उ. कोरिया (North Korea Missile Launch - Essay in Hindi)

प्रस्तावना:-उत्तर कोरिया ने रॉकेट छोड़ा लेकिन दुनिया के अधिकतर देश इसे अर्न्तमहादव्ीपीय मिसाइल शुरू करने का परीक्षण ही मान रहे हैं। इससे पहले कथित रूप से हाईड्रोजन बम का परीक्षण कर चुके उत्तर कोरिया का यह कदम खुद को सैन्य दुष्टि से समृद्ध घोषित करने के साथ-साथ अमरीका को सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। उत्तर कोरिया का मददगार कौन हैं? क्या सही में इस कदम से दुनिया पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडरा रहा है? इसके बारे में अमरीका व जापान जैसे देश क्यो चिंता कर रहे हैं?

कार्रवाई:- अमरीका समेत विभिन्न देशों ने इसे रॉकेट परीक्षण करने का नाम दिया है। माना जा रहा है कि यह अमरीका तक वार करने की क्षमता रखता है। इस मिसाइल परीक्षण को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन और अमरीका और उसके सहयोगी देशों को उकसाने की कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। इसे देखते हुए यह भी संभावना है कि संयुक्त राष्ट्र इस मसले को लेकर उत्तर कोरिया पर अतिरिक्त प्रतिबंधों का ऐलान करे।

अंकुश:- संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर बैलेस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी के उपयोग पर पांबदी लगा दी थी। लेकिन, इस तरह के अंकुश को उत्तर कोरिया ने कभी स्वीकार नहीं किया और चार परमाणु परीक्षण के साथ लंबी दूरी के मिसाइल का परीक्षण भी किये। 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उत्तर कोरिया की माइनिंग एंड डवलपमेंट कॉर्पोरेशन नामक परमाणु अप्रसार कार्यक्रम का मुखौटा है।

शक्ति:- दुनिया की बड़ी शक्तियों को ऐसा लगता है कि उत्तर कोरिया का राजनैतिक ढांचा लोकतांत्रिक और पारदर्शी नहीं होने के कारण उससे बात करना या उसके साथ संबंध बनाना बहुत ही कठिन है। चूंकि पूर्व में वह परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश की शर्तों की उपेक्षा करता रहा है, इससे उसके प्रति शंका और अधिक बढ़ गई है। ऐसे में पहले तो उसने जनवरी में थर्मोंन्यूक्लियर परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और अब उसने लंबी दूरी की मिसाइल दागने की शक्ति दिखलाई है। हांलाकि उत्तर कोरिया ने इसे अर्थ ऑब्जर्वेशन सेटेलाइट लांच नाम दिया है और इसे रॉकेट की शुरुआत कहा है लेकिन अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया इसे परोक्ष तौर पर लंबी दूरी की मिसाइल का परीक्षण ही मान रहे हैं। ऐसा समझा जाता है कि इस लंबी दूरी की मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद उत्तर कोरिया के पास अमरीका के न्यूयॉर्क और वाशिंगटन तक परमाणु हमला करने की ताकत आ जाएगी।

परीक्षण:-जहां तक परमाणु और मिसाइल परीक्षण का साल है तो वैधानिक तौर पर उत्तर कोरिया की ओर से किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया जा गया है। वह संप्रभु राष्ट्र है और उसे परमाणु शोधे और परीक्षण करने का पूर्ण अधिकार है। उल्लेखनीय है कि वह 1963 से ही अपने मिसाइल तकनीक और परमाणु कार्यक्रम पर काम कर रहा है। उसके इस काम को सोवियत रूस व चीन की ओर से समय-समय पर समर्थन और सहायता मिली है। 1993 में उत्तर कोरिया में जब किम जोंग उन के पिता किम जोंग इल का शासन था, तब ही उन्होंने अपने देश को परमाणु अप्रसार संधि से अलग होने की बात कही थी। इसके बाद 1994 में एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके तहत तय किया गया था कि अमरीका, दक्षिण कोरिया, फ्रांस ब्रिटेन और जर्मनी उत्तर कोरिया को ऊर्जा के क्षेत्र में सहायता उपलब्ध करांएगे। लेकिन, उत्तर कोरिया को कालांतर में यह लगा कि इस समझौते के मुताबिक उसे सहायता उपलब्ध नहीं कराई जा रही है तो उसने आखिरकार 2003 में इस परमाणु अप्रसार संधि से खुद को अलग कर लिया। तब से ही उसके परमाणु कार्यक्रम में गति आई और अब तक वह चार परमाणु परीक्षा कर चुका है। यह बात फिलहाल कपोल कल्पना ही लगती है लेकिन इस बात को कोई सोचकर देखे कि यदि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया का एकीकरण हो जाए तो विश्व पटल पर एक बड़ा और शक्तिशाली राष्ट्र सामने होगा। फिलहाल उत्तर कोरिया ऐसा राष्ट्र है जिस पर विशेष अंकुश काम नहीं आ रहे हैं।

