महान सुधारक (Great Reformers – Part 38)
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जर्दानों ब्रूनो:-
ब्रूनों (1548 - 1600) का जन्म इटली के नोला नगर में हुआ था। केवल 17 साल की उम्र में वे नेपल्स में चर्च से जुड़ गये लेकिन कुछ साल बाद ही उन्होंने इसे त्याग दिया। उन्होंने इटली के कई शहरों की यात्राएँ की। ब्रूनों एक महान विचारक और भावूक कवि होने के साथ दार्शनिक, गणितज्ञ, ज्योतिषी और खगोलशास्त्री भी थे। उनके ब्रह्याण्ड संबंधी सिद्धांत ने तत्कालीन धर्म प्रधान यूरोपीय समाज में हलचल मचा दी। उनका मानना था कि सूर्य कोई विशेष नहीं अपितु एक बड़ा सितारा ही है। यह ब्राह्यांड अनंत है और अन्य जगहों पर भी बुद्धिमान प्राणी बसते हैं। उनके ये विचार चर्च और वैज्ञानिक प्रविधि के विकास के दौर की शुरूआती अवस्था के थे।
पोलिश वैज्ञानिक कोपरनिकस (1453 - 1543) पहले ही इस बात को कह चुके थे कि पृथ्वी केन्द्र में नहीं है और सूर्य पृथ्वी के चक्कर नहीं काटता अपितु पृथ्वी ही सूर्य के चक्कर काटती है। ब्रूनो ने कोपरनिकस की बात को साथ लिया और उसे अनुमोदित किया, लेकिन इससे चर्च के खिलाफ आरोप लगाये गए और रोमन चर्च के दव्ारा हुई जाँच में उन्हें दोषी पाया गया। ब्रूनो ने चर्च से माफी नहीं मांगी और जिस वैज्ञानिक खोज को उन्होंने सत्य समझा उस पर अडिग रहे। चर्च की सत्ता को चुनौती देने के दोषी पाये गये ब्रूनों को दंड स्वरूप जीवित ही जला दिया गया। ब्रूनों को आधुनिक वैज्ञानिक विचारों के लिए शहीद होने वाले लोगों में ससम्मान शामिल किया जाता है।
गैलीलियो गैलिली:-
इटली के पीसा शहर में 15 फरवरी, 1564 को गैलीलियो गैलिली का जन्म हुआ। गैलीलियो एक खगोलविज्ञानी के अलावा एक ऐसे कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप को वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसलिए गैलीलियो गैलिली को ′ आधुनिक खगोल विज्ञान के ″ जनक ′ ′ , ′ आधुनिक भौतिकी का पिता ′ या ′ विज्ञान का पिता ′ के रूप में संबांधित किया जाता है।
गैलीलियो ने भौतिक विज्ञान में गतिकी के समीकरण स्थापित किए। उनका जड़त्व का नियम जगप्रसिद्ध है। उन्होंने पीस की मीनार के अपने प्रसिद्ध प्रयोग दव्ारा सिद्ध किया कि वस्तुओं के गिरने की गति उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती। उन्होंने पहली बार सिद्ध किया कि निर्वात में प्रक्षेप्य का पथ परवलयकार होता है। गैलीलियो ने उच्च कोटि का कंम्पास बनाया जो समुद्री यात्रियों के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हुआ। उनके अन्य आविष्कारों में सूक्ष्मदर्शी, सरल लोलक आधारित पेंडुलम घड़ी इत्यादि है। उन्होंने भौतिक नियमों के बारे में बताया कि वे उन सभी निकायों में जो नियत गति से चलते है, समान रूप से लागू होते हैं। यह सापेक्षता के सिद्धांत की प्रारंभिक झलक थीे।
वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे पर वे धार्मिक मान्यताओं के विपरीत जाते अपने परिणामों को पूरी ईमानदारी से सामने रखते। उनकी चर्चा के प्रति निष्ठा थी लेकिन तब भी वह ज्ञान और विवेक से ही किसी अवधारणा को तोलते थे। गैलीलियो की इस सोच ने मनुष्य की चिंतन प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया। स्वयं गैलीलियो अपने विचारों को बदलने को तैयार हो जाते यदि उनके प्रयोगों के परिणाम ऐसा इशारा करते तो। अपने प्रयोगों को करने के लिए गैलीलियो ने लंबाई और समय के मानक तैयार किए ताकि यही प्रयोग अन्यत्र जब दूसरी प्रयोगशालाओं में दुहराए जाएं तो परिणामों की पुनरावृत्ति दव्ारा उनका सत्यापन किया जा सके।
गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि एक समान त्वरण की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आकर उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् आइंस्टाइन ने उन्हें ‘आधुनिक विज्ञान का पिता’ की पदवी दे डाली।
गैलीलियो ने ही ‘जड़त्व का सिद्धांत’ हमें दिया जिसके अनुसार ‘किसी समतल पर चलायमान पिंड तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए।’ बाद में यह जाकर न्यूटन के गति सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना। पीसा के विशाल कैथेडल (चर्च) में झूलते झूमर को देखकर-उन्हें ख्याल आया क्यों न इसका दोलन काल नापा जाए- उन्होंने अपनी नब्ज की धप-धप की मदद से यह कार्य किया- और इस प्रकार सरल लोलक का सिद्धांत बाहर आया- कि लोलक का आवर्तकाल उसके आयाम पर निर्भर नहीं करता (यह बात केवल छोटे आयाम पर लागू होती है-पर एक घड़ी का निर्माण करने के लिए परिशुद्धता काफी है) सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे की व्याख्या की। जिसे आज हम आपेक्षिकता का सिद्धांत कहते हैं उसकी नींव भी गैलीलियो ने ही डाली थी। उन्होंने कहा है ‘भौतिकी के नियम वही रहते हैं चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग से एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था न परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है।’ इसी में बाद में न्यूटन के नियमों का आधारगत ढांचा दिया।
सन् 1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कहीं अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली। 25 अगस्त, 1609 को गैलीलियो ने अपने आधुनिक टेलिस्कोप (दूरबीन) का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। इसकी मदद से गैलीलियो ने चांद और शुक्र को देखा। बृहस्पति गृह को देखने पर पता चला कि उसका एक अलग संसार है। उसके गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। यहाँ से टॉलेमी और अरस्तु की उन परिकल्पनाओं की नींव हिल गई जिनमें ग्रह और सूर्य सभी पिंडो की गतियों का केन्द्र पृथ्वी को बताया गया था। गैलीलियो की इस खोज से सौरमंडल के सूर्य केन्द्रित सिद्धांत को बहुत बल मिला। हालांकि निकोलस कॉपरनिकल गैलीलियो से पहले ही यह कह चुके थे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं न कि पृथ्वी की, पर मानने वाले बहुत कम थे। हालांकि भारत में वराहमिहिर यह पहले ही कह चुके थे किन्तु यूरोपियन चर्च इससे सहमत न होकर अरस्तू की थ्योरी (सिद्धांत) पर ही विश्वास रखते थे।
इसके साथ ही गैलीलियो ने कॉपरनिकस के सिद्धांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया। ये बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध जाती थी। इस कारण गैलीलियो के कथन को कैथेलिक चर्चो के विरोध का सामना करना पड़ा। गैलीलियो ने खंडन करते हुए कहा कि उसने कहीं भी बाइबिल के विरुद्ध कुछ नहीं कहा है। गैलीलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया।
सन् 1633 में चर्च ने गैलीलियो को आदेश दिया कि वे सार्वजनिक रूप से कहें कि ये उनकी बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा किया भी। फिर भी गैलीलियो को अपने जीवन के अंतिम दिन रोमन साम्राज्य की कैद में बिताने पड़े। बाद में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के मद्देनजर सजा को गृह-कैद में तब्दील कर दिया गया। अपने जीवन का अंतिम दिन भी उन्होंने इसी कैद में गुजारा। वर्ष 1992 में जाकर वैटिकन शहर स्थिति ईसाई धर्म की सर्वोच्च संस्था ने यह स्वीकारा कि गैलीलियो के मामले में उनसे गलती हुई थी।