टाइम जोन (समय क्षेत्र) (Time Zone in Hindi)

प्रस्तावना:- समय सच में बड़ा बलवान होता है। समय में ताकत होती है। ये मुट्‌ठी में बंद रेत के समान होता है। कब फिसल जाए पता ही नहीं चलता है। समय को बांधना इंसान के बस में नहीं, लेकिन समय के अनुसार चला जा सकता है। देश में चर्चा चल रही है टू टाइम जोन (दो समय क्षेत्र) अपनाने के बारे में। पूर्वोत्तर के राज्यों की मांग है कि उनका समय डेढ़ से दो घंटे आगे हो। जिससे कि ऊर्जा की बचत हो और उत्पादकता में इजाफा हो सके। बड़े देशों जैसे अमरीका, रूस और ऑस्ट्रेलिया में अलग-अलग टाइम जोन होते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत में दो टाइम जोन बनाने से कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां भी आ सकती हैं।

India Time Zone

वैश्विक स्थिति:- दुनिया में समय को हर कहीं किसी कठोर नियम के तहत ही नहीं बल्कि लोगों की सुविधा के अनुसार भी तय किया जाता हैं। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो फ्रांस के 12 टाइम जोन हैं जो विश्व में किसी एक देश में सर्वाधिक हैं तो अमरीका में 9 टाइम जोन हैं। इसके अलावा अमरीका ने गर्मियों में डेलाइट (आनंद) सेविंग (बचाव) टाइम (समय) भी अपनाया है जिसके तहत हर कोई वसंत के दिनों में अपनी घड़ी को एक घंटा जल्दी सेट कर लेता है और पतझड़ में उसे फिर पुराने समय पर ले आते हैं, जिसे अमरीकी फॉल (गिराव) कहते हैं। रूस में, 11 टाइम जोन हैं। सोवियत संघ टूटने के बाद 1992 में ये समय जोन तय किए गए थे। इस तरह रूस में एक ही समय में 10 घंटे का फर्क भी होता है। बर्फीले देश अंटार्कटिका की विशालता के कारण यहां 10 समय जोन हैं।

  • तकनीकी तौर पर तो यहां दुनिया का हर समय जोन मिल जाता है। ब्रिटेन भी आकार में छोटा लेकिन समय जोन में बहुत बड़ा देश है। यह 9 टाइम जोन इस्तेमाल करता है। ऐसा दूर-दूर फैले अलग-अलग दव्ीपों के कारण है। वहीं विशालकाय ऑस्ट्रेलिया में केवल 8 टाइम जोन हैं। यहां के एक हिस्से में एक समय में सुबह के 5 बजते हैं तब दूसरी जगह सुबह के 11 बजे चुके होते हैं। छोटे सा देश डेनमार्क भी 5 टाइम जोन में बंटा हुआ है। दुनिया में चीन ही एक ऐसा देश है जो विशाल भूभाग पर फैला हुआ है और उसका एक ही टाइम जोन है। चीन पूरे देश में टाइम जोन के बारे जाना जाता है।

विचार:- मेरे हिसाब से समय का एक ही कारण है कि इससे एक अंतराल पैदा होता है और सभी चीजें एक साथ घटित नहीं होती हैं। समय बड़ा गुरु है। कल से सीखें, आज में जीयें और आने वाले कल से आस को बनाए रखें।

अलबर्ट आइंस्टीन, महान वैज्ञानिक

इतिहास:- समय को मापने के लिए मानव में सदा से ही उत्सुकता रही है। प्रारंभ में सूर्य की दिशा से लेकर वर्तमान की एटॉमिक घड़ियों तक के इतिहास पर एक नजर-

