जापान में प्रधानमंत्री चुनाव (Prime Minister Election in Japan - In Hindi)

प्रस्तावना:-जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने देश में समय से एक साल पहले आम चुनाव कराने की घोषणा की है। उन्होंने संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (लोक -सभा) को भंग कर दिया। स्पीकर (वक्ता) ताडामोरी ओशिमा ने इसकी घोषणा की। जापान में 22 अक्टूबर को चुनाव कराया जा सकता है। यह लगातार दूसरा मौका है जब आबे ने समय से पहले चुनाव का ऐलान किया है। 2014 में वह देश में आर्थिक मंदी का हवाला देकर दो साल पहले ही आम चुनाव करवा चुके हैं। इस बार उन्होंने उ. कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को समय पहले आम चुनाव कराने की वजह बताया है।

Shinzo Abe Prime Minister of Japan

2012 से लगातार प्रधानमंत्री आबे ने कहा कि इस बार चुनाव में मुकाबला कड़ा होगा। पर हम जापान की जनता की सुरक्षा करना चाहते हैं, ताकि लोग शांतिपूर्वक रह सकें। हम उ. कोरिया से खतरे का सामना कर रहे हैं। इसके लिए हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सहयोग करना है। सत्ताधारी पार्टी (राजनीतिक दल) एलडीपी का कहना है कि आबे ने यह निर्णय उ. कोरिया संकट और देश की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को फिर से संतुलित करने के मद्देनजर लिया है। विपक्षी पार्टियों ने आबे के इस फैसले का बहिष्कार किया है। वहीं, ताजा ओपिनियन पोल में जुलाई की तुलना में आबे की स्थिति अभी काफी मजबूत है।

चुनाव:-जपान में समय से एक साल पहले मध्यावधि चुनाव होने जा रहे हैं। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने देश में मध्यावधि चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। आबे ने यह घोषणा सरकार का कार्यकाल पूरा होने के एक वर्ष पहले ऐसे समय में ही है, जब ओपिनियन पोल में आबे की स्थिति काफी मजबूत बताई गई है। उनके पक्ष में यह स्थिति उ. कोरिया मुद्दे पर अब तक की उनकी प्रतिक्रिया से बनी है। सर्वे से संकेत मिले हैं कि मतदाताओं को उ. कोरिया के खिलाफ राष्ट्रवादी आबे का रुख पसंद आया है। उ. कोरिया ने हाल के दिनों में जापान के ऊपर से दो मिसाइलें (प्रक्षेपास्त्र) दागी थीं और जापान को डुबाने की धमकी दी थी।

दो कारण:- जिनके चलते आबे ने मध्यावधि चुनाव का दाव खेला हैं-

  • पहला कारण उ. कोरिया ने लगातार दो मिसाइलों का परीक्षण जापान के ऊपर से किया है। जापान ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। वहीं, जापान की जनता में किम जोंग से नाराजगी है। ऐसे में आबे ने लोगों का विश्वास जीतने के लिए आम चुनाव का फैसला लिया है, ताकि लोग अन्य मुद्दों को भूलकर उनकी पार्टी (राजनीतिक) को वोट (मत) दें।
  • दूसरा कारण इस समय विपक्षी पार्टियां बुरी तरह बिखरी हुई हैं। वे संसद के भीतर या बाहर सरकार के खिलाफ कोई मजबूत गठबंधन नहीं बना सकी हैं। वहीं, प्रधानमंत्री के तौर पर आबे की लोकप्रियता बढ़ी है। एक सर्वे के मुताबिक आबे की राष्ट्रवादी नीतियों को जापान के करीब 50 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया है।

दो प्रमुख चुनावी मुद्दे:- इस बार चुनाव में दो प्रमुख मुद्दे हैं।

  • पहला, उ. कोरिया के परमाणु कार्यक्रम से देश की सुरक्षा को खतरा।
  • दूसरा, उम्रदराज लोगों की बढ़ती आबादी। जापान की करीब 40 प्रतिशत आबादी 65 साल से अधिक की है। 20 लाख लोंग 90 साल से अधिक उम्र के हैं। आबे ने हाल ही में कहा था कि राष्ट्र दो समस्याओं (उ. कोरिया और उम्रदराज नागरिकों की बढ़ती आबादी) का सामना कर रहा हैं।

