उच्च दस समाचार भाग 2 (Top Ten News Part - 2)

अमेरिका:-राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार में डोनाल्ड ट्रम्प ने खुद को हमेशा करोबारी बताया है। उन्होंने यह भी जोड़ा की उनकी नीतियों के कारण ही वे कामयाब हैं। द न्यूयॉर्क टाइम्स नामक पत्रिका में उनकी वित्तीय गतिविधियों की खोजबीन में पता चला कि अमेरिका में उनका रियल एस्टेट (कानून अचल संपत्ति) का कारोबार देखने वाली जनसमूहों पर 4,400 करोड़ रुपए का कर्ज है। इस कर्ज से उनकी नीतियों पर सवाल उठते हैं। ट्रम्प का साम्राज्य उनके वित्तीय समर्थकों पर टिका है। उदाहरण के तौर पर मैनहटन में एवेन्यू ऑफ द अमेरिका स्थित एक कार्यालय बिल्डिंग (इमारत) में ट्रम्प सहमालिक है। उस पर 6,460 करोड़ रुपए का कर्ज है। ट्रम्प दावा करते हैं कि उनकी निजी संपत्ति 6 लाख 80 हजार करोड़ से अधिक हैं। इसके पहले राष्ट्रपति पद के किसी भी उम्मीदवार की संपत्ति इतनी व जटिल गतिविधियों वाली नहीं थी। इसी से समझा जा सकता है कि राष्ट्रपति बनने पर ट्रम्प जो नियुक्तियां करेंगे, उसका सीधा असर उनके स्वयं के वित्तीय साम्राज्य पर पड़ेगा। विधायी मामलों में भी वे अपनी संपत्तियों पर प्रभाव डाल सकते हैं। संभव है कि जिन देशों के साथ वे आधिकारिक समझौते करेंगे, उसमें भी उनका कारोबार हित होगा

  • उजागर-ट्रप की वित्तीय समिति के परीक्षण वाली इस विवरण में अभी पूरी तरह यह पता नहीं चला कि उन्होंने कितना करोबार छिपाया हैं। वे हमेशा अपने कर वापसी की जानकारी उजागर करने और संपत्तियों का स्वतंत्र मूल्यांकन कराने से इंकार करते रहे हैं। चुनाव प्रचार की शुरूआत में ट्रम्प ने 104 पेजा का वित्तीय खुलासें वाला फॉर्म भरा था। उसमें उन्होंने घोषणा की थी कि उनके कारोबार से जुड़ी जनसमूहों पर 2,142 करोड़ रुपए का कर्ज है। इस पर उनका कहना था कि वह फॉर्म केवल वित्तीय स्थिति जानने के लिए है, उसमें कहीं भी कारोबार की गतिविधियों का खुलासा करने वाला कॉलम नहीं हैं।
  • सच-ट्रम्प की संपत्तियों के महत्वपूर्ण हिस्से में तीन पक्षों की सहभागिता है, उन पर अतिरिक्त 13 हजार 600 करोड़ रुपए बकाया हैं। चौंकाने वाला सच यह है कि अगर यह कर्ज डूब गया, तो ट्रम्प कहीं से भी जिम्मेदार नहीं होंगे। ट्रप्प कह चुके हैं कि अगर वे राष्ट्रपति बने, तो बच्चे उनकी जनसमूह चला सकते हैं। जबकि इससे पहले कई राष्ट्रपति इस तरह का वित्तीय टकराव टालते रहे हैं।
  • प्रक्रिया- वे अपने हिस्से की संपत्ति बेनामी संस्था को सौंपते हैं, जो मूल संपत्ति बेच देता है और उनके बदले संपित्त दिखाई जाती है, इस प्रक्रिया में बचने वाले का नाम नहीं होता हैं हालांकि कहीं से भी यह प्रतीत नहीं होता है कि ट्रम्प के बच्चे ऐसा विकल्प आजमाएगें।
  • प्रो. पेंटर-मिनेसोटा के विश्विद्यालय में लॉ प्रोफेसर (कानून अध्यापक) रिचर्ड डब्ल्यू. पेंटर वर्ष 2005 से 2007 तक जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में व्हाइट हाउस में अधिवक्ता के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं। प्रोफेसर (महाविद्यालय या विश्वविद्यालय के अध्यापक) पेंटर ने ट्रम्प की तुलना गोल्डमैंन सेक के पूर्व मुखिया सदस्य हेनरी एम. पॉल्सन से की थीं। बुश ने उन्हें ट्रेजरी सेकेट्ररी (सहायक) नियुक्त किया था। प्रोफेसर पेंटर ने ही पॉसलन को सलाह दी थी कि वे गोल्डमैन सेक के उनके शेयर बेच दें, लेकिन वे इस विकल्प को मानने के लिए तत्पर नहीं थे। अगर ट्रम्प भी बेनामी संस्था पर भरोसा करते हैं, तो यह बक्से में सोने की घड़ी रखने के समान होगा और कोई नहीं जान पाएगा कि उसके अंदर क्या हैं?

प्रों. पेंटर कहते हैं ट्रम्प के साम्राज्य की सफलता उनकी कर्ज लेने की क्षमताओं पर निर्भर हैं। कर्ज लेकर वे अपनी कारोबारी संस्थाओं का विस्तार करते हैं। स्पष्ट रूप से देखें तो हम अमेरिका और अन्य देशों में उनकी वित्तीय सौदेबाजी नहीं जानते हैं।

  • सीएनएन- से बातचीत में एक बार ट्रम्प ने कहा कि मैं कर्ज का बादशाह हूँ मुझे कर्ज लेना पसंद है। उनके जीवनवृत्ति को देंखें, तो कर्ज से उन्हें कई लाभ हुए हैं। इसमें उनके चार वे कारोबार शामिल हैं, जो भारी कर्ज के चलते बंद हो गए हैं। फिर वे कहते है कि इन दिनों उनकी जनसमूहों पर बहुत कम कर्ज है। संपत्तियों की घोषणा वाले फॉर्म के बारे में ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने उनकी संपत्ति 10 हजार करोड़ रुपए बताई है। फिर सार्वजनिक रूप से उन्होंने कहा कि वह 68 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक है। जबकि हाल ही में फोर्ब्स मैग्जीन (पत्रिका) और ब्लूमबर्ग में उनकी संपत्ति 34 हजार करोड़ रुपए से भी कम हैं।

द न्यूयॉर्क टाइम्स ने रेड विजन सिस्टम (पुलिस द्वारा हमला या छापा योजना व्यवस्था) के साथ की गई इस पड़ताल में ट्रम्प की अमेरिका स्थित उन 30 संपत्तियों का परीक्षण किया, जिनकी जानकारी सार्वजनिक हैं।

