बाजार अर्थव्यवस्था का दर्जा (Market Economy Status – Economy)
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• विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत चीन को इस साल दिसंबर से “बाजार अर्थव्यवस्था” का दर्जा मिलने की संभावना है। भारतीय वाणिज्य मंत्रालय इसके निहितार्थ का आकलन कर रहा है।
• चीन को यह दर्जा मिलने से एंटी (विरोधी) -डंपिंग (उदासी/जेल) मामलों पर प्रमुख तौर पर विभिन्न प्रभावों के पड़ने की आशंका है, अत: एंटी-डंपिंग (विरोधी, उदासी/जेल) एवं संबद्ध शुल्क महानिदेशालय (वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय) ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों और वकीलों से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है।
बाजार अर्थव्यवस्था का दर्जा क्या है?
• एक बार किसी देश को यह दर्जा मिल जाए तो उसके निर्यात की उत्पादन लागत के तौर पर स्वीकार करना पड़ता है और बिक्री मूल्य को बेंचमार्क मानकर स्वीकार करना पड़ता है।
• जिन देशों को यह दर्जा नहीं मिला हुआ है। (अर्थात गैर-बाजार अर्थव्यवस्था वाले देश) , उस देश के निर्यात के लिए अन्य देशों को सामान्य मूल्यों के निर्धारण के लिए वैकल्पिक तरीकों के उपयोग करने की अनुमति है, जिसका परिणाम अक्सर उच्च एंटी डंपिंग शुल्क होता है।
डंपिंग क्या है?
• डंपिंग एक अनुचित व्यापार गतिविधि है जिसमें माल को निर्यातक देश की सामान्य उत्पादन लागत या मिलने वाली कीमत से कम कीमत पर दूसरे देश में निर्यात किया जाता है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय व्यापार विकृत होता है और आयातित देश में घरेलू निर्माताओं पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है।
भारत पर प्रभाव
• इसका अर्थ यह होगा कि चीन आयातित माल पर एंटी डंपिंग शुल्क लगने की कम संभावना होगी और अगर शुल्क लगता भी है तो बहुत कम होगा।
• भारत के इस्पात, रसायन, इलेक्ट्रिकल (विद्युत) और इलेक्ट्रॉनिक्स (विद्युदुण शास्त्र) क्षेत्र चीन के कम मूल्य के निर्यात की वजह से बुरी तरह प्रभावित हैं तथा भारत को एंटी डंपिंग शुल्क का व्यापक उपयोग करना पड़ता है।
• 1994 - 2014 के मध्य भारत ने 535 मामलों में एंटी डंपिंग शुल्क लगाया था जिनमें से 134 मामले चीन से निर्यातित माल पर थे।
चीन का तर्क
• बीजिंग ने 2001 के समझौते का उद्धृत करते हुए कहा कि विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों ने उस समय निर्णय लिया था कि एंटी डंपिंग मामलों में दिसंबर 2016 से चीन को “बाजार अर्थव्यवस्था” माना जाएगा।
भारत, अमेरिका और युरोपीय संघ के तर्क
• चीन को “बाजार अर्थव्यवस्था” का दर्जा देने के खिलाफ भारत, अमेरिका और युरोपीय संघ का कहना है कि “बाजार अर्थव्यवस्था” में कीमतें मुख्य रूप से बाजार दव्ारा निर्धारित की जाती हैं जबकि इसके विपरीत चीन में अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण सरकारी प्रभाव है जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर नकरात्मक प्रभाव पड़ेगा।
• इन देशों ने अन्य कारकों का हवाला भी दिया है जैसे चीनी सरकार की विशाल सब्सिडी, सरकार दव्ारा कीमतों का निर्धारण, उचित व्यापार लेखा मानकों का अभाव, ऋण दरों, न्यूनतम मजदूरी और संपित्त के अधिकार में पारदर्शिता की कमी।