नया दिवालियापन विधेयक (New Bankruptcy Bill Essay in Hindi)

प्रस्तावना: - केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधार की दिशा में कदम उठाते हुए नई दिवालियेपन संहिता विधेयक पारित करा लिया लेकिन इस विधेयक को जिस तेजी से पारित कराया गया, उसके पीछे की कहानी उलझी हुई है। ऐसा समझा जा रहा है कि उद्योगपति विजय माल्या के भारी-भरकम कर्ज लेकर विदेश बैठ जाने के संदर्भ में इसे बेहद शीघ्रता से पारित किया गया। दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि इस विधेयक के विरोध में विपक्ष के पास ठोस तर्क ही नहीं थे। लेकिन, विधेयक पारित करने से पूर्व संयुक्त संसदीय समिति की रिपार्ट को नजरअंदाज किया गया जिसमें कहा था, इसमें सीमा पार के मुद्दों को छुआ ही नहीं गया है।

आर्थिक सुधार:- महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार के नाते केंद्र सरकार बैंकरप्सी कोड यानी दिवालियापन संहिता नाम के लिए विधेयक को संसद से पारित करवाने में सफल हो गई है। 5 मई 2016 को लोकसभा और उसके बाद 11 मई को राज्यसभा में पारित होने के बाद इस दिवालियापन बिल के कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है। नया कानून 1909 के प्रेसिडेंसी टाउन इनसॉलवेन्सी एक्ट और प्रोवेंसिएल इनसॉलवेन्सी एक्ट 1920 को रद्द करता है और जनसमूह एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और सेक्युटाईजेशन एक्ट समेंत कई कानूनों में संशोधन करता है। चूंकि विपक्षी दलों के पास इस बिल के विरोध में कोई तर्क नहीं थे इसलिए सरकार को इसे पास करवाने में कोई दिक्कत नहीं आई।

पुराना कानून:- कोई भी व्यक्ति, जनसमूह या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालियापन हो सकते हैं। यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताड़नाओं से गुजरता पड़ता है। देश में अभी तक दिवालियापन से संबंधित कम से कम 12 कानून थे और उसमें से कुछ तो 100 साल से भी अधिक पुराने हैं। इसके अलावा एक अनुमान यह भी है कि बैंको से भारी-भरकम कर्जा लेकर विदेश जा बैठे उद्योगपति विजय माल्या जैसे प्रकरणों पर रोकथाम के उद्देश्य से बनाया गया यह विधेयक कारगर हो सकेगा लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार अधिकतम एक वर्ष का समय तो इस विधेयक को कानून बनाकर लागू करने में लग ही सकता है।

नया कानुन:- नए दिवालियापन कानुन के अनुसार किसी ऋणी के दिवालिया होने पर आसानी से उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है। नए कानून के हिसाब से यदि 75 प्रतिशत ऋणदाता सहमत हों तो ऐसी कोई जनसमूह जो अपने ऋण नहीं चुका पा रही, पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है। यदि तब भी वसुली नहीं हो पाती तो वह फर्म या व्यक्ति स्वयं दिवालिया हो जायेंगे। यानी नया कानून लागू होने से ऋणों की वसुली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा। ऋण न चुका पाने की स्थिति में जनसमूह को अवसर दिया जाएगा कि वह एक निश्चित कालखंड में अपने ऋण को चुका दे अन्यथा स्वयं को दिवालिया घोषित करें। कोई ऋणी यदि दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल की सजा का भी प्रावधान है।

कानून:- संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी विवरण में कहा कि बिल में दिवालियापन के सीमा पार मुद्दों को नहीं छुआ है। इसलिए यह अपूर्ण ही माना जाएगा, जब तक इसमें उस विषय को शामिल न किया जाए। इस संबंध में हालांकि समिति की सिफारिशों पर कार्रवाई न करते हुए, बिल को पारित तो करवा दिया गया है लेकिन सरकार का कहना है कि यह मामला पेचीदा है, इसलिए सीमा पार संबंधी विषयों को व्यापक चर्चा के बाद शामिल किया जाएगा। लेकिन, जहां तक दिवालिया घोषित व्यक्ति या फर्म की विदेशी परिसंपत्तियों का विषय है, सरकार अन्य देशों के साथ संधि कर ऐसे मामलों को निपटानें का काम कर सकती हैं। ऐसे काम नए दिवालियापन कानून के अनुसार अनुमति दिवालियापन पेशेवर के द्वारा ही दिवालिया घोषित करने संबंधी कार्रवाई की जा सकेगी। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय जनसमूह कानून) किसी भी जनसमूह के दिवालिया घोषित करने के लिए प्रस्तावित किया जाएगा और किसी भी व्यक्ति को दिवालिया घोषित करने के लिए ऋण वसुली ट्रिब्यूनल काम करेंगे। कानून के अनुसार दिवालियापन निवेश का भी निर्माण होगा लेकिन कानून में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि उसका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा?