जीत-मीठी चुबान बोलने वाले नाम से जापान में मशहूर आबे की पार्टी एलडीपी यदि चुनाव जीतते है तो वह चौथी बार जापान के प्रधानमंत्री बनेंगे। आबे 2014 में जापान के तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। शिंजो आबे अपनी नीतियों को आबेनोमिक्स बताते हैं। आबे जी के दादा भी जापान के प्रधानमंत्री थे।

मुकाबला-यरीको कोइक से होगा शिंजो का मुकाबला। चुनाव से पहले टोक्यों की गवर्नर (राज्यपाल) यूरीको कोइक ने पार्टी बनाई है। नाम पार्टी ऑफ होप (आशांं का दल) रखा है। वह आबे की सत्ताधारी एलडीपी में मंत्री भी रह चुकी हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 65 वर्षीय पूर्व टीवी प्रेजेंटर (पेशकर्ता) कोइक करिश्मा कर सकती हैं। हालांकि, अनुभव की कमी उनकी कमजोरी मानी जा रही है। एक सर्वे के मुताबिक कोइक की पार्टी को 18 प्रतिशत मत मिल सकते हैं। कोइक ने कहा है कि उनकी पार्टी जीती तो वह टोक्यों मॉडल (आर्दश) को देश में लागू करेंगी।

जापान की ससंद डायट- हाउस (सभा) ऑफ (का) काउंसलर (परामर्शदाता) (उच्च सदन) 242 सीट। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (लोक-सभा) (निचला सदन) 475 सीट। निचले सदन में वर्तमान राजनीतिक दलों की स्थिति-सत्तापक्ष 329 (कुल सीटें) । लिबरल डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) पार्टी (दल) - 294 कोमेइटो-35। विपक्ष: 146 सीटें, डेमोक्रेटिक पार्टी 96 सीटें। अन्य: 50 सीटें

आर्थिक सेहत:- जापान में जल्द ही आम चुनाव होने हैं और इसके मद्देनजर प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा है कि वे नई आर्थिक योजना और उ. कोरिया की ओर से बढ़ते खतरे के संदर्भ में विदेश नीति को कड़ा बनाने के लिए आम जनता का समर्थन चाहते हैं। सत्तारूढ़ लिबरल (उदार) डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) पार्टी (दल) और कोमितो ने राष्ट्रीय बिक्री कर 2019 में 8 से 10 फीसदी करने का प्रस्ताव किया है। आबे इस बढ़े हुए कर प्राप्त होने वाले करीब 50 खरब येन धन के इस्तेमाल को बदलने का भी मन बना रहे हैं। वे कह रहे हैं। कि इस धन में से 20 खरब राशि 3 से 5 वर्ष और गरीब परिवार के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने और बच्चों की देखभाल पर खर्च करने का मन बना रहे हैं। विपक्ष करों में बढ़ोतरी के इस प्रस्ताव का एकजुटता से विरोध कर रहा है। इतना तय है कि इस तरह का खर्च जापान की आर्थिक सेहत पर विपरीत असर डालेगा।

जीत की हैट्रिक (लगातार तीन सफलता) : - जापान में प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने आम चुनाव में जीत की हैट्रिक लगा दी है। 465 सीटों वाले सदन के लिए हुए चुनाव में उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) नीत गठबंधन ने 313 सीटें हासिल की है। यह संख्या दो तिहाई बहुमत (310) के आंकड़े से दो ज्यादा है। वहीं प्रतिदव्ंदव्ी यूरिको कोइके की नवगठित पार्टी 49 सीटें ही जीत सकी। चुनावी परिणाम सर्वे में जताए गए अनुमानों के करीब ही हैं। जीत के बाद आबे ने कहा कि मुझे उ. कोरियाई चुनौती से निपटने समेत अन्य मसलों पर जनादेश मिल गया है। आबे ने बीते सितंबर में संसद भंग कर दी थी। साथ ही समय से एक साल पहले चुनाव करने का ऐलान किया था।

