बलुचिस्तान पर घिरता पाकिस्तान

प्रस्तावना:-पाकिस्तान की ओर से फूंकी गई हवाओ से कश्मीर सुलग रहा है। लाख समझाया पर पाकिस्तान मानने को तैयार नहीं। हमने अब बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन का काउंटर कार्ड (विरोध करके अपनी योजना को प्रत्यक्ष करना) चलाया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हाशिए पर रहे बलूचों को नैतिक समर्थन मिला है। पाकिस्तान अब बलूचिस्तान पर घिरता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि ये भारत की ओर से केवल कश्मीर में पाकिस्तानी दखल का जवाब भर है। बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय एक धोखा है। अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी से भारत यात्रा पर हैं। निश्चय ही बलूचिस्तान के मसले पर वे भारतीय नेतृत्व के साथ वार्ता करेंगे। देखना है हमारी कूटनीति को कितनी बढ़त मिल पाती है।

  • मानवाधिकारों का उल्लंघन:- पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भी मानवाधिकारों का हनन किया गया, तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ जनआक्रोश उत्पन्न हुआ। वर्तमान में बलूच भी पाक पर मानवाधिकार उल्लघंन के आरोप लगा रहे हैं। बलूचों में रोष व्याप्त हैं।
  • आर्थिक संसाधनों की प्रचूरता:- बलूचिस्तान में खनिज संसाधनों की प्रचूरता है। साथ ही अरब सागर के साथ दक्षिणी तट होने के कारण समुद्री परिवहन की सुविधा भी है। ऐसे में पृथक राष्ट्र बनने पर बलूचिस्तान के पास आर्थिक संबलता भी रहेगी।
  • भूगोल:- बांग्लादेश से पाकिस्तान की जमीनी दूरी लगभग 1800 किलोमीटर है। कराची से चिटगांव की समुद्री दूरी भी तीन दिन में पूरी होती थी। जबकि बलूचिस्तान के किसी भी क्षेत्र में पाकिस्तान मात्र 4 घंटे के समय में पहुंच सकता है।
  • फासला:-भारत की सीमाएं बांग्लादेश से जुड़ी हुई थीं। ऐसे में वर्ष 1971 की सैन्य कार्रवाई के दौरान भारत को मदद में काफी आसानी हुई जबकि बलूचिस्तान और भारत की सीमाएं मिलती नहीं हैं। भारत और बलूचिस्तान के बीच में पाकिस्तान का सिंध प्रांत आता है।
  • मदद:-यह कोई पहली दफा नहीं है जब बलूची लोग भारत की ओर मदद को ताक रहे हैं। बताया जाता है कि बलूच शासक मीर अहमद यार खान ने ब्रिटिश शासन में कलात क्षेत्र को वापस लौटने की मांग थी। लेकिन पहले पं. नेहरू ने फिर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया। अगली बड़ी भूल का उदाहरण मार्च 1948 को देखने को मिला, (इससे साढ़े सात माह पहले कलात स्वतंत्र हो चुका था) जब ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में कहा गया-वीपी मेनन (अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के राजनीतिक सलाहकार) ने प्रेस को बताया कि कलात के खान (बलूची शासक) ने भारत सरकार को कलात के भारत में विलय का दबाव डाला, पर भारत सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं था। हालांकि, इसका भारत ने खंडन किया था तब तक पाकिस्तान ने कलात पर सैन्य हमला कर कब्जा कर लिया। चूंकि, यह विलय बलूचिस्तान के बहुसंख्यक लोगों की मर्जी के खिलाफ हुआ था। बलूचियों ने पाकिस्तान के खिलाफ हथियार उठाए। बलूचिस्तान में कई बार विद्रोह हो चुका है। पहले वर्ष 1948 में फिर 1955 - 58,1973 में और मौजूदा बगावत वर्ष 2006 से शुरू हुई है।
  • भाषा:- इतिहासकार बताते हैं बलुचिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय-ब्राहुई 1000 ईस्वी में मध्य भारत से पलायन कर वहां गए थे। ये लोग ब्राहुई बोलते हैं जो कि द्रविड़ मूल की भाषा है।
  • लोकतंत्र:-पाकिस्तान ने सेना के दम पर बलूचिस्तान में अपना कब्जा जमाया हुआ है। विशाल भूभाग और कम जनसंख्या के कारण वहां कबाइली सरदारों का अब भी दबदबा है। लोकतांत्रिक संस्थाएं बलूचिस्तान में पाक का दिखावा भर हैं।
  • दूसरा बांग्लादेश:- पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में मानावाधिकार उल्लंघन की हदें पार कर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। क्या बलूचिस्तान भी बांग्लादेश की राह पर चलेगा अर्थात दूसरा बलूचिस्तान बनायेगा या फिर कुछ ओर करेगा।
  • इस्तेमाल:- भारत और पाकिस्तान अब परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। बलूचिस्तान को हाथ से फिसलता देखकर पाकिस्तान अपनी परमाणु शक्ति संपन्नता को डिप्लोमोटिक ब्लैकमेलिंग (कूटनीतिज्ञ) के रूप में इस्तेमाल कर सकता हैं।
  • बलूच का किंग (राजा) :- कभी बलूचिस्तान में तीन महलों और 20 कार के मालिक तथा 100 कर्मचारी व 20 बॉडीगाड्‌स (सुरक्षा कर्मचारी) से घिरें रहने वाले बलूच किंग सुलेमान दाउद अब ब्रिटेन के कार्डिफ में अपने थ्री बीएचके वाले घर में निर्वासन का जीवन बता रहे हैं। सुलेमान का आधिकारिक नाम हिज हाईनेस बेगलर बेगी, द खान ऑफ कलात है। पाकिस्तानी सरकार के अत्याचारों से तंग आकर सुलेमान ने वर्ष 2007 में ब्रिटेन में शरण की अपील की। उन्हें वर्ष 2009 में शरण प्रदान की गई। सुलेमान का कहना है कि बलूचिस्तान में रोज किसी इंजीनियर (अभियंता) , चिकित्सक, वकील, पत्रकार अथवा प्रोफेसर (विश्वविद्यालय के अध्यापक) का गोलियों से छलनी शव मिलता है। हालात बहुत खराब है। मेरे परिवार के ही चार लोगों को पाक खुफिया अफसरों ने मार डाला। मैं जब बलूचिस्तान में था तब चार हजार लोग आधिकारिक रूप से लापता थे, अब ये आंकड़ 25 हजार से ज्यादा है। हजारों बलूचियों को पाक सेना ने अगवा कर लिया है। पाक सेना किल एंड डंप (मारना और फेंकना) की नीति पर काम कर रही है। 600 से ज्यादा शवों को खोज निकाला गया है। बलूचिस्तान में पाक सेना अभियान चलते रहते हैं। बच्चों और महिलाओं तक की हत्याएं हो रही हैं। देश लौटने का सपना संजाए सुलेमान को आजादी मिलने का दृढ़ विश्वास है।
  • कब्जा- विभाजन के बाद बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश बनना था, लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने बलूचों से वादाखिलाफी कर सैन्य कार्रवाई से 1948 में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया।
  • बातचीत के मुख्य अंश:- आजादी की आवाज उठाने वाले बलूचिस्तान विद्यार्थी संस्था (बीएसओ) पर पाकिस्तान ने प्रतिबंध लगाया है। कनाडा में निवार्सन में रह रही बीएसओ नेता करीमा बलूच से राजस्थान पत्रिका के लिए कैच समाचार के शाहनवाज मलिक की बातचीत के मुख्य अंश निम्न हैं-
  • प्रश्न -बलूचिस्तान की आजादी के संघर्ष के हालात क्या हैं?

