तेल नीति (Oil Policy - Indo-Nepal Ties - Essay in Hindi)

प्रस्तावना:- भारत के लिए नेपाल की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रूप से अहम है। दोनों के बीच सामाजिक तार भी जुड़े हें। नेपाल और भारत के बीच आवाजाही के अहम मार्ग बीरगंज-रक्सौल सीमा अघोषित नाकेबंदी के बाद नेपाल में ईंधन संकट के समाधान की राह में नेपाल ने चीन का रुख कर लिया हैे। गत चालीस बरस से भारत के एकाधिकार वाले इस अहम क्षेत्र पर चीन की नज़रें गड़ाने के कूटनीतिक कारण भी हैं। पेट्रोल लेने के पीछे नेपाल का चीन के प्रति झुकाव भारतीय विदेश नीति की विफलता भी कही जा सकती है। क्या हैं नेपाल और चीन की तेल के नाम पर हाथ मिलाने के पीछे मंशा? भारत के लिए क्या संकेत हैं? केंद्र सरकार की पड़ोसी देशों के साथ नीति पर सवालिया निशान लग रहे हैं।

पड़ोसी:- नेपाल और दूसरे सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को देखें तो एक बात समान रूप से देखने का मिलती है कि सब एक ही भूगर्भीय व्यवस्था के हिस्से हैं। ऐसे मामलों में यह माना जाता हैं। कि प्राकृतिक संसाधन यथा-नदियां, जंगल और पहाड़ पर किसी एक देश का प्रभुत्व नहीं होता। स्वाभाविक रूप में एक-दूसरे को शेयर करना ही पड़ता हैं। नेपाल के मामले में भी इतना कहा जाना चाहिए कि राजनीतिक दृष्टि से भले ही यह देश बंटा हुआ दिखता हो, किसी भी तरह के मतभेद भले ही वे आतंरिक मुद्दों से जुड़े हों या राजनीतिक एक तरह से इस साझा भूगर्भीय तंत्र पर यह सीधा आक्रमण है।

भारत:- भारत-नेपाल संबंध बरसों से हैं। अब नेपाल ने चीन के साथ ईंधन आपूर्ति का समझौता किया है तो निश्चित ही यह मानना चाहिए कि नेपाल को यह लगने लगा है कि उसका ज्यादा समय भारत पर निर्भर होना ठीक नहीं हैं। भारत में जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंन्द्र मोदी ने शपथ ली तो उन्होंने पहला कूटनीतिक कदम पड़ोसी देशों के राष्ट्रध्यक्षों को आमंत्रित करने के रूप में उठाया। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली विदेश यात्रा भी भूटान व नेपाल की हैं। याद करें, जब नेपाल में भूकंप आया और भारत जिस तरह से दिल खोल कर नेपालियों को आपदा से राहत पहुंचाने में जुटा उससे समूचे नेपाल में मोदी की छवि एक हीरो की तरह उभर कर आई थी। लेकिन अब वहां पीएम नरेंन्द्र मोदी की छवि इससे बिलकुल उलट हो गई है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह एकाएक कैसे हुआ? अब नेपाल के आतंरिक घटनाक्रमों को देखें तो मधेसी आंदोलन को इस बदलाव की जड़ माना जा रहा है। नेपाल के संविधान निर्माण की प्रक्रिया में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे मधेसियों की मांग है कि संसद में उनकी भागीदारी 50 फीसदी से अधिक हो। नेपाल और भारत के बीच सौहार्द कायम रखने के लिए भारत के लिए अब यह बड़ी चुनौती है कि वह नेपाल की लोकतांत्रिक उदारवादी ताकतों को मजबूत करने में जुटें। नेपाल के आतंरिक मुद्दों व घरेलू मतभेंदों में उलझने के बजाए भारत के लिए अपनी वैश्विक नीति को मजबूती देना ज्यादा जरूरी है। आर्थिक विकास की धारा में जिस भी पड़ोसी देश को जाड़ा जा सके उसको जोड़े। अन्यथा एक-एक कर हमारे विरोधियों की जमात खड़ी होते देर नहीं लगेगी।