एनपीटी:- उत्तर कोरिया ने 1985 में परमाणु अप्रसार संधि को (एनपीटी) मंजुर किया था। फिर, 1993 में इससे अलग होने की चेतावनी दी। 1994 में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, अमरीका और दक्षिण कोरिया ने फ्रेमवर्क एग्रीमेंट किया, जिसके तहत उत्तर कोरिया को ऊर्जा के क्षेत्र में सहायता देने का वायदा किया गया। उत्तर कोरिया ने वायदे नहीं निभाने की बात कहते हुए 2003 में खुद को एपनीटी से अलग कर लिया।

खतरा:- सबसे ज्यादा खतरा जापान और दक्षिण कोरिया को लगता है। दोनों ही देश इसके काफी नजदीक हैं। फिर दबावों की बातों पर उसके उपेक्षापूर्ण व्यवहार से भी अन्य देशों को इससे डर लगता है। यदि दुनिया के शक्तिशाली देश अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल के संदर्भ में इसे देखें तो जो चार परीक्षण उत्तर कोरिया ने किए, उसमें से तीन तो ओबामा के कार्यकाल में ही हुए। वे इरान की तरह उत्तर कोरिया पर काबू नहीं पा सके। यही नहीं अब तो उसने लंबी दूरी के मिसाइल के सफल परीक्षण से अमरीका तक पहुंच बना ली हैं। खतरे की बात यहीं तक सीमित नहीं है। उत्तर कोरिया ने अपनी अर्थव्यवस्था को संभाले रखने के लिए मिसाइले और मिसाइल तकनीक पाकिस्तान, मिस्त्र, ईरान, म्यामांर, लीबिया, नाइजीरिया, सीरिया, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम को बेची हैं। इसका अर्थ यही है कि उत्तर कोरिया न केवल एनपीटी की उपेक्षा करता है बल्कि धड़ल्ले से इसकी सोच की भी उपेक्षा करता है इसलिए क्योंकि वह तो एनपीटी की वर्तमान में सदस्य नहीं है। दुनिया की बड़ी शक्तियों को उसके इस व्यवहार के कारण दुनिया के लिए खतरा दिखाई देता है।

भारत की भूमिका:- भारत के लिहाज से देखें तो पिछले एक साल में भारत ने चीन के पड़ोसी देशों मंगोलिया, वियतनाम, कंबोडिया के साथ उत्तर कोरिया के साथ भी संबंधों को बेहतर बनाया है। भारत उत्तर कोरिया के साथ करीब 10 करोड़ डॉलर का व्यापार करता है। उत्तर कोरिया का दूतावास नई दिल्ली में और भारत का दूतावास उत्तर कोरिया में है। बाते वर्ष अप्रेल में उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री री सू युंग भारत आए थे। और उन्होंने न्यूक्लियर कार्यक्रम के साथ मानवीय सहायता के संबंध में बाते भी की थीं। ऐसे में जबकि अन्य देश उत्तर कोरिया के साथ बातचीत से हिचकिचाते हैं, चीन के अलावा भारत भी बातचीत का प्रमुख विकल्प साबित हो सकता है।

समर्थन:- मिसाइल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर संयुक्त राष्ट्र की रोक के बावजूद उत्तर कोरिया ने लंबी दूरी का रॉकेट शुरू किया और यह जताने का प्रयास किया है कि सैन्य ताकत के मामले में वह दूसरे देशों से पिछे नहीं है। सही मायने में देखें तो उत्तर कोरिया का यह सैन्य ताकत का प्रदर्शन दक्षिणी कोरिया के साथ शीत युद्ध के बाद से ही चल रहा है। वैचारिक दृष्टि से देखें तो दक्षिण कोरिया पूंजीवादी विचारधारा का समर्थक है और उत्तर कोरिया एक पार्टी का गैर लोकतांत्रिक शासन है, जो कम्यूनिष्ट विचारधारा से प्रभावित है। उत्तर कोरिया को पहले चीन व रूस से सीधा समर्थन मिलता रहा है। दोनों की देश उत्तर कोरिया के आणविक कार्यक्रम को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में समर्थन देते रहे हैं।