  • सूर्य की दिशा-भारत के पौराणिक ग्रंथो में समय का जिक्र मिलता है। हजारों साल पहले भारत में समय को सूर्य की स्थिति से आंका जाता था। तब प्रहर के मानक बनाकर समय की गणना करते थे। मिस्र में भी सूर्य दिशा से समय आंका जाता था।
  • जेब-हाथ में समय-15वीं शताब्दी में यूरोप में पॉकेट वॉच (जेब घड़ी) बनी। लीवर (रहने वाला) और स्प्रिंग (वसन्त) की घड़ियों को बनाने में स्विट्‌जरलैंड ने खासी महारत हासिल कर ली। वर्ष 1850 तक यूरोप में घड़ियों का बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू हो गया।
  • क्वार्ट्‌ज घड़ियां-यूरोपीय देशों घड़ीसाजों द्वारा निर्मित घड़ियों के बाद वर्ष 1950 में विद्युत घड़ियों ने दस्तक दी। समय की बेहतर ढंग से आकलन करने में क्वार्ट्‌ज घड़ियां बेहद कामयाब रहीं। जापान में वर्ष 1964 के ओलपिंक खेलों में इसका उपयोग हुआ।
  • रेडियो कंट्रोल (नियंत्रण) -वर्ष 1990 में पहली बार रेडियो कंट्रोल वाली पहली कलाई घड़ी मेगा-1 बाजार में आई इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) के माध्यम से टाइम (समय) सिग्नल (संकेत) के अनुसार टाइम (समय) को सेट (निर्धारित) किया जाता था। इसमें सटीकता अधिक थी।
  • रेत की घड़ी-इस घड़ी का आविष्कार कब और कहां हुआ ये कहना मुश्किल है, माना जाता है कि रेत घड़ी अरब में खोजी गई। मध्यकाल के दौरान रेत से कांच बनाने की कला विकसित हुई। कांच को खास बनावट में ढालकर उसके भीतर रेत भरी गई। रेत के एक खाने से दूसरे खाने में आने के समय के मुताबिक समय का अंदाजा लगाया जाता था। जल घड़ी रेत की घड़ी के समान ही थी, लेकिन इसमें रेत की जगह पानी होता था।
  • एटॉमिक घड़ी-पूरी दुनिया में अब इन्हीं घड़ियों से टाइम सेट होता है। एटॉमिक घड़ी अणु के तापमान-इलेक्ट्रॉनिक (विद्युत) ट्रांजिक्शन (कार्य-संपादन) फ्रीक्वेंसी (बारम्बारता) के आधार पर काम करती हैं। सैटेलाइट (उपग्रह) , जीपीएस और रेडियो सिग्नल (संकेत) भी इसी घड़ी के आधार पर चलते हैं।

ओवरटाइम: -यहां का सूरज का ओवरटाइम (अतिसमय) -12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात होती है दुनिया के अधिकांश देशों में, लेकिन कुछ देशों में वर्ष के कुछ महीने सूरज ओवरटाइम भी करता है।

  • नार्वे: आर्कटिक के करीब स्थित इस देश को लैंड (जमीन) ऑफ (का) डिनाइट (रात) सन (सूर्य) भी कहते हैं। मई से जुलाई के लगभग 76 दिन तक यहां सूरज दिन के लगभग 20 घंटे चमकता है।
  • फिनलैंड: गर्मियों के महीनों में सूरज लगातार लगभग 73 घंटे तक चमकता है जबकि सर्दियों में यहां के लोगों को सूरज की रोशनी तक नसीब नहीं हो पाती है।
  • स्वीडन: मई की शुरूआत से अगस्त के अंत तक सूरज लगभग मध्यरात्रि को अस्त होता है और सुबह के 4 बजे फिर से उग जाता हैं।
  • आइसलैंड-इस देश में सूरज कभी भी पूरी तरह से अस्त नहीं होता हैं। रातभर सूरज क्षितिज के लंबवत ही सफर करता हैं।

