। ऐसे में राजनीतिक दल कालेधन पर अकुंश लगा कर भला अपने आप पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे?
  • कालेधन के निवेश का सबसे बड़ा सेक्टर रिएल एस्टेट है। बेनामी सपंत्ति के नाम पर इसमें निवेश होता है। ये बड़ा कारण है कि देश में सपंत्ति के दाम कम नहीं होते। सरकार के पास अकुंश का कोई नियम नहीं है।
  • आम ग्राहक को छोड़ दे तो कालेधन के जमाखोरों के लिए सोने की खरीद अपने पैसे को खपाने का बड़ा जरिया होता है। काले चोरों के ठिकाने में छापे के दौरान अक्सर बड़ी मात्रा में सोने के बिस्कट पाए जाते हैं।

खुलासा:- निम्न खुलासा हुए हैं-

  • 11 स्वैच्छिक खुलासा स्कीमें वर्ष 1951 से अब तक देश में विभिन्न सरकारें कालेधन पर ला चुकी हैं। वर्ष 1951 की पहली योजना से सरकार को 10.89 करोड़ रुपए बतौर राजस्व प्राप्त हुआ था।
  • 34 लाख करोड़ रुपए वर्ष 2004 से 2014 के दौरान भारत से विदेशों में बैंक खातों में भेजने के बारे में केंद्र सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की पड़ताल कर रही है।
  • 644 लोगों ने केंद्र सरकार की जुलाई से सितंबर 2015 के बीच अनुपालना स्कीम में 4.164 करोड़ की विदेश सपंत्तियों की घोषणा की। कर और जुर्माने के रूप में सरकार को 446 करोड़ राजस्व मिला।
  • एक अन्य स्वैच्छिक खुलासा स्कीम से 9745 करोड़ रुपए वर्ष 1997 में सरकार को मिले थे। ये अब तक की सर्वाधिक रकम है जो सरकार को इस प्रकार की योजनाओं से प्राप्त हुई थी।

तथ्य और उपाय:-निम्न हैं-

  • अब 45 प्रतिशत कर - घरेलू कालेधन के बारे में अब केंद्र सरकार ने कहा है कि अघोषित आय पर 45 फीसदी कर देकर लोग बच सकते हैं।
  • खत्म हो आयकर-भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी आयकर खत्म करने के समर्थक हैं। कहते हैं, राजस्व में इसका अंश कम है। कालाधन रुकेगा और बचत बढ़ेगी।
  • पार्टिसिपेटरी नोट रुके- भारत में ऐसे निवेश पर पाबंदी लगे। पार्टिसिपेटरी नोट गुमनाम तरीके से भारत में निवेश करने का सबसे बड़ा जरिया हैं।
  • जी-20- 2013 में जी-20 देशों ने कहा था, ऑटोमैटिक एक्सचेंज वैश्विक मानदंड हो। ओईसीडी ने वित्तीय सूचनाओं के स्वत: आदान प्रदान का समर्थन किया था।
  • लगाओ फटका- अमरीका की तरह फॉरेन एकांउट टैक्स कंप्लायंस एक्ट (फटका) बने। हर नागरिक ग्राहक की सूचना राजस्व विभाग के पास रहती है।
  • 90 प्रतिशत घर में- जेएनयू के प्रो. अरुण कुमार कहते हैं 10 प्रतिशत खाते विदेश में हैं जबकि 90 प्रतिशत देश में ही हैं। यह पैसा रियल एस्टेट में खूब निवेश होता है।