इस जीत के बाद एलडीपी पार्टी (दल) पर भी आबे की पकड़ मजबूत होगी अगले साल सिंतबर में उन्हें फिर से तीन साल के लिए पार्टी का नेता चुना जा सकता है। इस तरह वह 2021 तक प्रधानमंत्री पद पर रह सकेंगे और जापान से सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले सरकार प्रमुख बन सकते हैं।

संविधान:-जापान के प्रधानमंत्री आबे ने विपक्षी दलों की खस्ता हालत व अपनी घटती लोकप्रियता के मद्देनजर एक वर्ष पूर्व ही आम चुनाव करवाए। इन चुनावों में उन्हें प्रचंड बहुमत मिला है। तो अहम सवाल है कि क्या वे आबेनॉमिक्स पर आगे बढ़ेंगे? चीन व उ. कोरिया से होते तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद नौ में परिवर्तन हो सकेगा?

  • बीते महा जर्मनी की एंजेला मर्केल के चौथी बार चांसलर (कुलाधिपति) चुने जाने के बाद अब जापान के शिंजो आबे की चौथी बार आम चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीत कर आना विश्व में लोकतंत्र के बदलते स्वरूप का उदाहरण है। दैनिक जीवन में सूचना क्रांति के बढ़ते हस्तक्षेप से हर कदम पर निर्णय लेने की गति बढ़ती जा रही है। इसका सीधा असर सामने खड़े सवाल के विश्लेषण में संयम और संतुलन पर नजर आता है। परिणाम ये कि लोकतंत्र में आम चुनाव ज्यादातर सतही बहाव से प्रभावित नजर आते हैं। विरोधी दल की खस्ता हालत और अपनी घटती लोकप्रियता को देखकर जब शिंजो आबे ने जब अचानक एक वर्ष पूर्व ही चुनावों की घोषणा कर डाली तो उनके लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के गठबंधन को जापान की संसद (डाइट) के निचले सदन की कुल 465 सीटों में से 312 पर जीत प्राप्त हुई जो दो तिहाई से भी दो सीट ज्यादा है। डाइट के ऊपरी सदन में एलडीपी गठबंधन को पहले ही दो तिहाई से अधिक बहुमत प्राप्त है। आबे यदि अपना कार्यकाल 2021 में पूरा करते हैं तो जापान के सर्वाधिक लंबे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री होंगे। वे बहुत ही प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके नाना नोबुसुके किशि जापान के प्रधानमंत्री था। उनके दादा कान आबे 1937 से 1946 और उनके पिता शिनताराेे आबे 1958 से 1991 तक डाइट के सदस्य थे। इस चुनाव के असर को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। आबे कई बार कह चुके हैं कि वे वर्ष 2020 तक यानी जिस वर्ष टोक्यों ओलंपिक भी होंग, जापान में कई मौलिक परिर्वतन लाने का प्रतिबद्ध हैं।
  • इसमें सबसे महत्वपूर्ण जापान के संविधान के अनुच्छेद नौ को बदलने की बात है जिसके तहत जापान युद्ध के विकल्प को त्याग चुका है। हालांकि किसी तरह से इस अनुच्छेद की व्याख्या में जापान आत्मरक्षा का विकल्प ले चुका है किन्तु फिलहाल इसकी आत्मरक्षा सेना को एक सामान्य सेना दर्जा दिलाने की बहस वहां छिड़ी हुई है। अब डाइट के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत होने से उम्मीद है कि इस अनुच्छेद में परिवर्तन लाया जा सकता है। हालांकि यह इतना, आसान नहीं होगा। ऐसा प्रस्ताव पर डाइट के दोनों सदनों के अनुमर्थन के बाद भी इसे जनमतसंग्रह में बहुमत से पारित करवाना होगा।
