उच्च तैरह समाचार (Main Thirteen News - In Hindi) Part - 1

बांग्लादेश:- बांग्लादेश में 16 वें संविधान संशोधन के जरिए देश के मुख्य न्यायाधीश सहित शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीशों व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों विरुदव् महाभियोग के इस्तेमाल की शक्ति संसद को दी गई थी। शीर्ष न्यायालय ने भी जब इसे असंवैधानिक बताया तो न्यायपालिका के कार्य में राजनीतिक दखल की शुरूआत हो गई।

  • बांग्लादेश में इन दिनों न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव चरम पर है। इसका कारण है 2014 में किया गया सोलहवां संविधान संशोधन। इस संशोधन के तहत देश की संसद को अधिकार दिया गया था कि वह सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) के मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायाधीशों पर महाभियोंग का इस्तेमाल कर सकेगी। यह इस्तेमाल भी भ्रष्टाचार, कार्य में अक्षमता जैसे साधारण आरोपों के आधार पर हो सकेगा। अभी तक बांग्लादेश के मुख्य न्यायधीश और दो अन्य न्यायाधीश मिलकर तय कर सकते हैं कि किसी न्यायाधीश के विरुदव् महाभियोग चलाया जाए या नहीं। लेकिन, इस व्यवस्था को सोलहवें संविधान संशोधन के जरिये बदलने की कोशिश की गई। बांग्लादेश में संसदीय लोकतंत्र है और संविधान संशोधन इस लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आघात माना जा रहा था। इन हालात के मद्देनजर 2016 में उच्च न्यायालय में इस संशोधन के विरुदव् याचिका दायर की गई। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा कि संसद इस तरह का कोई फैसला नहीं ले सकती। यह असंवैधानिक है और यह न्यायपालिका की स्वायत्ता पर सीधा हमला है इसके कार्य में सीधा हस्तक्षेप है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। संसद ने इसे अपना अपमान समझा और उच्च न्यायालय का फैसला सही है या नहीं, यह तय करने के लिए मामला बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय को सौंपा गया। सर्वोच्च न्यायालय में सात न्यायाधीशों की पीठ बनी और उसके प्रमुख थे बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश सुरेन्द्र कुमार सिन्हा। वे बांग्लादेश के पहले अल्पसंख्यक यानी हिन्दु मुख्य न्यायाधीश भी हैं। उनकी अध्यक्षता में इस संविधान पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को सही करार दिया। यही नहीं संविधान पीठ का यह फैसला सर्वसम्मति से दिया गया। इसका सीधा सा अर्थ यही था, बांग्लादेश की शीर्ष अदालत भी मानती है कि संसद को न्यायाधीशों विरुदव् महाभियोग चलाने की शक्ति नहीं दी जा सकती। यह स्थिति बांग्लादेश ही नहीं दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। संविधान संशोधन को अक्षरश: मान लिया जाए। तो न्यायपालिका के लिए न्याय करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। लोकतंत्र की रक्षा के लिए न्यायपालिका का स्वायत्ता के साथ बिना किसी दबाव के काम करना जरूरी है। यदि सोलहवां संविधान संशोधन सही माना जाए तो न्यायपालिका देश की कार्यपालिका या विधायिका के दबाव में काम करने को मजबूर होगी।
  • न्यायाधीश सांसदों और बड़े नेताओं के विरुदव् तो कोई फैसला दे ही नहीं सकेंगे। नेता उन्हें साधारण आरोप से महाभियोग का डर दिखाकर बचते रहेंगे। इन परिस्थितियों में लोकतंत्र के बचने की कोई उम्मीद ही नहीं रह जाती। लेकिन, जब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया तो कार्यपालिका की नाराजगी और बढ़ गई। यहीं से न्यायपालिका के कामकाज में राजनीतिक दखल की शुरुआत हो गई। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और आवामी लीग की नेता शेख हसीना ने मुख्य न्यायाधीश पर कई निजी आरोप लगाए। उन्हें भ्रष्टाचारी भी कहा गया। मामला यहीं शांत नहीं हुआ। बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हामिद ने भी उन पर भ्रष्टाचार, अनैतिक कार्य करने चाला, धन शोधन करने वाला जैसे 11 आरोप लगा डाले। राष्ट्रपति के कहने पर शीर्ष अदालत के चार न्यायाधीशों ने सिन्हा के साथ विशेष बैठक की। इन न्यायधीशों ने उन्हें सलाह दी कि वे इन आरोपों से इनकार कर दें। लेकिन, सिन्हा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करने से पहले वे इस्तीफा दे देंगे। इस पर इन न्यायाधीशों ने बयान दिया कि उनके लिए सिन्हा के साथ काम करना अब संभव नहीं होगा। इसके बाद मुख्य न्यायधीश ने इस्तीफा देने की बजाय छुट्‌टी पर जाने के लिए आवेदन कर दिया जिसे राष्ट्रपति ने मंजूर भी कर लिया। वे देश छोड़कर ऑस्टेलिया चले गए तो उनके बारे में सरकार की ओर से बयान आया कि वे बीमारी की वजह से लंबी छुट्‌टी पर चले गए हैं। इसके जवाब में सिन्हा ने बयान कि वे पूर्णरूप से स्वस्थ हैं और वर्तमान हालात से आहत हैं। देश में हालात स्थिर होते ही वे लौट आएंगे। उधर, बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की नेता खलिदा जिया का कहना है कि सिन्हा अपनी मर्जी से छुट्‌टी पर नहीं गए हैं बल्कि उन्हें दबाव में लाने के लिए लंबी छुटटी पर जाने को मजबूर किया गया हैं। जनवरी 2018 में मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार इस मामले में पुनर्विचार दाखिल करेगी और संभवत: न्यायपालिका इस याचिका में संविधान संशोधन को सही ठहरा दें। इससे कम से कम सत्तारूढ़ दल के विरुदव् फैसला देना तो असंभव ही हो जाएगा। इस तरह बांग्लादेश में लोकतंत्र के लिए खतरा बढ़ता लग रहा है। यदि वहां संविधान संशोधन को स्वीकृत करवाना ही था तो उसके लिए लोकतांत्रिक तरीके से आम जनता के बीच राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखनी चाहिए थी। कम से कम संसद के भीतर तो राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। लेकिन, ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। इन हालात को देखें तो भारतीय लोकतंत्र कहीं बेहतर बल्कि श्रेष्ठ नजर आता है।

