तीस्ता जल (Teesta River Water - Explanation by PM on Trip to Bangladesh - In Hindi)

प्रस्तावना:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा में जा रहे है। जोकि नि: संदेह महत्वपूर्ण है। वे बहु प्रतीक्षित भूमि सीमा समझौते को अमल में लाने के लिए हस्ताक्षर करेंगे। पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बार प्रधानमंत्री के साथ जा रही हैं लेकिन तीस्ता नदी जल बंटवारे की संधि होने पर अब भी संदेह बना हुआ है। पिछली बार तो इस मसले से नाराज होकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन जी के साथ जाने मना कर दिया था। अब राहत इतनी सी है कि इस मामले पर उनका रूख नरम पड़ा है। क्या तीस्ता जल समझौता होगा? इसके एवज में व्यापार को सुगम बनाने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में सड़क मार्ग से आवागमन की सुविधा पर संधि होनी है, बिना तीस्ता जल संधि के ही यह हो पाएगी? यह सब आने वाला समय ही बताएगा।

विकास:- मोदी जी ने नारा दिया है कि सबका साथ, सबका विकास। इस नारे के कई निहितार्थ हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि जिन राज्यों से भाजपा को अपेक्षाकृत कम वोट हासिल हुए हैं वे हैं पूर्वोत्तर के राज्य। मोदी अपने नारे के मुताबिक यदि इस क्षेत्र में विकास को अंजाम दे सके तो भविष्य में यहां पार्टी को पैर जमाने का मौका मिल जाएगा। वे विकास की राजनीति के सहारे पूर्व और पूर्वोत्तर के राज्यों में पैठ बनाने की कोशिश में हैं और इसके लिए जरूरी है बांग्लादेश से संबंध बेहतर हों। सड़क, रेलमार्ग, नदियों और बंदरगाहों के उपयोग पर दोनों देशों में सहमति होने की प्रबल संभावना एक बड़ी उपलब्धि होगी। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में कोलकत्ता से अगरतला की दूरी 1650 कि. मी. है, बांग्लादेश में होकर जाने की सहमति होने पर यह केवल 350 कि. मी. रह जाएगी। बांग्लादेश के साथ होने वाले ये समझौते दक्षिण एशिया की राजनीति, अर्थव्यवस्था एवं सुरक्षा की दृष्टि से एक सुखद परिवर्तन का संकेत देता है।

इस बार प्रधानमंत्री व ममता बनर्जी बांग्लादेश की यात्रा पर जा रही हैं और उन्होंने भविष्य में बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल पर संधि होने के सकारात्मक संकेत भी दिए लेकिन इस यात्रा में ही ऐसा हो जाएगा इस पर कोई ठोस बात नहीं की है। इस बार सीमा विवाद इसलिए हल नहीं हो रहा था क्योंकि भूमि सीमा किसी अन्य देश से लेने और देने के लिए भारतीय संविधान के मुताबिक प्रस्ताव को संसद से दो तिहाई मतों से पारित होना चाहिए और इसके लिए आधे राज्यों की सहमति भी जरूरी है। वर्तमान सरकार ने संसदीय स्तर पर इसे पारित कराने की बाध्यता को पार कर लिया है और अब पूर्व में प्रस्तावित भूमि सीमा समझौता अमल में लाया जा सकता है। इसके अलावा साढ़े छह किलोमीटर की अंतराष्ट्रीय सीमा का निर्धारण भी किया जा सकता है। अब यदि तीस्ता जल समझौता हो जाता है तो भले ही एक बार को यह बांग्लादेश के पक्ष में जाता लेकिन इसके बाद अन्य समझौता से व्यापारिक के लिए भारत के लिए यदि बांग्लादेश होते हुए आवाजाही के रास्ते खुल गए तो पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास की गंगा बह सकती है।

बांग्लादेश व भारत:- 1971 में बांग्लादेश बना तो उस दौर में जिस आवामी लीग पार्टी का उदय हुआ, वही वहां भाषाई, राष्ट्रवाद लोकतांत्रिक पंथ निरपेक्ष और समाजवादी मूल्यों को आगे बढ़ाने वाला राजनीतिक दल था। जब यह सत्ता में आया तो भारत ने स्वाभाविक रूप से उसे अपना समर्थन दिया। तब से लेकर अब तक का इतिहास इस बात का गवाह बना रहा है कि जब जब आवामी लीग सत्ता में आई है तब तब भारत और बांग्लादेश के संबंध प्रगाढ़ बने है। पर जब बांग्लादेश में अन्य दलो की सरकार आती है तो पाकिस्तान व चीन के संबंध मजबूत होते हैं।

अमल:- भारत का नक्शा एक बार फिर बदल गया है। लेकिन सरहद में बदलाव हो रहा है। मोदी की बांग्लादेश यात्रा पर दोनों देशों के बीच भूमि सीमा समझौता (एलबीए) पर ऐतिहासिक करार हुआ है। इस समझौते के साथ ही दोनों के बीच पिछले 41 वर्षों से चले आ रहे सीमा विवाद का समाधान हो गया है। भूमि सीमा समझौता के तहत भारत बांग्लादेश को तकरीबन 17,160 एकड़ में फैली 111 बस्तियां सौपेगा। वहीं बांग्लादेश भी 7110 एकड़ में फैली 51 बस्तियां भारत को सौंपेगा। लेकिन अब परिवर्तन कर 500 एकड़ भूमि, 51 बस्तियां, 37 हजार लोग बांग्लादेश को देंगे। 10 हजार एकड़, 111 बस्तियां, 14 हजार लोग हम बांग्लादेश से लेगे।