  • चीन में अंग प्रत्यारोपण:-के दव्वार्षिक सम्मेलन कीअंग प्रत्यारोपण की बहस में चीन सरकार, फालुन गोंग के अनुयायी और जांचकर्ता शामिल हैं। हॉन्ग कॉन्ग में पिछले दो सप्ताह से दुनिया के सैकड़ों प्रमुख प्रत्यारोपण सर्जन एकत्रित हुए हैं, जिनमें चीनी सर्जन भी हैं। ये सभी प्रत्यारोपण समाज के दव्वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने आए थे, लेकिन वहां बहस इतनी ज्यादा बढ़ गई कि मुद्दा फिर गरमा गया। अब तक की सबसे तीखी बहस इस मुद्दे पर हुई हैं। हालांकि, पहली बार चीन की धरती पर यह सम्मेलन हुआ, यानी जिस पर सबसे ज्यादा संदेह की नजरें हैं, वहीं इस मुद्दे पर बहस हुई।
  • फालुन गोंग-हॉन्ग कॉन्ग के कर्न्वेशन सेंटर (सम्मेलन केन्द्र) में हाल ही में दुनियाभर के आर्गन ट्रान्सप्लांट (अंग प्रत्यारोपण) के विशेषज्ञ एकत्र हुए। वहीं, बाहर एक मध्यम उम्र वाली एक महिला जिसके चेहरे के भाव आसानी से पढ़े जा सकते हैं कुछ ही सेंकड बाद वे चिल्लाने लगी कि यहां से चले जाए तुम अच्छे नहीं हो जब उनसे बात की तब पता चला कि एन्टी-कल्ट एसोसिएशन (संप्रदाय विरोधी) से जुड़ी हैं। वे मुझे अन्य महिला के पास ले गई। वे फालुन गोंग की अनुयायी थीं। यह एक तरह का मेडिटेशन (मध्यस्थता) और आध्यात्म प्रैक्टिस (अभ्यास) होती है, जिसे चीन ने संप्रदाय व उपासना विधि मानते हुए 1999 में प्रतिबंधित कर दिया था। तब इससे जुड़े हजारों अनुयायियों को जेल में डाल दिया गया था। फालुन गोंग के अनुयायी कहते हैं- हमारी गतिविधियों पर प्रतिबंध के बाद से हमारे हजारों सदस्यों को बंधक बनाकर रखा गया है। ऐसे हजारों अनुयायी मानव अंग प्रत्यारोपण का गोपनीय स्त्रोत बन चुके हैं। चीन में मानव अंगों के बलपूर्वक प्रत्यारोपण पर ये बहस नई बात नहीं है। पिछले 15 सालों से यह सब एक कारोबार की तरह हो रहा है।
  • डॉ. हुआंग जिएफ-चीन में सरकारी तौर पर मानव अंगो के प्रत्यारोपण संबंधी विभाग के प्रमुख अधिकारी डॉ. हुआंग जिएफ ने भाषण में कहा कि ऐसे आरोप हास्यास्पद हैं। चीन में ऐसी कोई गोपनीय प्रणाली नहीं है, जिसमें अंगो के प्रत्यारोपण के लिए बंधकों को मारा जा रहा हो। इस संबंध में जनवरी 2015 में एक प्रणाली बनाई गई है, जिसमें फांसी पा चुके बंधकों की बजाय वॉलंटियरों (इच्छापूर्वक) और गैरबंधकों से इजाजत लेकर ही किसी अंग का प्रत्यारोपण किया जाता है। अपने देश पर लगे इस आरोपों पर डॉ. हुआंग ने कहा कि मैं बहुत अजीब महसूस कर रहा हूं, पिछली कुछ रातों में ठीक से भी नहीं सो पाया हूं। आगे कहते हैं कि चीन सरकार पर जो आरोप हैं, उनके अनुसार हर साल फांसी की सजा पाए लोगों के शरीर से एक लाख अंगों के प्रत्यारोपण को अंजाम दिया जाता है। इस जानकारी में बहुत विरोधाभास हैं यहां फांसी की सजा पाने वाले बंधकों और आम लोगों के मुद्दे को मिलाया जा रहा है।
  • जांच-इसके विपरीत कुछ जांचकर्ताओं और फालुन गोंग के अनुयायियों का दावा है कि उन्होंने एक-एक अस्पताल से जानकारी लेकर तथ्य जुटाए हैं। उनके अनुसार एक साल में करीब 60 हजार अंगो का प्रत्यारोपण किया जाता है। जबकि पिछले साल चीनी अधिकारियों ने जो आंकड़े दिए थे, उसमें बताया गया कि अंग प्रत्यारोपण के केवल 10 हजार केस साल में सामने आए हैं। सरकारी आंकड़ों से छह गुना अधिक वाले तथ्य बताते हैं कि चीन में फालुन गोंग के बंधक अनुयायियों के अंगो का बलपूर्वक कहीं ओर प्रत्यारोपण किया जा रहा है।
  • डेविड मेटास और डेविड किलगौर-हॉन्ग कॉन्ग स्थित कन्वेंशन सेंटर में बैठे डेविड मेटास और डेविड किलगौर ने सबसे पहले वर्ष 2006 में एक विवरण प्रकाशित की थी। उनका कहना था कि कई लोग उन्हें संदेह की नजरों से देखते हैं, तो कई लोग ऐसे भी हैं, जो हमें दुश्मन मानते हैं। ऐसा चीन में भी है और चीन के बाहर भी। इसमें संचार माध्यम संगठन भी शामिल हैं मेटास और किलगौर ने ब्लडी हार्वेस्ट नामक पुस्तक प्रकाशित कर चुके हैं। ऐसी ही एक किताब द स्लॉटर एथान गुटमान ने लिखी है, जो इस साल के अंत में उपलब्ध हो पाएगी। जांचकर्ताओं और फालुन गोंग के अनुयायियों ने जो आंकड़े जुटाए हैं, वे चीन सरकार पर आरोपों को पुख्ता करते हैं। उनके अनुसार पीड़ित बंधक अब मर चुके हैं, वे बोल नहीं सकते हैं।
  • कनाडाई संसद के पूर्व सदस्य डेविड किलगौर कहते हैं, यह ऐसा कृत्य है, जिसमें किसी का नाम नहीं है और उनकी आवाजें भी नहीं है।
  • मानवाधिकार की वकालत करने वाले डेविड मेटास कहते है फालुन गोंग समुदाय ने मानव अधिकार संगठनों का विवरण नहीं पढ़ सकते हैं। वे मानवाधिकार की भाषा में बात नहीं कर सकते हैं। यह भी सच है कि वे असंगठित हैं। हर कोई जानता है कि वे क्या चाहते हैं, इससे उनकी विश्वसनीयता कम होती है। डेविड मेटास के अनुसार क्या हो अगर एक दिन में सभी आरोप यहूदियों पर नाजी नरसंहार की तरह सच हो जाएं? फिर चीन सरकार उस स्थित का सामना कैसे करेगी? संभव है कि वह इसे अपने ही कुछ लोगों की जिम्मेदारी बताते हुए असाधारण घटना करार दे।
  • आरोप-चीन में मानव अंगो के 100 से अधिक सर्जन पहली बार एकत्र हुए। इसके बावजूद उस पर लगे गंभीर आरोपों पर वहां का कोई अधिकारी पर्दा नहीं डाल सका। स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने उन दावों और आरोपों पर गौर किया, जिनमें चीन पर बंधकों के अंगों का बलपूर्वक प्रत्यारोपण करने की बात शामिल हैं। यह भी कहा गया कि चीन में अंग प्रत्यारोपण के साल में करीब एक लाख ऑपरेशन (शल्य क्रिया) होते हैं, जो दुनिया में सर्वाधिक है। सम्मेलन में हुई जोरदार बहस ने इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया हैं। चीन सरकार पर जो आरोप हैं, उनके अनुसार हर साल फांसी की सजा पाए लोगों के शरीर से निकाले गए अंगो से एक लाख प्रत्यारोपण को अंजाम दिया जाता हैं।