दीपक के. सिहं, द. एशिया मामलों के जानकार, पंजाब विश्वविद्यालय के राजनीति शस्त्र विभाग में अध्यापन

उ. कोरिया:-पिछलेकुछ महीनों मेंजितने देशों की केन्द्रीय बैंको (अधिकोष) में डिजिटल (अंकसंबंधी) चोरी हुई, उनमें से ज्यादातार को उ. कोरियाई हैकरों ने अंजाम दिया। उ. कोरिया ने वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए साइबर हैकरों की आर्मी (सेना) तैयार की है, जिनका उपयोग वह वित्तीय संस्थानों में सेंधमारी में करके करोड़ों डॉलर (मुद्रा) चुराने में करता हैं। अमेरिका भी अछूता नहीं है, लेकिन वह उसे नहीं रोक सकता। अमेरिका ने खुद को बचाने के उपाय किए हैं, बजाय उसके रोकने के।

  • पिछले वर्ष उ. कोरियाई हैकरों ने न्यूयॉर्क के फेडरल (संघीय) रिजर्व (आरक्षित) से एक अरब डॉलर (मुद्रा) चुराने की कोशिश की, लेकिन स्पेलिंग (वर्तनी) में गलती के कारण ऐसा नहीं सकता। वो हैकर (घुसपैठिया) बांग्लादेश सेंट्रल बैंक (केन्द्रीय अधिकोष) के खाता में चोरी कर रहे थे। पड़ताल में पता चला कि हैकरों ने फाउंडेशन (नींव) की स्पेलिंग गलत टाइप कर दि उसके बाद भी उ. कोरियाई हैकरों ने 8.1 करोड़ डॉलर चुराने की कोशिश की, लेकिन नहीं चुरा पाए। तब उनका खूब मजाक उड़ाया गया था, लेकिन आज वो इस कार्य को बखूबी अंजाम दे रहे हैं।
  • इसी वर्ष उ. कोरियाई हैकरों ने दुनियाभर के कई बैंक खातों में सेंधमारी की कोशिश की, लेकिन शायद ही उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली। 22 वर्षीय एक ब्रिटिश हैकर ने उ. कोरियाई हैकरों के साइबर हमलों को कई बार नाकाम किया। मई माह में दर्जनों देशों में हजारो कम्प्यूटरों पर रैन्समवेयर (एक वायरस हैं) हमला किया गया था, जो खातों से राशि चुराने के लिए था। उसका कुछ असर ब्रिटेन की नेशनल (राष्ट्रीय) हेल्थ (स्वास्थ्य) सर्विस (सेवा) के कम्प्यूटरों पर भी हुआ था। उ. कोरियाई साइबर हमलों की निगरानी करने वाले अमेरिकी एवं ब्रिटिश विशेषज्ञों ने बताया कि उनका ट्रैक (धावन पथ) रिकॉर्ड (प्रमाण) मिला-जुला है। उनके पास 6000 से अधिक हैकरों की आर्मी (सेना) है, जो लगातार अपने काम सुधार रही है। अभी दुनिया का पूरा ध्यान उ. कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर है। लेकिन इसकी आड़ में उसने अपना साइबर प्रोग्राम (कार्यक्रम) ज्यादा प्रभावी बना लिया है। उनका उद्देश्य अलग-अलग देशों के बैंक खातों से करोड़ों डॉलर (मुद्रा) चुराकर दुनियाभर में हाहाकार मचाना है।
  • मिसाइल (प्रक्षेपण) परीक्षणों के कारण उ. कोरिया पर कई तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं, लेकिन उसके साइबर हमलों को किसी प्रतिबंध में नहीं रोका जा सकेगा। और न ही ऐसा संभव है। जबकि, वहां का तानाशाह किम जोंग उन अपनी साबर आर्मी का इस्तेमाल पश्चिमी देशों के खिलाफ करने लगा है। एक वह समय था, जब पश्चिमी विशलेषकों ने उ. कोरिया के परमाणु कार्यक्रम का मजाक उड़ाया था। उन्हें भरोसा नहीं था कि यह देश ऐसा कर सकता है आज स्थित बिल्कुल अलग और दुनिया के सामने है। उसी तरह, साइबर विशेषज्ञों को अंदाजा नहीं था कि यह देश साइबर हमलों को अंजाम देने की स्थिति में आ जाएगा, आज वह ऐसा कर रहा है और इसमें उसका जरा भी नुकसान नहीं है। उ. कोरिया के हैकर देश के बाहर से साइबर हमलों को अंजाम दे रहे हैं। ऐसे में उस पर कितने भी प्रतिबंध लगाए जाएं, वह नाकाम साबित होंगे।
  • ऐसे भी नहीं है कि ये हमले एकतरफा हैं उ. कोरिया और अमेरिका पिछले कई वर्षो से साइबर हमलों में सक्रिय रहे हैं। अमेरिका की पोल खोलने वाले व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन ने एक खुलासे में बताया था कि अमरीका और दक्षिण कोरिया ने मिलकर उ. कोरिया की सीआईए जैसी एजेंसी (शाखा) में डिजिटल (अंकसंबंधी) घुसपैठ कर रखी है। अमरीका ने ऐसे साइबर एवं इलेक्ट्रॉनिक (विद्युत) हथियार बनाए, जिनका उपयोग उ. कोरिया की मिसाइलों को फुस्स करने में किया जा सके। उन हथियारों की कितनी सफलता मिली, यह अस्पष्ट है। आज खुफिया अधिकारी मानते हैं कि वह हर साल लाखों-करोड़ों डॉलर रैन्समवेयर हमले, बैंको में डिजिटल डकैती, ऑनलाइन वीडियो गेम (खेल) क्रेकिंग (दरार) से कमा रहा है।
  • पिछले दशकों में उ. कोरिया और ईरान परमाणु तकनीक का आदान-प्रदान करते रहे हैं। साइबर मामलों में ईरानी विशेषज्ञ उ. कोरियाई हैकरों को महत्वपूर्ण मानते हैं। वर्ष 2012 की गर्मियों में अमेरिका और इजराइल ने ईरान पर साइबर हमला किया था, क्यों पता चला था कि वहां के हैकरों ने सऊदी अरब की सबसे समृद्ध तेल कंपनी (संगठन) अरामको को निशाना बनाया था। अगस्त में ईरानी हैकरों ने अरामकों के 30 हजार कम्प्यूटरों एवं 10 हजार सर्वरों पर वाइपर (दुर्जन) वाइरस (विषाणु) छोड़कर पूरा डेटा (आंकड़ा) डिलीट (हटाना) करने और उसकी जगह पर जलते हुए अमेरिकी ध्वज दिखाए थे। वह नुकसान बहुत भयावह था। इसके सात महीने बाद उ. कोरियाई हैकरों ने चीन में बैठकर दक्षिण कोरिया की तीन बड़ी बैंको और दो बड़ी प्रसारण कंपनियों के कम्प्यूटर (परिकलक) नेटवर्क (जाल पर कार्य) पर अरामको की तरह हमला किया था। तब उनका उद्देश्य डेटा (आंकड़ा) डिलीट (हटाना) करके हर तरह की बिजनेस (कारोबार) गतिविधियों पर रोक लगाना था। उ. कोरिया के साइबर हमलों का एकमात्र उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा राशि चुराना है।
  • उ. कोरियाई तानाशाह अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए साइबर हमले करवा रहा है। उसे ईरान का सहयोग प्राप्त है और चीन की तरफ से संभवत: उसे तकनीकी मदद मिल रही है।