  • अभी तक के सर्वेक्षणों में जापान के लोग इस प्रस्ताव पर एकमत नहीं हैं। आबे अपनी चुनौतियों से वाकिफ हैं और वे अपनी अन्य नीतियों को और आगे बढ़ाएंगे। उनका लगातार उ. कोरिया पर कड़ा रुख बने रहने की उम्मीद है। इस सप्ताह अमरीका के विदेश मंत्री रेक्स टिलर्सन की जापान यात्रा में यह मुद्दा उभरकर सामने आएगा। उ. कोरिया के नेता किंग जोंग उन जो जापान को समुद्र में डुबोने की बात करते हैं, को भी इन चुनावों का आकलन करना होगा। इन चुनावों का असर चीन में हो रहे कम्युनिस्ट पार्टी (साम्यवादी दल) के 19वें सम्मेलन में भी नजर आएगा। चीन में राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बढ़ते दबदबे के साथ शिंजो आबे के समक्ष शी चिनफिंग के साथ बेहतर तालमेल बनाने की चुनौती होगी। आबे के लिए तीसरी बड़ी चुनौती जापान की आर्थिक वृद्धि दर बढ़ाने और रोजगार सृजन की होगी। पिछले पांच साल की आबेनॉमिक्स के अंतर्गत सरकारी निवेश के बहुत अच्छे परिणाम नहीं आए हैं। इसके अलावा शिंजो आबे एशिया प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों के गठजोड़ के पक्षधर रहे हैं।
  • भारत से शिंजो आबे का शुरू से ही खास रिश्ता रहा है। वे कई बार भारत आ चुके हैं और इससे भी ज्यादा वे भारतीय नेताओं से बहुराष्ट्रीय सम्मेलनों में मिलते रहे हैं। आबे के अभी तक कार्यकाल भारत-जापान संबंधों के लिए सकारात्मक रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री मोदी और आबे के तालमेल से कई प्रस्ताव सकरात्मक परिणति तक पहुंचे हैं। इनमें सबसे अहम भारत-जापान सिविल न्यक्लियूर (नाभिकीय) सहयोग का जुलाई में कियान्वित होना माना जाता है। इसका असर जापान तक ही सीमित नहीं बल्कि यह अन्य देशों के साथ परमाणु सहयोग पर भी पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर अमरीका वेस्टिंग हाउस समूह जिसे छह परमाणु रिएक्टर (प्रतिघातक) आंध्र प्रदेश में लगाने थे, अटका हुआ था। इस कंपनी (संगठन) के अधिकतम शेयरों की मालिक जापान की कंपनी (संगठन) तोशिबा है। गत वर्ष नवंबर में भारत के प्रधानमंत्री मोदी की टोक्यों यात्रा में भी इसके साथ अन्य कई मुद्दों पर आपसी समझ बनी थी, जिसके नतीजे धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। इसी संदर्भ में आबे की सितंबर की भारत यात्रा के दौरान भारत-जापान ग्रोथ (विकास) कॉरिडोर (गलियारा) लांच (प्रक्षेपण) किया गया जिसमें हिन्द महासागर के तटीय देशों को जोड़ने की बात है। आज जबकि अमरीका के राष्ट्रपति मित्र देशों के मामले में संकुचित दृष्टिकोण रखते हुए अमरीका फर्स्ट (पहली) की बात कर रहे हैं तो ऐसे में एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता बनाए रखने की जिम्मेदारी भारत-जापान पर है। ऐसे में आबे भारत के साथ मिलकर इस दिशा में कार्य कर सकते हैं।

प्रो. स्वर्ण सिंह, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार, हिरोशिमा विश्वविद्यालय में विजिटिंग (दौरा) प्रोफेसर (प्राधानाध्यक) रहे हैं और जेएनयू के सेंटर (केन्द्र) फॉर (के लिए) इंटरनेशनल (अंतरराष्ट्रीय) पॉलिटिक्स (राजनीतिक) , डिस्आर्मामेंट (निरस्त्रीकरण) विभाग में अध्यापन कर रहे हैं।