ऐसा पहली बार हुआ है कि दुनियाभर के विशेषज्ञों ने चीन की ही भूमि पर हुए कार्यक्रम में उसके शासन की नीतियों की आलोचना की। साथ ही उस निष्पक्ष जांच में सहयोग करने के जिए कहा है। हालांकि सरकार की ओर से इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है। उसके अधिकारियों ने अब तक अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं के दावों का खंडन ही किया है। हाल ही में प्रकाशित हुए एवं आगामी पुस्तकों में चीन के इस गोपनीय करानामों की जानकारी दुनिया के सामने आ सकती हैं।

डीडी क्रिस्टन तातलोव, अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टर

हैदराबाद:-

  • शुरूआत:- बचपन में पुलेला क्रिकेट के शौकीन थे, दस वर्ष की आयु में एक बार दिनभर धूप में क्रिकेट खेलने के बाद वे लू लगने से बीमार हो गए थे। इसके बाद उनके भाई ने उन्हें बैडमिंटन खेलने की सलाह दी थी।
  • 13 वर्ष की उम्र में पैर के लिगामेंट्‌स (स्नायु⟋ऊतक) टूट गए थे, लेकिन सर्जरी (शल्य चिकित्सा) के बाद एक वर्ष के अंदर ही गोपी ने इण्टर (प्रवेश) विद्यालय प्रतियोगिता में एकल और युगल के दोनों खिताब अपने नाम किए थे।
  • 2001 में ऑल इंग्लैंड चैपियनशिप (सर्वश्रेष्ठविजेता) जीतने के बाद गोपीचंद ने महसूस किया कि उत्कृष्ठ खिलाड़ी तैयार करने के लिए देश में एक प्रोफेशनल (व्यावसायिक निपुणता) प्रशिक्षण सेंटर की जरूरत हैं केन्द्र सभी वैज्ञानिक सुविधाओं और तकनीकी संपन्न होना चाहिए। तब उनके मन में बैडमिंटन अकादमी खोलने के विचार ने जन्म लिया।
  • 2003 में आंध्रप्रदेश सरकार ने अकादमी शुरू करने के लिए 45 साल की लीज (खूद, मैल) पर गोपी को पांच एकड़ जमीन दी। लेकिन उसे विकसित करने के लिए गोपीचंद के पास पैसे नहीं थें। उन्हें पारिवारिक संपत्ति गिरवी रखनी पड़ी।
  • उस समय ख्लो का सामान बनाने वाली जनसमूह योनेक्स और उनके रिश्तेदार ने मदद की तब जाकर 2008 में हर जगह से सुविधाओं वाली अकादमी का निर्माण पूरा हुआ। वर्ष 2006 में वे राष्ट्रीय कोच बने थे।
  • अनुशासन- हर कोई पहले प्रशिक्षण समय के लिए सुबह चार बजे उठ जाता हैं। एक घंटे बाद अभ्यास शुरू होता है। 5 से 7 बजे के समय के बाद 9 बजे से तीन घंटे तक फिर अभ्यास चलता है। इस बीच जल्दी ही सुबह का नाश्ता कर लिया जात हैं। सांयकालीन समय में 4 बजे से शाम 6.30 तक प्रशिक्षण चलता हैं। गोपी सेलफोन और सोशल मीडिया (समाज संचार माध्यम) के उपयोग के संबंध में बहुत सख्त हैं। हर कोई यह जानता है कि उन्होंने सिंधु का फोन तीन तहीने पहले ले लिया था और रियों में फाइनल (अंतिम) के बाद लौटा भी दिया था। इन किशोर खिलाड़ियों के लिए जिंदगी आसान नहीं हैं। खासतौर से रविवार के दिन उन्हें हॉस्टल में रहना पड़ता हैं। वहां कोई गतिविधि नहीं होती हैं। उन्हें माता-पिता के बिना अकेले बाहर जाने की अनुमति नहीं होती हैं।
  • अकादमी में हर रोज तीन समय होते हैं। अभ्यास के पहले दो समय प्रशिक्षण में होते हैं जहां बैडमिंटन का प्रशिक्षण होता है। तीसरे और आखिरी समय में दौड़ने व वजन उठाने के अभ्यास के लिए निर्धारित किया गया है। क्योंकि स्टेमिना (सहनशक्ति) बनाना भी उतना ही जरूरी है जितना प्रशिक्षण में टिके रहना। कोच हर खिलाड़ी के खेल को समझते हैं और फिर उस पर काम करते हैं। यहां तैयार हो रहे खिलाड़ियों के भोजन की निगरानी अकादमी में विशेष रूप की जाती है।
  • पुलेला की अकादमी-हैदराबाद में पुलेला दो अकादमी (संस्थान) चलाते हैं। एक उनकी निजी हैं। और दूसरी वह स्पोर्ट अथॅारिटी ऑफ इंडिया (भारत के खेल अधिकार) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से चलाते हैं। ये अकादमी गोपीचंद के लिए कार्यालय नहीं बल्कि मंदिर है। पिछले 7 वर्षो में यह जगह एक मंदिर के रूप में उभरी है। जहां कड़ी मेहनत, अनुशासन और दृढ़ संकल्प की पूजा होती है। जल्दी उठने वालों का यह एक छोटा सा समूह है। यही अकादमी का सर्वश्रेष्ठ समूह भी है। इसमें रियों ओलंपिक की सिल्वर पदक विजेता पीवी सिंधु और क्वार्टर फाइनल (चौथाई भाग में अंतिम) में पहुंचे किदांबी श्रीकांत हैं। इस समय अकादमी में इन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ सिर्फ खेल के प्रशिक्षणकर्ता गोपीचंद हैं। देश को साइना, सिंधु और श्रीकांत जैसे चमकते सितारे देने वाली पुलेला गोपीचंद की बैडमिंटन अकादमी ही हैंं।
  • प्रगति-वार्मअप के बाद तीनों खिलाड़ी सुबह के करीब साढ़े चार बजे बैडमिंटन कोर्ट (आँगन) में हैं। अकादमी पहुंचने से पहले गोपी अपने वीडियों और अन्य चीजें देख कर चलते हैंं, जिससे सुनिश्चित हो सके कि आज क्या करना है, खेल के किस पहलू पर काम करना है। भले ही अभी हैदराबाद सो रहा है पर खिलाड़ियों के चिल्लाने की आवाज और गोपीचंद के शांत निर्देश बताते हैं कि यहां काम प्रगति पर हैं।
  • अकादमी-देश की इस सबसे बेहतरीन अकादमी में 160 प्रतिभाशाली छात्र प्रशिक्षण ले रहे हैं। पानी पीने के ब्रेक के अलावा सुबह के साढे छह बजे तक निर्बाध रूप से खेल की प्रैक्टिस (अभ्यास) चलती रहती है। सुबह के 6.45 तक अकादमी में होने वाला शोर-शराबा और बढ़ जाता है। खिलाड़ियों का सीनियर (वरिष्ठ) समूह अब साई गोपीचंद अकादमी के नौ कोर्ट पर कब्जा करने वाला है। यहां दो और कोच भी हैं। एक सियादत जो 2004 से गोपीचंद के साथ हैं और दूसरे इंडोनेशिया की ड्‌ई क्रिस्टेन जो लड़कियों को प्रशिक्षित करती हैं। उनके अनुसार लगातार और ज्यादा अभ्यास ही आपको खेल में तकनीकी तौर पर पारंगत बनाता है। फिजयों सुमांश शिवालंका इस अकादमी के चार फिजयों (शारीरिक) शिक्षकों में से एक है। आपको सभी खिलाड़ियों का शरीर समझना होता है और हर एथलीट (बलवान एवं हष्ट पुष्ट खिलाड़ी) के खेल और उनका अलग-अलग विशेलषण करना होता है।