उत्तर-पाकिस्तान ने 27 मार्च, 1948 में बलूचिस्तान पर बलपूर्वक कब्जा किया था। कई उतार-चढ़ाव के बावजूद हम पाकिस्तान को खदेड़ नहीं पाए हैं। पाक सेना, सैन्य गुप्तचर और आईएसआई बलूचिस्तान में अत्याचार कर रहे हैं। यहां दिखावे के लिए चुनाव भी कराए जाते हैं। बलूची मत नहीं डालते हैं। पाक सेना आईएसआई की बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री का चयन करती है।

  • प्रश्न -आप क्या ये आरोप दावे के साथ लगा सकती हैं?

उत्तर- पिछले चुनाव के दौरान मैं बलूचिस्तान में छिपकर रह रही थी। मैंने देखा कि आर्मी और सैन्य सरुक्षा बल लोगों को मत डालने के लिए धमका रहे थे। वो मत नहीं डालने पर जिंदा जला देने की धमकी दे रहे थे। बलूचिस्तान में चुनाव रस्म अदायगी मात्र है।

  • प्रश्न -आपके संगठन पर अब प्रतिबंध है, क्या असर होगा?

उत्तर-हमें अपना आंदोलन चलाने की कभी भी स्वतंत्रता नहीं थी। हमारे नेताओं को अपहृत कर मार डाला गया। बीएसओ पर औपचारिक प्रतिबंध से पहले ही हमारे आंदोलन से जुड़े साहित्य, हॉस्टलों को जला दिया जाता रहा है। पाकिस्तानी हुक्मरान हर प्रकार के षडयंत्र रचकर हमें कमजोर करना चाहते हैं, लेकिन हम झुकने वाले नहीं है।

  • प्रश्न- आपको पाकिस्तान ने आतंकी क्यों घोषित किया?

