इंडियन (भारतीय) वेर्स्टन (पश्चिमी) फिलोसोपी (दर्शन) (Indian Western Philosophy) Part 4 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.
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स्टोइकवाद- स्टोइक दर्शन सिविक संप्रदाय का ही परिष्कृत रूप है इसमें संस्थापक जैसे कई विचार सिविक संप्रदाय से लेते हुये तथा कुछ नये विचारों के साथ अपनी नीति मीमांसा दी।
नीति मीमांसा का मूल आधार:-नीति मीमांसा का मूल प्रश्न है कि सर्वोच्च शुभ क्या है? प्लेटो ने शुभ के प्रत्यय को सर्वोच्च शुभ कहा था। जो ईहलोग में न होकर उसके जैसे है अरस्तु अपनी नीति मीमांसा कोई ईहलोग तक सीमित रखने का पक्षधर है सो उसका दावा है कि सर्वोच्च शुभ कल्याण (यूडेमोतिया) है इसका प्रमाण यह है कि हम आनंद की भावना किसी लक्ष्य के साधन के रूप में नहीं करते बल्कि उसे अपने आप में वांछनीय मानते है।
आनंद शारीरिक सुख नही है हालांकि इसमें शारीरिक सुख अंतनिर्हित है। नीति मीमांसा से अलग करते हुये अरस्तु ने आनंद को परिभाषित करते हुये कहा है कि, “यह वह शांतिपूर्ण मानसिक अवस्था है जिसका अनुभव मानव निरन्तर सदवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू गुण युक्त जीवन व्यतीत करने के परिणाम स्वरूप ही कर सकता है।”
प्रश्न है कि आनंद की प्राप्ति होगी कैसे? अरस्तु का उत्तर है कि जीवन में संतुलन होने से ही इसकी प्राप्ति हो सकती है हमारी आत्मा के 2 पक्ष है। बौद्धिक तथा भावात्मक इन दोनों के समुचित समन्वय से ही मनुष्य का जीवन आनंद कल्याण से पूर्ण हो सकता है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि भावात्मक पक्ष, बौद्धिक पक्ष के नियंत्रण में रहे। इन बिन्दु प्लेटो और अरस्तु दोनों का विचार यही है कि बुद्धि के नियंत्रण में ईच्छाओं की तृप्ति करना आदर्श जीवन का सार है।