सिंधु की जीत ने सभी के लिए टॉनिक (स्फूर्ति देने वाली दवा) का काम किया है। उन्हें भी यह अहसास है कि अब उनसे अपेक्षाएं कई गुना बढ़ गई हैं। युवा खिलाड़ी जानते हैं कि वे भारत की सर्वश्रेष्ठ बैडमिंटन अकादमी के छात्र हैं, लेकिन जैसा कि गोपी कहते हैं कि काम अब शुरू हुआ हैं।

  • भारत: - भारत में स्पेनिश जनसमूह टैल्गो की उच्च गति ट्रेनों के ट्रायल (जाँच⟋विचार) चल रहे हैं, जिन्हें सफल माना जा रहा है। हालांकि, इस माह के शुरू में चौथा और अंतिम ट्रायल अचानक रोक दिया गया। इसका कारण बारिश को दीया गया है तो यह भी कहा जा रहा है कि स्पेन का दल विश्राम चाहती थी। जो भी कारण रहा हो अब निर्णायक ट्रायल सितंबर में होने की संभावना है। अब तक आजमाई न गई किसी अवधारणा को आजमाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उसे पूरी तरह सिद्ध हो चुके विकल्प पर आंख मूंदकर तरजीह देना चिंता की बात है। रुड़की आईआईटी का प्रोफेशनल (व्यावसायिक) होने तथा रेलवे तकनीकी का जीवनभर का अनुभव होने के अलावा न्यूक्लियर इंजीनियरिंग, ओशन थर्मल एनर्जी (शक्ति⟋तेज) कनवर्जन (अभिसरण) जैसे विधि क्षेत्रों के अनुभव के साथ मैकेनिकल (यांत्रिकीय) व इलेक्टि्रकल (विद्युतीय) ट्रेन (रेल) तकनीकी दोनों क्षेत्रों में काम कर चुकने के कारण मेरा फर्ज है कि इस संबंध में सावधानी की कुछ बाते कहूं, जिनकी ओर फैसला लेने से पहले ध्यान देना चाहिए।
  • टैल्गो ट्रेन-लाने का घोषित उद्देश्य मौजूदा रेल कॉरिडोर (गलियारा) पर ट्रेनों (रेलों) की गति बढ़ाने का है, जिसके लिए दुनियाभर में ट्रन सेट तकनीकी अपनी अहमियत साबित कर चुकी है। इसका उपयोग भारतीय रेलवे की उपनगरीय सेवाओं में इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट्‌स (ईएमयू) (विद्युत एक से ज्यादा दलों) तथा भारत सहित दुनियाभर की मेट्रों रेल सेवाओं में किया जा रहा हे। जापान, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, चीन आदि सहित दुनियाभर में उच्च गति और सेमी उच्च गति रेलों में इसी तकनीकी का इस्तेमाल हो रहा है। भारत में मेट्रों रेलवे व्यवस्था का व्यापक विस्तार होने के कारण अब पूरी तरह स्वदेशी ट्रेन सेट्‌स का निर्माण संभव है। रेलवे में मेरे पूर्व के वर्षो से लेकर मेने देखा है कि 1980 से ही इस बारे में घोषणाओं के बावजूद कुछ गैर-तकनीकी बातों के कारण रेल सेट्‌स का ट्रायल तक नहीं किया गया।
  • घोषणा-एनडीए के पिछले कार्यकाल के दौरान 2002 में इसकी घोषणा हुई, लेकिन उसे कभी अमल मेें नहीं लाया गया। यूपीए युग के लगभग सारे बजट भाषाणों में रेल सेट लाने का इरादा जाहिर किया गया, लेकिन बार-बार टेंडर (ठेका) जारी करने के बाद कैंसल (रद्द) कर दिए गए। वास्तविकता यह है कि भारतीय रेलवे की निर्माण इकाइयों के पास मौजूद संसाधनों को देखते हुए यह विश्वस्तरीय रेल सेट बिना किसी बाहरी मदद के बहुत ही कम समय में बनाया जा सकता है।
  • रेल सेट-सवाल हैं कि यह ट्रेन सेट है क्या? यह ईएमयू जैसी ट्रेने ही होती हैं, जिनमें बिजली से खुद चलने वाले डिब्बों की यूनिट (दल) होती हैं। ईएमयू में किसी अलग लोकोमाटिव यानी इंजन की जरूरत नहीं होती, क्योंकि एक या अधिक डिबों में बिजली से चलने वाली ट्रैक्शन मोटर लगी होती हैं। टैल्गो ट्रेन कोच में सामान्य ट्रेन कोच में लगने वाले 8 पहियों की बजाय सिर्फ 4 पहिये होते हेैं फिर इसे दो पहियों को जोड़ने वाला एक्सल भी नहीं होता। इस तरह एक ही बोगी के दो पहिये स्वतंत्र रूप से घूम सकते हैं। इन्हें एक स्टील फ्रेम जोड़कर रखती है। इसका द्धितीय सस्पेंशन एयर स्प्रिंग का बना होता है, जो कोच के गुरुत्व केंद्र के ऊपर स्थित होता है ताकि मोड़ पर झुकाव के जरिये संतुलन वाला बल लाया जा सके और मोड़ पर भी तेज गति कायम रह सके। इस तरह समान ट्रैक पर मौजूदा ट्रेनों से अधिक औसत रफ्तार हासिल की जाती है। विचार तो शानदार है, लेकिन इसमें कई सवाल हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।
  • कसौटी-पहली बात तो दुनिया की किसी भी अनुभवी रेल व्यवस्था में इसे आजमाया नहीं गया है यानी यह कसौटी पर खरी उतरी तकनीकी नहीं हैं। चूंकि यह स्पेन की जनसमूह है तो वहां यह उपयोग में लाई जाती रही है, लेकिन वहां डिब्बों और यात्री ले जाने की क्षमता बहुत कम है, जबकि भारत में तो 22 मीटर लंबाई वाली 26 बोगियों की ट्रेन की जरूरत है। ट्रेल्गो कोच की लंबाई सिर्फ 13 मीटर है। अमेरिका, अर्जेंटीना और कजाकिस्तान में कुछ ट्रायल की खबरें हैं, लेकिन खबर हैं कि अर्जेंटीना में तो टेल्गो की जगह सीएनआर डेलियन रोलिंग स्टॉक लाई गई है और टेल्गो का भविष्य अनिश्चित है।
  • नि: शुल्क यात्रा-ट्रेन सेट तकनीकी दुनियाभर में अपनी काबिलियत साबित कर चुकी है और भारत में उपलब्ध है। वह अधिकतम गति पर बेहतर औसत के समान परिणाम देती है और मोड़ के अलावा भी गति के हर अवरोध पर अच्छे एक्सीलरेशन (त्वरण⟋गतिवर्धन) के कारण बेहतर समय निकालती है। टेल्गों पूरी एक ट्रेन मुक्त क्यों दे रही हैं? वजह यह है कि भारतीय रेल न्यूनतम किराये के साथ दुनिया की सबसे बड़ी यात्रा रेल सेवा है। यहां तक कि चीन में भी रेल किराया भारत की तुलना में तीन गुना ज्यादा है।
  • चीन-संबंधित लोगों से अनौपाचारिक चर्चा में पता चला कि चीन में सर्वोच्च स्तर पर निर्णय लिए जाते हैं, जिन्हें नीचे बता दिया जाता है। इस तरह वहां खरीद की सामान्य प्रक्रिया लागू नहीं होती।
  • समस्या-भारत जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जमीनी स्तर पर साबित करके दिखाना होता है और विकास की संभावना भी यही है। अब सवाल यह है कि क्या हम जनसमूह की इस दरियादली व विदेशी तकनीकी से अभिभूत हो जाएंगे या नफा नुकसान भी देखेंगे? बेशक एक ट्रेन आरडीएसओ द्वारा तय कार्यक्रम पर खरी उतरेगी। पहली कुछ यूनिट, जिनका रखरखाव स्पेनिश जनसमूह पांच साल देखेगी, वह संभव हैं ज्यादा दिक्कत न दें। समस्या तब शुरू होगी जब पांच साल बाद रख-रखाव भारतीय रेल के पास आएगा। डिजाइन (रूपरेखा) की सरलता के सिद्धांत के विपरीत इसका तंत्र बहुत जटिल है और सावधानियां बहुत ज्यादा हैं, जिन्हें बनाए रखना कठिन होगा। तब तक इतनी देरी हो चुकी होगी कि आर्थिक रूप से इसे बदलना नामुमिकन हो जाएगा। यह कन्सेप्ट (सामान्य विचार) ट्रेन सेट पर लागू नहीं किया जा सकता। चूंकि ज्यादातर विकसित देशों में ट्रेन सेट तकनीकी पर यात्री ट्रेनें चलाई जा रही हैं, भारत जैसे लंबी ट्रेनों के लिए इंजन से खींचे जाने वाली ट्रेन तकनीकी विकसित नहीं हुई हैं। अब उल्टी दिशा में चलने के उत्साह में हम अपनी यात्री ट्रेनों में मालगाड़ी के कपलर्स का उपयोग कर रहे हैं। इसी कारण यात्रियों को बचाया जाता है। फिर डिब्बे छोटे होने से ज्यादा डिब्बे लगाने पड़ेंगे तथा यह समस्या और बढ़ जाएगी।