तिजोरी:- दुनिया के नक्शे पर अनजाने से देशों में सबसे सुरक्षित कर तिजोरियां हैं। आजकल चर्चा में आए पनामा देश को अब तक छात्र पनामा नहर के नाम से ही जानते है। दुनिया भर के कालेधन के जमाखोरों के इन छोटे-छोटे देशों में बैंक खाते हैं। ये देश अपने कर कानून को संशोधित करते हैं। इन्हें टैक्स हैवन (सुरक्षित पनाहगार) कहा जाता है। कर चोर यहां शैल जनसमूह खोल लेते हैं। कई फर्म बकायदा ऐसी जनसमूह खोलने के लिए दुनिया भर में अपने कार्यकर्ताओं को भेजती हैं। ये जनसमूह केवल कागजों में ही होती हैं। काली कमाई को इन कागजी जनसमूह में लगाया जाता है फिर इसके मुनाफे को संबंधित मालिक के खाते में स्थानान्तरण कर दिया जाता है। इसी प्रकार पैसे बढ़ाने के लिए शेयर कंपनियां का भी इस्तेमाल होता है। कुल मिलाकार इन देशों की अर्थव्यवस्था इसी काली कमाई को घूमा के करने से होती है। इन देशों की अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है।

जांच:- राजनीतिक पार्टियों को चंदे के रूप में मिलने वाले कालेधन की बातें अक्सर सामने आती रही हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जगदीप छोकर का कहना है फिलहाल पनामा पेपर्स से सीधे तौर पर किसी भारतीय नेता का नाम सामने नहीं आया है। यदि ऐसा नाम सामने आता है तो निश्चय ही राजनीतिक चंदे की तरफ से इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा, पनामा पेपर्स लीक बड़ा खुलासा है लेकिन इसके द्वारा हुए खुलासों की वैधानिकता की हर पहलु से पुरी तरह पड़ताल होनी चाहिए। निवेश के बारे में भी कानूनी पक्ष साफ होना चाहिए।

हल:- पनामा पेपर्स लीक बड़ा खुलासा है लेकिन इसके माध्यम से साथ ही सामने आई कर की गुत्थी को सुलझाना आसान नहीं है। लेकिन क्या कर प्रबंधन और कर अपवंचना में मौजूदा कानून भेद कर सकते हैं। क्योंकि जहां कर अपंवचना गैरकानूनी है वहीं कर प्रबंधन कानून सम्मत हैं। पनामा पेपर्स में सामने आए नामों को प्रथम दृष्टि में लोग कर चोरी में शामिल होना ही मानेंगे। लेकिन लोगों की राय और कानूनी पहलू में काफी अंतर होता है। वर्ष 1985 में मैकडॉवेल मुकदमें में सुप्रीम न्यायालय ने कर के वैधानिक और कानूनी पहलू में भेद करने का प्रयास किया था। इंग्लैंड की राजनीतिक व्यवस्था से उपजे वेस्टमिनिस्टर नामक सिद्धांत के तहत कर के बोझ से बचने के लिए हर व्यक्ति कुछ न कुछ जतन करता है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहे चिनप्पा रेड्‌डी ने अपने एक आदेश में कहा था कि वेस्टमिनिस्टर सिद्धांत अब खत्म हो चुका है। रेड्‌डी के अनुसार अब हम जनकल्याणकारी राज्य में रहते हैं जहां योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वित्तीय आवश्यकताएं होती हैं। अब कोई भी ये कह कर टैक्स से नहीं बच सकता कि उसने कानूनी रूप से कर से बचने के उपाय किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2012 के एक चर्चित मामले में देश में निवेश अनुकूल माहौल बनाए रखने के लिए विधि सम्मतता को गौण रखा था। सरकार ने पनामा पेपर्स लीक के बाद बयानबाजियां तो शुरू की है। लेकिन खुद सरकार ही पूर्व में सुप्रीम न्यायालय को समझा कर ये कह चुकी है कि वह अन्य देशों से सुचना मांगने अथवा मीडिया विवरणो के आधार पर कार्रवाई करने को बाध्य नहीं है। इसमें दोहरे कराधान की संधि आड़े आती है।

बैंक:- स्विस बैंक में खाता खुलवाने के लिए 50 करोड़ रुपए न्यूनतम राशि बताई जाती है। पेरू व फिलीपींस को विदेशों से कालाधन वापस अपने देश लाने में 10 साल लगे थे। अगले वर्ष कालेधन संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान पर 90 देशों से संधि हो जाएगी।

