विश्व रेडियो दिवस (World Radio Day) (in Hindi)

प्रस्तावना:- रेडियो हमारी जिंदगी का अहम अंग है। आवाज की दुनिया मेें रेडिया नायक बनकर उभरा और अपनी भूमिका को बरकरार रखे हुए है। संचार के माध्यम भले ही बदले हों लेकिन रेडियो ने अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखा है। दुनिया भर में 13 फरवरी को रेडियो दिवस मनाया जाएगा। ये अवसर रहेगा कि हम रेडियो के द्वारा हमारे जीवन में लाए गए बदलावों को याद करें। सामाजिक परिवर्तनों में भी रेडिया अहम रहा है। कई देशों में रेडियों बदलाव के पड़ावों का साक्षी भी रहा है। वर्ष 1923 में रेडियो क्लब ऑफ बॉम्बे (बॉम्बे की मंडली) से प्रसारण शुरू हुआ था। ऑल (सर्वस्व) इंडिया (भारत) रेडियो और फिर आकाशवाणी के जरिये रेडियो ने देश में जगह बनाई। रेडियो देश में पिछले 94 साल से अपनी नाबाद पारी खेल रहा है।

रेडियो से राजस्व:-

  • 91 नए रेडियो स्टेशन पर 10.5 अरब रु. 2015 में निजी कंपनियों (दल) ने खर्च किए।
  • रेडियो का मीडिया और मनोरंजन उद्योग के 2015 में 04 प्रतिशत विज्ञापन प्राप्त हुए।
  • रेडियो उद्योग को 2015 में 19.8 अरब रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ।
  • 1924 में भारत में मद्रास प्रेसीडेंसी (राष्ट्रपति) क्लब (मंडली) रेडियो शुरू हुआ, जो आर्थिक दिक्कतों के चलते 1927 में बद हो गया।
  • 1927 में निजी कंपनी (जनसमूह) , इंडियन (भारतीय) ब्रोडकास्टिंग (प्रसारण) कंपनी (टोली) द्वारा मुंबई और कोलकाता से प्रसारण शुरू किया गया।
  • 23⟋7⟋1977 को भारत में एफएम चैनल की शुरूआत चेन्नई में हुई।

माध्यम अलग आवाज वही:-

  • मीडियम (मध्यम) वेब (जाल) रेडियो-अवरोधकों से अप्रभावी-यह 526.5 से 1606.5 किलोहर्ट्‌ज की आवृतियों के मध्य स्थित होता है। इन आवृतियों पर बड़ी इमारतों, पहाड़ों का विपरीत असर नहीं।
  • एएम रेडियो-सिग्नल (चेतावनी के संकेत) की पकड़ आसान-एमप्लीट्‌यूड (आयाम) मोडयूलेशन (आवश्यकतानुसार) (एएम) रेडियो मीडियम बेव पर ही चलता रहा। इसकी विशेषता यह रही कि इसकी ध्वनि की गुणवत्ता अच्छी थी। एफएम के बाद यह लोकप्रिय नहीं रहा।
  • एफएम रेडियो-उच्च गुणवत्ता की ध्वनि-फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) मोडयूलेशन (आवश्यकतानुसार) (एफएम) की ध्वनि की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। इसका उपयोग संगीत सुनने में किसा जाता है। यह काफी लोकप्रिय है। भारत में 1970 के दशक में शुरुआत हुई।
  • एचएएम रेडियो-कम जगह पर स्थापित-इसके लिए कम स्थान की आवश्यकता होती है। कहीं भी छोटे से स्थान पर स्थापित हो सकता है। घर, क्लब (मंडल) या खुली जगह में। आपतकाल में भी उपयोगी।
  • डिजिटल (अँगुली संबंधी) रेडियो-सबसे नया स्वरूप-यह रेडियों की आधुनिकतम तकनीक है। व्यावसायिक शुरुआत 1999 में। डिजिटल रेडियो सिस्टम (प्रबंध) मोबाइल (गतिशील) को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह तकनीक रेडियो को और अधिक लोकप्रिय बनाएगी।
  • शोर्टवेब रेडियो-व्यापक क्षेत्रफल तक पहुंच-यह 1.6 से 30 मेगाहर्ट्‌ज की आवृतियों के मध्य स्थित होता है। यह लंबी दूरी तक बड़े क्षेत्रफल में सुना जा सकता है। इसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचार स्थापित करने में होता हैं।
  • लोकप्रियता:- एनालॉग (अनुरूप) से शुरू हुआ रेडियो का सफर दुनिया भर में विभिन्न पड़ावों को पार कर चुका है। पुराने बड़े आकार के रेडियो कभी घरों में हुआ करते थे। रेडियो के स्टेशनों (केंद्रो) को नॉब (मस्तक) धुमाकर बदलना होता था। इसके बाद रेडियो का आकार छोटा होता गया और रेडियो के स्टेशनों को संख्या में इजाफा होने लगा। भारत में 1990 का दशक आते-आते एफएम रेडियो ने जड़े जमाना शुरू कर दिया। इससे शहर के लोगों को कनेक्ट (जुड़िये) किया जाने लगा। लोगों को उनकी पसंद के गीतों को शहर के अनुरूप सुनाया जाने लगा। प्राइवेट कंपनियां (निजी दल) भी एफएम रेडियो के क्षेत्र में आने लगीं। अब तो डिजिटल (अँगुली संबंधी) रेडियो ने मोबाइल (गतिशील) फोन (फ़ोन करना) के जरिए लोगों की जेब में भी जगह बना ली है। नार्वे ने तो वर्ष 2017 के अंत तक एफएम रेडियो को खत्म कर डिजिटल (अँगुली संबंधी) रेडियो की ओर जाने का ऐलान किया है जिससे कि बेहतर क्वालिटी (गुण) पाई जा सके।