गुजरात:- मोदी जी ने भावनगर जिले के घोघा और भरूच के दहेज के बीच अपनी तरह की पहली अत्याधुनिक नौका सेवा का उद्घाटन किया है। यह और इसके बाद दूसरे चरण में हजीरा परियोजना से देश में परिवहन और माल व सेवा देने के क्षेत्र में आमूल बदलाव की शुरूआत हो रही है। भारत में लॉजिस्टिक (तार्किक) लागत अत्यधिक ऊंची है और जलमार्गो की पूरी क्षमता का दोहन करने से लोगाेें, सामान, वस्तुओं और वाहनों की ढुलाई व परिवहन में तेजी आएगी। लागत और समय घटने का मैन्यूफैक्चरिंग (विनिर्माण) और निर्यात पर अत्यधिक फायदेमंद प्रभाव पड़ेगा। जैसे सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के बीच खम्बात की खाड़ी में रोल ऑन रोल ऑफ (जल्दी आना जल्दी जाना) फेरी के प्रोजेक्ट (परियोजना) से 8 घंटे की यात्रा समय सिर्फ 1 घंटे रह जाएगा और 360 किलोमीटर का फासला महज 31 किलोमीटर रह जाएगा।

देश में जल परिवहन के लायक 14,500 किलोमीटर के अंतर्देशीय और 7,517 किलोमीटर के समुद्र तटवर्ती जलमार्ग हैं। तटवर्ती जहाज सेवा और अंतर्देंशीय जल परिवहन ईंधन के हिसाब से किफायती, पर्यावरण अनुकूल और लागत की दृष्ट से सस्ता परिवहन विकल्प है खासतौर पर बल्क कार्गों की दृष्टि से। कंटेनर (पात्र) वेसल (पतीला) से जो उत्सर्जन होता है वह प्रति टन प्रति किलोमीटर 32 से 36 ग्राम कार्बन डाई-ऑक्साइड का होता है, जबकि भारी सड़क वाहनों से समान मानकों पर 51 से 91 ग्राम कार्बन डाई-ऑक्साइड निकलती है। सड़क परिवहन पर प्रति-टन प्रति किलोमीटर औसतन 1.50 रुपए, रेल परिवहन पर 1 रुपए लागत आती है, जबकि जलमार्गों के लिए यह लागत सिर्फ 25 से 30 पैसे है।

सड़क माध्यम से एक लीटर ईंधन से 24 टन-किमी, रेल से 85 टन-किमी और जल परिवहन से इतने ही ईंधन में प्रति किलोमीटर 105 टन माल ले जाया जा सकता है। यदि लॉजिस्टिक (तार्किक) की लागत जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 14 से 9 फीसदी तक घटाई जा सके तो देश हर साल 50 अरब डॉलर बचा सकेगा, जिससे उत्पादों की कीमतें भी घटेगी। भारत में परिवहन के लायक जितने जलमार्ग हैं उनमें करीब 5,200 किलोमीटर (36 फीसदी) प्रमुख नदियों और करीब 485 किलोमीटर (3 फीसदी) नहरों में मौजूद हैं। फिर जलमार्गो के विकास में भूमि अधिग्रहण और अन्य मुद्दे भी कम हैं। फिलहाल सिर्फ 4,500 किलोमीटर अंतर्देंशीय जलमार्ग का वाणिज्यिक उपयोग हो रहा है और घरेलू माल 1 फीसदी से भी कम ले जाया जाता है। देश की तटरेखा के संपूर्ण विकास के लिए सरकार ने मार्च 2015 में सागरमाला कार्यक्रम शुरू किया है।

रोल ऑन और रोल ऑफ (आरओ-आरओ) जलमार्ग परियोजना में ऐसे आरओ-आरओ जहाज व नौकाएं हैं, जिन्हें कार, ट्रक, सेमीट्रैलर ट्रक, ट्रैलर और रेलरोड (सड़क) कार जैसे पहिये वाला माल ले जाने के लिए डिजाइन (रूपरेखा) किया गया है। इन्हें जहाज पर पहियों पर चलाकर अथवा किसी प्लेटफॉर्म (मंच) वाहन के जरिये चढ़ाया व उतारा जा सकता है। इसमें जेटी, संबंधित पोर्ट (बंदरगाह) टर्मिनल (आखिरी स्थान) और कनेक्टिविटी (संयोजकता) का बुनियादी ढांचा भी शामिल है। जहां यात्री जेटी का इस्तेमाल सिर्फ यात्रियों के लिए होगा, आरओ-आरओ जेटी में रैम्प (चल सीढ़ी) लगे होंगे ताकि साामन को आसानी से चढ़ाया व उतारा जा सके।

गुजरात के आरओ-आरओ प्रोजेक्ट (परियोजना) के तहत दो टर्मिनलों (आखिरी स्थान) के बीच 100 वाहनों और 250 यात्रियों को ले जाया जा सकेगा। खास बात यह है कि फेरी ऑपरेटर (चालक) किराया वर्तमान में बसों द्वारा लिए जा रहे किरायों के समान ही रखेंगे। देश में असम, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में विभिन्न आरओ-आरओ प्रोजेक्ट (परियोजना) में वह क्षमता है कि जिससे भीतरी व भौगोलिक रूप से अलाभप्रद इलाकों की पूरी क्षमता का दोहन-संभव हो सकेगा।

