खोज (Invention - In Hindi)

चीन:- चीन के हेलियोंगजियांग प्रांत में शोधार्थियों ने बड़ी संख्या में लुप्तप्राय पौधों की प्रजाति वॉटरव्हील (जल पहिया) का पता लगाया है। समाचार एजेंसी (शाखा) सिन्हुआ के अनुसार, किशिंघी नेशनल (राष्ट्रीय) नेचर (प्रकृति) रिजर्व (आरक्षित) के शोधार्थियों ने 20 से 23 सितंबर के बीच 600 वर्गमीटर क्षेत्र में 5,000 से अधिक वाटरव्हील पौधों की पहचान की। वाटरव्हील जलीय वीनस (शुक्र) फ्लाईट्रैप (मक्खियों को पकड़नेवाला) की तरह एक जड़ रहित और तैरने वाले पौधा है।

इस पौधे को वर्ष 1999 में राष्ट्रीय संरक्षण की श्रेणी में रखा गया था और इंटरनेशनल (अंतरराष्ट्रीय) यूनियन (संघ) फॉर (के लिए) कंजरवेशन (संरक्षण) ऑफ (का) नेचर (प्रकृति) द्वारा लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। शोधार्थी ने कहा, वाटरव्हील पौधों को पानी की सख्त जरूरत होती है, जो स्वच्छ और गर्म भी होना चाहिए। वाटरव्हील यूरोप, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते है।

ब्रिटेन:- में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे कैमरे को विकसित किया है जिसके जरिए चिकित्सक इंसानी शरीर के अंदर देख सकते हैं। बायोमेडिकल (जैव चिकित्सा) ऑप्टिक्स (प्रकाशिकी) एक्सप्रेस (व्यक्त) के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, चिकित्सकों के चिकित्सा उपकरणों को ट्रैक (पीछा) करने में मदद करने के लिए बनाए गए इस डिवाइस (युक्ति) को एंडोस्कोप नाम से जाना जाता है जो कि आतंरिक स्थितियों की जांच करने के लिए उपयोग किया जाएगा, यह नया डिवाइस शरीर के अंदर प्रकाश के स्रोतों का पता लगा सकता है।

स्कॉटलैंड में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केवल धालीवाल ने कहा, “यह एक बेहतर तकनीक है जो हमें मानव शरीर के अंदर देखने की अनुमति देती है। इसमें विभिन्न अनुप्रयोगों को करने के लिए विशाल क्षमता है।” धालीवाल ने कहा कि एक्स-रे या अन्य महंगी विधियों का उपयोग किए बिना या फिर इसे बिना गाइड (मार्गदर्शक) किए ट्रैक कर पाना संभव ही नहीं हैं कि एन्डोस्कोप शरीर में किस जगह स्थित है।

रोशनी को एंडोस्कोप के जरिए शरीर से गुजारा जाता है, लेकिन यह आमतौर पर सीधे जाने के बजाय ऊतक और अंगो के टकराते हुए या उनके ऊपर से कूदते हुए निकल जाती है। इससे एंडोस्कोप कहां है इसका स्पष्ट चित्र नहीं मिल पाता है। नए कैमरे में उन्नत तकनीक का फायदा उठाया गया है जिसके जरिए प्रकाश के अलग-अलग कणों का पता लगाया जा सकता है, जिसे फोटोन (धनात्मक अणु) कहा जाता है।

यह तकनीक इतनी संवेदनशील है कि यह प्रकाश के छोटे निशान का भी पता लगा सकती है, जो शरीर के ऊतको के माध्यम से एंडोस्कोप से गुजरती है। अध्ययन में पता चला है कि प्रारंभिक परीक्षणों में प्रोटोटाइप (प्रारूप) डिवाइस सामान्य प्रकाश की स्थिति में ऊतक के 20 सेंटीमीटर के माध्यम से बिन्दु प्रकाश स्रोत के स्थान को ट्रैक कर सकता है।

न्यूयार्क:- कैंसर के इलाज के बाद महिलाओं में आमतौर पर होने वाले बांझपन से उन्हें सुरक्षित रखने के लिए वैज्ञानिकों ने एक दवा की खोज कर ली है। जिन महिलाओं में कैंसर का इलाज रेडिएशन (विकिरण) और कुछ तरह की कीमोथेरपी (प्राकृतिक चिकित्सा) दवाओं के जरिए किया जाता है वह दवाएं आमतौर पर उनमें बांझपन लाती हैं। पूर्व में हुए शोध के मुताबिक, स्तन कैंसर से उबर चुकी सभी महिलाओं में से लगभग 40 प्रतिशत महिलाओं में समय से पहले अंडाशय को खराब होते हुए देखा गया। इसमें गर्भाशय की सामान्य क्रियाएं बंद हो जाती हैं। और अक्सर बांझपन की स्थिति सामने आती है।

महिलाओं के पास जन्म से ही अंडाणुओं या अविकसित अंडाणुओं का संचय होता है जो जीवनभर चलता है। लेकिन, यह अंडाणु शरीर की सबसे संवेदनशील कोशिकाओं में से एक होते हैं जो इस तरह के कैंसर उपचार से खत्म हो सकते हैं।

यह शोध जेनेटिक्स (आनुवांशिक) पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसका आधार पूर्व में किया गया एक शोध है जिसमें एक चेकप्वांइट प्रोटीन (सीएचके2) का पता लगाया गया था जो रेडिएशन से अंडाणुओं के क्षतिग्रस्त होने पर सक्रिय हो जाते हैं। सीएचके 2 उस मार्ग को नुकसान पहुंचाता है जो क्षतिग्रस्त डीएनए वाले अंडाणुओं को हटा देता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो विकृत संतान को जन्म देने से बचाती है।