समय पर एक नजर:-

  • पहले भी-भारतीय मानक समय (आईएसटी) वर्ष 1802 में ईस्ट (पूर्वी) इंडिया (भारत) कंपनी (संगठन) ने मद्रास में निर्धारित किया। यह जीएमटी से 5.30 घंटे आगे है। 1947 में सरकार समय के रूप में स्वीकार कर लिया। हालांकि कोलकाता और मुंबई ने 1955 तक अपने स्थानीय समय (बॉम्बे समय) को बनाए रखा था। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध और वर्ष 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान डे-लाइट (आनंद) सेविंग्स (बचाव) टाइम (समय) का भी उपयोग हुआ।
  • ब्रिटिशकाल-ब्रिटिश शासनकाल के दौरान देश में तीन अलग-अलग टाइम जोन, बांबे टाइम जोन, कलकता टाइम जोन और बागान टाइम जोन बने। पूरे देश के चाय बागान मजदूर इसी बागान टाइम जोन के हिसाब से काम करते थे। आजादी के बाद संपूर्ण देश का टाइम जोन बदल कर एक रूप कर दिया गया। असम के चाय बागानों में अब भी बागान टाइम जोन लागू है। कई संगठन इसे ही अलग टाइम जोन बनाने की मांग भी करते रहे हें।
  • यदि बदले- पूर्वोत्तर में अलग टाइम जोन की मांग करने वाले संगठनों की दलील है कि यदि इलाके में घड़ी की सूइयों को महज आधे घंटे पहले कर दिया जाए तो 2.7 अरब यूनिट (ईकाई) बिजली बचाई जा सकती है। असम के जाने-माने फिल्मकार जानू बरूआ ने आईएसटी का पालन करने की वजह से पूर्वोत्तर के आर्थिक नुकसान आकलन कर बताया कि पूर्वोत्तर इलाके में बिजली के फालतू खर्च के तौर पर सालाना 94 हजार 900 करोड़ रुपए का नुकसान होता है।

क्या है डेलाइट सेविंग टाइम? -

  • ग्रीष्म के दौरान सूर्य के प्रकाश का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए समय परिवर्तन।
  • शुरूआत: 20वीं शताब्दी में वैज्ञानिक जॉर्ज वैरन्न हडसन ने दिया आइडिया (विचार) ।
  • कैसे: वसंत की शुरूआत में घड़ी को 1 घंटे आगे करते हैं, पतझड़ में पुन: पीछे करते हैं।
  • 70 देश डेलाइट सेविंग आइम का इस्तेमाल करते हैं। 20 प्रतिशत आबादी दुनिया के डेलाइट सेविंग टाइम पर निर्भर रहती है।

क्या है ग्रीनविच मीन (मतलब) टाइम (समय) :-

  • इंग्लैंड में स्थित कस्बे ग्रीनविच में सोलर (सूर्य सबंधी) ऑब्जरवेटरी (बेधशाला) है। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड ने समुद्री शक्ति के रूप में दुनिया भर में अपना परचम लहराया तो नाविक अपने साथ ग्रीनविच के अक्षांश से जुड़ा दिशा सूचक रखते थे।
  • 1676 में ग्रीनविच वेधशाला में दो सटीक घंड़ियो के आधार पर ब्रिटेन में ग्रीनविच मीन टाइम शुरू हुआ।
  • 1852 में ग्रीनविच वेधशाला में शैपर्ड (चरवाहा) क्लॉक (घड़ी) से ग्रीनविच टाइम को आमजनता के लिए प्रदर्शित किया गया।
  • 1884 में वॉशिंगटन में 25 देशों के सम्मेलन में ग्रीनविच को प्राइम मेरीडियन (दोपहर) (समय निर्धारण रेखा) की मान्यता मिली।
  • ग्रीनविच रेखा पूर्वी और पश्चिमी गोलार्द्ध में तो भूमध्यरेखा दुनिया को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में बांटती हैं।
  • ग्रीनविच रेखा को आधार समय मान पूरी दुनिया के समय की (धनात्मक) और (ऋणात्मक) में गणना होती है।
  • यूटीसी (कोऑर्डिनेटेड (समकक्ष) यूनिवर्सल (विश्वसंबंधी) टाइम) (समय) की मान्यता मिली, लेकिन अब भी प्रचलन शब्द ग्रीनविच मीन टाइम।

अन्य विचार:-

अलग टाइम जोन की मांग तो पिछले काफी समय से उठ रही है, लेकिन इस पर प्रमाणिक वैज्ञानिक शोध नहीं किया जा सका है।

