चीन व पाकिस्तान (Essay in Hindi - China and Pakistan)

प्रस्तावना:-दुनिया जब परमाणु सुरक्षा और आतंकवाद को जोड़ कर देख रही है तो पाकिस्तान और चीन का रुख समझ से परे था। पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड (बुद्धिमता द्वारा महत्वपूर्ण योजना बनाना) मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के भारतीय प्रस्ताव को चीन ने संयुक्त राष्ट्र में आतंक की तकनीकी परिभाषा की आड़ में मानने से इनकार कर दिया। देश के दक्षिणी क्षेत्र में आतंक से जूझने के बावजूद मसूद अजहर, जकीउर्रहमान लखवी जैसे आतंकियों को पनाहगाह बने पाकिस्तान से दोस्ताना निभाने के पीछे आखिर चीन की कौनसी मजबूरी छिपी है? क्या उसकी बिगड़ती आर्थिक हालत ही इसके लिए जिम्मेदार है? क्या इस दोस्ती के कारण अलग-अलग पड़ जाएंगे चीन और पाकिस्तान?

अमरीका, भारत व चीन:- बराक ओबामा ने अमरीका का राष्ट्रपति बनने के साथ ही आतंकवाद को 21वीं सदी का सबसे बड़ा खतरा बताया था। उनकी चिंता परमाणु सुरक्षा को लेकर रही। हाल ही में अमरीका में आयोजित परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में मुख्य मुद्दा परमाणु आतंकवाद ही था और उसमें इस बात को लेकर गहरी चिंता जताई गई कि कहीं आतंकी संगठनों के हाथ में परमाणु हथियार या इन्हें बनाने की सामग्री न लग जाए। इसके लिए परमाणु शक्ति संपन्न सभी देशों को आगाह भी किया गया था। भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी इस सम्मेलन में शिरकत की और उन्होंने इस मामले में अनेक उपाय अपनाने के सुझाव देते हुए पाकिस्तान में शरण पाए आतंकर संगठन जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर व्यक्तिगत रूप से पाबंदी का प्रस्ताव भी दिया। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से सुरक्षा को लेकर जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा को तो आतंकी संगठन माना लेकिन इनके सरगनाओं को नहीं माना हैं। इस बार जैश के सरगना पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर को व्यक्तिगत रूप से प्रतिबंधित घोषित कराने के भारत के प्रस्ताव पर सभी बड़े राष्ट्र सहमत थे लेकिन चीन ने इस मामले पर पाकिस्तान से दोस्ताना निभाते हुए अड़ंगा लगाया। संयुक्त राष्ट्र में उसके प्रतिनिधि ल्यू जेई ने साफ तौर पर कहा कि मसूद अजहर संयुक्त राष्ट्र की आतंकी की परिभाषा के दायरे में नहीं आता।

पाकिस्तान:-जब परमाणु सुरक्षा को लेकर बात हो रही हो तो पाकिस्तान और वहां खुले घूमने वाले आतंकी संगठनों के सरगनाओं की बात भी होती है। पाकिस्तान का घरेलू माहौल ऐसा है कि वहां न केवल आतंकी संगठनों को शरण मिलती रही है बल्कि उन्हें बचाने की भी हरसंभव कोशिश की जाती रही है। यही कारण है कि इसके लिए अपने पुराने दोस्त चीन के सामने गिड़गिड़ता है। चूंकि चीन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का हालिया अध्यक्ष बना है तो इस काम में पाकिस्तान को वह सरलता से मदद देने की स्थिति में रहा। इसके अलावा काश्गर से लेकर ग्वादर बंदरगाह तक चीन की आर्थिक हालत खराब है और वह दक्षिण एशिया के छोटे देशों के राजनीतिक प्रभुत्व के साथ आर्थिक लाभ के रास्तें भी खोजता हे। इसके साथ ही पाकिस्तान के माध्यम से भारत और उत्तरी कोरिया के माध्यम से जापान को रोकने के उपाय भी खोजता है।