चिकित्सकों द्वारा अंडाणुओं को नुकसान पहुंचाने वाले इस तरह के कैंसर के इलाज को जरूरी समझा जाने पर महिलाएं अपने अंडाणुओं या गर्भाशय की कोशिकाओं को हटवा या फ्रीज करवा कर रख सकती हैं। लेकिन इससे इलाज में देरी हो सकती है। इसके अलावा अंडाणुओं की कमी के कारण महिलाएं प्राकृतिक तौर पर रजोनिवृत्ति की तरफ बढ़ जाती है। इस अध्ययन के जरिए वैज्ञानिकों ने सीएचके2 निरोधी या संबंधित दवाएं देना और कैंसर थेरेपी (चिकित्सा) को साथ-साथ शुरू करने का एक नजरिए उपलब्ध कराया है। हालांकि इसे पहले मानव शरीर पर प्रयोग करने की जरूरत होगी।

क्षयरोग:-कागज से बने उपकरण से क्षयरोग का तुरंत पता चलेगा- वैज्ञानिकों ने क्षयरोग का पता लगाने के लिये कागज आधारित टेस्ट (जांच) विकसित किया है जिसे स्मार्टफोन की मदद से पढ़ा जा सकता है, यह तकनीक उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से उपलब्ध हो रही है। शुरूआती स्तर पर रोग का पता चल जाने से मरीजो को उनकी जरूरत की दवाएं लेने में तो मदद मिलती ही है, साथ ही यह बीमारी का प्रसार रोकने में भी मददगार है। हालांकि सीमित-संसाधनों वाले क्षेत्र में उपकरणों का अभाव और परिणामों के लिए लंबे समय का इंतजार बीमारी का पता लगाने और इलाज में बाधा डालता है। इस समस्या से निपटने के लिए, नेशनल (राष्ट्रीय) ताइवान विश्वविद्यालय के चीन फू-चेन और उनके साथियों ने ज्यादा व्यवहारिक नैदानिक परीक्षण विकसित किया है जिसे स्मार्टफोन पर पढ़ा जा सकता है। यह शोध एसीएस सेंसर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ हैं।

पंजाब:- 7 साल की रिसर्च (खोज) के बाद नेशनल (राष्ट्रीय) एग्री फूड (कृषि खाद्य) बायोटेक्योलॉजी (जीवतकनीकी) इंस्टीट्‌यूट (संस्था) (एनएबीआई) मोहाली ने ब्लैक व्हीट -काला गेहूं का पेटेंट (रजिस्ट्री कराना) करा लिया। नाम दिया है नाबी एमजी। काले, नीले और जामुनी रंग में मिलने वाला ये गेहूं आम गेहूं से कहीं ज्यादा पौष्टिक है। ये कैंसर, डायबिटीज, तनाव, मोटापा और दिल की बीमारियों की रोकथाम में मददगार साबित होगा। इसे रोजाना खा सकते हैं। देश में पहली दफा ये पंजाब में उगाया जाएगा। ट्रायल (परीक्षण) के तौर पर इसका 850 क्विंटल उत्पादन किया जा चुका है। किसानों को भी इसका आम गेहूं के मुकाबले दोगुना दाम मिलेगा। मोहाली में 2010 से चल रही रिसर्च (खोज) साइंटिस्ट (वैज्ञानिक) डॉ. मोनका गर्ग के नेतृत्व में की गई है।

ब्लैक व्हीट में एंथोसाइनिन नामक पिग्मेंट (रंग) आम गेहूं से काफी ज्यादा होता है। आम गेहूं में जहां एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पास प्रति मिलियन (दस लाख) (पीपीएम) होती है, वहीं ब्लैंक व्हीट में 40 से 140 पीपीएम पाई जाती है। एंथोसाइनिन ब्लू बेरी जैसे फलों की तरह सेहत लाभ प्रदान करता है। एंथोसाइनिन एक एंटीऑक्सीडेंट (ऑक्सीकरण रोधी) का भी काम करता है। यह शरीर से फ्री रेडिकल्स (मुक्त कण) निकालकर हार्ट (हृदय) , कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की रोकथाम करता है। इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है।

करार-एनएबीआई ने ब्लैक व्हीट की मार्केटिंग (विपणन) के लिए बैंकिंग (महाजन) और मिलंग समेत कई बड़ी कंपनियों (संगठनों) से करार करने की कार्रवाई शुरू कर दी है। डॉ. मोनिका गर्ग ने बताया, इसे उगाने के इच्छुक किसानों के लिए एनएबीआई जल्द ही वेबसाइट लांच (प्रक्षेपण) करेगी। इस वेबसाइट पर किसान अप्लाई (लागू करें) कर सकेंगे, जिन्हें बीज व अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। किसानों की फसल भी एनएबीआई ही खरीदेगी।

एनएबीआई ने इसका उत्पादन गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में किया है। सर्दी में यह फसल मोहाली के खेतों में उगाई गई, जबकि गर्मी में हिमाचल और केलोंग लाहौल रिपति में। साइंटिस्ट डॉ. मोनिका गर्ग ने बताया, इस साल विभिन्न किसानों के खेतों में 850 क्विंटल ब्लैक व्हीट उगाई है। इसकी औसत उपज प्रति एकड़ 13 से 17 क्विंटल रही। सामान्य गेहूं की औसत उपज पंजाब में प्रति एकड़ करीब 18 से 20 क्विंटल है। किसानों को आम गेहूं मंडियों में बेचने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य करीब 1625 रुपए प्रति क्विंटल मिलता है। जबकि ब्लैक व्हीट का रेट (मूल्य) 3250 रुपए दिया गया है।

Examrace Team at Aug 20, 2021