दिनेश सी. शर्मा, साइंस (विज्ञान) राइटर (रचनाकार) , विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन

  • भारत भौगोलिक रूप से विशाल देश है। पूर्व से पश्चिम तक इसके फैलाव को देखते हुए पिछले काफी समय से मांग उठाई जा रही है कि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अलग टाइम जोन बनाया जाए। पूर्वोत्तर के सांसद पिछले काफी समय से अलग टाइम जोन की मांग कर रहे हैं। उत्तरी अमरीका और यूरोप के कई देशों में अलग-अलग टाइम जोन पिछले काफी समय से संचालित होते हैं। अत्यधिक सर्द इलाकों में स्थित देशों में गर्मियों के दौरान डेलाइट सेविंग टाइम (डीएसटी) होता है। इसमें घड़ी को आधा या फिर एक घंटा पीछे कर देते हैं। इससे दिन की रोशनी (डे लाइट) का बेहतर इस्तेमाल हो पाता है। सबसे बड़ा फायदा होता है ऊर्जा की बचत।
  • भारत के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में सूर्योदय और सूर्यास्त में लगभग डेढ़ से दो घंटे का अंतर होता है। पूर्वी क्षेत्रों में सूर्योदय जल्दी होने के कारण वहां अलग टाइम जोन होने से लोगों को जल्दी काम पर जाने का लाभ मिल सकता है। इससे उत्पादकता में भी सकरात्मक असर पड़ सकता है। असम में चाय के बागानों में अंग्रेजी शासन काल से सुबह 8 बजे से काम शुरू होने की परंपरा है जो कि अब तक कायम है। इसे आज भी बागान टाइम कहा जाता है।
  • दरअसल, असम के बागान मालिक इसी का अब भी इस्तेमाल करते हैं। देश में वैज्ञानिकों क्षरा तीन विकल्प खोजे गए हैं। पहला-भारत में दो टाइम जोन की स्थापना, दूसरा-अप्रेल से सिंतबर तक डे लाइट सेविंग टाइम और तीसरा-भारतीय मानक समय को आधे घंटे के लिए आगे कर देना। तीनो ही उपायों का लक्ष्य है ऊर्जा संरक्षण और उत्पादकता में इजाफा। इन विकल्पों पर विचार के लिए वर्ष 2002 में केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा विशेषज्ञों की समिति गठित की गई। इस समिति ने डीएसटी और अलग टाइम जोन के विचार को खारिज कर दिया। भूमध्यरेखा के समीप देशों में डेलाइट समय में थोड़ा ही अंतर होता है, जबकि ध्रुवीय इलाकों के पास स्थित देशों में ये अंतर ज्यादा होता है। समिति ने ऐसे में माना कि पूर्वोत्तर राज्यों में अलग टाइम जोन स्थापित करने से फायदा कम होगा, जबकि ऐसा करने से परेशानियां ज्यादा बढ़ेगी। एयरलाइंस (हवामार्ग) , रेलवे और अन्य संचार संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। दूसरी ओर बेंगलुरु स्थित नेशनल (राष्ट्रीय) इंस्टीटयूट (संस्थान) ऑफ (का) एडवांस्ड (प्रगति) साइंसेस (विज्ञान) ने एक शोध से ये निष्कर्ष निकाला कि देश के समय में मात्र आधे घंटे का इजाफा करने से हम 2.7 अरब यूनिट (ईकाई) बिजली की बचत कर सकते हैं। डेलाइट टाइम से विपरीत भारतीय मानक समय को एक बार ही बदलना होगा।

देश की आबादी की सुविधा को देखते हुए एक टाइम जोन ही ज्यादा व्यावहारिक है। दूसरे देशों से तुलना करना सही नहीं हैं।

प्रो. आर. सी. कपूर (रि.) इंडियन (भारतीय) इंस्ट्‌िटयूट (संस्थान) ऑफ (का) एस्ट्रोफिजिक्स (तारा-भौतिकी) , बेंगलुरु