भारत:- चीन के इस कदम से भारत कोई बहुत बड़ी लड़ाई नहीं हार गया है, हां, इससे कुछ हद तक निराशा जरूर है। लेकिन, हमें देखना यह है कि मोदी की ब्रसेल्स अमरीका और फिर सऊदी अरब की यात्रा से क्या पाया है? हकीकत में भारत के संबंध दुनिया में केवल दव्पक्षीय नहीं बल्कि बहुपक्षीय हो रहे हैं। भारत उभरती बड़ी आर्थिक शक्ति है। उसने आतंकवाद के मामले में दुनिया का नजरिया बदला है कि यह केवल गरीबी की देन नहीं है। लोग अब भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इसका सामना करने को तैयार हो रहे हैं। आतंकवाद पर भारतीय सुझावों को मान्यता मिल रही है। हकीकत तो यह है कि पाकिस्तान जिन देशों से मुस्लिम देश होने के नाम पर सहयोग हासिल करता रहा है, वे भी भारत से जुड़ रहे हैं, चाहे मध्य पूर्व के देश हों या फिर सऊदी अरब के देश हों। वे भारत की विकास दर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घटती कच्चे तेल की कीमतों के कारण बिगड़ती आर्थिक स्थिति को भी समझ रहे हैं। कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश भारत से सीखना साहते हैं। कि सीमित संसाधनों के साथ भारत किस तरह से आतंकवाद से निपटने की बात कर रहा है। दूसरी तरफ स्थिति यह है कि चीन पाकिस्तान का इकलौता मित्र देश बन रहा है लेकिन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह स्थिति लंबे समय तक नहीं चल सकती। आखिर, चीन की सीमा है। लंबे समय तक तो वह भी पाकिस्तान का साथ नहीं निभा सकता।

नजरिया:- आतंक के मामले को लेकर भारत का नजरिया बिल्कुल साफ है और मोदी ने अपनी बात बहुत ही स्पष्ट तरीके से चौथे परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में भी रखी। भारत की ओर से जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकी घोषित कर उसे प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव आया तो चीन ने भारत के इस प्रस्ताव का विरोध किया है। जो लोग चीन की फितरत को समझते हैं और उन्हें उसके इस विरोध पर किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह तो निश्चित ही था कि उसकी ओर से भारत के किसी भी प्रस्ताव का विरोध ही किया जाएगा। शायद ही कभी ऐसा होगा कि दक्षिण एशिया के संदर्भ में भारत के किसी भी प्रस्ताव का चीन समर्थन करें। पाकिस्तान और चीन में काफी पुरानी दोस्ती है। पाकिस्तान की ओर से तो कहा भी गया था कि चीन के साथ उसके रिश्ते शहद से अधिक मीठे समुद्र से अधिक गहरे हैं। चीन को स्वाभाविक तौर पर इन रिश्तों का लिहाज तो करना ही था।

संबंध:- पाकिस्तान के साथ चीन के खास संबंधों से सभी वाकिफ हैं, लेकिन यह संबंध नैतिकता से नहीं बल्कि साझा रणनीतिक व आर्थिक हितों से संचालित हैं। दोनों देश यह बताना पंसद करते हैं कि उनके संबंध समुद्र से गहरे व हिमालय से ऊंचे हैं। इसका आधार सैद्धांतिक या भावनात्मक न होकर व्यावहारिकता से है। चीन 1965 से ही पाकिस्तान का रणनीतिक सहयोगी रहा है। चीन से पाक के संबंध को अमेरिका की तुलना में अधिक ऊचं पैमाने पर रखा हैं। क्योंकि वाशिंगटन के विपरीत बीजिंग ने अपनी पाकिस्तान नीति को कभी भारत के साथ जोड़कर नहीं व्यक्त किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि इसमें भारत का कोई स्थान ही नहीं है।

शस्त्र:-जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहा करते थे कि चीन पाकिस्तान को भारत के खिलाफ कम लागत वाले सहयोगी के रूप में इस्तेमाल कर त्रिकोणीय कूटनीति में हमें घेरता रहा है। इसका आशय यह है कि चीन पाकिस्तान को सुरक्षित, शस्त्र-सज्जित (परमाणु हथियारों सहित) और आर्थिक रूप से सक्षम बनाए रखता है, तो यह भारत को विचलित रखने के लिए काफी है। तब भारत पाकिस्तान की चिंता में डूबा रहने के कारण चीन की तरफ ध्यान नहीं देगा। वाजपेयी की तरह डॉ. सिंह के लिए भी पाकिस्तान से सबंध सुधारने का प्रयास इस त्रिकोण से बाहर आने का तरीका था।

