महान सुधारक (Great Reformers – Part 15)
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पी. एन. हक्सर:-
प्रसिद्ध प्रशासनिक अधिकारी और कूटनीतिज्ञ ‘परमेश्वर नारायणन हक्सर’ (4 सितंबर, 1913 - 25 नवंबर, 1998) को लोकप्रिय तौर पर ‘पी. एन. हक्सर’ के नाम से जाना जाता है। वह देश की प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी के छह वर्ष (1967 - 73) तक प्रधान सचिव रहे थे। 1970 के दशक के मध्य में जब श्रीमती गांधी ने सत्ता की बागडोर संभाली तो उन्हें शासन का ज्यादा अनुभव नहीं था। ऐसे में श्री हक्सर ने अपनी योग्यता और दूरदर्शिता से उनकी शासन पर पकड़ मजबूत की और भारत को दुनिया का महत्वपूर्ण देश विकसित करने में महान योगदान दिया। वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी बनाये गये। उनकी असाधारण योग्यता को देखते हुये उन्हें नई दिल्ली स्थिति जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के पद पर नियुक्त किया गया।
श्री हक्सर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. एससी. की. परीक्षा उत्तीर्ण की। कला के इतिहास और पेंटिंगस (चित्रों) के शौकीन श्री हक्सर ने लंदन विद्यालय के अर्थशास्त्र में भी अध्ययन किया। लंदन में वह समाजवाद और मार्क्सवाद की ओर आकर्षित हुये। उन्होंने इलाहाबाद में बतौर वकील अपना पेशेवर जीवन शुरू किया और 1947 में वे भारतीय विदेश सेवा के लिए चुने गये। वे ऑस्ट्रिया और नाईजीरिया के राजदूत भी रहे। वह केन्द्रीयकरण, समाजवाद की पक्षधरता, मानवाधिकारों के लिए संघर्ष, नवउदारवाद के विरोध और धर्मनिरपेक्षता के प्रति गहरे झुकाव के लिए भी जाने जाते हैं।
श्री हक्सर को कूटनीतिज्ञ सेवाओं में 22 वर्ष बिताने के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी का सचिव नियुक्त किया गया। 1967 में वह उनके प्रधान सचिव बने। उनकी प्रशासंनिक दक्षता का प्रभाव घरेलू और विदेश नीति पर आसानी से देखा जा सकता है। श्रीमती गांधी के बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को समर्थन देने के पीछे श्री हक्सर की भी बड़ी भूमिका थी। इतना ही नहीं उन्होंने बैंको, बीमा और विदेशी तेल कंपनियों (संघों) के राष्ट्रीयकरण, 1971 की इंडो-सोवियत संधि, बांग्लादेश की आजादी के मामलों से जुड़े फैसलों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री हक्सर को पाकिस्तान के साथ हुये प्रसिद्ध शिमला समझौते में भी मुख्य रचनाकार माना जाता है।
मोहम्मद यूनूस:-
भारतीय विदेश सेवा के महत्वपूर्ण अधिकारी मोहम्मद यूनूस का जन्म 26 जून, 1916 को हुआ। वह इंडोनेशिया, टर्की, इराक और स्पेन जैसे महत्वपूर्ण देशों में राजदूत के पद पर रहे। उनका देश को बहुत बड़ा योगदान दिल्ली में प्रगति मैदान की स्थापना और नियमित रूप से व्यापार मेेंलो का आयोजन, संचालित करवाना रहा है। पाकिस्तान के एबटाबाद में जन्में यूनूस ने इस्लामियर महाविद्यालय पेशावर, मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में अध्ययन किया। उन्होंने सीमांत गांधी के नाम से मशहूर स्वतंत्रता सेनानी खां अब्दुल गफ्फार खां के संगठन खुदाई खिदमतगार में 1936 से 1947 तक काम किया। मोहम्मद यूनूस उच्च कोटि के वक्ता थे और हमेशा नपातुला बोलते थे।
विभाजन से पहले ही वह भारत आ गये और 1947 के कठिन दौर में भारतीय विदेश सेवा में चुने गये। इस सेवा में आने के बाद उन्होंने लुसाका, अल्जीरिया, कोलम्बो और नई दिल्ली में हुये गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलनों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। उन्होंने 1955 में हुये बांडुंग सम्मेलन में भी भागीदारी की। उनकी अपूर्व क्षमताओं को देखते हुये उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विशेष दूत बनाया गया। वह राज्यसभा के भी सदस्य रहे। उनका 17 जून, 2001 में निधन हो गया। उनकी मशहूर किताब ‘फ्रंटियर (सीमांत) स्पीकर्स’ (वक्ताओं) है। इस किताब पर 1942 में सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। उनकी अन्य किताब ‘कैदी के खत’ तथा ‘पर्सन, पैशन (जुनून) एंड (और) पॉलिटिक्स’ (राजनीतिक) है।
पी. सी. अलेक्जेंडर:-