  • देश में भारतीय मानक समय करीब 200 साल पहले अस्तित्व में आया। तब से इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ। भारत 72 से 92 डिग्री देशांतर के बीच फैला हुआ है। देश में प्राइम मेरीडियन 82.6 डिग्री देशांतर पर इलाहाबाद के निकट मिर्जापुर से गुजरती है। यह भारतीय समय का मानक माना गया है। यह रेखा सुरत में 72.8 डिग्री देशांतर, आईजोल 92.7 डिग्री देशांतर पर स्थित है। जब ग्रीनविच में रात के 12 बजते है तो भारत के सूरत में सुबह के 4: 48 बजे, मिर्जापुर में 5: 30 बजे और आईजोल में 6: 12 बजे होने चाहिए पर पूरे भारत में सुबह के 5: 30 बजे ही माने जाते हैं। इस तरह देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में सूर्योदय में 1: 24 घंटे का अंतर रहता है। अब पूर्वोत्तर के कुछ सांसदों ने पूर्वोत्तर के लिए अलग टाइम जोन बनाने की माग की है। देश आबादी की सुविधा को देखते हुए एक टाइम जोन ही ज्यादा व्यावहारिक है। अलग-अलग टाइम जोन होने से देश में भ्रम की स्थिति पैदा होगी। इसमें बदलाव की जरूरत महसूस हो तो इसे 30 मिनट (क्षण) और बढ़ाया जा सकता है।
  • 30 मिनट का टाइम बढ़ाने से भारत का मानक समय ग्रीनविच से 5: 30 से बढ़कर 6 घंटे हो जाए जो कि बांग्लादेश के बराबर होगा। इससे प्राइम (मुख्य) मेरिडियन (दोपहर) भी देश में ही रहेगी। 30 मिनट समय बढ़ाने से प्राइम मेरिडियन 90 डिग्री देशांतर से गुजरेगी। 90 डिग्री के पास असम का धुबरी शहर पड़ता है। यह 89.97 डिग्री देशांतर पर स्थित है। 90 डिग्री देशांतर पर यही प्रमुख शहर मिलता है। कुछ लोगों ने समय को 1: 30 घंटा बढ़ाने की मांग की है। यह अव्यवहारिक है। इतना समय बढ़ाने से हमारा समय कंबोडिया, सिंगापुर, चीन जैसे देशों के लगभग हो जाएगा। इतना समय बढ़ाने से देश में लोगों का काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। यदि किसी राज्य को कार्यालय संबंधी दिक्कत आ रही है तो वह अपने स्थानीय समय अनुसार कार्यालय समय में फेरबदल कर सकता है। इससे कार्यालय संबंधी दिक्कतें दूर हो जाएंगी। इस मामलें में जहां दूसरे देशों के अलग-अलग टाइम जोन होने के तर्क दिए जाते हैं, लेकिन वहां उन देशों की स्थिति भारत से अलग है। भारत में भारतीय मानक समय निर्धारण की भी अपनी कहानी रही है। वर्ष 1786 में ईस्ट इंडिया कंपनी (पूर्वी भारत संगठन) के अधिकारी ने मद्रास में निजी वेधशाला स्थापित की, जो 1792 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गई। वर्ष 1802 में कंपनी के जॉन गोल्डिंगहम भारत का मानक समय ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) से 5 घंटे 30 मिनट आगे निर्धारित किया। इस वेधशाला को फोर्ट सेंट जॉर्ज से लिंक किया गया और रात को 8 बजे मानक समय के संकेत के लिए तोप से गोला छोड़ा जाता था।

उपसंहार:-एक तरह से टाइम जोन तय करने में नुकसान भी और फायदा भी है लेकिन हर देश भागौलिक स्थित को देखते हुए अपनी सुविधा के अनुसार टाइम जोन तय कर सकते हैं पर इससे पहले वैज्ञानक आंकड़े जुटाने की आवश्यकता हैं।

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(-da...@ on April 21, 2023)

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What is time zone in india?

(-he...@ on April 21, 2023)

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