रेडियो का इतिहास:-

  • मारकोनी ने बनाया पहला रेडियो-इटली के वैज्ञानिक मारकोनी ने 1894 में पहला पूर्ण टेलीग्राफी सिस्टम (प्रबंध⟋प्रणाली) बनाया जिसे रेडियो कहा गया। रेडियो का सेना एवं नौसेना में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया।
  • बीबीसी और एनबीसी शुरू-रेडियो में विज्ञापन की शुरुआत 1923 में हुई। इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमरीका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों (केंद्रो) की शुरुआत हुई।
  • पहला स्टेशन- अमरीका के पिट्‌सबर्ग में वर्ष 1920 में पहला रेडियो स्टेशन (केंद्र) खोला गया। इसी वर्ष अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव के नतीजे इस स्टेशन (केंद्र) से उद्घाटन शो (कार्यक्रम) के रूप में प्रसारित किए गए थे।
  • इम्पेरियल (शाही) रेडियो ऑफ इंडिया (भारत के) -1936 में भारत में इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया। 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज देश की अधिकतम आबादी तक पहुंच हैं।
  • 90 के दशक में फलाफूलर एफएम-1977 में देश में एफएम शुरु। 1993 में निजी एफएम आया। 1995 में सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) ने कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है।
  • डिजिटल का जमाना-रेडियो स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम⟋संबंधित गुण) को ट्रांसमिट (संचारित) करने के लिए डिजिटल माध्यम का इस्तेमाल होने लगा। वर्ष 2009 में ऑस्ट्रेलिया में कॉमर्शियल (व्यायवसायिक⟋वाणिज्यिक) डिजिटल (अँगुली संबंधी) रेडियो शुरू हुआ। भारत में वर्ष 2017 तक डिजिटल रेडियो का लक्ष्य तय किया गया हैं।

रेडियो स्टार (तारा) :-

  • मैल्वेल डिमैलो-अंग्रेजी के श्रोताओं में पहचान-ऑल इंडिया रेडियो के शुरुआती ब्राडकास्टर (प्रसारण) रहे हैं। महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा की 7 घंटे तक कवरेज की। वर्ष 1963 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। स्पोट्‌र्स (खेल) की कॉमेंट्री करने के लिए मशहूर डिमैलों ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं।
  • सुरेश सरैया-क्रिकेट की आवाज-रेडियो पर क्रिकेट की अंग्रेजी कॉमेन्ट्री का सबसे जाना-पहचाना नाम था। सुरेश सरैया। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर भारत के 100 टेस्ट मैचों में कॉमेंट्री की थी।
  • देवकीनंदन पांडे-अब आप आकाशवाणी से … एक जमाना था कि रेडियो सेट से गूंजती देवकीनदंन पांडे की आवाज भारत के जन-जन को सम्मोहित कर लेती थी। देवकीनंदन पांडे का समाचार पढ़ने का अंदाज, उच्चारण की शुद्धता और झन्नाटेदार रोबीली आवाज़ किसी भी श्रोता को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी।

विकास दर:- ऑल इंडिया रेडियो विश्व के सबसे बड़े रेडियो नेटवर्क में 262 रेडियो स्टेशन है।