उत्तर-पाकिस्तान खुद आतंकवादी राष्ट्र है। मुझे पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी घोषित करने पर कोई आपत्ति नहीं है। पाकिस्तान तो मुझे रॉ का एजेंट (असिद्ध का कार्यकर्ता) भी कहता है। ये पुराने आरोप हैं, इससे हमारे आजादी के आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला हैं।

  • प्रश्न- आपकी मांगे क्या हैं?

उत्तर-हम पृथकतावादी नहीं, स्वतंत्रता सेनानी हैं। इतिहास गवाह है कि बलूचिस्तान कभी भी भारतीय उपमहादव्ीप का हिस्सा नहीं रहा। मै नहीं जानती कि पाकिस्तान का अस्तित्व रहेगा या नहीं लेकिन ये तय है कि बलूच आजाद होकर रहेंगा।

  • प्रश्न- क्या पाक और आपके संगठन में वार्ता हुई हैं?

उत्तर- पाक संवाद में यकीन नहीं करता है। मेरे घर पर चार बार मोर्टर हमले हुए। मेरी मां और बहनों को पाक सेना ने कई बार गोलियों से उड़ा देने की धमकी दी है। मैं बरसों भूमिगत रही। बलूचिस्तान छावनी बन गया है।

  • प्रश्न -पाकिस्तान का दावा है कि बीएसओ को रॉ का सरंक्षण हैं क्या यह सच है?

उत्तर-पाकिस्तान तो केवल हमारे संगठन ही नहीं बलूचिस्तान के समूचे स्वतंत्रता आंदोलन को ही रॉ एजेंटों (असिद्ध कार्यकर्ता) की साजिश बताता है। रॉ के नाम पर पाक, बलूचिस्तान के विचारकों के तथ्यों को कमतर बताने की साजिश रचता है।

बॉलीवुड कनेक्शन (मैल मिलाप) :-

  • कादर खान- बॉलीवुड में 300 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके कादरखान की मां इकबाल बेगम बलूचिस्तान के पिशिन की थीं। कादर खान का बचपन पिशिन में ही बीता है। कारोबार के सिलसिले में कादर खान के पिता अब्दुल रहमान मुंबई में परिवार सहित बस गए। कादर ने वर्ष 1973 में दाग से फिल्म केंरिअर (जीवनवृत्ति) शुरू किया।
  • राजकुमार- दमदार डायलॉग छुटकारा के लिए मशहूर बॉलीवुड फिल्म अभिनेता राजकुमार का जन्म बलूचिस्तान के लोरालई में हुआ था। लगभग चार दशक तक बॉलीवुड में 70 से ज्यादा फिल्मों में अदाकरी का जलवा बिखेरने वाले राजकुमार जानी के नाम से मशहूर रहे। उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था।
  • सुरेश ऑबेराय- बलूचिस्तान के क्वेटा शहर में जन्में सुरेश ने बॉलीवुड की कई फिल्मों में मुख्य से चरित्र आर्टिस्ट (ललित-कला में निर्पूण) के रूप में काम किया। कुछ फिल्में उन्होंने बतौर हीरों भी की। उन्हें वर्ष 1987 में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (सर्वोत्तम सहारा अभिनेता) का राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड (पुरस्कार) भी मिला। सुरेश के पुत्र विवेक ओबेरॉय भी बॉलीवुड अभिनेता है।
  • वीनाकुमारी- क्वेटा में जन्मी वीना कुमारी का असली नाम ताजोर सुल्ताना था। उन्होंने फिल्म चलती का नाम गाड़ी, पायल की झंकार, रजिया सुल्तान में काम किया था। वीना ने लगभग 70 फिल्मों में काम किया। बॉलीवुड फिल्मों में अकसर पुलिस इंस्पेक्टर का अभिनय निभाने वाले अभिनेता इपितखार उनके भाई थे।