कार्यसूची:-जापान में एक्जिट पोल (निर्गम मतानुमान) के अनुसार चुनावों में आबे का सत्ताधारी गठबंधन हो गया है। जीत से उत्साहित आबे ने कहा है कि उ. कोरिया संकट से निपटना उनके एजेंडे (कार्यसूची) में सबसे ऊपर है। जापानी प्रधानमंत्री ने कहा है कि चुनाव में उनकी जीत ने उ. कोरिया से निपटने के उनके संकल्प को और मजबूत किया है। उ. कोरिया के हालिया परमाणु और मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) परीक्षणों ने प्रशांत क्षेत्र में उसके पड़ोसियों की चिंता बढ़ा दी है जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने उसके खिलाफ प्रतिबंधों का ऐलान किया। उ. कोरिया के मुद्दे पर आबे ने कहा कि इसके लिए मजबूत कूटनीति की जरूरत है। वहीं आबे और अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने फोन पर बात की है और वे उ. कोरिया पर दबाव बढ़ाने पर सहमत हुए। वहीं मोदी ने आबे को जीत पर बधाई दी है। आबे के लिए नए कार्यकाल का मतलब है कि मोदी को एक ऐसा सहयोगी मिला है जो उनके लिए काफी अहमियत रखता है।

मानचित्र:- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासम्मेलन में स्वीकृत हुए वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) के प्रस्ताव के जवाब में जापान की पहल पर भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की युक्ति से दुनिया के शक्ति संतुलन का नया मानचित्र बनने की संभावना बढ़ गई है। जापानी विदेश मंत्री तारो कोनो के बयान से लग रहा है कि इसका स्वरूप चीन की योजना के विकल्प के तौर पर होगा और इसमें दुनिया के अन्य देशों को जोड़ा जाएगा। चीन की विस्तारवादी नीति से भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे अहम देश तो चिंतित हैं ही एशिया और अफ्रीका के अन्य देश भी बेचैन हैं पर वे जाएं तो जाएं कहां। पहले से चर्चा में रही इस योजना को जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे दोबारा सत्ता में आने के बाद ठोस रूप देने को उत्सुक हैं। इस पर तारो कोनो ने ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री जूली बिशप और अमेरिकी विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन से अगस्त में ही बात की थी। इस बीच भारत के दौरे पर आए टिलरसन ने दक्षिण एशिया में सड़क और बंदरगाह बनाने पर जोर दिया ताकि एशिया और प्रशांत क्षेत्र की व्यापारिक और सामरिक नीति को नया आयाम दिया जा सके। आबे और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की 6 नवंबर को होने वाली मुलाकात भी इस दिशा में खास हो सकती है। इस योजना के माध्यम से अमेरिका भारत की भूमिका को बढ़ाने को उत्सुक है। अमेरिका चाहता है उसके ऐसे रिश्ते बनें जो आने वाले सौ वर्षों तक कारगर हों। रिश्तों के इसी खाके में अफगानिस्तान में भारत की भूमिका बढ़ाने की बात है, जो अपने में सबसे आरंभिक पहल कही जा सकती है। इस दीर्घकालिक सामरिक योजना को अगर व्यापारिक योजना के तहत क्रियान्वित किया जाएगा तो दुनिया के दूसरे देश भी आकर्षित होंगे और विश्व समुदाय के नियमों को लागू करने में सुविधा होगी। यह सही है कि अमेरिका दुनिया के नियमों को अपने ढंग से हांकता है लेकिन, वह दुनिया को पटरी पर रखने का जिम्मा भी उठाता हैं। जबकि चीन अपनी बढ़ती सामरिक और आर्थिक शक्ति के कारण नियमों को ताक पर रखकर अपनी दुनिया बनाना चाहता है। इसी कारण उसने आठ देशों को जोड़ने वाली ओबीओआर योजना तैयार की हैं और भारत ने संप्रभुता का सवाल उठाकर उसमें शामिल होने से मना कर रखा है। देखना है कि जापान की पहल वाली इस नई योजना का स्वरूप क्या होता है और भारत उसमें किस प्रकार शामिल होता है।