भारत में रेडियो की विकास दर

Table shows the Growth rate of radio in India
201519.8 प्रतिशत
201417.2 प्रतिशत
201314.6 प्रतिशत
201212.7 प्रतिशत
201111.5 प्रतिशत
201010 प्रतिशत
  • छूता है दिल के तार … :-संचार माध्यमों का बेहतर इस्तेमाल करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं है। उन्होंने भी रेडियो की आमजनता तक पहुंच को आत्मसात करते हुए मन की बात के जरिये लोगों से संवाद जोड़ा है। 3 अक्टूबर, 2014 में नरेंद्र मोदी ने मन की बात से लोगों से संवाद शुरू किया। दिसंबर, 2016 तक इसके 27 एपिसोड (घटना चक्र में किसी एक घटना का वर्णन, वृत्तांत) प्रसारित हो चुके हैं। आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले मन की बात कार्यक्रम में 1.43 लाख ऑडियो (ध्वनि या श्रवण -शक्ति से संबंधित) और वेबसाइट (इंटरनेट संचार व्यवस्था में सूचना सामग्री के भंडारण-स्थल जिनसे संपर्क कर सूचना प्राप्त की जा सकती हैं) के माध्यम से 61 हजार आइडिया (योजना) मिल चुके हैं। देश की 66.7 फीसदी जनता इसे सुनती है। आकाशवाणी का 10 सेंकड (क्षण) का विज्ञापन स्लॉट (सूची) औसतन 1500 रुपए का होता है पर मन की बात का ये स्लॉट 2 लाख रु. का है।

माध्यम:-

  • रेडियो का नाम सुनते ही आवाज की दुनिया कानों में रस घोलने लगती है। स्वर का संबंध मानवीय सभ्यता से हैं। हमने अपने अनुभव बांटने के लिए आवाज का सहारा लिया। शब्द बने फिर भाषा का पूरा खाका तैयार हुआ। रेडियो आवाज संप्रेषण का आधुनिक माध्यम हैं। इससे हम दुनिया भर में आवाज को पहुंचा सकते हैं। हमने प्रगति के कई सोपानों को तय किया है। संवाद संप्रेषण के कई माध्यम विकसित किए। लेकिन मेरे हिसाब से रेडियो इनमें से सबसे जुदा माध्यम है। आप बेशक कुछ पूछ सकते हैं कि आज जब इंटरनेट आ गया है तो फिर क्या रेडियो की प्रासंगिकता बनी रह सकती है। आम तर्क के अनुसार जब संचार के माध्यमों में बदलाव आ गया है तो फिर लगभग एक सौ वर्ष से पुराने रेडियो को अपने पैर टिकाए रखने में भी दिक्कतें आ सकती हैं। लेकिन ऐसा कतई नहीं है। रेडियो की मोबिलिटी (चलना-फिरना) का कोई सानी नहीं है। रेडियो को आप आसानी से उठा कर कहीं भी ले जा सकते हैं। इंटरनेट के मुकाबले आज भी रेडियो की पहुंच बहुत ज्यादा है। लंदन में बोले गए शब्द दूर प्रशांत महासागर के किसी भी दव्ीप के लोग आसानी से रेडियो पर सुन सकते हैं। बिना किसी तकनीकी तामझाम के आप रेडियो को कहीं भी ले जा सकते हैं। और आज के युग में तो रेडियो मोबाइल के रूप में आपकी जग में भी समा सकता है। रेडियो ऑन (चालू) करो और दुनिया से कनेक्ट (जुड़िए) हो जाओ। मेरा रेडियो से दशकों पुराना नाता रहा है। मैंने खेल कमेंन्ट्री के साथ-साथ गणतंत्र व स्वतंत्रता दिवस का आंखों देखा हाल रेडियो और बाद में दूरदर्शन के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया है। रेडियों की बदौलत मैं भारत के करोड़ों घरों में जगह बना सका। रेडियो ने मुझे एक पहचान दी है। रेडियो का ऋणी रहने के साथ मैं इसकी पहुंच का कायल भी हूं। ये बात सही है कि रेडियो के पेशे में पैसे इतने नहीं हैं लेकिन इसके द्वारा मिलने वाला सम्मान किसी भी रूप में कम नहीं है। मुझे वर्ष 1985 में पद्मश्री और फिर वर्ष 2008 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। मैं याद करता हूं जब मैंने पहली बार मैल्वेल डिमैलो की महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा की कॉमेन्ट्री सुनी थी। ये अंग्रेजी में थी। मैंनें अपनी मां से कहा कि मैं हिन्दी कॉमेन्टेटर (टीकाकार) बनूंगा तो वो मुस्कुरा दी थीं। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि विद्यालय अथवा महाविद्यालय नहीं रहा लेकिन मैंने 9 ओलपिंक, 8 हॉकी वर्ल्ड (विश्व) कप और 6 एशिया में कॉमेन्ट्री की है। बहरहाल, रेडियो हमारी जिंदगी में कुछ इस तरह से शामिल है कि हम भले ही उससे दूर हो जाएं, पर रेडियो साथ है और रहेगा।
  • रेडियो पर कॉमेंट्री करने में आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल करना होता है। आप न तो जटिल हिन्दी के शब्दों का इस्तेमाल करें और न ही अंग्रेजी। आजकल के कॉमन्टेटर अपने तकनीकी ज्ञान की शेखी बघारते हैं। जबकि उन्हें लोगों को मौके के माहौल से लोगों का रूबरू करना होता हैं।