विरोध:- नेपाल में करीब 61 लाख मधेसी रहते हैं। नए संविधान के मुताबिक नेपाली संसद में 165 सदस्य होंगे। इनमें से 100 सीटें पर्वतीय इलाकों को दी हैं जहां 50 फीसदी से भी कम आबादी है। तराई में जहां ज्यादातर आबादी रहती है, वहां 65 संसदीय सीटे हैं। मधेसी इसका भी विरोध कर रहे हैं।

चीन-नेपाल:- बिहार में हो रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए भी यह बात कही जा रही है कि भारत सरकार एक तरह से परोक्ष रूप से मधेसियों के पक्ष में खड़ी दिख रही है। नेपाल सीमा पर अघोषित नाकाबंदी भी इसी का नतीजा रही है। सब जानते हैं कि मधेसियों का बिहार में रोटी-बेटी का संबंध हैं। माना जा रहा है कि मधेसी भारत के ज्यादा नजदीक हैं और भारत यह भी चाहता है कि ये भारत के प्रभाव क्षेत्र से बाहर नहीं जाए। इसलिए इनकी आवाज़ का नेपाल में अघोषित रूप से पोषण किया जा रहा है। नेपाल की ओर से यह भी कहा जा रहा है कि भारत के लिए दबाव की राजनीति कोई नई बात नहीं। जब नेपाल के लोगों के लिए जीवन-मरण का सवाल हो गया तो उसने चीन का रुख किया है। चीन ने कोई पहली बार नेपाल को अपने घेरे में लेने की कोशिश नहीं की है। इससे पहले वह नेपाल की रेल परियोजनाओं में मदद करने के साथ वहां चीनी भाषा प्रशिक्षण केंद्र खोलने व बौद्ध मठ बनाने में जुटा है। नेपाल को ईंधन आपूर्ति करने के चीन के फेसले के भी कूटनीतिक निहितार्थ ज्यादा है। हम जानते हैं कि चीन-तिब्बत सीमा पर जितना भी मूवमेंट हैं वह नेपाल सीमा से होकर है। सबसे बड़ी बात यह है कि नेपाल में अभी सत्ता में बैठे लोगों के मन में यह बात बैठ रही है कि नेपाल को किसी एक देश के साथ व्यापारिक संबंध जोड़े रखने के बजाए दूसरे देशों की भी मदद लेनी चाहिए। नेपाल में यह माने जाने लगा है कि किस देश के साथ कैसे संबंध बनाए जाए, यह उनकी अपनी नीति है इसी का फायदा नेपाल में भारत विरोधी तत्व उठा रहे हैं। इनका झुकाव चीन की तरफ होने का कारण इसे भी माना सकता है। यह भी कहा जाना चाहिए कि भारत की विदेश नीति पर भी इस घटनाक्रम का विपरीत असर पड़ा है। हम एक ओर दक्षिण एशिया के नेता बनने की सोच में हैं दूसरी ओर नेपाल में विद्युत ग्रिड लगाने व विकास से जुड़े अन्य मुद्दे पीछे हटते दिख रहे हैं। हमारी विदेश नीति के पन्ने पलट तो पाएंगे कि भारत की विदेश नीति जवाहर लाल नेहरू के समय से ही सहअस्तित्व की रही है। बाद में इंदिरा सिद्धांत के तहत भी हमने पड़ोसी देशों की सुरक्षा और शांति को लेकर अहम भूमिका निभाई है। लेकिन इससे पड़ोसी देश खुश होने के बजाए संदेह और अविश्वास के भाव से ज्यादा घिरेते दिखें।

