शिक्षा पर सुब्रमण्यम समिति की रिपोर्ट (विवरण) (Subramanian COMMITTEE Report on Education – Social Issues)
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सुर्ख़ियों में क्यों
हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुधार के लिए टी. एस. आर. सुब्रमण्यम ने अपनी रिपोर्ट (विवरण)
• प्रस्तुत की।
• इससे पहले शिक्षा पर दो रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी हैं जो 1968 में इंदिरा गांधी तथा 1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में आई थी। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ 1986 को वर्ष 1992 में संशोधित किया गया था।
नई शिक्षा नीति की आवश्यकता क्यों?
§ शिक्षा पर वैश्विक व्यय कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.9प्रतिशत है, वहीं भारत में यह मात्र 3.4 प्रतिशत हैं।
§ भारत में अच्छे शिक्षकों का अभाव है।
§ रचनात्मकता और शोध पर भी भारत में पूर्णत: ध्यान नहीं दिया जाता है।
§ शिक्षा संस्थानों में कैपिटेशन फीस (शुल्क) के नाम पर मनी लॉन्डरिंग।
§ शैक्षिक संस्थानों से उत्तीर्ण हो कर निकले स्नातकों के लिए रोजगार की विकराल समस्या सामने खड़ी होती है।
§ शैक्षिक संस्थानों में राजनीतिक हस्तक्षेप भी बहुत बढ़ा है।
§ देश में अनेक उच्च स्तरीय संस्थान होने के बाद भी वैश्विक रैंकिंग (श्रेणी) में शीर्ष 500 शिक्षण संस्थानों में भारत का मात्र एक ही संस्थान शामिल है।
रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष
§ भारत में विद्यालयी शिक्षण व्यवस्था में ढांचागत सुविधाएं तो बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद शिक्षण का स्तर गिरा है।
§ बचपन से अत्यधिक व अनावश्यक तनाव से शिक्षा प्राप्ति व सीखने की प्रक्रिया पर गहन असर पड़ता है, जो कि प्राथमिक स्तर से होता हुआ माध्यमिक तथा उच्च अध्ययन तक अपना नकरात्मक प्रभाव छोड़ता है।
§ शिक्षा क्षेत्र में शिक्षकों के उचित प्रशिक्षण का अभाव है, तथा कार्मिक प्रबंधन खामियां हैं।
§ इनके अलावा शिक्षण क्षेत्र विश्वसनीयता की कमी से जूझ रहा है, क्योंकि यहां अत्याधिक बाहरी हस्तक्षेप होता है, जवाबदेही का अभाव है, अनियंत्रित व्यवसायीकरण है तथा उचित मानकों का अभाव है।
रिपोर्ट के प्रमुख सुझाव
§ शिक्षा पर व्यय को तत्काल प्रभाव से 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत किया जाए।
§ शिक्षण संस्थानों में अध्यापकों के लिए लाइसेंस (अनुमति) या शिक्षण प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएँ, तथा इनका नवीनीकरण प्रत्येक दस वर्षों में एक स्वतंत्र बाह्य परीक्षा के आधार पर किया जाए।
§ पूर्व-विद्यालयी शिक्षण को 4 - 5 वर्ष के बच्चों के अधिकार के रूप में घोषित किया जाए, तथा इसे एक कार्यक्रम बना कर क्रियान्वित करने का प्रयास किया जाए।
§ मिड-डे-मील योजना का विस्तार माध्यमिक विद्यालय तक किया जाए।
§ टी. ई. टी. को समस्त शिक्षक भर्तियों के लिए अनिवार्य बनाया जाए तथा बी. एड. पाठयक्रम में दाखिले के लिए स्नातक में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंको का प्रावधान किया जाए।
§ कक्षा पांच तक तब तक विद्यार्थी की उम्र ग्यारह वर्ष के करीब होती है, ‘अनुर्तीण न करने की नीति’ को बनाए रखा जाएगे। उच्च प्राथमिक स्तर पर भी इस नीति दव्ारा सुधारात्मक कोचिंग तथा दो अतिरिक्त मौके प्रदान कर विद्यार्थी को अगली कक्षा में पहुंचने के लिए उसकी योग्यता को साबित करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
§ आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों का विस्तार अल्पसंख्यक संस्थानों तक भी किया जाना चाहिए, क्योंकि भाषायी व धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की संख्या में अत्यधिक विस्तार हुआ है।
अन्य अनुशंसाएं
§ उच्च शिक्षा प्रबंधन के क्षेत्र में एक बार अलग से कानून बनाने के बाद यूजीसी कानून को खत्म कर दिया जाए, तथा उसका कार्य छात्रवृत्तयों व अनुदानों के वितरण तक सीमित किया जाए।
§ पहले 200 पायदान पर काबिज विश्वविद्यालयों को भारत में अपना कैम्पस (परिसर) खोलने की अनुमति प्रदान की जाए।
§ मानव संसाधन के अधीन एक ‘भारतीय शिक्षा सेवा’ का गठन किया जाए, जिसके अधिकारी राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करें।
§ कुपोषण और रक्ताल्पता के बढ़े हुए स्तर को देखते हुए मध्याह्न भोजन की योजना का विस्तार माध्यमिक स्तर तक के बच्चों के लिए भी किया जाए।
§ कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद समस्त विद्यार्थियों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा को प्रावधान होना चाहिए।
आलोचना
§ ‘नई शिक्षा नीति’ का निर्माण करने वाली समिति में 5 में चार सदस्य नौकरशाही तथा केवल एक सदस्य शिक्षा जगत से संबंधित है।
§ विशेषज्ञों का मानना है कि यूजीसी जैसी संस्था को खत्म करने के स्थान पर उसमें आवश्यक सुधार करने की आवश्यकता है।
§ छोटे तथा गैर-व्यवहार्य विद्यालयों के एकीकरण से ‘शिक्षा के अधिकार’ कानून की मूल भावना को चोट पहुंचती है, जो कहता है कि कक्षा 5 तक के विद्यार्थियों के लिए विद्यालय घर से निकट ही स्थित हो।
आगे का रास्ता
§ ‘नई शिक्षा नीति’ के निर्माण के लिए गठित समिति ने अनेक मुद्दों को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया है। भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसमें आवश्यक सुझाव शामिल किए गए हैं।
§ समिति दव्ारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को अनेक मंचों पर विमर्श के बाद तथा आवश्यक परिवर्तन कर लागू करना भारत की शिक्षा व्यवस्था के लिए श्रेयस्कर होगा।