04 नम्बर पर है भारत कालाधन बाहर भेजने वाले देशों की सूची में। पहले नंबर पर चीन फिर रूस और मैक्सिको हैं। 03 फीसदी भारतीय ही सालाना इनकम अर्थात आयकर रिर्टन (वापिस) भरते हैं, 4 लाख लोगों का आयकर में हिस्सा 63 फीसदी है।

उपाय:- कालेधन पर नकेल कसने के लिए सरकारी कवायद बेअसर ही साबित हुई हैं। लाइलाज होते इस मर्ज पर सरकारी इलाज काम नहीं कर रहा है। आंकड़ो पर नजर डालें तो वर्ष 2004 से वर्ष 2013 तक देश से बाहर जाने वाले कालेधन की राशि में 300 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। वर्ष 2004 में जहां 19,447 डॉलर भारत से विदेशों में भेजे गए तो वर्ष 2013 में ये आंकड़ा बढ़कर 83,014 डॉलर हो गया। जीएफआई के अनुसार कालाधन बाहर भेजने वाले देशों की सूची में भारत दुनिया भर में चौथे स्थान पर हैं। जीएफआई के अनुसार भारत से वर्ष 2004 - 14 के दौरान 50,555 मिलियन अमरीकी डॉलर के औसत से व्यापार संबंधी गलत दस्तावेज पेश के किए गए। यानी कस्टम विभाग को व्यापार संबंधी गलत जानकारियां देकर कालेधन से अपनी तिजोरियों को भरा है। व्यापार संबंधी गलत सुचनाएं कालेधन को पनपाने का सबसे बड़ा जरिया है। कालेधन से जुड़ा एक और मसला है मनी लाउंन्ड्रिग का। दुनिया भर में मुख्य रूप से ड्रग माफिया इस्तेमाल की गई करों के बचाने से मिलने वाली रकम को ड्रग कारोबार में मिलाकर इसे वैध कमाई बनाते हैं। जीएफआई के तथ्यों में सामने आया है कि भ्रष्ट नेता, उद्योगपति और अफसर भी बेनामी कंपनियां बनाकर व्यापारी कर में चोरी कर मनी लाउंन्ड्रिग में साजबाज होते हैं। पैसे के इस अवैध लेनदेन का माफिया दुनिया भर में अपनी जड़े जमाए हुए है। इस अवैध कारोबार पर प्रभावी अंकुश के लिए कई स्तरों पर कार्य किए जाने की आवश्यकता है। सबसे पहले तो अंतरराष्ट्रीय कर अपवंचना के तरीको पर लगाम लगाया जाना चाहिए। इसके जिए जरूरी है कि विभिन्न देशों के बीच इस प्रकार की संधियां अमल में लाई जाएं जिससे कि कालेधन के आदन-प्रदान पर रोक लग सके। साथ ही बेनामी शैल कंपनियों की पहचान कर इन्हें समाप्त किया जाए। शैल जनसमूहो के माध्यम से कारोबारी अपने कालेधन को छिपाते हैं। कागजों में चलने वाली इप जनसमूहों के माध्यम से फर्जी तरीके से लाभ कमाया जाता है और फिर संबंधित व्यक्ति के खाते में इस लाभ को स्थानान्तरण कर दिया जाता है। पनामा पेपर्स लीक (खुले) होने के बाद केंद्र सरकार ने मल्टी (एक से अधिक) एजेंसी (कार्य स्थान) टीम का गठन किया है। लेकिन पूर्व में गठित किए गए इस प्रकार के जांच आयोग और समितियों से काई ठोस परिणाम सामने नहीं आया हैं।

छिपाना:- इस योजना के तहत संबंधित लोगों को बाहर जमा धन का 60 फीसदी हिस्सा, 30 फीसदी सामान्य कर और 30 फीसदी दंड चुकाना थी पर बाहर कालाधन रखने वाले लोग प्रभावशाली लोग हैं और हवाला के माध्यम से अपनी काली कमाई को विदेशों में जमा करते आए हैं। वो सरकार द्वारा डाले जा रहे दबाव को नजरअंदाज करने में सक्षम हैं। वो लोग यह भी जानते हैं कि कोई भी सरकार कालाधन धारकों पर सख्त नहीं हो सकती क्यों कि जहां भी उनका धन जाता है, उन देशों का सीक्रेसी (गुप्त) कानून है