सैन्य ताकत:- उत्तर कोरिया ऐसा कर विश्व मंच पर यह साबित करना चाहता है कि आर्थिक दृष्टि से भले ही वह एक कमजोर देश है लेकिन सैन्य ताकत के मामले मेे वह कहीं आगे हैं। एक तरह से यह प्रयास अंतरराष्ट्रीय समूह को डराने वाला हैं। पहले कथित रूप से हाइड्रोजन बम के परीक्षण को भी कूटनीति का हिस्सा माना जाना चाहिए। उत्तर कोरिया न्यूक्लियर कार्यक्रम को चीन का भी काफी सहयोग रहा है। एक दूसरा पक्ष देखें तो तानाशाही की मार झेल रही उत्तर कोरिया की जनता को वहां का शासक यह भी आश्वस्त कर देना चाहता है कि वे सुरक्षित है। साथ ही यह भी धमकी मिली है कि लोकतंत्र की मांग करने वाले उसके यहां सुरक्षित नहीं रह पाएगें। यानी जो तानाशाही शासन के खिलाफ जाएगें उनको इसके परिणाम भुगतने पड़ेगें। यह दुनिया के उन देशो को चेतावनी है जो उत्तर कोरिया में लोकतंत्र के पक्षधर हो सकते हैं। अपने सैन्य कार्यक्रम जारी रखकर उत्तर कोरिया अपने मित्र देशों से आर्थिक सहायता की मांग करने में भी आगे रहने वाला है। अपने प्रतिदव्ंदव्ी दक्षिण कोरिया को अमरीका के समर्थन मिलने से भी उत्तर कोरिया खुद को खतरे में महसूस करने लगा है। ऐसे में उसकी नजर चीन की ओर है।

छवि और प्रयास:- दरअसल यह सब पूरब एशिया में शक्ति संतुलन का प्रयास मात्र हैं। एक और अमरीका और उसके समर्थित देश हैं। तो दूसरी ओर चीन और उसके समर्थक देश हैं। उत्तर कोरिया के जिन गिने-चुने देशों से कूटनीतिक संबंध हैं उनमें भारत भी शामिल हैं। 1951 में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच संघर्ष में जब अमरीका ने दक्षिण कोरिया का साथ दिया तो भारत ने अमरीकी शिविर का साथ नहीं दिया था। हां यह जरूर है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सम्मुख भारत अपनी निरपेक्ष छवि का फायदा इन दोनों देशों के बीच संघर्ष की स्थिति में उठाने की स्थिति में होगा। भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन की जरूरत है। ऐसे में उत्तर कोरिया में लोकतांत्रिक शासन की मांग उठने पर भारत की भूमिका अहम होगी। वैश्विक कूटनीति के हिसाब से देखें तो उत्तर कोरिया का मिसाइन परीक्षण अमरीका को चुनौती देने वाला है। इतना जरूर है कि अभी फ्रासं व रूस की न्यूक्लियर मोनोपोली को कोई झटका नहीं है। दूसरी ओर जापान ऐसा देश है जिसने कभी खुद को न्यूक्लियर ताकत के रूप में अपने बूते पर विकसित नहीं किया। आगे की तकनीक के लिए व अंतरराष्ट्रीय समुदाय में दबदबा रखने के लिए अमरीका और चीन दोनों अपने-अपने तरीके से सैन्य शक्ति के संतुलन के प्रयास में जुटे हैं।

उपसंहार:- उत्तर कोरिया खुद को सैन्य शक्ति सम्पन्न के रूप में विश्व मंच पर दिखाने के सदैव प्रयास करता रहता है। पहले हाईड्रोजन बम और अब मिसाइल परीक्षण को भी इन्हीं प्रयासों के रूप में देखा जाना चाहिए। देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंच पर असली लड़ाई तो अमरीका और चीन सरीखे देशों की नजर आती है। खुद को गरीब देश के रूप में प्रदर्शित कर उत्तर कोरिया दुनिया के देशों से आर्थिक मदद मांगने का हकदार तो बना रहना चाहता है लेकिन साथ ही यह भी बता देना चाहता है कि सैन्य शक्ति के मामले में वह किसी से कमजोर नहीं है। यह प्रदर्शन उत्तर कोरिया में लोकतंत्र की मांग करने वालों के लिए भी हैं।

Examrace Team at Mar 16, 2016