भारतीय रेल भी बिहार में माल वाहनों और त्रिपुरा में पेट्रोलियम पदार्थों को ढुलाई के लिए आरओ-आरओ सेवा शुरू कर रही है। विश्व बैंक की 2016 की रिपोर्ट (विवरण) में लॉजिस्टिक (तार्किक) परफॉर्मेंस (प्रदर्शन) इंडेक्स (सूची) पर भारत 2014 की 54वीं रैंक (श्रेणी) से उठकर 35वीं रैंक पर आ गया है। इसमें और सुधार के लिए विभिन्न परिवहन माध्यमों में एकीकृत आवाजाही के लिए प्राथमिकताएं तय की जा रही है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि इससे डीजल और पेट्रोल के आयात पर भारत की निर्भरता घट जाएगी और देश वृद्धि की नई ऊंचाई हासिल करेगा।

अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग

सवा महीने के भीतर मोदी ने अपनी गुजरात यात्रा के दौरान देश को तीसरा बड़ा तोहफा दिया। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले अहमदाबाद से मुंबई बुलेट ट्रेेन (रेल) , द्वारका से ओख के बिल ब्रिज और सौराष्ट्र से घोघा पोर्ट (बंदरगाह) से दक्षिण गुजरात के दहेज तक रो-रो बोट फेरी सेवा की शुरूआत प्रधानमंत्री ने बंदरगाहों से विकास का द्वार खोल दिया। भावनगर के पास घोघा पोर्ट से आधुनिक बोट में दिव्यांग बच्चों के साथ भरुच के निकट दहेज पोर्ट तक सफर कर मोदी ने संभवत: किसी पीएम का पहला -समंदर-शो किया। इसके बाद मोदी ने वडोदरा में 1140 करोड़ की कई योजनाओं का लोकापर्ण करते हुए रोड-शो (सड़क कार्यक्रम) भी किया। इससे पहले दहेज में भी मोदी ने जनसभा की। मोदी ने घोघा में जनसभा में कहा कि अब वडोदरा से भावनगर के आठ घंटे से अधिक का सफर समुद्र मार्ग से मात्र एक घंटे में सिमट जाएगा।

मोदी जी ने कहा कि दक्षिण व पूर्व एशिया की सबसे बड़ी परियोजना आधुनिक तकनीक से पूर्ण होने पर साढ़े छह करोड़ गुजरातियों का सपना पूरा हुआ। समुद्री राज्यों के लिए परियोजना विकास का उत्तम उदाहरण है। इससे समुद्री पर्यटन का नया अध्याय शुरू हुआ है।

सौराष्ट्र के घोघापोर्ट से द. गुजरात के दहेज पोर्ट तक बोट सेवा के लाभ-

  • 01 घंटे में 8 घंटे का सफर अब तय होगा।
  • 30 किमी में सिमटेेगी 330 किमी की दूरी।
  • 500 यात्री एक साथ कर सकेंगे सफर
  • 100 वाहन बस-ट्रक ने जाए जा सकेंगे।
  • 30 बोट फेरी होगी प्रतिदिन।
  • 650 करोड़ का प्रोजेक्ट। (परियोजना)

मुंबई-गोवा-दमण-दीव-सूरज तक की भी योजना समुद्री फेरी की दूसरे चरण में

कश्मीर समस्या:- सात साल बाद केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए सभी पक्षों से बातचीत शुरू करने जा रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका ऐलान किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार कश्मीर में बातचीत के जरिए समस्या का हल तलाशेगी। केन्द्र ने पूर्वी आईबी डायरेक्टर (निर्देशक) दिनेश्वर शर्मा को इसका प्रतिनिध बनाया है, जो बातचीत की प्रक्रिया शुरू करेंगे। गृह मंत्री ने कहा कि शर्मा को बातचीत करने की पूरी आजादी होगी। राजनाथ ने कहा कि दिनेश्वर शर्मा को केबिनेट (मंत्रिमंडल) सचिव का दर्जा मिलेगा। उन्होंने बताया कि बातचीत की कोई सीमा नहीं है और शर्मा तय करेंगे कि किससे बात करनी हैं और किससे नहीं। राजनाथ ने कहा कि शर्मा सभी पक्षों से बातचीत के बाद अपनी रिपोर्ट (विवरण) केन्द्र और जम्मू-कश्मीर सरकार को सौंपेगे।

कौन हैं दिनेश्वर शर्मा- बिहार निवासी दिनेश्वर शर्मा 1978 बैच (गुट) के आईपीएस हैं। वे आईबी चीफ (मुखिया) रह चुके हैं। फिलहाल, मणिपुर में उग्रवादी गुटों से बातचीत कर रहे हैं। इस बातचीत का एक दौर भी होना है। फेसले के बाद शर्मा राजनाथ से भी मिले। उन्होंने इसे बड़ी जिम्मेदारी बताया है। उन्होंने कहा कि मेरी प्राथमिकता घाटी में अमन चैन लाना है।