जसदेव सिंह

आपका साथी:-

  • रेडियो दिलों की आवाज है। बहनो और भाइयों मैं हूं आपका साथी अमीन सयानी के मेरे शब्दों ये आज मुझे भले ही भारतीय रेडियो की दुनिया में पहला आरजे (रेडियो जॉकी) कहा जाता है। लेकिन मैं इसका श्रेय देश की जनता को देना चाहता हूं। रेडियो ने मेरी जिंदगी ही बदल दी। वो वक्त ऐसा था कि जब हमारे पास मनोरंजन के सबसे बड़े साधन के रूप में रेडियो ही मौजूद था।
  • रेडियो को मनोरंजन के साथ-साथ समाज में जागृति फैलाने के माध्यम के रूप में भी जाना जाता था। हमारा परिवार पूरी तरह से गांधवादी विचारों का समर्थक और अनुयायी था। मैं खुद अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा था। लेकिन मैं आपकों बताता हूं कि मैने हिन्दी या यूं कहे कि हिन्दुस्तानी कैसे सीखी। दरअसल मेरी मां जो कि खुद स्वतंत्रता सेनानी थीं, उन्हें गांधीजी ने हिंन्दी, मराठी और उर्दू में पत्र निकालने को कहा। इसके लेख सामान्य हिन्दुस्तानी में लिखे हुए होते थे। मुझे मेरी मां ने बतौर सहायक के अपने कार्यालय में रख लिया बस यहीं से मैंने हिन्दुस्तानी सीख ली। इसके बाद मेरे बड़े भाई हामिद जो कि सीलोन रेडियो में थे उन्होंने मुझे रेडियों से जुड़ने की सलाह दी थी। उस समय रेडियों सीलोन पर अंग्रेजी में बिनाका हिट परेड चला करता था।
  • बिनाका गीतमाला ने लोगों को हिन्दी फिल्मी गीतों के जरिये एकता के सूत्र में पिरोने में मदद भी की थी। इसकी लोकप्रियता ही इसकी बानगी देती है।
  • ये बात 1960 के दशक की है। मैं बंबई में अपने स्टूडियों में बैठा हुआ था। ऑल इंडिया रेडियों में अनाउन्सरों (रो की घोषणा) के लिए ऑडिशन (ध्वनिपरीक्षण) हो रहा था। मै दिन भर में कई लोगों के ऑडिशन लेता था। इस बीच मेरे स्टूडियों (ध्वनि या गीत कार्यक्रम दर्ज करने के सभी उपकरणों से सज्जित कमरा) में एक पतला लंबा युवक आया। मुझे पता नहीं क्यो उसी आवाज अच्छी नहीं लगी। मैनें उसे फेल कर दिया। कूछ वर्ष बाद मैंने जब फिल्म आनंद देखी देखी तो पाया कि ये पता लंबा युवका तो अमिताभ बच्च हैं। शायद ऑडिशन (ध्वनिपरीक्षण) में फेल होना अमिताभ के लिए अच्छा था।

अमीन सयानी, प्रसिद्ध रेडियो उद्घोषक

बड़े शहरो में रेडियो सुनने में खर्च समय

Table shows the Time spent listening to radio in big cities
शहरवर्षशनिवारश्रविवारसप्ताह
दिल्ली2015129138833
2014130139891
मुंबई2015132128857
2014134127821
बेंगलुरु20152112011358
20142122041413
कोलकाता2015154155959
2014157151929
औसत समय प्रति सप्ताह मिनट में

उपसंहार:- रेडियो ने देश को भाषायी रूप से एकजुट किया है। आज हम देश के किसी भी कोने में चले जाएं, आपको हिन्दी बोलने वाले बेशक नहीं मिलेंगे लेकिन हिंदी समझने वाले जरूर मिल जाएंगे। ये सब कुछ छिपा है रेडियो के माध्यम से जुड़े लोगों के कारण। इसलिए आज भी रेडियों का महत्व अब भी कायम हैं और यह लोगों के माध्यम से हमेशा बना रहेगा।

Examrace Team at Aug 20, 2021