मेरी गुजारिश है कि कोई फैसला लेने के पहले ट्रेन सेट तकनीकी का भी ट्रायल ले लिया जाए। खबरों के अनुसार शायद टेल्गों को अन्य तकनीकी से तुलना किए बिना अपना लिया जाएगा। कीमत की तुलना करना जरूरी है। मीडिया हाइ (संचार माध्यम उच्च) में शायद ऊपर बताए तकनीकी बिंदुओं की अनदेखी हो रही है, कृप्या उन्हें भी आजमा लिया जाए और उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाए

विजय कुमार दत्त, रेलवे बोड्र के पूर्व सदस्य

  • नई दिल्ली:-यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान रक्षा सौदे में घूस का मामला सामने आया हैं। ब्राजील की एयरक्राफ्ट (हवाई जहाज़) निर्माता जनसमूह एम्ब्रायर ने भारत को जेट विमान देने के लिए साल 2008 में 20.8 करोड़ डॉलर का समझौता किया था। जनसमूह पर आरोप है कि उसने डील के लिए घूस दी। अमरीका और ब्राजील ने मामले की जांच शुरू कर दी है। इस बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एम्ब्रायर से जनसमूह पर लगे घूस देने के आरोपों पर स्पष्टीकरण मांगा है। इधर, रक्षा मंत्रालय ने कहा कि डीआरडीओ की ओर से सूचना प्राप्ति की पुष्टि के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा।
  • भारत व पेरिस:- एनएसजी सदस्यता के लिए भारत की राह में चीन द्वारा रोड़े अटकाने से नाराज भारत पेरिस जलवायु समझौते के दौरान इसका बदला ले सकता हैं। हांग्जो में हुए जी-20 के सरकारी मसौदे में भारत ने दिसंबर 2016 तक पेरिस समझौते को पूरा करने के लिए कोई वादा नहीं किया है। भारत ने पेरिस जलवायु समझौते पर अभिपृष्टि करने के चीन के आग्रह को भी नजर अंदाज कर दिया था। चीन ने शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते हुए दुसरे देशों के सामने पेरिस समझौते का ड्राफ्ट (भाषण, पत्र व नक्शा आदि की रूपरेखा तैयार करना) रखा था। जी-20 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सभी देशों के प्रतिनिधियों ने 40 घंटो तक बातचीत की। जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुई ये बहस जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर जाकर खत्म हुई थी।
  • जी-20 के जीरों ड्राफ्ट में पेरिस समझौते की डेडलाइन दिसंबर 2016 और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी की डेडलाइन 2025 रखी गई। भारत के नकारने के बाद इसमें बदलाव के बाद जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के लिए डेडलाइन से साल को हटा दिया गया। इस बदले हुए ड्रॉफ्ट को भारत ने स्वीकार नहीं किया। एक रूसी शेरपा ने भारत के साथ अकेले में बातचीत भी की। माना जा रहा है हांग्जों में भारत ने चीन के इस प्रस्ताव का विद्रोह करने का मन बनाया था।
  • आईवी लीग (संधि) :-हाल ही में उर्जित पटेल रिजर्व बैंक के राज्यपाल बने हैं, ये येल विश्वविद्यालय के निर्देशक हैं, जो आईवी लीग विश्वविद्यालय में से एक है। पूर्व राज्यपाल रघुराम राजन ने एमआईटी से पढ़ाई की थी। जो कि आईवी ली का हिस्सा मानी जाती है। देश के अहम पदों पर मौजूद रसूखदार या तो आईवी लीग से हैं या ऑक्सबिज एलीट्‌स हैं।
  • क्या है आईवी लीग- आईवी लीग यानी अमेरिका के आठ विश्वविद्यालयों का समूह जिसमें हार्वर्ड येन, बोस्टन विश्वविद्यालय, पेनिसिल्वेनिया, प्रिंसटन, कोलंबिया, ब्राउन, डार्टमाउथ और कार्नेल विश्वविद्यालय आते हैं। इन आठ विश्वविद्यालयों के अलावा स्टेनफोर्ड और एमआईटी विश्वविद्यालय भी आईवी लीग का हिस्सा है। यह शब्द एथलेटिक्स (बलिष्ठ खेल-कूद के लिए उपयुक्त शरीर वाला) सम्मेलन से आया है। लेकिन महाविद्यालय के समूह के रिफ्रेंस (संदर्भ) में आईवी शब्द का प्रयोग 1933 में न्यूयॉर्क ट्रिब्यून के स्पोर्ट राइटर स्टेनली वुडवर्ड ने किया था।
  • ऑक्सब्रिज एलीट्‌स- ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में पढ़े हुए लोगों को ऑक्सीब्रिज एलीट्‌स कहा जाता है। वहीं लंदन विद्यालय ऑफ इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) को एलएसई कहा जाता है। ऑक्सीब्रिज और एलएसई भी लीग हैं।