पदिनजोरधक्कल चेरियन अलेक्जेंडर या पी. सी. अलेक्जेंडर (20 मार्च, 1921 - 10 अगस्त, 2011) का नाम देश के योग्यतम अधिकारियों में गिना जाता है। उन्होंने न केवल सफलतापूर्वक प्रशासंनिक दायित्व संभाला अपितु तमिलनाडु, महाराष्ट्र के राज्यपाल के पदों में भी कार्य किया। वह राज्यसभा सांसद (2002 - 2008) भी रहे। उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के उत्तरार्द्ध के समय में किये गये कार्यो के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।
अलेक्जेंडर श्रीमती गांधी के प्रधान सचिव रहे। उन्होंने कुछ समय प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के साथ भी काम किया। उनका बतौर सिविल (नागरिक) सर्वेंट (नौकर) कार्यकाल 1948 में शुरु हुआ। अपनी योग्यता और क्षमता के बल पर वह श्रीमती गांधी के निकट पहुँचे और जल्द ही उन्हें श्रीमती गांधी की छाया तक कहा जाने लगा। उनकी प्रसिद्ध किताबों में “Through (के माध्यम से) the (यह) Corridors (गलियारों) of (के) Power (शक्तिशाली) . My (मेरा) Years (साल) with (साथ) Indira Gandhi, The (यह) Perils (खतरों) of (के) Democracy (जनतंत्र) और India (भारत) in the (यह) New (नया) Millennium (हजार वर्ष) शामिल हैं। Through the Corridors of Power किताब में सरकार की कार्यप्रणाली का उल्लेख किया गया।
वर्गीस कुरियन:-
कुरियन ने भारत को दुग्ध उत्पादन में अग्रणी देश बनाने के लिये राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (परिषद) (एन. डी. डी. बी) ने 1970 में ऑपरेशन (कार्यवाही) फ्लड (बाढ़) कार्यक्रम चलाया जिसे श्वेत क्रांति के रूप में जाना जाता है। श्वेत क्रांति की सफलता के मुख्य वाहक डॉक. वर्गीस कुरियन ही माने जाते हैं। इसलिए उन्हें श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है। उनका जन्म 26 नवंबर 1921 को कालीकट (केरल) में हुआ था।
इनके पिता कोचीन में सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे और उन्होंने वर्गीस की पढ़ाई लिखाई में कोई असर नहीं छोड़ी मद्रास के प्रसिद्ध लोयोला महाविद्यालय से भौतिकी में स्नातक करने वाले वर्गीज आगे की पढ़ाई के लिए जमशेदपुर के टाटा स्टील (ईस्पात) टेकनीकल (तकनीक) इंस्टीट्यूट (संस्थान) में दाखिल हो गये। 1946 में वर्गीस कुरियन अमेरिका चले गये और वहां उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय से धातु विज्ञान में मास्टर्स (अधिकारी) डिग्री (उपाधि) हासिल की। इधर भारत आजाद हो चुका था और उस समय के किसी नौजवान की ही तरह वे भी विदेश में रहने की बजाय भारत लौटना ज्यादा बेहतर समझते थे। इसलिए 1949 में वे भारत वापस लौट आये। 1949 में भारत सरकार की प्रतिनियुक्ति पर कुरियन ′ गवर्नमेंट (सरकारी) रिसर्च (खोज) क्रिमरी, आणंद पहुंचे।
यहाँ कुरियन की मुलाकात खैरा जिला दुग्ध उत्पादक समिति के अध्यक्ष त्रिभुवन दास पटेल से हुई। तब त्रिभुवनदास पटेल आणंद में पाँंच गांवों की एक सहकारी दुग्ध समिति चलाते थे। त्रिभुवनदास ने तय किया था कि वे पॉलसन कंपनी (संघ) को दूध नहीं देंगे जो कि आणंद से दूध ले जाकर मुंबई में कारोबार करती थी। पटेल और कुरियन ने तय किया कि वे मिलकर कॉओपेरेटिव (सहयोगी) को मजबूत करेंगे। कुरियन ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और 1954 में डेयरी की स्थापना कर दी गई। इस डेयरी के चेयरमैन (अध्यक्ष) त्रिभुवनदास पटेल थे जबकि जनरल मैनेजर (प्रबंधक) का कार्यभार खूद कुरियन ने संभाला। इस अमूल कंपनी (संघ) का उद्घाटन 1955 में खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया। हांलाकि अमूल नाम दो साल बाद रजिस्टर्ड (दर्ज कराई) हुआ।
अमूल की स्थापना के एक दशक के भीतर ही कुरियन ने सफलता की ऐसी कहानी लिख दी कि 1965 मेंं तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस प्रयोग का राष्ट्रीय स्तर पर उतारने का निश्चय किया। शास्त्री जी की पहल पर राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट (विकास) बोर्ड (परिषद) का गठन किया गया जिसकी जिम्मेदारी कुरियन को सौंपी गई। 1970 से लेकर 1996 के बीच करीब 26 साल तक चले डेयरी डेवलपमेंट कार्यक्रमों का नतीजा यह हुआ कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया। इस दौरान देशभर में 72 हजार सहकारी दुग्ध समितियां स्थापित की गई और अमूल की ही तर्ज पर हर प्रदेश के अपने-अपने ब्रांड (उत्पाद चिन्ह) विकसित किये गये। कुरियन ने अमूल के साथ जो प्रयोग शरू किया था वही उनका परिचय बना। उनका 09 सितंबर 2012 को नाडियाद में निधन हो गया।