इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 23 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.
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उपनिषदों में अंतर्मुखी नैतिकता के विकास का एक कारण यह भी था कि इस दौर में ब्रह्य और मनुष्य के एकत्व को मान लिया गया। उपनिषदों में कई महा वाक्य है-
- अहम ब्रह्यस्मि
- ततवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू त्वमवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू असि तुम ही वह हो ब्रह्य इसका अर्थ था कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर ब्रह्य की सत्ता विद्यमान है ऐसी धारणाओं में व्यक्तियों को भीतर से नैतिक होने के लिए प्रेरित किया।
upnishad
उपनिषद | |||||
वेंदों की तुलना में मेटाफियोलॉजीकल में अंतर | अवधारणा | नीति मीमांसा | |||
वेदो में | उपनिषद | पुरुषार्थ | आश्रम | प्राकृतिक ऑफ (के) इथिक्स (आचार विचार) | |
बहुदेववाद | एकेश्वरवाद | धर्म, उपनिषद | सन्यास | अंतरमुखी नीति मीमांसा | निवृत्तिमार्गी |
हेनोथीहिस्म | ब्रह्य की धारणा | वैदिक साहित्य की तरह सेम | किसी बाहरी दबाव के कारण नही बल्कि आंतरिक प्रेरणाओं के आधार पर नैतिक होने की प्रक्रिया | भौतिक सुखों की बजाए आधात्मिक सुखों पर ध्यान। भौग पर संयम बल | |
प्राकृतिक शक्तियों को देवता मानने की प्रवृत्ति | परलोकिक रूचियां बढ़ने लगी। | वर्ण | कर्म | ||
कस्मै देवाय हनिषा विधेम |