आईवी लीग के रसूखदार निम्न हैं-

  • उर्जित पटेल- पद: आरबीआई राज्यपाल, पढ़ाई: येल विश्वविद्यालय- लंदन विद्यालय ऑफ इकोनॉमिक्स से बेचलर करने वाले पटेल ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमफिल किया। येल विश्वविद्यालय से 1990 में निर्देशक की उपाधि ली। 2009 से वे ब्रूकिंग्स इंस्टीट्‌यूशन के नॉन-रेसिडेंट सीनियर (संस्था भवन गैर निवासी वरिष्ठ) फेलों भी हैं। हाल ही में वे रघुराम राजन के स्थान पर रिजर्व बैंक के राज्यपाल बनाए गए है। वे कुछ समय तक आईएमएफ में भी रहे। आईएमएफ से उन्हें प्रतिनियुक्ति पर रिजर्व बैंक में भेजा गया था। दो साल रिजर्व बैंक का काम करने के बाद वे वित्त मंत्रालय में सलाहकार बनें।
  • अरविंद सुब्रहमण्यन-पद: मुख्य आर्थिक सलाहकार, पढ़ाई: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय- देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं। कभी रघुराम राजन भी इसी पद पर हुआ करते थे। आईआईएम अहमदाबाद से पढ़े सुब्रमण्यन ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमफिल और डीफिल किया है। वे कुछ समय तक आईएमएफ के रिसर्च डिपार्टंमेंट (खोज विभाग) में असिस्टेंट (सहायक) निर्देशक भी रहे हैं।
  • नजीब जंग-पद: दिल्ली के उप राज्पाल, पढ़ाई: लंदन विश्वविद्यालय ऑफ इकोनॉमिक्स- पूर्व आईएएस अफसर नजीब जंग दिल्ली के राज्यपाल हैं। उन्होंने बीए और एमए की पढ़ाई दिल्ली के सेट स्टीफन महाविद्यालय से की है। सोशल पॉलिसी (समाज बीमा) में एमएससी की पढ़ाई लंदन विद्यालय ऑफ इकोनॉमिक्स से पूरी की है। जंग 7 वर्ष तक एशियाई विकास बैंक के वरिष्ठ सलाहकार भी रह चुके हैं।
  • जयंत सिन्हा-पद: केंद्रीय राज्य मंत्री, पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय-जयंत सिन्हा कुछ समय पहले ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय से नागर विमानन मंत्रालय के राज्य मंत्री बने हैं। सिन्हा ने आईआईटी दिल्ली से बेचलर ऑफ तकनीकी की पढ़ाई की है। एनर्जी मैनेजमेंट (योग्यता संचालक) की पढ़ाई उन्होंने पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय से की, इसके अलावा वे हार्वर्ड व्यापार विद्यालय से एमबीए किया है।
  • नृपेंद्र मिश्रा- पद: प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल (प्राचार्य) सेक्रेटरी, पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय-नृपेंद्र मिश्रा ट्राई के चेयरमैन (सभापति) भी रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश कैडर 1967 बैच के आईएस अफसर मिश्रा ने इलाहाबाद से केमेस्ट्री और पॉलिटिकल (रसायन और राजनीतिक) साइंस एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (विज्ञान लोक प्रशासन) की मास्टर (गुरु) डिग्री (उपाधि) प्राप्त की है। उन्होंने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई हावर्ड विश्वविद्यालय से भी की है।
  • अरविंद पनगढ़िया-पद: नीति आयोग के वाइस चेयरमैन, पढ़ाई: प्रिंसटन विश्वविद्यालय-वरिष्ठ अर्थशास्त्री और नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया एशियन डेवलपमेंट (विकास) बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट (मुख्याि अर्थशास्त्रीय) रह चुके हैं। वर्ल्ड (विश्व) बैंक, वर्ल्ड (विश्व) ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (व्यापार संस्था) के लिए काम कर चुके पनगढ़िया ने प्रिंसटन विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की है।
  • डॉ. नसीम जैदी- पद: चीफ इलेक्शन कमिश्नर मुखिया चुनाव आयुक्त, पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय-डॉ. नसीम जैदी उत्तर प्रदेश कैडर 1976 बैच के सेवानृिवति आईएस अफसर हैं। जैदी निर्देशक जनरल ऑफ सिविल एविएशन नागरिक विमान चालक रह चुके हैं। इंडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ फाइनेंस से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा भारतीय संस्थान पद स्नातक उपाधि करने वाले जैदी ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री गुरु उपाधि की पढ़ाई पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन लोक प्रशासन में की हैं।