कूटनीतिक:-

  • मोदी के बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर एवं गिलिगित में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर दिए बयान के बाद दक्षिण एशिया में कूटनीतिक सरगरमी तेज हुई है। संकेत कूटनीतिक रिश्तों मेे बेहद अहम होते हैं, खासकर तब जब कहने की ठीक मंशा का सही तरह से अंदाजा नहीं हो। इससे कई बार कूटनीति करने का भी मौका मिल जाता है। इस बात को मानने का कम ही आधार है कि बलूचिस्तान और पीओके का महज जिक्र कर मोदी ने यह बताने की कोशिश की है कि भारत जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान से ऊब चुका है और वह अब इस मामले में पाकिस्तान को बिलकुल भी बर्दाश्त करने के मन में नहीं है। तो फिर सवाल है कि पाकिस्तान कैसे मोदी को जवाब देगे और भविष्य में वह क्या करेंगे? इस बार हालांकि, चौंकाने वाली बात यह रही कि पाकिस्तान ने मोदी के आरोप का उतनी आक्रामकता के साथ जवाब नहीं दिया है। निश्चित तौर पर पाकिस्तान भारत के कूटनीतिक जाल में फंस गया हैं। अब कश्मीर से ज्यादा बलूचिस्तान पर बात हो रही है। पाक प्रधानमंत्री शरीफ ने मोदी को जवाब नहीं दिया बल्कि उनके विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने मोदी को जवाब दिया। अजीज ने कहा कि मोदी बलूतिस्तान पर बयान देकर कश्मीर से ध्यान हटाना चाहते हैं। बलूचिस्तान पर उन्होंने कहा, मोदी का बयान पाक की इस बात को पुख्ता करता है कि भारत बलूचिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। तीन दिन बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लघंन का हवाला देते हुए कहा, बलूचिस्तान का बयान देकर मोदी ने लक्ष्मण रेखा को लांघ दिया है। कश्मीर पर ध्यान केंद्रित रखते हुए पाकिस्तान ने भारत के विदेश सचिव को इस्लाबाद आने का न्योता दे डाला। विदेश सचिव को लिखे पत्र में पाकिस्तानी विदेशी सचिव ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का जिक्र किया है।
  • पाकिस्तान को यह बात अच्छे से पता है कि भारत बेहद आसानी से इस सुझाव को खारिज कर देगा। भारत ऐसा कर भी चुका है। भारत ने हमेशा की तरह पाकिस्तान से यह कहा कि पहले उसे आतंकियों को खत्म करना होगा जो उसकी नीति को हांक रहे है। भारत ने न केवल बैठक से इनकार किया बल्कि उन्होंने बैठक की शर्तों को भी तय कर दिया जिसे पाकिस्तान अकसर खारिज करता रहा है। भारत ने पहले कभी ऐसा नहीं किया और यदि वह ऐसा करने में सफल रहता है तो निश्चित तौर पर कश्मीर मुद्दे पर भारत की रणनीति में यह बड़ी उपलब्धि होगी। पूरे प्रकरण में बस इस बात को लेकर सतर्कता बरतने की जरूरत होनी चाहिए कि मोदी मई 2016 के बाद से पाकिस्तान पर कई बार अपनी नीतियों में बदलाव कर चुके हैं और उन्हें इससे बचना चाहिए।
  • इतिहास में पहली बार भारत ने बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा भी उठाना शुरू कर दिया है। देखा जाय तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम देश राष्ट्र हित को नजर में रखकर उसकी अलग-अलग व्याख्या करते है।
  • सतर्कता और बुद्धिमता:- यह कूटनीतिक रूप से सही होगा कि बलूचिस्तान के मानवाधिकार मुद्दे को लगातार उठाया जाए और पाकिस्तान प्रांत पर किसी तरह की टिप्पणी को रीट्‌वीट नहीं करना चाहिए था जिसे उन्होंने मोदी के बयान के बाद जारी किया था।

(विवेक काटजू, अफगानिस्तान में भारतीय राजदूत रहे)

  • भारत की नई नीति:-भारत ने अपनी बलूचिस्तान गिलगित-बालतिस्तान नीति से ये तो जाहिर कर दिया है कि भारत अब चुपचाप दर्द झेलने वाला नहीं है। वर्ष 1948,1965 और 1999 के सामरिक दुस्साहस में विफलता के बाद पाकिस्तान भारत को वार्ता की मेज पर कमजोर स्थिति में लाना चाहता था। इसके लिए आतंक को भी पाकिस्तान की सरकारों ने मोहरा बनाया है। न्यक्लियर शक्ति संपन्न पाकिस्तान ये जताना चाहता है कि एटमी भय को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जाए। जिससे कि भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र होने के कारण सैन्य शक्ति का इस्तेमाल नहीं करे। भारत में सत्तारूढ़ रहीं विभिन्न सरकारों ने इसे मजबूरी में सहा है कारण एटमी पहेली। अब पाकिस्तान के प्रति नई नीति से रणनीतिक बदलाव होंगे-
    1. पहला बलूचिस्तान पीओके
    2. दूसरा गिलगित-बालचिस्तान में मानवाधिकार उल्लघंन
    3. तीसरा निम्न जीवन स्तर का मुद्दा वैश्विक पटल पर सामने आएगा।

उपसंहार:-प्रस्तुत बातों से स्पष्ट नजर आ रहा है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के अत्याचारों से कभी अपना अलग राष्ट्र बना सकता हैं। जिसका समर्थन शायद भारत देश भी करने वाला हैं। आगे बलूचिस्तान के विषय में पाकिस्तान व भारत की क्या प्रतिक्रिया होती हैं यह आने वाला समय ही बतायेगा।

Examrace Team at Aug 20, 2021