अब नेपाल को ईंधन की आपूर्ति चीन से होगी। पहले चरण में मेंट्रो पदार्थों से लदे 12 टेंकर नेपाल सीमा में प्रवेश कर चुके हें। सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के वरिष्ठ नेता प्रदीप ग्यावली ने मीडिया को बताया कि तीसरे देशों से व्यापार की सुविधा के लिए सरकार चीन के साथ एक और समझौते को अंतिम रूप दे रही है जिसमें चीन के रास्ते समुद्री बंदरगाहों तक सामान लाने या ले जाने के लिए व्यापार अन्य देशों से व्यापार के लिए चीनी बंदरगाहों का इस्तेमाल कर सके लेकिन हम भारत और चीन के साथ समान संबंध बढ़ाना चाहते हैं।

एकाधिकार:- नेपाल पेट्रोलियम पदार्थों के लिए अब तक भारत पर निर्भर था। पिछले माह से भारतीय सीमा पर अघोषित नाकाबंदी से तेल संकट से चिंतत नेपाल ने चीन से हाथ मिलाया। इसे नेपाल की चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों के रूप में देखा जा रहा है। नेपाल-चीन के इस समझौते से आईओसी का चार दशक पुराना एकाधिकार खत्म हो गया है।

समझौता:-नेपाल ऑयल कॉरपोरेशन ने चाइना नेशनल यूनाइटेड फ्यूल कॉरपोरेशन यानी पेट्रो चाइना से समझौता किया है। इसके मुताबिक, चीन से नेपाल को एक हजार टन तेल अनुदान में मिलेगा। चीन ने कहा, वह नेपाल को 13 लाख लीटर पेट्रोल की आपूर्ति करेगा। अभी तक नेपाल ने चीन से पेट्रोल का आयात नहीं किया था।

चिंता: - भारत की चिंता अलग है। नेपाल में जो कुछ हो रहा है वो भारत के हितों के खिलाफ है। हमारी विदेश नीति पर सवाल उठना लाजिमी हैं। आखिर नेपाल चीन की ओर क्यों झुक रहा हैं? हमारी विफिलताओं ने चीन को नेपाल पर हावी कर दिया है। सवाल है कि क्या विदेश नीति के निर्धारक समय पर नेपाल के हालात की सही सूचना नहीं दे पाएगें।

सावधान:-नेपाल के राजदूत ने भारत को पहले ही कह दिया था कि वह पेट्रोलियम और दूसरी जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा डालकर उसे इस तरह से मजबूर ना करे कि उसे तमाम दिक्कतों के बावजूद चीन की तरफ जाने को मजबूर होना पड़े। हमें एक समय सीमा चाहिए। कितने घंटे हफ्ते या महीना? आप हमें मजबूर करेंगे तो हम विवश होकर दूसरे देशों से संपर्क करने को मजबूर हो जाएंगे। भारत ने जब भूकंप संकट के समय नेपाल की मदद की थी, तब नेपाल में हर किसी ने उनकी तारीफ की और उनका शुक्रिया अदा किया। लेकिन जब पेट्रोल की आपूर्ति में बाधा आएगी तो लोग प्रतिक्रिया देंगे ही और प्रदर्शन करेंगे ही। यह स्वाभाविक भी है।

पेट्रोल:- पड़ोसी देश नेपाल को चीन ने पेट्रोल देने की कवायद शुरू की है। भारत की ओर से नेपाल को पेट्रोल मिलने में पिछले लगभग डेढ़ महीने से दिक्कतें पेश आ रही थीं। ऐसे में वहां की नई कम्युनिस्ट सरकार ने चीन की तरफ मदद का हाथ बढ़ाय़ा था। चीन ने भी रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए नेपाल को पेट्रोल देना शुरू कर दिया है। नेपाल की लगभग एक-तिहाई पेट्रोलियम पदार्थों की आवश्यकता अब चीन पूरी करेगा। साथ ही चीन ने 1000 टन पेट्रोलियम उत्पाद को बतौर अनुदान देने का भी ऐलान किया हे। आशंका है कि भारत को इससे नुकसान होगा। लेकिन चीन की नेपाल के प्रति इस दरियादिली के ज्यादा दिन तक चलने की संभावनाएं काफी कम हैं। इसके कई आर्थिक कारण हें। दरअसल नेपाल की भौगोलिक स्थिति इसमें सबसे पहली बाधा साबित होगी। नेपाल की भारत से लगती सीमाएं परिवहन की दृष्टि से ज्यादा सुगम हैं। जबकि चीन से लगती नेपाल की सीमाएं काफी दुर्गम हैं।