सेना:-22 अक्टूबर को हुए संसदीय चुनावों में प्रधानमंत्री आबे के नेतृव्य वाला गठबंधन अपना दो-तिहाई बहुमत बरकरार रखने में सफल हुआ तो उनकी लिबरल (उदार) डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) पार्टी (राजनीतिक दल) अपने दम पर साधारण बहुमत हासिल करने में कामयाब हुई विभाजित विपक्ष के चलते वे लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने में सफल रहे। साल की शुरुआत में आबे की लोकप्रियता लगातार कम हुई थी, लेकिन अब संसद में उनकी पार्टी का पूरा नियंत्रण होगा। वे संसद में अपनी मर्जी से नए कानून बना सकते हैं और दव्तीय विश्वयुद्ध के बाद जापान के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभर सकते हैं।

5 नंवबर को अमेरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के जापान दौरे के दौरान वे फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे। यदि सिंतबर में वे तीसरी बार पार्टी के भी अध्यक्ष चुने जाते हैं तो 1880 के दशक के बाद देश के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री बन जाएंगे। प्रधानमंत्री के रूप में चौथी पारी में अब उनके पास कुछ लंबे समय के फैसले लेने का समय है। आबे संविधान के अनुच्छेद 9 में बदलाव चाहते हैं जिसके तहत वैश्विक मामलों के निपटारे में युद्ध को विकल्प के रूप में नकारा गया है। इससे सेना रखने के जापान के अधिकार पर विवाद खत्म होगा। हालांकि, अधिकतर मतदाता पहले अर्थव्यवस्था की मजबूती से संबधित फैसले लिए जाने के पक्ष में हैं। आबे भी इस पर शायद ही जल्दबाजी करें। वे पहले सत्ता पर अपना नियंत्रण मजबूत करना चाहेंगे। चुनाती जीत के बाद वे पूर्वी एशिया में चीन के मुकाबले भी एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। ट्रंप की विदेश नीति से माहौल इसके अनुकूल है। उ. कोरिया को नियंत्रण में रखने के लिए आबे अमेरिकी राष्ट्रपति से क्रूज (समुद्री यात्रा) मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) खरीदने की चर्चा भी कर सकते हैं। व्यापार संबंधी मुद्दों पर अमेरिका से मजबूती से निबट सकते हैं। वे दव्पक्षीय बातचीत के लिए अब भी शायद ही तैयार हों, क्योंकि ट्रंप ट्रांस (अवचेतन) -पैसिफिक (शांत) पार्टनरशिप (साझेदारी) को खारिज कर चुके है जबकि आबे अब भी इसके पक्ष में हैं। ट्रंप राजी नहीं होते तो उनके पास अमेरिका के अगले राष्ट्रपति की प्रतीक्षा करने का समय है। आबे चाहते हैं कि जापान के लगातार सिकुड़ते श्रम बाजार में मजदूरी में इजाफा हो। इससे कीमतों का असंतुलन ठीक होगा और बाजार में पैसा ज्यादा आएगा। इसके साथ सरकारी खर्च और कर्ज में वृद्धि से जापान की अर्थव्यवस्था 2020 के टोक्यों ओलिंपिक से पहले भी पटरी पर लौट सकती है। यदि ऐसा संभव हुआ तो आबे का विरासत से आगे निकलना किसी चुने हुए नेता के लिए चुनौती होगी।उपसंहार:-इस तरह लगातार तीसरी बार जीत के बाद शिंजो आबे -जो कि दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था और अमरीका के खास सहयोगी देश के प्रधानमंत्री हैं, पूरे विश्व में प्रभावशाली बनकर उभरे है। अब देखना यह है कि इस जीत के बाद अब आबे जनता के हित में क्या-क्या कर करते हैं?

Examrace Team at Aug 20, 2021