  • अमिताभ कांत- पद: नीति आयोग के सीईओ, पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय- दिल्ली के मॉडर्न (आधुनिक) विद्यालय में पढ़ने के बाद उन्होंने सेंट स्टीफन महाविद्यालय से एमए किया, मिड कॅरिअर (जीवनवृत्ति) कार्यक्रम के लिए हार्वर्ड के कैनेडी विद्यालय में पढ़े। आईआईएम अहमदाबाद से ग्रेजुएशन (अंकन) करने वाले अमिताभ नीति आयोग के सीईओं हैं। इसके पहले औद्योगिक नीति व प्रोत्साहन विभाग के सचिव थे।
  • अनूप के पुजारी-पद: पूर्व सचिव लघु उद्योग मंत्रालय, पढ़ाई: बोस्टन विश्वविद्यालय- वे अभी तक देश के लघु उद्योग मंत्रालय के सचिव थे। कुछ समय पहले ही सेवानृिवत हुए हैं। वे विश्वविद्यालय ऑफ बोस्टन से इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) में निर्देशक हैं। सेवानृिवत होने के बाद भी वे हार्वर्ड के कैनेडी विद्यालय में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (लोक प्रशासन) पढ़ाने जाते हैं। इसके अलावा पुजारी ने हार्वर्ड में प्रशिक्षण भी की हैं।
  • सुकीर्ति लिखी- पद: हैफेड प्रमुख, पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय- हैफेड (हरियाणा स्टेट कोऑपरेटिव सप्लाई एंड मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड) प्रमुख सुकीर्ति प्रमुख सचिव रहे एनएन वोहरा की बेटी हैं। उन्होंने हार्वर्ड के कैनेडी विद्यालय से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स डिग्री (लोक प्रशासन में गुरु की उपाधि) ली है। ये हरियाणा कैडर के 1993 बैच की आईएएस अफसर हैं।
  • आदिल जैनुल- पद: क्यूसीआई के चेयरमैन (सभापति) , पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय-भारतीय गुणवत्ता परिषद के प्रमुख आदिल जैनुल भाई गुजरात के रहने वाले हैं। आईआईटी बॉम्बे से मैकेनिकल (यांत्रिकीय) इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन (पद अंकन) हार्वर्ड कारोबार विद्यालय से किया है। आदिल ने मैकिन्से में 25 साल लगातार काम किया हैं।
  • अनिल सिन्हा-पद: निर्देशक सीबीआई, पढ़ाई: हार्वर्ड विश्वविद्यालय-बिहार कैडर के 1979 बैच के आईपीएस अफसर अनिल सिन्हा सीबीआई निदेशक हैं। साइकोलॉजी से पोस्टग्रेजुएट (पद अंकन) और स्ट्रैटेजिक स्टडीज (पढ़ाई) से एमफिल करने वाले सिन्हा ने कैनेडी विद्यालय, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भी शिक्षा ग्रहण की है। इसके पहले वे स्पेशल प्रोटेक्शन (खास सुरक्षा) समूह के डीआईजी रह चुके हैं।
  • वेस्ट मैनेजमेंट (अधिकारयुक्त प्रबंध) :-हमारे घरों, कारखानों और शहरों से प्रतिदिन निकलने वाला कचरा आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। भारत समेत दुनियाभर के देश और शहर, कचरे के बढ़ते इन ढेरों को कम करने और इसके निस्तारण के लिए कई तरह की कोशिशें कर रहे हैं। इन बड़ी-बड़ी कोशिशों के बीच एक छोटी सी कोशिश है रिकार्ट। हाल ही में शुरू हुआ यह स्टार्टअप हमारे घरों के कचरे को न केवल बटोर रहा है, बल्कि उसके सही निस्तारण की जवाबदेही भी ले रहा हैं।
  • रिकार्ट-देश में सालाना 6.20 करोड़ टन कचरे का निर्माण होता हैं-समाज सेवक अनुराग ने अपने दो दोस्तों ऋषभ और वेंकटेश के साथ मिलकर रिकार्ट स्टार्टअप खोला और गुड़गांव में घर-घर जाकर कूड़ा उठाने लगे। अनुराग व ऋषभ ने फाइनेंस (वित्तसंबंधी) की पढ़ाई की है और वेंकटेश आईआईटी मद्रास से रसायन इंजीनियरिंग में स्नातक किया हैं। इस समय उनकी जनसमूह में 11 कर्मचारी पैरोल (थोड़े समय) पर काम कर रहे हैं और इस जनसमूह का सालाना 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का टर्नओवर है।
  • जिम्मेदारी-अनुराग इससे पहले एडवरटाइजिंग (विज्ञापन) बिजनेस से जुड़े थे। जहां वो सालाना 5 - 6 करोड़ रुपए कमाते थे, लेकिन उस तरह का सुकून नहीं मिल पाता था, जो अब मिल रहा है। उन्हें लग रहा था कि उनकी और उनके परिवार की आजीविका तो सुधर रही है, लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी वो नहीं निभा पा रहे हैं।