बेहतर माहौल- एनआईए ने पाक से पैसा लेने के आरोपों पर सात अलगाववादी नेताओं पर कार्यवाई की है। एनआईए की कार्रवाई के बाद घाटी में पथराव की घटनाओं में कमी आई है। इससे अलगावादी नेताओं की कमर टूट चुकी है।

आंतकियों का सफाया- इस साल सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर कश्मीर घाटी से आतंकियों का सफाया किया है। अक्टूबर तक 150 से ज्यादा आंतकियों को मार गिराया गया। राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा था कि भारतीय सैनिक भारत-पाक बॉर्डर (सीमा) पर हर दिन करीब 5 - 6 आतंकियों को मार रहे हैं। इससे आतंकी हताश हो गए हैं और कश्मीरी लोगों पर हमला करने पर उतारू हो गए हैं।

विचार-बातचीत नहीं से सभी पक्षों से बातचीत, यह उनकी बड़ी जीत है जो कश्मीर में राजनीतिक समाधान की पैरवी करते हैं।

पी चिदंबरम, कांग्रेस नेता

यह उन लोगों की हार है जो ताकत या फोर्स (बल) के दम पर कश्मीर मुद्दे को हल करना चाहते हैं।

उमर अबदुल्ला, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम

जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए बातचीत का दौर फिर शुरू होने जा रहा है। केन्द्र सरकार के इस कदम को देर से उठाया गया एक सही कदम माना जा सकता है। केन्द्र ने बातचीत के लिए इंटेलिजेंस (बुद्धि) ब्यूरो (विभाग) के पूर्व निदेशक दिनेश्वर शर्मा को अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर सकरात्मक पहल की है। केन्द्र की यह पहल कुछ सवाल भी खड़े करती है। ऐसे सवाल जिनका जवाब जनता सालों से तलाश कर रही है। गुहमंत्री राजनाथ सिंह ने बातचीत शीघ्र शुरू होने तथा कश्मीरी युवाओं पर विशेष ध्यान देने की बात की है। कश्मीर पिछले तीन दशक से सुलग रहा है। हजारों लोग मारे जा चुके हैं जिससे लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। देश के मुकुट के रूप में पहचाना जाने वाला जम्मू-कश्मीर साल दर साल अन्य राज्यों से पिछड़ता जा रहा है। पर्यटको से आबाद रहने वाली कश्मीर घाटी सूनी पड़ी है। डल झील उदास है तो खामोश खड़े शिकार बदहाली की कहानी बयां कर रहे हैं। कश्मीर के युवा को अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा। ऐसे में बातचीत शुरू होने की खबर उम्मीद तो जगाती ही है। दिनेश्वर शर्मा कश्मीर के हालात से भी परिचित हैं और पहले हुई बातचीत में आए अवरोधों से भी। कोशिश ये होनी चाहिए कि बातचीत में राजनीतिक दलों और अलगाववादियों की बजाए आम लोगों को महत्व दिया जाए। राजनीतिक दल और अलगाववादी कभी अपने स्वार्थों से ऊपर उठते ही नहीं। कश्मीर में आतंकवाद ने सबसे अधिक नुकसान आम आदमी को ही पहुंचाया है। युवाओं को विश्वास में लेकर बातचीत किसी नतीजे तक पहुंचाई जा सकती है। कश्मीर में फैले आतंकवाद ने हर सरकार को परेशान किया है। राजनीतिक दलों को भी बातचीत के दौरान राजनीति करने से बचना होगा। चंद वोटो के फायदे के लिए वैमनस्यता को बढ़ाने वाली पुरानी सोच को भी छोड़ना होगा। कश्मीर एक बार देश की मुख्यधारा से फिर जुड़ जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान स्वत: निकल आएगा। ऐसा तभी संभव है जब सभी पक्ष संकुचित दायरे से बाहर आने का साहस दिखांए।