व्यापार:- दुर्गम पहाड़ों में पेट्रोलियम परिवहन के अपने खतरे और दिक्कतें समाहित हें। ल्हासा से कांठमाडू तक का सड़क मार्ग भी काफी समय से निर्माणाधीन है। इसे पूरा करने भी अभी समय लगेगा। साथ ही नेपाल का पांरपरिक रूप से भारत के साथ व्यापार संबंध रहा है। दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन काफी हद तक ठीक है। लेकिन नेपाल का चीन के साथ व्यापार संतुलन काफी डिगा हुआ है। नेपाल चीन को मात्र पांच प्रतिशत ही निर्यात करता है। जबकि नेपाल का भारत को लगभग 62 प्रतिशत निर्यात होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो नेपाल का लगभग दो- तिहाई व्यापार नेपाल के साथ होता हें। लैंड लॉक्ड (चारो ओर से जमीन से घिरा) कंट्री होने के कारण नेपाल अन्य देशों से आयात और निर्यात के लिए भी भारतीय बंदरगाहों पर ही निर्भर है। पेट्रोलियम पदार्थों के लिए पिछले लगभग 40 साल से नेपाल भारत पर ही निर्भर रहा है। अब नेपाल ने चीन के जरिए अपना पेट्रोलियम साथी खोजने की कवायद की है। जहां तक नेपाल में चल रहे भारतीय मूल के लोगों के अधिकारों की रक्षा के प्रति भारत के समर्थन की बात है तो ये आने वाले समय में भी जारी ही रहने वाली है। आखिरकार नेपाल के साथ हमारे सबंध पुरातन काल से हैं। वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों ने नेपाल की अर्थव्यवस्था और विकास में योगदान दिया है। ऐसे में उनका हकों की मांग करना जायज हें

झटका:- किसी भी देश की राजनीतिक व्यवस्था में फेर बदल का सीधा असर आर्थिक हितों पर पड़ता है अतंरराष्ट्रीय संबंध भी इससे अछूते नहीं रहते। प्रतिबद्धताओं और प्राथमिकताओं में उलटफेर हो जाता है यह सब उस देश के नेतृत्व की कुशलता, दक्षता और समावेशी दूरदृष्टि पर निर्भर करता है। भारत के उत्तर में स्थिति हिमालयी देश नेपाल इस सच्चाई को चरितार्थ कर रहा है। सत्ता हस्तांतरण में कम्युनिस्टों का वर्चस्व कायम होते ही भारत से सबंधों में तेजी साफ नज़र आती है। देश का नया संविधान पारित होते ही फूट पड़े आंदोलन में हावी रहे भारत विरोधी संगठनों ने रसद व ईंधन आपूर्ति रोक कर लोगों को यह अहसास कराया कि इस समस्या के लिए भारत जिम्मेदार है। इस संदर्भ में नेपाल को डीजल और पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति पर इंडियन ऑयल का एकाधिकार समाप्त होना भारत के लिए सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है।

उपसंहार:- जहां तक चीन की ओर से नेपाल में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश करने की रणनीति है तो ये चीन की विदेश नीति का चरित्र रहा है फिर चाहे वह दक्षिण एशिया हो अथवा दक्षिण पूर्व एशिया या फिर अफ्रीका। चीन अपनी पैठ बढ़ाने के लिए किसी भी रणनीति में जा सकता है पर अब हमें यह विचार करना होगा कि पड़ोसी देश नेपाल में भारत अपनी प्रासंगिकता को कैसे बनाए रख सकता हें लंबे समय की रणनीति के तहत भारत को नेपाल के साथ अपने संबंधों की मजबूती के प्रयास करने होगे। इसके लिए कूटनीतिक कदम उठाने की आवश्यकता है। आखिरकार नेपाल के साथ हमारी सांस्कृतिक समरसता हैं।

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