विवाद:- भारत और बांग्लादेश में तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर विवाद है। 1984 में हुए समझौते के मुताबिक 39 प्रतिशत जल भारत को और 36 प्रतिशत बांग्लादेश को तथा शेष 25 प्रतिशत जल के बंटवारे पर दोनों देशों के बीच समझौता होना था, पर 2011 में दोनों देशों के बीच 50 - 50 प्रतिशत जल बंटवारे को लेकर बात शुरू हुई। यह मामला अब भी लटका हुआ है। लेकिन अब भारत ने स्पष्ट कह दिया है कि तीस्ता जल समझौता नहीं होगा। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार की सहमति के बिना कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। अत: यह समझौता नहीं होगा। ममता बनर्जी को इस पर आपत्ति रही है। उनका कहना है कि उत्तर बंगाल की जल जरूरतें अधिक हैं और पश्चिम बंगाल की कीमत पर बांग्लादेश के हितों की पूर्ति नहीं की जानी चाहिए। इसको देखते हुए यह मुद्दा राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील हो जाता है।

एंजेडा:-

  1. कोलकत्ता -ढाका-अगरतला और ढाका- शिलांग- गुवाहाटी के बस सेवा शुरू होगी।
  2. रेलवे कनेक्टिविछी बढ़ेगी। 1965 से पहले से जो पटरियां अस्तित्व में हैं, उन्हें दूरस्त किया जा रहा है।
  3. दोनों देश शिपिंग अनुबंध करेंगे। भारतीय जहाज बांग्लादेश के बंदरगाहों से परिवहन कर सकेंगे। इस समय उन्हें सिंगाापुर से जाना पड़ता है।
  4. भारतीय कंपनियां बांग्लादेश में बंदरगाह बनाने की प्रक्रिया में शामिल होंगी।
  5. बांग्लादेश-भूटान, भारत और नेपाल मोटर व्हीकल एग्रीमेंट पर भी चर्चा होगी।
  6. भारत को लगता है कि बांग्लादेश पूर्वोतर को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने में मदद कर सकता है।

घरेलू राजनीति:- मोदी जी की बांग्लादेश यात्रा में तीस्ता जल पर फिलहाल कोई समझौता होने की उम्मीद नहीं है। यह यात्रा तो दोनों देशों के बीच हाल में हुए भूमि सीमा समझौता के औपचारिक आदान प्रदान और अन्य व्यापार, ट्रांजिट कनेक्टिविटी आदि मूद्दों पर ही अधिक केंद्रित रहेगी। इसके तहत दो बस सेवा चलेगी जो कोलकत्ता -ढाका-अगरतला और ढाका- शिलांग- गुवाहाटी के बीच चलेगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री के साथ जा अवश्य रही हैं पर अभी तक तीस्ता जल को लेकर कोई सहमति नहीं बनी हैं। संभव है जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत की यात्रा पर आए तो तीस्ता जल समझौते पर दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर हो जाए। तीस्ता जल संधि नहीं होने से बांग्लादेश में असंतोष नहीं पनपेगा। उसकी मांग कुछ अधिक पानी की है। इसी पर विवाद है। हड़बड़ी में कोई समझौता होने और फिर उस कारण से देश में अंतोष या विरोधी भावना पनपने से तो अच्छा है कि पूर्ण सोच विचार कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाए।

पंचशील:- भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री जी को कौटिल्य के पांच सूत्र भली प्रकार समझ लेने चाहिए ताकि उनकी ऊर्जा खुर्द बुर्द न हो-

  1. विदेश यात्राओं पर विदेशी मुद्रा का अपव्यय न हो जो कि प्राय: होता रहा हैं।
  2. कौटिल्य कठोर वित्तीय अनुशासन पर जोर देता है। राजतंत्रवादी होते हुए भी वह राजा को एक वेतन भोगी कर्मचारी मानता है।
  3. राज्य की संपत्ति एवं राजा की निजी संपत्ति में भेद करता है।
  4. मैत्री स्थाई नहीं होती हित स्थाई होते है। हितों के मुताबिक मैत्री बदलती है रहती है।
  5. मैत्री बराबर वालो में होती है वो भी तब तक जबतक कि हित समान हो।
  6. इसलिए अगर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नहेरू यहिद कौटिल्य को भली प्रकार पढ़ते तो चीन व कश्मीर वाले मामलों धोखा नहीं खाया होता।

उपसंहार:- आखिरकार तीस्ता जल संधि नहीं हो पाई क्योंकि इसके कई कारण थें पर भूमि सीमा विवाद का समझौता हो गया यह भी कोई कम बात नहीं है। इस समझौते ने 41 साल वाला इतिहास रच लिया है। यह संधि आम लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है। व दूसरी तरफ विदेश यात्राओं पर भारी भरकम विदेशी मुद्रा का व्यय हो जाता है। विदेश यात्राएं करने वाले राजनेताओं को ध्यान रखना चाहिए कि यात्रा में लगने वाली बहुमूल्य मुद्रा का बिल्कुल भी अपव्यय ना हो। हमें ऐसी विदेश नीति तैयार करनी होगी जिसके पीछे गहन चिंतन हो। व जिसका लाभ देश को मिल सके।

Examrace Team at Aug 23, 2021