विश्व:- दुनिया में करीब 60 ऐसे देश हें जहां अमीर बिरादरी अपनी पहचान उजागर हुए बिना काली कमाई जमा रख सकती हे। कुछ ऐसे देश है चैनल आइलैंड, पनामा आदि ऐसे देश है जिनकी अर्थव्यस्था काले धन पर ही चलती है। बदले में ये कालाधन जमा करने वालों की गोपनीयता जिंदगीभर प्रदान करते है। भारत सरकार की इन देशों के साथ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हैं, जिसके तहत भारतीय कालाधन धारकों के नाम बाहर आ सकें। यही कारण है कि कालाधन धारको ने सरकार को सपंत्ति का 60 फीसदी कर देने की बजाय उसे छिपाए रखना ही बेहतर समझा है। भारतीय कालाधन धारक यह पैसा फिर से देश में लाते भी हैं। वह भी एक्सपोर्ट ऑर्डर (बाहर से मंगवाते) , प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या फिर विदेशी संस्थागत निवेश के माध्यम से। सिंगापुर, मॉरिशस देशों में सबसे अधिक एडीआई आया। है। इन देशों में स्थित कंपनियों को भारत के मुकाबले संबंधित सरकार को बहुत कम कर अदा करना होता है। और भारत सरकार ने इन देशों के साथ दोहरी कर संधि पर भी दस्तखत कर लिए हैं। जिससे इन जनसमूहों द्वारा ऐसे देशों के माध्यम से भारत में निवेश करने पर यहां पर कर नहीं देना देना होगा। इसलिए यह कोई हैरत की बात नहीं है कि 2000 से 2011 के बीच भारत में आए कुल एफडीआई का 50 फीसदी अकेले सिंगापुर और मॉरीशस से आया।

सरकार:- भाजपा ने लोकसभा चुनावों में कालाधन वापसी को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था। एनडीए के सरकार में आने के पीछे एक बड़ी वजह कालाधन वापसी का वादा भी रहा है। चुनावों में कहा गया कि भारत का 80 लाख करोड़ रुपया विदेश में जमा है। भाजपा की सरकार आने पर 100 दिनों में वह वापस लाया जाएगा। एनडीए सरकार भी बन गई पर 100 दिन में हुआ कुछ नहीं। वर्ष 2015 में एक जुलाई से सरकार ने एक कानून बनाया। कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं संपत्ति और कर एक्ट आरोपण-2015, जिसकी कंप्लायंस विंडो अनुपालना मियाद 30 सितंबर को बंद हो गई। इस कानून के तहत बाहर कालाधन रखने वालों को तीन महीने की कंप्लायंस विंडो अनुपालना मियाद दी गई थी। सरकार ने विदेश में जमा आय की घोषणा न करने पर कड़ी कार्रवाई की धमकी भी दी। पर तीन महीनों के बाद सरकार 4,164 करोड़ रुपए की घोषणा ही करा पाई जाहिर तौर पर लोगों को कालाधन की घोषणा करने के लिए सहमत करने में सरकार विफल रही है। पिछले साल सरकार द्वारा घोषित की गई योजना ने अर्थव्यवस्था के आकार के अनुपात में, सबसे कम धन एकत्र किया।

उपसंहार:- प्रस्तुत सब बातों को मिलाकर वर्तमान में केवल एक ही बात सामने आई कि जब तक सरकार स्वयं कालेधन के विरूद्ध ठोस कदम नहीं उठाएगी तब तक कितने भी खुलासे हो जाए सब कुछ व्यर्थ ही होता नजर आएगा। अत: कालेधन को लेकर थोड़ी बहुत संभावनाएं पनामा पेपर्स खुलासें के कारण बनी हुई हैं फिर भी आगे सरकार कालेधन वापसी के लिए क्या ठोस कार्यवाई करती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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