बिल:- दिवालियापन बिल 21 दिसंबर 2015 को लोकसभा में पेश किया गया था। इसके बाद इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया था। इसे मंजूरी के लिए राज्यसभा भेजा गया। इस बिल के तहत विश्व बैंक के अनुसार किसी भी व्यवसाय को बंद करने की आसानी के संबंध में अभी 189 देशों में भारत विश्व में 136वें पायदान पर है। विश्व बैंक की विवरण के अनुसार भारत में किसी व्यवसाय को बंद करने के लिए 4 साल से अधिक समय लग जाता हैं। ऐसे में नए दिवालियापन कानून से यदि देश में सामान्यतौर पर व्यवसाय को बंद करने के संबंध में आसानी होती है, तो ईज ऑफ डूईंग बिजनेस के हिसाब से भारत दुनिया में बेहतर स्थिति में आ जाएगा, जिसका मतलब यह होगा कि देश में स्थानीय और विदेशी निवेश के लिए बेहतर वातावरण बनेगा। दिवालियापन कानून किसी देश के वित्तीय ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और इसे समय के साथ बदलना जरूरी है। कई विदेशी जनसमूहों ने भारत में निवेश किया हुआ है और उसी प्रकार कई भारतीय जनसमूहों ने भी दुनिया के दूसरे मुल्कों में अपनी उपस्थिति दर्ज की है। विदेशी बैंको और ऋणदाताओं ने भारत में परिसंपत्तियों के लिए उधार दिया हुआ है लेकिन इस कानून के माध्यम से भारतीय एवं अन्य देशों के न्यायालयों के बीच किसी प्रकार के सहकार की प्रभावी व्यवस्था नहीं है।

पेशेवर:-इस तरह नए कानून के हिसाब से दिवालिया घोषित करने वाले पेशेवरों की नियुक्ति, निष्कासन और परीक्षण में सरकार का जरूरत से ज्यादा दखल रहेगा। इसलिए अनुभवी पेशेवरों का इस काम में आना मुश्किल होगा। फिर, यह कानून ऋणदाताओं के पक्ष में ज्यादा है और ऋणियों की समस्याओं का निवारण की व्यवस्था इसमें नहीं है। वर्तमान में बैंको की एनपीए की समस्या का जल्दी में कोई निवारण इस कानून से नहीं हो पाएगा क्योंकि नए कानून को लागू करने में एक साल से अधिक का समय लग जाएगा इसलिए बैंको की वर्तमान समस्या के निवारण के लिए तुंरत प्रभावी कदम उठाने होंगे।

मामले:- आज देश में दिवालियापन से संबंधित 70 हजार से भी ज्यादा मामले लंबित हैं। ऐसी स्थिति में व्यवसाय के लिए बेहतर वातावरण नहीं मिलता। दिसंबर 2015 तक बैंको के 3.6 लाख करोड़ रुपए शंका वाले ऋणों में लगे हैं, जिसे बैड लोन्स भी कहते हैं। ऐसे ऋणों की मात्रा पिछले साल 7.3 प्रतिशत बढ़ी है।

सुरक्षा:- नए दिवालियापन के अनुसार मजदूरों की आर्थिक सुरक्षा का भी ध्यान रखा गया है। जनसमूह के दिवालिया घोषित होने पर मजदूरों की कमाई पर सीधी मार पड़ती है। ऐसे में उनके आर्थिक हालात अचानक न बिगड़ जाए, इसका प्रयास करते हुए मजदूरों के लिए 24 महीने के वेतन का प्रावधान रखा गया है यानी 24 महीने तक कार्मिकों को वेतन मिलेगा।

सरकार:- सरकार जानबूझ कर बैंक कर्ज नहीं लौटाने वालों (विलफुल डिफाफल्टर) की विदेशी संपत्ति भी जब्त कर सकेगी। हालांकि इसके लिए सरकार को दूसरे देशों से संधि करनी पड़ेगी, उसके बाद ही संपत्ति जब्त की जा सकती है। बिल पर चर्चा के दौरान सांसदों ने शराब कारोबारी विजय माल्या जैसेस विलफुल डिफॉल्टरों (कर्जदारों) की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई है। वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि नए कानून से ऐसे लोगों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई आसान होगी। सिन्हा ने बताया कि कई देशों से सरकार ने पहले बात की थी, तो उन्होंने कहा कि पहले भारत में इसके लिए कानून होना चाहिए। इससे संपत्ति जब्त करना आसान होगा। सिन्हा ने माल्या जैसे मामलों में कहा कि कानूनन संपत्ति पर पहला अधिकार कर्मचारियों का होता है। सरकार का नंबर इसके बाद में आता है। कांग्रेस की सुष्मिता देव ने कहा कि यह बिल आर्थिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम है।

कार्रवाई:- कर्जदार के खिलाफ सिर्फ दिवालियापन काूनन के तहत कार्रवाई नहीं होगी, बल्कि अगर दूसरे कानून के तहत मामला बनता है तो वह भी चलेगा। उदाहरण के लिए अगर सरकार को पता चलता है कि कर्ज लेने वाला पैसे का कहीं ओर या गलत इस्तेमाल कर रहा है तो जांच एजेंसियों उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकती हैं।

सूचना:- नए कानून के अनुसार इनफॉर्मेशन यूटिलटी (सूचना उपयोगिता) बनाई जाएंगी। ये बैंको को कर्ज लेने वाले के बारे में सभी सूचनाएं देगी। ये सूचनाएं रियल टाइम यानी एकदम अपडेटेड होंगी। इनफॉर्मेशन यूटिलटी दिवालियापन मंडल के तहत काम करेंगी।

उपसंहार:-कुल मिलाकर नये दिवालियापन कानुन आने से एक तरफ राहत है तो एक तरफ नुकसान भी हैं। अगर केवल विजय माल्या जी जैसे को लेकर यह कानून बनाया गया है तो अच्छा है। समय अभाव के कारण बाकी हर क्षेत्र के हिसाब से यह कानुन थोड़ा कमजोर ही हैं। फिर भी काफी एक हद तक यह कानून देश की आर्थिक स्थिति के लिए सही ही हैं।

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