केन्द्र ने कश्मीर में अमन की बहाली के लिए खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को मुख्य वार्ताकार नियुक्त कर सही दिशा में सकरात्मक कदम उठाया है। इसकी काफी दिनों से मांग चल रही थी और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती बार-बार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मिल भी रही थी। भाजपा के असंतुष्ट नेता यशवंत सिन्हा और कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर इस दिशा में लंबे समय से प्रयास कर रहे थे। संभव है कि उन अलगाववादियों से भी अनौपचारिक वार्ता की गई हो, जो अक्सर आजादी से कम पर किसी वार्ता के लिए राजी नहीं होते। 15 अगस्त को पीएम मोदी ने लाल किले से दिए भाषण में इसका संकेत दिया था। उन्होंने कहा था कि कश्मीर समस्या का समाधान न गाली से न गोली से होगा। कश्मीर समस्या का समाधान लोगों को गले लगाकर होगा। जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती ने फैसले का स्वागत किया है। यह ऐलान देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के एलान के अनुरूप ही है कि कश्मीर पर संविधान नहीं इंसानियत के दायरे में बात होनी चाहिए। वाजपेयी ने श्रीनगर में इंसानियत और जम्हूरियत के साथ कश्मीरियत के दायरे में वार्ता करने का प्रस्ताव रखकर सभी का मन मोह लिया था और यासीन मलिक और शब्बीर शाह जैसे अलगाववादी नेता भी उनकी प्रशंसा करने लगे थे। लेकिन, अलगावावादी नेताओं के अड़ियल रवैए और वाजपेयी के फिर सत्ता में आने से वह सिलसिला टूट गया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी 2006 और 2007 में उसी तर्ज पर कश्मीर में तीन गोलमेज सम्मेलन कराए लेकिन, उनका नतीजा भी असफल रहा। उस समय के वार्ताकार दिलीप पाडगांवकर और राधाकुमार ने कई समाधानों के साथ विस्तृत रपट भी दी थी, जिसका इस्तेमाल शर्मा भी कर सकते हैं, इसलिए देखना है कि अलगाववादियों से निपटने में माहिर कहे जाने वाले वार्ताकार शर्मा किन पक्षों को बातचीत की मेज तक ला पाते हैं। फारूक अब्दुल्ला की इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि समाधान के लिए पाकिस्तान से भी बात होनी चाहिए। हालांकि, सवाल यह है कि पाक प्रधानमंत्री शाहिद खकन अब्बासी की सरकार से होने वाली किसी वार्ता का वजन कितना होगा? निश्चित तौर पर सरकार की यह पहल बदली हुई नीति का परिणाम है, क्योंकि उसे लग गया है कि सुरक्षा बलों की सख्ती और नोटबंदी के मार्ग की सीमा आ चुकी है और आगे संवाद का ही मार्ग जाता है।

गुजरात विधानसभा:-गुजरात विधानसभा चुनाव निकट है। अपने-अपने पाले बन रहे हैं और चुनावी योद्धाओं को इन पालों की ओर खींचने की जुगत शुरू हो गई है। राज्य में लंबें समय से सत्तारूढ़ भाजपा के चुनाव रथ का पहिया जातिगत आंदोलन से उभरे तीन युवा नेताओं के चक्रव्यूह में फंसता नजर आ रहा है। क्या भाजपा इन युवा तुर्कों के इस व्यूह को भेद पाएगी … ?