क्षेत्रीय हित:- दक्षिण एशियाई की राजनीति में वह अपना दखल बढ़ाता जा रहा है। मामला चाहे श्रीलंका से संबंधित हो या फिर पाकिस्तान से, चीन के अपने क्षेत्रीय हित जुड़े हुए हैं। वह अपने क्षेत्रीय हितों को सबसे ऊपर रखकर चलता है। इस मामले में वह कोई समझौता नहीं करता अपनी इसी रणनीति के तहत उसने मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के भारतीय प्रस्ताव का विरोध किया। पाकिस्तान में चीन का सबसे बड़ा हित है पाक अधिकृत कश्मीर से होते हुए काश्गर से ग्वादर बंदरगाह तक बनने वाला अार्थक कॉरिडोर है यदि पाकिस्तान में चीन का किसी भी किस्म का विरोध होने लगे तो इस आर्थिक कॉरिडोर को खतरा उत्पन्न होने की आशंका बहुत अधिक बढ़ सकती है।

मजबूरियां:- चीन की मजबूरी है कि वह पाकिस्तान में हर स्तर पर घरेलू परिस्थिति को अपने पक्ष में बनाए रखे। इसलिए पाकिस्तान में घरेलू स्तर पर लोगों को तुष्ट करने के लिए यह जरूरी था कि वह परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में भारत के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करे। फिर, यह प्रस्ताव तो मसूद अजहर से सबंधित था, इसलिए भी उसे इसका विरोध करना ही था चीन यह भी समझता है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों के अलावा सेना है और सेना के अतिरिक्त बहुत से स्वतंत्र आतंकी संगठन भी है। चीन किसी भी ऐसे संगठन या ताकत को नाराज करके नहीं चलना चाहता जो पाकिस्तान में उसके हितो को नुकसान पहुंचाए।

समझना:-चीन काेे समझना चाहिए कि हत्या तो हत्या ही होती है। इसे छोटी या बड़ी हत्याओं में नहीं विभाजित किया सकता है। इसी तरह आतंक ही आतंकी ही होता है, यह छोटा या बड़ा नहीं होता है। इसे किसी संगठन के नियमों के नजरिये से नहीं देखा जा सकता है। उसका यह तर्क कि संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार मसूद अजहर को आतंकी नहीं कहा जा सकता यह बात बिल्कुल गलत और बहुत ही अतार्किक है। दूसरी बात यह है चीन को अमरीका और फ्रांस से सबक सीखना चाहिए। अमरीका भी 9⟋11 से पहले तक आतंक में इसी किसम का भेद करता था लेकिन जब उस पर बीती तब उसे समझ में आया कि आतंक होता क्या है? इसी तरह जब फ्रांस में आतंकी हमले हुए, तब उसे भी यही बात समझ में आई। चीन के भी कुछ इलाके आतंक की गिरफ्त में हैं। वह भी आतंकवाद को झेल रहा है। ऐसे में उसे अपने स्वार्थ को छोड़ आतंक को समझकर भारत के प्रस्तावन का साथ देना चाहिए था।

बीजिंग:- चीन ने कहा कि मसूद अजहर के मामले में भारत और पाकिस्तान सीधे बात कर लें। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन दोनों देशों को सीधे बात करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। क्या भारतीय मंत्रियों से वार्ता के बाद चीन का रूख मसूद के मामले में बदला है। क्योंकि चीन ने ऐन मौके पर मसूद को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सुची में शामिल करने के प्रस्ताव को नहीं माना है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने चीन के सामने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थीं।

उपसंहार:- प्रस्तुत सब बातों से अभी तक यही बात सामने आई है कि चीन अपने हितों के लिए कुछ भी कर सकता है वे किसी भी देश के बातों को समझने के लिए तैयार नहीं हैं पर चीन यह नहीं जानता है कि उसे भी कभी आतंकवाद के मामलें में पाकिस्तान के खिलाफ कभी लड़ना पड़ सकता हैं। लेकिन अभी फिलहाल अपने हित के अलावा चीन को ओर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है।

समाप्त

Examrace Team at Aug 24, 2021