अनुराग बताते हैं कि वो एक कचरा उठाने वाले व्यक्ति को दिन का 500 से 700 मेहनताना देते हैं। इससे पहले यही काम करके वे लोग मुश्किल से दिन का 100 से 200 कमा पा रहे थे। उनका स्टार्टअप गुड़गांव के 12 हजार परिवारों के घर से कूड़ा उठा रहा है। यहां के बाद वे दिल्ली में घर-घर से कूड़ा उठाना शुरू करेंगे, क्योंकि यहां 17 फीसदी उपयोगी कूड़ा ऐसे ही डंप (फेंका) हो जाता है। 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा है।

अवधारणा-1751 में लंदन में कोर्बिन मॉरिस ने रखी शहर की सफाई की अवधारणा।

अन्य देश कचरे का उपयोग व साफ-सफाई व आंकड़े बताते हैं-

  • घाना- कचरा प्रबंधन के लिए कोलिब एप का इस्तेमाल, यहां के पांच विद्यालय कर रहे हैं उपयोग में ली गयी प्लास्टिक, पॉलिथीन और धातु अपशिष्टों को रिसायकल (इस्तेमाल की हुई वस्तु को दोबारा प्रयोग में लेना) कराता है।
  • दक्षिण अफ्रीका- मिलिसेंट एम्बे ने खोला चिकित्सा संबंधी कूड़ा फेंकने वाला स्टार्टअप, अपराध-दुर्घटनास्थल की सफाई का काम, मुर्दाघर, एम्बुलेंस, क्लिनिक (चिकित्सा प्रदान करने की संस्था) , चिकित्सा और लैब की करते हैं साफ-सफाई।
  • इनेवो- इनेवो फिनलैंड की कचरा प्रबंधन जनसमूह हैं, 2010 में हुई स्थापना, दुनियाभर के कचरे का आंकड़ा एकत्रित और विश्लेषण का काम करता हैं।
  • नई दिल्ली में वक्फ की जमीन:- केन्द्र सरकार देशभर में वक्फ मंडल की करीब 6 लाख एकड़ जमीनों पर अब मॉल (खरीददारी जगह) , सिनेमा हॉल (जगह) बनाने की तैयारी कर रही है। दरअसल, केन्द्र सरकार देश भर में फेले वक्फ मंडल की लाखों संपत्तियों को वक्फ माफियाओं के चुंगल से बचाने और उसका व्यावसायिक इस्तेमाल करने पर जोर देगी। ताकि हजारों करोड़ रुपए की आय का उपयोग मुस्लिम समुदाय के सशक्तिकरण में हो सके। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय देश भर में फेले वक्फ मंडल की जमीन को आय का जरिया बनाना चाहती हैं, ताकि मुस्लिम समुदाय से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा देना संभव हो सके। सच्चर समिति ने इन भूमि को उपयोग व्यावसायिक तौर पर करने का सुझाव दिया था।
  • क्या है वक्फ लैंड- दान में दी गई संपत्ति, जिसका उपयोग धार्मिक कार्यो या संस्था में हो सकता है। इनसे होने वाली आय को गरीबों या नेक कार्यों पर खर्च किया जा सकता है। निजी लाभ में इस जमीन का उपयोग नहीं होता हैं।
  • कमाई- केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के मुताबिक देशभर में 60,00, 000 एकड़ से अधिक वक्फ मंडल की संपत्तियों से 10,000 करोड़ रु. प्रतिवर्ष कमाई हो सकती है।
  • डिजिटलाइज योजना-यह वक्फ जमीनें डिजिटलाइज होंगी। देशभर में 2,000 वक्फ संपत्तियां चयनित है जहां मॉल, शैक्षिक संस्थान, या कौशल प्रशिक्षण केंद्र बनेंगे। अल्पसंख्यक मंत्रालय की योजना देश भर में फेले 5,00, 000 से ज्यादा वक्फ मंडल की संपत्तियों को एक साल के अंदर डिजिटलाइज करने की हैं।
  • हरियाणा-के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस योजना को लेकर काफी सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने पलवल, फरीदाबाद और गुरुग्राम में भूमि की पहचान की है, जहां व्यावसायिक दृष्टि से वक्फ जमीन का उपयोग किया जा सकता है। बिहार के अल्पसंख्यक मंत्री भी नकवी से मुलाकात कर योजना से संबंधित सभी पहलुओं पर बातचीत कर चुके हैं।
  • विधेयक- मनमोहन सरकार के कार्य काल में राष्टपति प्रणब मुखर्जी ने वक्फ संशोधन विधयेक-2013 को मंजूरी दी थीं। इसके अनुसार सरकार वक्फ संपत्तियों के अभिलेख की देखरेख करेगी व उनकी लीज (खूद, मैल) अवधि का अधिकतम 30 वर्ष तक विस्तार होगा। तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने कहा था कि विधेयक से वक्फ संपत्ति का उचित व्यावसायिक इस्तेमाल सुनिश्चित हो सकेगा व मुस्लिम समुदाय का सामाजिक व आर्थिक विकास होगा।
  • बीजिंग:- चीन ने 1,854 फीट ऊंचे ब्रिज बेपंजियांग बनाया है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा ब्रिज है। लंबाई 1,341 मीटर है। दिसंबर 2016 तक इस पर आवाजाही शुरू होगी। अब दुनिया के 10 सबसे ऊंचे ब्रिज में से आठ चीन के ही हैं। तीन साल में बने इस पुल को बनाने में 660 करोड़ रुपए की लागत आई है। यह ब्रिज गुइझोऊ प्रांत के शहर लाइपेनशुई को करीबी यून्नान प्रांत के शर शुवनवेई से जोड़ेगा। 5 घंटे का सफर दो घंटे में तय होगा।
  • वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (एक विश्व व्यापारी केन्द्र) से भी ऊंचा - मलेशिया का पेट्रोनस टॉवर (मीनार) 1587 फीट हैं, ताइपेई का ताइपेई 101,1666 फीट हैं और वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर 1774 फीट है अर्थात यह ब्रिज वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से भी ऊंचा हैं।
  • स्काई ट्रेन (रेल) -चीन ने ब्रिज के साथ-साथ ट्रेन (रेल) बनाने में भी महारथ हासिल कर ली हैं क्योंकि जापान और जर्मनी के बाद स्काई ट्रेन बनाने वाला तीसरा देश चीन बन गया है। केवल पर चलने वाली इस ट्रेेन में एक साथ 200 लोग सफर कर सकते हैं। ट्राम और सबवे की तुलना में इसकी ऑपरेशन (व्यापार) लागत काफी कम हैं।
  • रेलवे स्टेशन- अब तक अपनी लंबाई के कारण मशहुर चीन की दीवार आने वाले समय में दुनिया के सबसे बड़े और गहरे उच्च गति रेलवे स्टेशन (जगह) की वजह से भी जानी जाएगी। यह अंडरग्राउंड (जमीनी सतह) स्टेशन बदालिंग क्षेत्र में होगा, जहां दीवार का वह भाग है, जो पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है।
  • चीन की यह महत्वाकांक्षी परियोजना 174 किलोमीटर लंबे उच्च गति रेलवे का हिस्सा होगी, जो राजधानी बीजिंग को झेंगजिआकोऊ से जोड़ेगा। वहीं इस प्रस्तावित स्टेशन की दूरी बीजिंग से लगभग 80 किलोमीटर होगी, यानी रेलवे पद चिन्ह पर यह करीब-करीब बीच में होगा।
  • चाइना रेलवे नं. 5 इंजीनियरिंग समूह के निदेर्शक कार्यकर्ता चेन बिन के अनुसार बदालिंग का यह स्टेशन जमीनी सतह से 335 फीट नीचे होगा। वहीं इसे 387501 स्कवेयर (सम चतुर्भुज या बराबर) फीट क्षेत्र में तैयार किया जाना है। यानी क्षेत्रफल के लिहाज से इसे फुटबॉल के पांच, मैदानें के बराबर कहा जा सकता हैं। स्टेशन तीन फ्लोर (भूतल) में बंटा होंगा, जहां रेल के आने और जाने के लिए अलग-अलग फ्लोर (भूतल) होंगे। यहां दो एस्केलेटर भी बनाएं जाएंगे जो यात्रियों को जमीन की सतह पर ग्रेट वॉल (बड़ी दीवार) तक ले जाएंगे। मुख्य पदचिन्ह 174 किलोमीटर होगा, अधिकतम गति 350 किमी घंटा होगी। यात्रा समय होगा 1 घंटा होगा क्योंकि पहले 3 से 5 घंटे लगते थे।
  • तैयार- चीन इस स्टेशन के साथ पूरे पदचिन्ह को 2022 में के विंटर ओलिंपिक्स (सर्दी के खेल) के लिए तैयार करना चाहता है। ताकि उस दौरान पर्यटक बीजिंग से चीन की दीवार के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले हिस्से तक आसानी से आ जा सके। वैसे इससे 2019 में पूरी तरह से तैयार हो जाने की उम्मीद की जा रही है अनुमान है कि इस योजना पर 400 बिलियन डॉलर (तकरीबन 26648 अरब रुपए) खर्च होंगे।

Examrace Team at Aug 21, 2021