मोदी के विकास रथ का पहिया आज गुजरात के चुनावी कुरुक्षेत्र में फंसा हुआ दिख रहा है। जो हिन्दू हित की बात करेगा वो ही देश पर राज करेगा के शंख नाद ने गुजरात के जनमानस को ऐसा मंत्रमुग्ध कर दिया था कि कांग्रेस द्वारा प्रस्थापित क्षत्रिय-हरिजन- आदिवासी-मुसलमान (खाम) मंत्र से मुक्त होकर बहुजन हिन्दू समाज हिन्दूत्व के व्यापक छाते के नीचे आकर खड़ा हो गया। गुजरात 2002 के जनसंहारक घमासान के बाद से मोदी हिन्दू हृदय सम्राट के रूप में प्रस्थापित हो गए। आक्रामक हिन्दूत्व से कांग्रेस भी मूर्छित सी हो गयी और उसने भी खाम का दामन छोड़कर मुलायम हिन्दुत्व की नीति अपना ली। आक्रामक हिन्दुत्व के सामने मुलायम हिन्दुत्व पराजित हो गया और गुजरात में भाजपा का एकछत्र राज कायम हो गया। गोधरा 2002 के दंगो के बाद हुए विधानसभा के सभी चुनावों में भाजपा ने आक्रामक हिन्दुत्व को अपने प्रचार के केन्द्र में रखा। अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमला, माफिया सरगना सोहराबुद्दीन और मुंबई की महाविद्यालय छात्रा इशरतजहां एवं उसके पाकिस्तानी आतंकवादी साथियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत से लेकर मियां मुशर्रफ को भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार का मुख्य आधार बनाया। इस प्रकार नरेन्द्र मोदी की हिन्दू हृदय सम्राट की छवि को और आगे बढ़ाया गया। वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में पहली बार मोदी को विकास पुरुष और विकास के उनके गुजरात मॉडल (आदर्श) को प्रचारित किया गया। वह भी तब, जब मुकेश अम्बानी, रतन टाटा, शशि और रवि रुईया सहित देश के एक दर्जन से ज्यादा उद्योगपतियों ने एक मंच से मोदी को पद के लिए सर्वोचित व्यक्ति घोषित किया। पिछले लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से भाजपा की जीत और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके गृह राज्य गुजरात में स्वयं उनकी और भाजपा की लोकप्रियता में भारी गिरावट आती चली गई। पंचायत और नगर निकायों के चुनाव नतीजों से यह स्पष्ट भी है। वर्ष 2015 में हुए चुनाव में राज्य की कुल 30 जिला पंचायत में से 24 और 201 तालुका पंचायत में से 134 पर जीत हासिल करने वाली भाजपा अपना वर्चस्व राज्य की 6 महानगर पालिकाओं पर ही कायम रख सकी। गुजरात में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती पाटीदार समाज ने खड़ी कर दी जो अब तक उसका सबसे मजबूत मतदान बैंक (अधिकोष) रहा है। पहली बार, 2015 में पाटीदार युवकों ने पिछड़ा वर्ग के लिए नौकरी तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध आरक्षण में अपने हिस्से की मांग को लेकर राज्य व्यापी आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन का नेतृत्व 22 वर्षीय युवक हार्दिक पटेल के हाथ में है। 25 अगस्त 2015 के दिन हार्दिक ने अहमदाबाद में एक रैली का आयोजन किया जिसमें पांच लाख से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इस रैली पर पुलिस ने लाठियां चलाई। हार्दिक और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। आंदोलन के नेताओं पर देशद्रोह का मुकदमा दायर किया गया। जहां तक ओर पाटीदार युवा सरकार के खिलाफ मैदान में उतरे वही दूसरी ओर पिछ़ड़ी जाति, दलित ओर आदिवासी युवकों का एक राज्य स्तरीय संगठन नशाबंदी कानून को सख्ती से लागू कराने और सरकारी नौकरियों में उन्हें संविधान में दिए गए अधिकार को लागू कराने के मुद्दों पर आंदोलन के रास्ते पर उतरा। इसका नेतृत्व भी युवा अल्पेश ठाकोर कर रहे हैं। इसी बीच, सौराष्ट्र के ऊना में पाचं दलितों को मरी गाय की खाल उतारने के कारण स्वघोषित गोरक्षकों ने बीच बाजार में नंगा कर और उनके हाथ पैर बांधकर कोड़ो से मारा। इस घटना ने समस्त दलित सजा को उद्धेलित कर दिया। दलितों ने मरे पशुओं के शव उठाने से इनकार कर दिया। इस आंदोलन का नेतृत्व भी एक युवा जिग्नेश मेवानी ने किया।

इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पराजित करने का संकल्प लेकर पाटीदार युवाओ के नेता हार्दिक पटेल, पिछड़ों के नेता अल्पेश ठाकोर और दलितों के नेता जिग्नेश मेवानी मैदान में उतर गए हैं। इनमें से अल्पेश ठाकोर ने 23 अक्टूबर को गांधीनगर में आयोजित रैली में राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस की सदस्यता ले ली और उन्हें कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में लड़ाने का फैसला भी कर लिया। पाटीदार युवा नेता हार्दिक ने कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली है पर उन्होंने राहुल गांधी से मिलकर भाजपा के खिलाफ प्रचार करने का अपना संकल्प दोहराया। इसी प्रकार दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी इस चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रचार करेंगे। अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी के भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी करने के कारण, बिना किसी सक्रिय प्रयास के कांग्रेस को अस्सी के दशक में जिस खाम फार्मूला (सूत्र) का चुनावी लाभ मिला करता था, वह एक बार फिर उसे सहज ही मिल गया। गुजरात में पिछड़े दलित, आदिवासी और मुसलमानों के सिवा बाकी तीनों जन समुदाय कांग्रेस के खाम फार्मूला के प्रभाव से बाहर निकल गए थे। अब आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि कांग्रेस का खाम फार्मूला कितना कारगर रहता है।

नचिकेता देसाई, राजनीति विश्लेषक, अंग्रेजी व हिन्दी के अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में कार्य का अनुभव।

उ. कोरिया:- अपने परमाणु कार्यक्रम से अमरीका समेत दुनियाभर को चुनौती देने वाला उ. कोरिया अब जैविक हथियार भी बना रहा है। अमरीका की थिंकटैंक बेल्फर सेंटर (केन्द्र) की रिपोर्ट (विवरण) में कहा गया है कि संभव है कि उ. कोरिया अपना जैविक हथियार विकसित कर रहा हो। उ. कोरिया की हथियारों से जुड़ी टीम (दल) में काम कर चुके लोगों के बयानों के आधार पर कहा गया है कि यह काम 1960 के दशक में ही शुरू हो गया था। कोरिया युद्ध के बाद 1950 और 1953 के बीच हजारों लोगों की मौत हैजा, टाईफस, टाईफाइड और चेचक के प्रकोप से हो गई थी। उस समय उ. कोरिया की सरकार ने इसके लए अमरीका को जिम्मेदार ठहराया था। मलेशिया में इस साल फरवरी में घातक एवं एजेंट (कार्यकता) वीएक्स से किम जोंग-उन के भाई किम जोंग-नाम की हत्या के बाद इसको लेकर आशंका बढ़ी थी।

Examrace Team at Aug 23, 2021